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विराट कोहली का अफगानिस्तान में न खेलना क्या अपनी सुपर स्टार हैसियत का दुरुपयोग है?

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:20 May 2018 3:12 PM GMT

विराट कोहली का अफगानिस्तान में न खेलना   क्या अपनी सुपर स्टार हैसियत का दुरुपयोग है?

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सारिम अन्ना

इंग्लैंड के महत्वपूर्ण दौरे से मात्र एक माह पहले अफगानिस्तान के साथ टेस्ट मैच रखना कोई "ाrक बात नहीं है। लगभग यही हरकत बीसीसीआई ने दक्षिण अफ्रीका के दौरे से पहले की थी कि श्री लंका के साथ पूर्णतः गैर-जरूरी एक दिवसीय श्रृंखला रख ली थी। नतीजतन भारतीय खिलाड़ियों को टेस्ट तैयारी का पर्याप्त समय नहीं मिला और भारत टेस्ट श्रंखला हार गया जबकि उसके लिए जीत का यह सुनहरा अवसर था। हालांकि इंग्लैंड दौरे का कार्पाम "ाrक है कि भारत को पहला टेस्ट खेलने से पहले तैयारी के लिए पर्याप्त मैच मिलते हैं, लेकिन फिर भी इस समय अफगानिस्तान के साथ टेस्ट मैच रखना अतार्किक फ्रतीत होता है।
ऐसे में देखा जाए तो भारतीय कप्तान विराट कोहली का यह निर्णय सही है कि वह अफगानिस्तान का टेस्ट छोड़कर इंग्लैंड में काउंटी ािढकेट खेलें ताकि वहां के वातावरण में अपने को अच्छी तरह से ढाल लें। यह जरूरी भी है; क्योंकि पूर्व में कोहली का इंग्लैंड में फ्रदर्शन बहुत खराब रहा है। भारत के पूर्व मुख्य चयनकर्ता दिलीप वेंगसरकर (2006-2008) का मानना है कि चेतेश्वर पुजारा को भी कोहली की तरह काउंटी ािढकेट को फ्राथमिकता देनी चाहिए थी।
भारत का इंग्लैंड दौरा 3 जुलाई से आरम्भ होगा। वह एक अगस्त से ट्रेंट ब्रिज में शुरू होने वाली पांच टेस्ट मैचों की श्रृंखला से पहले तीन टी-20 व इतने ही एक दिवसीय मैच खेलेगा। भारत आयरलैंड से भी दो टी-20 मैच खेलेगा। कोहली ने 2014 में इंग्लैंड का दौरा किया था। उस समय टेस्ट में उनका फ्रदर्शन निराशाजनक रहा था। उन्होंने मात्र 134 रन बनाये थे और उन्हें स्टुअर्ट ब्रॉड (दो बार), जेम्स एंडरसन (चार बार), ािढस जॉर्डन (दो बार), लियाम प्लंकेट व मोइन अली ने (एक एक बार) आउट किया था। कोहली इसी में सुधार करने के इच्छुक हैं और इसलिए उन्होंने जून के मध्य में अफगानिस्तान के खिलाफ टेस्ट खेलने की बजाय, सरे के लिए काउंटी ािढकेट खेलने का निर्णय लिया है।
लेकिन उनका यह फैसला विवाद का कारण बन गया है। अफगान ािढकेट का यह पहला टेस्ट है, जाहिर है यह उनके लिए ऐतिहासिक पल है और अगर इसमें ही समकालीन ािढकेट का सबसे बड़ा सितारा (कोहली) हिस्सा नहीं लेगा तो मैच का आकर्षण फीका पड़ जायेगा। इससे अफगानिस्तान का निराश होना स्वाभाविक है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान माइकल क्लार्क ने यह दलील देते हुए कि देश का नेतृत्व व फ्रतिनिधत्व करना सब बातों से बड़ा होता है, कहा है कि कोहली को काउंटी ािढकेट के बीच से ही अफगान टेस्ट के लिए समय निकालना चाहिए। एक आदर्श व नैतिक संसार में क्लार्क का तर्क एकदम त्रुटिहीन होगा, लेकिन आधुनिक युग में खेल की दुनिया अधिक जटिल है, जिसे एक निश्चित परिभाषा में नहीं बांधा जा सकता।
