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र्कैंसे रहें जीवंत रिश्ते जब वर्किंग हों और ड्यटी टाइम का क्लैश हो
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नम्रता नदीम
चूँकि चलती का नाम जिंदगी है इसलिए यह अक्सर गति में रहती है। न रहे तो रखना पड़ता है। जैसे राजेश और अंजली को रखना पड़ता है। दरअसल एक शेयर कंपनी में काम करता है। उसका ऑफिस टाइम दिन में दस से पांच है। जबकि उसकी पत्नी अंजली एक अस्पताल में रिसेप्सनिस्ट है। वैसे तो उसकी ड्यूटी बदलती रहती है। लेकिन उसकी ड्यूटी अक्सर रात में पड़ती है या दोपहर बाद से देर शाम तक। क्योंकि हॉस्पिटल पूरे 24 घंटे खुला रहता है इसलिए इस ड्यूटी टाइम को लेकर कुछ कहा भी नहीं जा सकता। बहरहाल ड्यूटी की इस टाइमिंग के चलते दोनों के लाइफ शेड्यूल में जबरदस्त टकराव है। क्योंकि दोनों को बहुत कम समय एक दूसरे के साथ गुजारने को मिलता है।
जाहिर है ऐसे में जो समय मिलता है, वह बहुत कीमती होता है। इसलिए उसके एक-एक लम्हे हैं, का सदुपयोग करना पड़ता है। वरना संबंध में ही दरार पड़ जाती है। अपने कम समय को यादगार बनाने के लिए राजेश और अंजली ने तमाम नए नए तरीके खोजे हैं मसलन दिन के जिन लम्हों में वो साथ रहते हैं,उस समय ज्यादातर समय साथ-साथ गुजारने के लिए दोनों एक दूसरे के कामों में अच्छे से हाँथ बंटाना सीख गए हैं और इसी दौरान कुछ हरफनमौला लम्हे भी चुरा लेते हैं।
ऐसे ही दूसरे जोड़ों के लिए उनकी सीख है कि वक्त चुराना सीखो। इसके लिए योजनाओं को स्मार्टनेस के साथ बनाएं। जितना ज्यादा मुमकिन हो उतना मिलें, हर तरह से मिलें। यह तय है कि एक ही दिन में अलग-अलग ड्यूटी शेड्यूल होने के कारण इस तरह की प्लानिंग थोड़ी मुश्किल होती है लेकिन नामुमकिन नहीं। कैसे ? आइये जाने। आपको काम पर जाने की जल्दी है। लेकिन आपके साथी का मूड रंगीन हो रहा है। सवाल है अब क्या किया जाए ? जवाब है काम तो आगे पीछे फिर भी हो जाएगा पर यह इंद्रधनुषी लम्हा लौटकर नहीं आएगा।
सीख नंबर दो यह है कि छुट्टी के दिन सप्ताह भर की लांड्री को धोने के लिए न बैठ जाएं। इस काम के लिए कोई नौकरानी रखें या मशीन का प्रयोग करें। कई दिनों बाद साथ-साथ लंच कर रहे हैं तो बेहतर है कि किसी होटल को आर्डर कर दें या फिर दोनों मिलकर साथ-साथ कुक करें। अगर बर्तन अपने आप ही साफ करने हैं, तो फैंसी ाढाकरी को अलमारी में ही रखा रहने दें। पेपर प्लेट्स का प्रयोग करें। समय बचेगा। धोने का झंझट भी। कभी किस्मत से ऐसा अवसर मिल जाए कि दोनों की ही साथ छुट्टी है और बिस्तर छोड़ने में दोनों को ही आलस्य है, तो सोचना क्या है, क्या यह भी हमें ही बताना पड़ेगा कि समय का सही इस्तेमाल कैसे करें ?
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