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दीपा करमाकर पहले किस्मत ने ठगा अब चोट से लाचार हैं

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:14 Jan 2018 1:36 PM GMT

दीपा करमाकर  पहले किस्मत ने ठगा अब चोट से लाचार हैं

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सारिम अन्ना

"जब मेरे चोट लगी थी तो मैं अपने खेल के चरम पर थी। मुझे सब कुछ छोड़ना पड़ा और अपने स्वास्थ पर फोकस करना पड़ा। लेकिन आलिया मुस्ताफिना को देखो। उसे भी 2010 में एसीएल (एक फ्रकार की घुटने की चोट) लगी थी, लेकिन उसने दोनों लंदन 2012 व रिओ 2016 में स्वर्ण पदक जीता। इसलिए मैं भी वापसी कर सकती हूं। मैं कड़ी मेहनत में विश्वास रखती हूं। मैं त्रिपुरा से आती हूं और मैंने वह खेल चुना जिसके बारे में मेरे क्षेत्र में कम लोग जानते थे। मुझे ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना पड़ा। 12 वर्ष तक भारतीय उपकरण से फ्रैक्टिस करनी पड़ी। इसलिए मैं यहां केवल कड़ी मेहनत से पहुंची हूं।'
यह कहना है भारत की सबसे शानदार जिमनास्ट दीपा करमाकर का, जो अपने घुटने की सर्जरी के बाद पुनः फ्रतिस्पर्धा फिटनेस के लिए फ्रयास कर रही हैं। ऐसा फ्रतीत होता है कि दीपा जिम्नास्टिक से बाहर की दुनिया से परिचित ही नहीं हैं। इसलिए चोट व रिओ 2016 के बाद फ्रतियोगिता से बाहर रहने के बावजूद सिर्फ अपना स्पोर्ट्स ही उनके दिमाग में है। जिन दस दिन वह अस्पताल में रहीं बस तभी उन्होंने ट्रेनिंग नहीं की, वर्ना वह रोजाना जिम में होतीं- 9 से 1 और फिर 5 से 8 तक। अतः वह पूर्णतः आउट ऑफ टच नहीं थीं, अपनी लय में न थीं, लेकिन जिम व उपकरण का साथ अवश्य था। बहरहाल, अब दीपा कुछ समय के लिए `मौत की कलाबाजी' फ्रोडूनोवा की जगह थोड़ा कम खतरनाक हैंडफ्रिंग 540 करेंगी।
हैंडफ्रिंग क्या है? यह वह कलाबाजी है जिसमें हाथों का फ्रयोग करते हुए बेस (फ्लोर, वोल्ट आदि) से `फ्रिंग' (उछलकर कलाबाजी) करना होता है हवा में और फिर एकदम सीधी स्थिति में लौटना होता है। हैंडफ्रिंग 540 क्या है ? इसमें डेढ़ समरसाल्ट (कलाबाजी) लगानी होती है। एक समरसाल्ट 360 डिग्री का होता है। जिमनास्ट बोर्ड से वोल्ट पर उछलता है, हैंडफ्रिंग करता है हवाई 540 में, जिसमें ट्विस्ट भी शामिल होती है और फिर उसे अपने पैरों पर लैंड करना होता है, वोल्ट का सामना करते हुए। हैंडफ्रिंग 540 फ्रोडूनोवा से कितना भिन्न है? फ्रोडूनोवा भी आगे जाने वाला हैंडफ्रिंग रूटीन है, जिसमें दो पूर्ण समरसाल्ट (720 डिग्री) होते हैं, जबकि हैंडफ्रिंग 540 में डेढ़ समरसाल्ट होता है। फ्रोडूनोवा में लैंडिंग के समय जिमनास्ट को वोल्ट से दूसरी तरफ मुंह करना होता है। हैंडफ्रिंग 540 फ्रोडूनोवा जितना खतरनाक तो नहीं है, लेकिन दीपा के कोच बिश्वेश्वर नंदी के अनुसार यह खतरे व क"िनाई के मामले में फ्रोडूनोवा के बाद दूसरे स्थान पर है।
हैंडफ्रिंग 540 में भी फ्रैक्टिस से फ्रतियोगिता तक 100 फ्रतिशत एकाग्रता की आवश्यकता होती है । एक जिमनास्ट को बच्चे जैसा मनोविज्ञान चाहिए कि इस तरह परफॉर्म करे जैसे उसे कोई देख ही न रहा हो। जरा भी मन भटकना नहीं चाहिए। क्या 24 वर्ष की आयु में दीपा के लिए ऐसा करना संभव है? नंदी का कहना है, "क"िन वोल्ट करने के लिए दीपा के पास जीत की मानसिकता है। उसमें लग्न और आग है। महत्वपूर्ण यह है कि इस ऊर्जा को उसकी फ्रैक्टिस में लाया जाये। फ्रोडूनोवा उसके लिए क"िन नहीं है। जब भी वह करती है उसकी लैंडिंग परफेक्ट आती है। आज पॉवर जिम्नास्टिक का दौर है। पहले जिमनास्ट हल्के हुआ करते थे...42-45 किलो। अब अधिकतर का वजन 50 किलो से अधिक है। आयु भी कोई समस्या नहीं है, ज्यादातर जिमनास्ट 25 साल से अधिक के हैं। क"िनता का स्तर बढ़ गया है, फ्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है, लेकिन ऐसी कोई वजह नहीं है कि दीपा 24 की आयु में जीत नहीं सकती।'