मसलन, रोजर फेडरर व स्टेन वावरिंका ने इस साल फरवरी में कजाखस्तान के खिलाफ डेविस कप नहीं खेला। इन दोनों के कारण ही स्विट्जरलैंड ने 2014 में यह कप जीता था। इनकी अनुपस्थिति में स्विट्जरलैंड अपने से कमजोर फ्रतिद्वंदी से भी 1-4 से पराजित हो गया। फेडरर 40 वर्ष के बाद भी फ्रोफेशनल टेनिस खेलने की इच्छा रखते हैं और उसी के अनुसार अपने कार्यभार का फ्रबंधन कर रहे हैं, जिसमें क्ले कोर्ट फ्रतियोगिताओं में हिस्सा न लेना भी शामिल है। लम्बे समय तक खेलने का वावरिंका का अपना एजेंडा है। अपने ही घर की बात करें तो बैंकाक में 20-27 मई को खेले जाने वाले थॉमस कप व उबेर कप की बैडमिंटन टीमों में पी वी सिंधु, के. श्रीकांत आदि को शामिल नहीं किया गया है, चोट, थकन व अन्य कारणों से, ताकि वह एशियन गेम्स के लिए तैयार रहें जो भारतीय बैडमिंटन के लिए बड़ी चुनौती है।
आज खिलाड़ी जो निर्णय लेते हैं उनमें फिटनेस, कार्यभार थकन, जीविका व महत्वाकांक्षा जैसे मुद्दों की बड़ी भूमिका होती है। अगर इसे भावनाओं की दृष्टि से देखा जायेगा तो असल बात समझ में ही नहीं आयेगी। अतः इस तर्क में दम नहीं है कि कोहली ने अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए अपनी सुपरस्टार हैसियत का दुरूपयोग किया है। यह सही है कि एक खिलाड़ी व कप्तान के रूप में उनका स्थान सुरक्षित है और इसलिए वह पिक एंड चूज करने की स्थिति में हैं। लेकिन इस बहस का दूसरा पहलू भी है। अगर बात व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की ही होती तो अफगानिस्तान जैसी कमजोर टीम के साथ खेलकर कोहली अपना करियर औसत व कप्तानी रिकॉर्ड में सुधार ला सकते थे। अपनी आमदनी में भी इजाफा कर सकते थे।
कोहली ने जो काउंटी ािढकेट खेलने का निर्णय लिया है वह न सिर्फ समझदारी भरा है बल्कि सराहनीय भी है। वह आसान यश की जगह अपने को क"िन चुनौतियों के लिए तैयार कर रहे हैं। वह इंग्लैंड में एक बल्लेबाज के रूप में सफल होना चाहते हैं। इंग्लैंड में मौसम की स्थितियां व पिच अच्छे से अच्छे बल्लेबाज के लिए भी गंभीर चुनौतियां उत्पन्न करती हैं और 2014 में कोहली की तकनीकी कमियां उच्चस्तरीय स्विंग गेंदबाजी के समक्ष बुरी तरह से एक्सपोज हो गईं थीं। अपनी तमामतर सफलताओं के बावजूद अगर कोहली इंग्लैंड में अधिक रन नहीं बनायेंगे, जैसा कि वह हर जगह बनाते हैं, तो सर्वकालिक महान के तमगे से वंचित रह जायेंगे। वह इंग्लैंड में फिर से असफल नहीं होना चाहते और इसके लिए काउंटी में कड़ी मेहनत करना चाहते हैं। कोहली का अपना फ्रदर्शन टीम की संभावनाओं को भी फ्रभावित करता है।
पिछले सात वर्षों में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड व दक्षिण अफ्रीका में कोहली भारत के फ्रमुख बल्लेबाजों में रहे हैं। इंग्लैंड में उनकी बल्लेबाजी टीम के लिए महत्वपूर्ण होगी अगर 2011 की स्थिति से बचना है जब आज ही कि तरह नंबर 1 टीम होने के बावजूद भारत को 0-4 से हार का मुंह देखना पड़ा था और 2014 में 1-3 से पराजय हुई थी। दरअसल, अफगान टेस्ट न खेलना मेहमानों का अपमान नहीं है, बल्कि कोहली द्वारा ईमानदाराना स्वीकृति है अपनी व भारतीय ािढकेट की कमी की जिसे वह दूर करना चाहते हैं।

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