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मुर्दों की बढ़ती तादाद से परेशान है दुनिया भविष्य के कब्रिस्तानों का होगा कायाकल्प

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:14 Jan 2018 1:27 PM GMT

मुर्दों की बढ़ती तादाद से परेशान है दुनिया    भविष्य के कब्रिस्तानों का होगा कायाकल्प

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संजय श्रीवास्तव

अंतिम संस्कार के तौर तरीके भविष्य में काफी बदल जायेंगे, साथ ही कब्रिस्तान भी बदलेंगे। भविष्य के कब्रिस्तान बेहद तकनीकी संपन्न और अल्ट्रा मार्डन होंगे।
सब कुछ बदलेगा तो भला कब्रिस्तान ही क्यों पीछे रहेंगे? भविष्य की आवश्यकताएं, वर्तमान के नवाचार, बदलता सामाजिक परिवेश और मूल्य मान्यताएं सब मिलकर आने वाले दिनों में कब्रिस्तान का कायाकल्प कर देंगी। कम से कम इस क्षेत्र में नये चलन, शोध और विकास तो इसी ओर इशारा कर रहे हैं। कब्रिस्तानों का विस्तार जमीन के भीतर और ऊपर बहुमंजिली इमारतों से समुद्र की अतल गहराइयों तक जायेगा, यहां तक कि इसका क्षैतिज विस्तार आकाश और अंतरिक्ष में भी संभव है। लोगों की चाहत के हिसाब से उन्हें मूंगा फ्रवाल भित्तियों, चुनिंदा जनशून्य द्वीपों या फिर दूसरे ग्रहों में भी दफनाया जा सकेगा। कहने का मतलब शानो शौकत का फ्रतीक होने के साथ ही स्टेटस सिंबल की तरह होंगे भविष्य के कब्रिस्तान।
अभी कब्रिस्तान एक सुनसान जगह हैं भविष्य में ये दर्शनीय स्थल के तौरपर भी विकसित होंगे। ये कब्रिस्तान कनेक्टेड और इस तरह की संचार सुविधा से लैस होंगे। अभी तक कब्रगाह का रिश्ता मृतक और उसके परिजन, कब्र खोदने वाला, कब्रगाह का फ्रबंधक या संस्था तथा दफन करने की फ्रािढया निभाने वाले धर्माचार्य से पड़ता था पर भविष्य की कब्रगाहों के लिये बेहतरीन डिजाइनर, मल्टीमीडिया आर्टिस्ट, थियेटर में काम करने वाले, कंप्यूटर फ्रोग्रामर, एप बनाने वाले, तकनीकिज्ञ, फ्यूनरल मैनेजर और पर्यावरण विज्ञानी जैसे बहुत से लोगों की आवश्यकता होगी। कब्रिस्तान में दफनाने के श्रम अदा करवाने वाला रोबोट तो बन भी चुका है। अनीश्वरवादियों की तादाद तेजी से बढ़ रही है। वे लोग जो धार्मिक तौरपर शवों को जलाने के आग्रही नहीं हैं, उनका तकरीबन 17 फीसदी हिस्सा यह स्वीकारता है कि जरूरी नहीं कि उनके बच्चे भी उन्हीं के धर्म को मानें जिनको वे मानें या किसी भी धर्म से आबद्ध रहें।
बहुतेरे लोगों का मानना है कि पारंपरिक तौरपर दफनाने में लाखों टन लकड़ी और हजारों टन स्टील तथा बेहिसाब पानी बर्बाद हो जाता है। भारी खर्च और धार्मिक कट्टरता में कमी के चलते अब बहुत से लोग जो शव को पारंपरिक तौरपर दफनाने के फ्रति बहुत आग्रही नहीं रहे हैं वे दूसरे विकल्पों की ओर बढ़ रहे हैं। कब्रिस्तान क्या है, एक स्मरण स्थल, स्मारक। भविष्य में सोशल नेटवर्क साइटें इस तरह की