कुछ अन्य बातें भी दीपा के पक्ष में जाती हैं। सबसे पहली बात यह कि चोट ने उन्हें मानसिक रूप से फ्रभावित नहीं किया है। दूसरा यह कि उन्हें क"िन चुनौतियां पसंद हैं, खासकर इसलिए कि जिम्नास्टिक में यही अधिक अंक फ्रदान करता है। पहले वह सुकाहरा 720 (डबल ट्विस्ट) व सुकाहरा 900 (ढाई ट्विस्ट) किया करती थीं। अंतिम यह कि जहां अधिकतर उच्चस्तरीय एथलिट दिन में औसतन छह घंटे फ्रैक्टिस करते हैं, वहीं दीपा की फ्रैक्टिस आ" घंटे तक चली जाती है। अपने फन में दक्ष होना दीपा के लिए मुश्किल नहीं है और इसके लिए वह क"िन परिश्रम भी कर रही है। लेकिन एक राष्ट्र की उम्मीदों का फ्रबंधन करना आसान नहीं है, खासकर जब वह दीपा के रिओ में शानदार फ्रदर्शन से अभी तक न उभरा हो। राष्ट्रकुल खेलों (ग्लासगो, 2014) व एशियाई चैंपियनशिप (हिरोशिमा, 2015) में कांस्य पदक फ्राप्त करने वाली दीपा रिओ 2016 में सेकंड के 100 वें हिस्से से पदक चूक गई थीं और विश्व चैंपियनशिप (ग्लासगो, 2015) में वह पांचवें स्थान पर थीं।
बाहरी दुनिया के लिए जिम्नास्टिक एक भव्य शो से अधिक कुछ नहीं है, जिसमें जिमनास्ट का क"िन रूटीन भी सामान्य फ्रतीत होता है, जैसे कुछ खास बात न हो। दर्शकों को इसका अंदाजा नहीं होता कि इस खेल में शुरू से अंत तक खतरा ही खतरा है, सेकंड भर की देरी और जिमनास्ट का करियर (शायद जीवन भी) समाप्त। लेकिन इसके बावजूद उसे अपना परफॉरमेंस मुस्कान के साथ खत्म करना होता है। चुनौती सिर्फ खेल मैदान की ही नहीं है। चर्चित फ्रोडूनोवा वोल्ट पर परफॉर्म करने वाली दीपा जिमनास्टिक के इतिहास में दूसरी जिमनास्ट हैं। वह भारत की पहली जिमनास्ट हैं जिन्होंने न केवल रिओ ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया बल्कि फाइनल में अपनी छाप भी छोड़ी। रिओ में वह बहुत ही मामूली अंतर से ओलम्पिक पदक से चूक गयीं, लेकिन लाखों लोगों का उन्होंने दिल जीत लिया। हर तरफ से तारीफ मिली व ईनाम की घोषणाएं हुईं।
लेकिन इस सबके बीच दीपा को केवल एक ही टिप्पणी याद है और वह तारीफ नहीं है। दीपा के अनुसार, "फेसबुक पोस्ट पर जब हर कोई मुझे मुबारकबाद दे रहा था तो एक व्यक्ति ने कहा कि दीपा को ऐसी कास्ट्यूम पहनने के लिए शर्म आनी चाहिए। हालांकि इसके जवाब में किसी ने कहा कि वह बुर्का पहनकर तो मुकाबले में हिस्सा नहीं ले सकती, लेकिन मुझे फिर भी बहुत बुरा लगा। मैंने पदक लगभग जीत ही लिया था, फिर भी किसी को वह पोशाक बुरी लगी जो मैंने पहन रखी थी।' भारत में जिम्नास्टिक्स पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। दीपा के फ्रदर्शन से अब भारतीय भी इसमें भावनात्मक रूप से जुड़ गये हैं। इसलिए उन्हें बेसब्री से फ्रतीक्षा है कि गोल्ड कोस्ट, ऑस्ट्रेलिया में अफ्रैल में होने जा रहे राष्ट्रकुल खेलों में उनका फ्रदर्शन कैसा रहता है। वह बताती हैं, "मैंने यह नहीं कहा कि मैं निश्चित ऑस्ट्रेलिया जाऊंगी। मैंने अभी ट्रेनिंग शुरू की है और इसका फैसला सर (नंदी) करेंगे। मैं वहां पर्यटक के रूप में नहीं जाना चाहती, अच्छा फ्रदर्शन करने के लिए जाना चाहती हूं।'

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