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नांदेड़ मनपा के चुनाव नतीजे कांग्रेस की जीत से भी बड़ा है यह संदेश..!
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लोकमित्र
जो लोग कहते हैं नांदेड़ महानगरपालिका चुनाव में कांग्रेस की जबर्दस्त जीत में उसके अच्छे दिन आ जाने का संदेश छिपा है ,वह लोग गलत नहीं कह रहे। लेकिन नांदेड़ के इन नतीजों में एक और बड़ा संदेश छिपा है,हमारा ध्यान उस पर भी जाना चाहिए। यह संदेश लोकतंत्र के लिए है जिसे नांदेड़ के मुसलमानों ने दिया है। नांदेड़ मनपा डमहानगरपालिक़ा के नतीजों में छिपे इस दूसरे मैसेज को भी समझिये। लेकिन पहले वस्तुस्थिति।
गौरतलब है कि नांदेड़ मनपा में कुल 81 सीटें हैं। साल 2012 में हुए मनपा चुनाव में कांग्रेस को 41,शिवसेना को 14 और असुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन डएआईएमआईएम़ को 11 सीटें मिली थीं। इसके अलावा एनसीपी को 10 और भाजपा को महज 2 सीटें मिली थीं। इस नतीजे में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था सिवाय एआईएमआईएम की जीत को छोंड़कर। हालांकि तीन साल बाद ओवैसी की एआईएमआईएम को महाराष्ट्र के ही औरंगाबाद शहर में 26 कार्पोरेट सीटें भी मिलीं। लेकिन नांदेड़ में एआईएमआईएम की जीत का हंगामा ही कुछ और था। रातोंरात शिवसेना प्रदेश के मुसलामानों पर साम्प्रदायिक और मुस्लिमपरस्त होने का आरोप मढ़ दिया था।
इस लिहाज से 13 अक्टूबर 2017 को आये नांदेड़ मनपा के चुनाव नतीजों में एआईएमआईएम को मिला शून्य एक बड़ा संदेश है। अगर साल 2012 में एआईएमआईएम को मिली 12 सीटें मुसलमानों के मुस्लिमपरस्त होने का सबूत था तो इस समय यह इस बात का सबूत है कि मुसलमान देश की साझी विरासत और साझी सियासत पर यकीन करता है। इस बार जो चुनाव नतीजे रहे हैं उनमें कांग्रेस को कुल 81 सीटों में से 73, भाजपा को छह, शिवसेना को एक सीट मिली है और एक सीट निर्दलीय के खाते में गयी है। जबकि कांग्रेस की सहयोगी राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी (राकंपा) और एआईएमआईएम खाता खोलने में भी नाकाम रहीं। यहाँ एआईएमआईएम के हारने से ज्यादा बड़ा संदेश यह है कि देश का मुसलमान अपने जनप्रतिनिधि चुनने के लिए मुसलमानों की तरफ नहीं देखता। इस मायने में वह हिन्दुओं से कहीं ज्यादा प्रगतिशील और वतनपरस्त है। क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू जन-प्रतिनिधि चुनते समय अपनी जाति-बिरादरी से लेकर अगड़े-पिछड़े तक की सोच से घिरा होता है।
नांदेड़ का यह मैसेज इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शहर की आबादी में 29ज्ञ् मुसलमान हैं जो मनपा की 42 सीटों को पूरी तरह से प्रभावित कर सकते हैं अगर गोलबंद होकर किसी एक पार्टी के पक्ष में मतदान करें। नांदेड़ में 52 ज्ञ् हिंदुओं,29 ज्ञ् मुसलमानों के बाद 16 फीसदी बौद्ध भी है जिन्हें ओवैसी मुसलामानों के साथ जोड़कर एक विनिंग फार्मूला को भी नांदेड़ में तो नहीं पर औरंगाबाद मंडल के ही सबसे बड़े शहर औरंगाबाद में आजमा चुके हैं। इसलिए भी नांदेड़ में कांग्रेस का जीतना राष्ट्रीय राजनीति में मुसलमानों की सकारात्मक सोच का नतीजा है।
हालांकि इन चुनावों में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी और इस आह्लादित कर देने वाली जीत से उनका जोरदार उत्साहित होना भी स्वाभाविक है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस जीत में देश की सोच बदलने की कोशिश मुसलामानों ने किया है। लेकिन इस सबके अलावा नांदेड़ की जीत का एक और महत्वपूर्ण पहलू है जिधर शायद न तो मुखर रूप से देश की राजनीतिक पा।टयों का और न ही राष्ट्रीय मीडिया का संज्ञान लेने के स्तर पर ध्यान गया है। यह पहलू है सुरक्षित ईवीएम। जी,हाँ याद करिए इससे पिछली बार जब देश में पांच विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे तो इन चुनावों में एकतरफा जीत हार के लिए ईवीएम मशीनों पर आरोप लगे थे। अरविंद केजरीवाल ने बड़ी मुखरता से ये आरोप लगाए थे।
इन आरोपों के बाद नांदेड़ मनपा के पहले चुनाव थे जो सुरक्षित ईवीएम के साथ हुए। महाराष्ट्र में पहली बार इसी चुनाव में चुनाव आयोग ने पूरी तरह से वोटर वेऱीफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी (वीवीपैट) मशीन का इस्तेमाल किया। कहने का मतलब पहली बार यह आधिकारिक रूप से सुनिश्चित हुआ कि ईवीएम के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हुई। इसलिए भी इस चुनाव के नतीजों का अपना एक महत्व है।
अगर नांदेड़ को भौगोलिक रूप से देखें तो यह औरंगाबाद मंडल में आता है जिसमें अन्य जिले हैं-बीड,हिंगोली,जालना,लातूर और उस्मानाबाद। नांदेड़ मराठवाड़ा क्षेत्र के पूर्वी भाग में स्थित है। यह पूर्व में आंध्र प्रदेश के निज़ामाबाद, मेडक और आदिलाबाद जिलों से घिरा है, मराठवाड़ा के परभणी और लातूर जिले इसके पश्चिम में, विदर्भ क्षेत्र का यवतमाल जिला उत्तर में और कर्नाटक का बीदर जिला इसके दक्षिण में स्थित है। कहने का मतलब नांदेड़ के लोगों के व्यवहार, भाषा और आचरण अकेले महाराष्ट्र का ही आंध्र और कर्नाटक का भी कहीं न कहीं प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए यह संदेश एक किस्म से मुसलमानों की सोच का राष्ट्रीय संदेश है।
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