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किसान मर रहे हैं उन्हें धार्मिक ज्ञान नहीं आर्थिक मदद चाहिए

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:22 Oct 2017 5:26 PM GMT

किसान मर रहे हैं  उन्हें धार्मिक  ज्ञान नहीं आर्थिक  मदद चाहिए

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शाहिद ए चौधरी

ज़िला यवतमाल के अंधबोरी गांव में 24 वर्षीय रंजना काम्बले की जिंदगी ठहर सी गई है। वह आठ माह की गर्भवती है; पहली बार उसके आंगन में बच्चे की मुस्कान बिखरेगी। लेकिन वह उदास है। उसका पति विनोद पिछले बीती 17 सितम्बर को ज़िले के बीजेपी नेता राजू डांगे के खेत पर कीटनाशक दवाएं छिड़कने गया था, वहीँ उसे साँस लेने में परेशानी होने लगी, उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, वह तभी से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर है।
रंजना काम्बले को उम्मीद है कि उसका सुहाग बना रहेगा। लेकिन गीता सोनुले के लिए तो कोई आशा की किरण है ही नहीं । उसके 48 वर्षीय पति बंदु सोनुले को विनोद के साथ ही अस्पताल में समान समस्या के चलते,क्योंकि वह शंकर राव चौधरी के खेत पर कीटनाशक छिड़कने गया था, भर्ती कराया गया था। उसका दो दिन बाद यानी 19 सितम्बर को निधन हो गया। अब गीता पर अपनी दो बेटियों व बूढी सास की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी आ गई है। गीता को राज्य सरकार ने थोड़ा सा मुआवजा दिया है,लेकिन वह सवाल करती है, "मुआवजा कितने दिन तक चलेगा? क्या इससे हमारे जीवन में रोशनी लौट आयेगी? क्या किसानों व खेत मजदूरों की इस दुर्दशा पर कभी विराम नहीं लगेगा- वह कभी ऋण के बोझ से तो कभी ज़हरीले कीटनाशक से मरते ही रहेंगे?"
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के देहात में बहुत से घरों में यही कहानी है - कहीं रंजना आस लगाये बैठी है तो कहीं गीता आंसू बहा रही है। जिन किसानों के घर ज़हरीले कीटनाशक से बच गये हैं, वह ऋण और आत्महत्या के बोझ से दबे हुए हैं। 13 अक्टूबर की रात को ज़हरीले कीटनाशक से तीन अन्य किसानों की मौत हुई, जिससे मरने वालों की आधिकारिक संख्या 39 हो गई है जबकि 500 से अधिक अस्पताल में भर्ती हैं। गैर सरकारी रिपोर्टों के अनुसार मरने वालों की संख्या 50 से अधिक है और 800 से ज्यादा अस्पताल में उपचार करा रहे हैं। बीस से अधिक किसान ज़हरीले कीटनाशक के कारण अपनी आंखें खो चुके हैं। 13 अक्टूबर को एक एक मौत वर्धा,चंद्रपुर व यवतमाल जिलों में हुई।
मरने वालों की संख्या में ज़बरदस्त वृद्धि की आशंका है। ऐसा अकारण नहीं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज़हरीले कीटनाशक श्वांस व्यवस्था को प्रभावित करता है, इसलिए केवल पेट को वाश करने से कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा है। दूसरा यह कि स्थिति से निपटने के लिए राज्य सरकार के पास कोई ठोस उपाए नहीं हैं, सिवाय इसके कि मृत किसानों के आश्रितों को दो लाख रूपये का मुआवजा दे दो, यह करो यह न करो संबंधी कुछ दिशा-निर्देश जारी कर दो, कुछ छोटे अधिकारियों को निलंबित कर दो और जांच के लिए समिति बिठा दो। ध्यान रहे कि यवतमाल के ज़िला कृषि विकास अधिकारी दत्तात्रेय कलसाई को निलम्बित कर दिया गया है और स्थानीय अधिकारी अपना ग़ुस्सा स्थानीय पोताओं पर निकालते हैं; जलाराम कृषि केंद्र पर कीटनाशक कानून 1969 का उल्लंघन करने के लिए म़ुकदमा दायर किया गया है।
