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गोरिल्ला की घटती आबादी लुप्तप्राय होने के खतरे बढ़े

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:4 March 2018 4:17 PM GMT

गोरिल्ला की घटती आबादी  लुप्तप्राय होने के खतरे बढ़े

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के.पी.सिंह

इंटरनेशन कंजर्वेशन ग्रुप द्वारा हाल ही में किये सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ कि गोरिल्ला की पांच में से चार प्रजातियें के मानव द्वारा शिकार के कारण, संख्या कम होने से यह संकटग्रस्त वन्य जीव जंतुओं की श्रेणी में आ गया है।
इस्टर्न गोरिल्ला जो मानव से मिलता-जुलता है, उसकी संख्या लगातार शिकार के कारण घट रही है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा 83,000 जीव जंतुओं की प्रजातियां जो लाल सूची में आती हैं उन्हें सर्वेक्षणकर्ताओं ने कुछ सुधारों के साथ दोबारा इनका वर्गीकरण किया। जिनमें 24,000 प्रजातियां पूरी तरह विलुप्ति की कगार पर है। इस पुनर्वर्गीकरण से पता चलता है कि दक्षिणी अफ्रीका का इस्टर्न गोरिल्ला संकटग्रस्त स्थिति में है। पिछले दो दशकों में इसकी कुल आबादी के 70 प्रतिशत हिस्से का सफाया हो चुका है, जिसका सबसे बड़ा कारण मानव द्वारा इसका अंधाधुंध शिकार किया जाना है।
गोरिल्ला की चार प्रजातियां वेस्टर्न लो लैंड गोरिल्ला, ाढा@स रिवर गोरिल्ला, माउंटेन गोरिल्ला, इस्टर्न लो लैंड गोरिल्ला हैं। इनमें मूलरूप से गोरिल्ला की सारी प्रजातियें की संख्या कम हो रही है, जिसका सबसे बड़ा कारण मानव द्वारा इनका अंधाधुंध शिकार है। हालांकि बंदर की कई प्रजातियें का मानव द्वारा शिकार नहीं किया जाता लेकिन गोरिल्ला इसका अपवाद है। 17 प्रतिशत गोरिल्ला संरक्षित क्षेत्रों में रहते हैं जबकि उनकी बाकी आबादी घने जंगलों में वास करती है। गोरिल्ला भोजन के लिए वनस्पति, पेड़, पौधों पर निर्भर होते हैं, इन्हीं पेड़ों पर वह रहते हैं और यहीं वे अपना जीवन बिताते हैं।
कृषि हेतु भूमि की बढ़ती जरूरतों, खनन उद्योग और जंगलों की कटाई में पेड़ों को काटने से उनके लिए भोजन की कमी हो गई है। घने जंगलों का सफाया होने से मानव के लिए उनका शिकार करना और आसान हो गया है। दो दशक पहले तक घने जंगलों में जाकर गोरिल्ला का शिकार करना इतना आसान नहीं था, लेकिन कृषि भूमि की बढ़ती जरूरतों के लिए जंगलों का सफाया करने से वहां मनुष्य का पहुंचना आसान हो गया है और शिकारी इसके जरिये इनका जमकर शिकार करते हैं।
इनका अवैध शिकार करके इन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेच दिया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में गोरिल्ला के मांस और उसके अंगों की भारी मांग है जिसके लिए उन्हें मारा जाता है। उन्हें जिंदा पकड़कर कैद करके पेट्स के रूप में बेचा जाता है। गोरिल्ला को टाइगर की तरह सर्कस में भी इस्तेमाल किया जाता है। दूसरे जानवरों को जो पकड़ने के लिए जाल बिछाये जाते हैं कई बार उसमें फंसकर गोरिल्ला घायल हो जाते हैं या उनकी मौत हो जाती है।
गोरिल्ला और मानव के बीच काफी समानताएं हैं। मानव की तरह उनमें भी महामारियां उनकी आबादी पर बड़ा संकट खड़ा करती है। इबोला जैसी बीमारी मानव के लिए ही नहीं बल्कि गोरिल्ला के लिए जानलेवा होती है। वेस्टर्न लो लैंड गोरिल्ला की इबोला वायरस और मानव के अवैध शिकार के कारण संख्या घटी है। यही वजह है कि साल 1990 से लेकर साल 2003 तक इस प्रजाति के गोरिल्ला की एक तिहाई आबादी इस वायरस की चपेट में आकर खत्म हो चुकी है। मानव की तरह ही पोलियो, हैपीटाइट्स-ए, टीबी और आंत के कृमि गोरिल्ला की मौत की बड़ी वजहें होती हैं।अफ्रीका में राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसक गतिविधियों के चलते कई गोरिल्ला मौत के मुंह में जा चुके हैं।
मानव की कारगुजारियों की वन्य जीव जंतुओं को अपनी जान देकर कीमत चुकानी पड़ रही है। दक्षिण अफ्रीका में इनके लगातार होने वाले सफाये के कारण इन्हें संकटग्रस्त की सूची में डाल दिया गया है। अगर इन्हें संरक्षित करने के लिए यथासंभव प्रयास नहीं किये गये तो वह दिन दूर नहीं जब यह पूरी तरह खत्म हो जायेंगे।

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