सुविधा देंगी जिसके जरिये लोग जीपीएस और इंटरनेट से जुड़ी अपने संबंधियों की कब्रों को वर्चुअल मान्यूमेंट या आभासी स्मारक के तौरपर बदल सकते हैं। इस स्मारक में न सिर्फ उनकी कब्र का लोकेशन होगा बल्कि सोशल साइटों पर बिताये उनके जीवन का हिस्सा भी मौजूद होगा। मरने से पहले उनके किए गये पोस्ट, शेयर, चैट और वीडियो इत्यादि सब यहां डिजिटल तौरपर देखने के लिए उपलब्ध होगा। यहां दिवंगत के फ्रति अपनी संवेदना, शोक तथा हर तरह के विचार व्यक्त करने की सुविधा होगी।
मृतक के परिजनों के पास यह विकल्प खुला होगा कि वे इस डिजिटल मेमोरियल और परिवारजनों, फ्रियजनों के लिये डिजिटल तीर्थ बन चुके स्थल को आमजन के लिये खोलें या साथियों और परिजनों तक ही सीमित रहें। शहरों में कब्रिस्तान के लिए सबसे ज्यादा मारामारी स्थान को लेकर है, उसके बाद पर्यावरणीय फ्रश्न। कब्रगाहों से पारा आर्सेनिक जैसे रासायनिक फ्रदूषणों के रिसाव और अन्य पर्यावरणीय विसंगतियां आज भी सामने हैं। पर्यावरणीय दिक्कतों का ध्यान में रखकर हरे भरे नेचुरल पार्क जैसे कब्रिस्तान बनाये जायेंगे। इसमें दफनाने वाले शवों के बारे में ध्यान रखा जायेगा कि ताबूत बांस जैसी लकड़ी का हो, उस पर किसी तरह का रासायनिक लेप न हो। कपड़े जिसमें शव लिपटा है वह और दूसरे तत्व भी शीघ्र ही अपघटित होने वाले हों। कब्रें गहरी नहीं खोदी जायेंगी जिससे सूक्ष्म जीव ज्यादा मात्रा में आकर अपना काम तेजी से निबटाएं, शव का कम्पोस्ट बन सके।
शव के साथ ऐसी डिवाइस दफनाई जायेगी जिससे उसके वहां होने का पता सगे संबंधी लगा सकें; क्योंकि वह स्थान जमीन के साथ ही एक साफ सुथरे हरे भरे लॉन की तरह हो जायेगी जिसके स्थान पर कोई यादगारी पत्थर नहीं लगा होगा। बहुत हुआ तो कोई पेड़ यादगार में उसी स्थान पर रोपा जा सकेगा। साथ में दफन ग्लोबल पोजीशनिंग डिवाइस से ही संपर्क करने के बाद उसका सही स्थान पाया जा सकेगा। यह कब्रगाह वालों की ही ड्यूटी होगी कि वे जहां कब्र है उसकी सटीक लोकेशन और बाकी जानकारियों तथा आंकड़े के साथ स्मृतिलेख अपनी साइट से जारी करें। कब्रों को इंटरनेट ऑफ थिंग्स के तहत जोड़े। हालांकि दफनाने के बाद इस हरे भरे कब्रिस्तान में आने की कोई खास आवश्यकता नहीं; क्योंकि यह कब्रगाह इसके बाद वर्चुअल या अवास्तविक अथवा आभासी तौरपर इंटरनेट पर विद्यमान होगी। संबंधी इंटरनेट के जरिये अपने परिजनों की कब्र का दर्शन कर सकते हैं। सरकारी या संस्थागत तौरपर हर कब्र का आंकड़ा और उसकी ग्लोबल पोजीशनिंग नक्शे पर मौजूद होगी जहां जाकर और उसको जूमकर अपने संबंधी की कब्र का नजदीक से देखा जा सकेगा।
