मैं नेता नहीं, जनता का सेवक हूं : भरत सिंह
हमारे देश में कुछ नेता केवल राजनीति ही करते हैं। जबकि कुछ नेता राजनीति कम और जनता की सेवा ज्यादा करते हैं। अपने आपको जन सेवक ही मानते हैं। जनता का सेवक मानने वाले नेताओं की पहचान भी अलग ही होती है। ऐसे नेता किन्तु-परन्तु में भी विश्वास नहीं रखते और उनके अन्दर किसी प्रकार का घंमड भी नहीं दिखाई देता है वैसे तो समाज सेवा भी राजनीति ही मानी जाती है लेकिन जो नेता पब्लिक से दूर रहे, उनकी समस्याओं का समाधान न करे, लोगों के सुख-दुख में न पहुंच तो वह सामाजिक व्यक्ति नहीं होता। उनको तो राजनीतिक आंकड़ों से ही मतलब होता है। जबकि राजनीति के माध्यम से जन सेवा ज्यादा हो सकती है। क्योंकि सरकार के सहयोग से नेता लोग जनता की ज्यादा भलाई कर सकते है। क्षेत्र का ज्यादा विकास कर सकते हैं। आरएसएस से जुड़े अधिकतर नेताओं में तो जनसेवा की भावना ज्यादा होती है। इसीलिए उनको राष्ट्रीय स्वयं सेवक कहा जाता है। उत्तर प्रदेश के सांसद भरत सिंह भी कई वर्षों से आरएसएस से जुड़े हुए हैं। संघ में प्रचारक आदि पदों पर भी रह चूके हैं। इसीलिए भरत सिंह जी अपने आपको नेता नहीं स्वंय सेवक अर्थात् जनता का सेवक ही मानते हैं। सांसद जी अपने आपको सौभाग्यशाली मानते हैं कि जनता ने उन्हे बड़े विश्वास के साथ संसद भेजा है तो उनका भी कृतव्य बनता है कि वे जनता की सेवा में कोई कसर न छोड़ें।