किसानों की परेशानियां न सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में इस लिहाज़ से भी बढ़ने वाली हैं कि सूखे व अपर्याप्त बारिश के कारण खरीफ फसल इस बार मात्र 3 प्रतिशत ही रह जायेगी जबकि 2016-17 में वह 4.9 प्रतिशत थी। ऐसा नीति आयोग का कहना है। 2014 में बीजेपी ने वायदा किया था कि वह 2022 तक किसानों की आय दोगुना कर देगी, लेकिन हर तरफ से किसानों की बढ़ती परेशानी व बेचैनी की ही खबरें आ रही हैं, अगर वह अपनी मांगों को लेकर उठते हैं तो उन पर गोलियां चलाई जाती हैं (मंदसौर में पांच किसान पुलिस फायरिंग का निशाना बने) या उन्हें नंगा करके पीटा जाता है (टीकमगढ़ में 50 किसानों को नंगा करके पीटा गया)। और इन सब समस्याओं का बीजेपी की केंद्र व राज्य सरकारों के पास क्या हल है? केन्द्राrय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह कहते हैं कि वह किसानों को कृषि के 'आध्यात्मिक व धा।मक' लाभ समझायेंगे और इस काम के लिए वह लगभग 50,000 कार्यकर्ताओं को किसानों के पास भेजेंगे। यह कार्पाम दिवाली के बाद शुरू होगा और कार्यकर्ताओं को विधानसभा क्षेत्र के हिसाब से विभाजित किया जायेगा।
इसके अलावा बीजेपी के पास किसानों की समस्या के समाधान का दूसरा रामबाण यह है कि ऋण म़ाफ कर दिया जाये। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ऋण म़ाफ किये और किसानों को कर्ज़ म़ाफी सा।टफिकेट दिए गये कि उनका एक रूपये तक का कर्ज़ म़ाफ कर दिया गया है। यह सब तथ्य बिना टिप्पणी के इसलिए दर्ज किये गये हैं कि आप स्वयं अंदाज़ा लगा लीजिए कि बीजेपी सरकारें किसानों की समस्याओं को लेकर कितनी गंभीर व संवेदनशील हैं। बहरहाल, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि विदर्भ में कपास, सोयाबीन व दालों की खेती में कीटनाशक दवाओं का प्रयोग तो दोनों तरल व पाउडर रूप में पहले भी किया जाता था तो इस बार ऐसा क्या हुआ कि दर्जनों किसानों की मौत हो गई? यह प्रश्न इसलिए भी प्रासंगिक है कि गुजरात व महाराष्ट्र में किसान जेनेटिकली मॉडिफाइड (जी एम) कपास की खेती करते हैं जिसपर बोलवर्म, एक प्रकार का कीड़ा, हमला नहीं करता है तो इस सिलसिले में कीटनाशक की आवश्यकता क्या थी?
दरअसल, बीटी कॉटन रसायनों की निर्भरता को कम करने में नाकाम रही है। इस साल बोलवर्म ने भी इस पर हमला किया। मजबूरन किसानों को कीटनाशक का प्रयोग बढ़ाना पड़ा और उन्होंने इसका अति शक्तिशाली मिश्रण इस्तेमाल किया, वह भी बिना सावधानी बरते हुए जैसे दस्तानों, चश्मों व विशेष कपड़ों का प्रयोग नहीं किया गया या यह चीज़ें खर्चा बचाने के लिए खेत मालिकों ने इन्हें उपलब्ध नहीं कराई। फिर जन स्वास्थ व्यवस्था का चरमरा जाना, कृषि विभाग में सतर्कता का अभाव, गलत कृषि नीतियां जो लगातार लागू की जा रही हैं, आदि ने भी आग में घी का काम किया। इस सबका नतीजा यह है कि ज़हरीले कीटनाशक के कारण अपने पति गजानन को खोने वाली संगीता फूलमाली कहती हैं, "मुझे खेतों पर काम करने से डर लगता है, खतरा बहुत है, लेकिन बच्चों का पेट भी भरना है ।"

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