पहले तो शहरी कब्रिस्तान पास के गांवों की तरफ बढ़ेंगे और फिर इनके लिये नए तरह की डिजाइन बनाने की शुरुआत होगी। अमूमन यह बहुमंजिला इमारत की शक्ल में होगी। इसके बाद आयेगा इन बहुमंजिला कब्रगाहों को आधुनिक, तकनीकी संपन्न और सुविधाजनक बनाने की बात। शुरुआत में यह नॉन डिजिटल होंगी पर बाद में ये मल्टीस्टोरीज सिमेट्री पूरी तरह आधुनिक तकनीक संपन्न ही नहीं पूर्णतया डिजिटल भी होंगी। बहुमंजिली कब्रगाह बहुत दिनों तक सामान्य कब्रिस्तान सरीखे नहीं रहेंगे। भविष्य में यहां कब्रें न होकर बस वह पेटिका होगी जिसमें शव के अवशेष होंगे और जब कोई संबंधी उनका दर्शन करना चाहेगा, उसकी तय पहचान और संख्या बताएगा, कन्वेयर बेल्ट पर वह स्मृति अवशेष पेटिका उसके सामने आ जायेगी। जापान जैसे देशों में जहां स्थान की कीमत बहुत ज्यादा है अभी से ही पुराने भंडारगृह या इस तरह के खाली भवन बहुमंजिला कब्रगाह बनाने के लिये तैयार किए जाने लगे हैं। शुरुआती दौर में बहुमंजिले कब्रिस्तान को पारंपरिक कब्रगाहों जैसा ही रखा जाना है यानी कि जमीन और पेड़ पौधे, घास समेत।
इजराइल, जापान, ब्राजील इसकी तैयारी में हैं। भारत के कुछ सघन बसे शहरों यथा मुंबई और इंडोनेशिया व चीन जैसे देशों को इस तरह के इंतजाम भविष्य में करने होंगे। इस अवस्था के बाद पानी में दफनाने की तकनीक अक्वामेशन के नाम से सामने आयेगी। यह अलकलाइन हाइड्रोलेसिस की फ्रािढया शव को पानी में फ्राकृतिक तौरपर तेजी से गलने में मदद देगी। इस तरह की कब्र को चुनने का मुख्य कारण यह होगा कि इसमें फ्रदूषण दूसरे तरीकों से महज दस फीसदी ही होगा। कंपनियां अवशेषों को पृथ्वी की कक्षा या वायुमंडल से पार ले जाकर अंतरिक्ष में विलीन करने का कम भी करेंगी। यह बहुत पर्यावरणफ्रिय कदम तो नहीं ही होगा ऊपर से मंहगा होगा, कीमत तय की जाने वाली दूरी पर तय होगी। मृतकों के अवशेष जो एक से दस ग्राम तक के होंगे एक ट्यूब में रखकर रॉकेट द्वारा रवाना किए जायेंगे। इसका सजीव विवरण परिजन देख सकेंगे। यह अविस्मरणीय अंतिम संस्कार होगा जिसकी कब्र अंतरिक्ष में होगी। एक अलग तरह की कब्रगाह जिसमें शव उनके सगे संबंधी जब चाहे देख सकेंगे। कहा जायेगा कि ये शव नहीं है बल्कि कुछ समय के लिये मृत हैं, टेम्पोरेरेअली डेड हैं।
यह एक खास तरह के पारदर्शी कैप्स्यूल के भीतर विशेष तापमान नियंत्रित करने वाले र्द्व के भीतर दफन हुये रहेंगे। फिलहाल मुख्य तौरपर यह सुविधा अभी बहुत कम है पर जब यह सस्ती और सुलभ होगी तो इस तरह के कब्रगाह का भी चलन बढ़ेगा भले ही परिजन इन्हें शाश्वत तौरपर बरसों बरस न रखें पर मनचाहे समय तक तो एक गैलरी के शक्ल वाले इस तरह के अनू"s कब्रिस्तान में उनको दफना सकते हैं।
बॉक्स-1
यादगारी पत्थर बोलेगा
भविष्य में कब्र पर लगाया गया यादगारी पत्थर का मैटेरियल बिल्कुल अलग किस्म का होगा। यह वह पत्थर होगा जो संवाद करता हुआ और तकनीकी का एक बेहतरीन मिसाल होगा। यह दफन हुये व्यक्ति के परिजनों और उसकी वर्तमान तथा आने वाली पीढ़ियों को उसका पूरा और सजीव परिचय देगा। इस परिचय में उसके चित्र, आवाज, वीडियो उसके द्वारा किए गये उल्लेखनीय कार्य सहित उसका समूचा जीवनवृत्त होगा। इस पत्थर पर एक क्यूआर कोड या चिन्ह बना होगा जैसा कि आजकल भी तमाम वस्तुओं और दूसरी जगहों पर दिखता है। यह क्विक रीड कोड की तस्वीर जैसे ही कोई सगा संबंधी अपने स्मार्ट फोन या तत्संबंधी डिवाइस से स्कैन करेगा इसमें सारे विवरण नुमाया हो जायेंगे। यही नहीं यह विवरण उस व्यक्ति की विरासती या पारिवारिक वेबसाइट या पोर्टल पर भी ले जायेगा। इस नितांत वैयक्तिक पोर्टल या वेबसाइट पर सगा संबंधी कब्रगाह की वास्तविक लोकेशन अपनी पारिवारिक इतिहास, स्मरणांजलि, भावनायें, उद्गार, विचार, यादगार, चित्र इत्यादि साझा कर सकेंगे। निःसंदेह यह पासवर्ड से सुरक्षित होगा और उन्हीं को इसके लिये अनुमति देगा जो इसके पात्र होंगे। इस क्यूआर कोड के अलावा उस यादगारी पत्थर पर पहले से रिकार्ड किये हुये उद्गार सुनने और संबंधित वीडियो देखने की भी व्यवस्था होगी।
बॉक्स-2
जिंदों पर भारी हैं मुर्दे
क्या आपको पता है कि आज दुनिया मुर्दों की बढ़ती संख्या से परेशान है ? जी, हां! जिंदा इंसानों से ज्यादा इस समय दुनिया में गुजर चुके लोगों का बोझ है। दुनिया अपने कन्धों पर मुर्दों के इस भारी बोझ से परेशान है। उसके कंधे दरके जा रहे हैं और कमर लचके जा रही है। मुर्दे दुनिया के लिए मुसीबत बन गए हैं। समझ नहीं आ रहा कि उनका क्या किया जाए ? उन्हें कहां दफनाया जाए ? उन्हें जलाने के लिए इतनी लकड़ी कहां से आयें और उनकी अस्थिओं को सुरक्षित रखें तो कहां ? दुनिया के जो तमाम देश इस समस्या से परेशान हैं उनमें भारत भी एक है।
इस समस्या पर पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था, `जिस तरह कब्रिस्तानों और श्मशानों का विस्तार हो रहा है, उससे तो कुछ साल बाद लोगों के रहने के लिए ही जगह नहीं बचेगी।' दफनाने की जगह की ऐसी किल्लत हो गई है कि पुरानी कब्रें खोदकर उनकी जगह नई लाशें दफनाई जा रही हैं। कई यूरोपीय देशों में कब्र के लिए जमीन इतनी महंगी हो गई है कि जमीन से अस्थियां निकालकर उन्हें बड़े गड्ढों में जमा किया जा रहा है। मृतकों का सम्मान अपनी जगह है लेकिन मुर्दे अब सम्मान का नहीं आफत का विषय हैं। दुनिया की सभी सभ्यताओं में मुर्दों को मान देने का चलन रहा है सिर्फ पारसी ही दुनिया की अकेली कौम है जो लाश को ऊंचे टीले पर ले जाकर रख देती है जिसे चील कौव्वे खा जाते हैं। आज भारत में जहां तीन चौथाई मुर्दे जलाए जाते हैं, वहां भी एक अनुमान के मुताबिक करीब 70,0000000 मुर्दे धरती के नीचे दफन है, इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरी दुनिया में यह आफत किस स्तर की होगी। एक अनुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में जमीन के नीचे दफन मुर्दों की संख्या कोई 20 अरब के आसपास है।

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