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इच्छामृत्यु की बढ़ती ख्वाहिश जीवन की पूर्णता का उत्स या पागलपन?

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:17 Jun 2018 5:29 PM GMT

इच्छामृत्यु की बढ़ती ख्वाहिश  जीवन की पूर्णता का उत्स या पागलपन?

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लोकमित्र

पिछले महीने यानी 10 मई 2018 को आस्ट्रेलिया के 104 साल के बॉटनी और इकोलॉजी के फ्रख्यात वैज्ञानिक डेविड गुडऑल ने स्विट्जरलैंड में खुशी-खुशी इच्छामृत्यु को गले लगा लिया था। इसके बाद से एक तरफ जहां पूरी दुनिया में इच्छामृत्यु पर नए सिरे से बहस छिड़ गयी है, वहीं दूसरी तरफ स्विट्जरलैंड में आकर इच्छामृत्यु को गले लगाने की चाह रखने वाले लोगों की संख्या में जबर्दस्त उछाल आया है। स्विट्जरलैंड के विभिन्न अस्पतालों से लेकर यहां मौजूद तमाम टूर और ट्रैवलिंग एजेंसियों के दफ्तरों तक में हर दिन दुनिया के हर कोने से सैकड़ों फोन ऐसे लोगों के आ रहे हैं जो स्विट्जरलैंड आकर इच्छामृत्यु को गले लगाना चाहते हैं, इसलिए इस सम्बन्ध में जहां से भी संभव हो जानकारी पाना चाहते हैं। गौरतलब है कि स्विट्जरलैंड ने 1942 से ही 'असिस्टेड डेथ' को मान्यता दी हुई है। हालांकि दुनिया के कई अन्य देशों ने भी स्वेच्छा से अपने जीवन को खत्म करने संबंधी कानून तो बनाए हैं, लेकिन इसके लिए तमाम गंभीर शर्तें भी जोड़ दी हैं। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी पिछले दिनों कुछ शर्तों के आधार पर इच्छामृत्यु की वकालत की है। लेकिन स्विट्जरलैंड का कानून जटिल नहीं है, यह लोगों को आसानी से मौत को गले लगा लेने की छूट दे देता है। यही कारण है जीवन से ऊबे पूरी दुनिया से लोग यहां मरना जाना चाहते हैं, यह बात अलग है कि मरने की इच्छा को पूरी करने के लिए भी अच्छा खासा पैसा चाहिए।

बहरहाल दुनिया में मरने की ख्वाहिश रखने वाले ऐसे लोगों की संख्या भी अच्छीखासी है जिन्हें पैसे की कोई चिंता नहीं है। मीडिया की विभिन्न रिपोर्टों के मुताबिक एक साधारण इच्छामृत्यु में करीब 3 लाख रूपये जबकि लग्जरी इच्छामृत्यु पर 6 से 8 लाख रूपये तक खर्च आता है। लेकिन ऐसी भी सहायता एजेंसियां हैं जो आपको मुफ्त में मरवाने की व्यवस्था कर सकती हैं। ब्रिटेन के गार्जियन अखबार के मुताबिक 2008 से 2012 के बीच दुनियाभर से 611 लोग स्विट्जरलैंड जाकर इच्छित मौत हासिल की जिसमें 126 लोग ब्रिटेन के थे जो कि जर्मनी के बाद सबसे ज्यादा थे। चिकित्सा सहायता के साथ मृत्यु के लिए स्विट्जरलैंड जाने वाले लोगों की संख्या 2009 के मुकाबले 2012 में दोगुनी हो गयी। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों पूरे गाजे बाजे के साथ महान वैज्ञानिक डेविड गुडआल ने जिस तरह से स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु हासिल की है उसके बाद इसकी मांग में कितना ज्यादा इजाफा होगा।

वैसे स्विट्जरलैंड में इच्छा मौत के लिए आने वाले पर्यटकों के आंकड़े आसानी से मिलते नहीं हैं। यहा के बैंक जिस तरह गोपनीय खातों को छिपाते हैं, उसी तरह यहां के चिकित्सा मौत में सहायक क्लिनिक मौत चाहने वाले लोगों की गोपनीयता को बरकरार रखते हैं। पिछले आंकड़े ज्यूरिख विश्वविद्यालय के रिसर्च फ्रोजेक्ट के चलते हासिल हुए हैं। इस अध्ययन के मुताबिक इस सिलसिले में गुजरते सालों के साथ कितनी तेजी आयी है, उसे इसी बात से समझा जा सकता है कि 2009 में जहां सिर्फ 86 लोग इसके लिए स्विट्जरलैंड की यात्रा पर आये थे, वहीं 2012 में इनकी संख्या 172 हो गयी। चिकित्सा नैतिकता पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक मरने की सबसे ज्यादा ख्वाहिश जर्मन और ब्रिटेन के नागरिकों में होती है । इच्छामृत्यु वरण करने वाले लोगों में ज्यादातर पक्षाघात, मोटर न्यूरोन रोग और पार्किंसन जैसी तंत्रिका संबंधी बीमारी से पीड़ित होते हैं। लेकिन ऐसे लोग भी यहां इच्छामृत्यु की ख्वाहिश से आते हैं जो इन बीमारियों से ग्रस्त नहीं हैं। कुछ लोग तो महज जीते-जीते ऊब गए हैं इसके लिए चले आते हैं जैसे पिछले दिनों इच्छा से मरे वैज्ञानिक डेविड गुडऑल। इस सबके साथ कई लोग सामान्य बीमारियों का शिकार होने पर भी इच्छामृत्यु चाहते हैं।

वास्तव में स्विट्जरलैंड में इच्छामृत्यु के दायित्व को निपटाने वाले कुल चार संग"न हैं। ये सभी अपनी सेवा अन्य देशों के नागरिकों को भी मुहैय्या कराते हैं। रिपोर्ट बताती है कि 2008 से 2012 के बीच 31 देशों के 611 लोग स्विट्जरलैंड 'सुसाइड पर्यटक' बनकर पहुंचे। ऐसा नहीं है कि इनमें सब जर्जर बूढ़े ही हों। इन सुसाइड पर्यटकों में 23 से लेकर 97 साल तक की उम्र के लोग शामिल थे। डॉ गुडआल दुर्लभ केस थे जिनकी उम्र 104 थी। जबकि यहां अपनी इहलीला समाप्त करने के लिए आने वाले लोगों की अब तक औसतन उम्र 69 साल रही है। हैरानी की बात यह है कि सामान्य जीवन में पुरुषों से ज्यादा जीने वाली महिलायें सुसाइड पर्यटकों में पुरुषों से ज्यादा होती हैं या कहें इच्छामृत्यु चाहने वालों में महिलायें ज्यादा होती हैं। पुरुष 40 प्रतिशत जबकि महिलायें 60 फीसदी। अब तक के उपलब्ध डाटा के हिसाब से जर्मनी के 268, ब्रिटेन के 126, फ्रांस के 66, इटली के 44 जबकि अमरीका के 21 आस्ट्रेलिया के 14 ऑस्ट्रिया के 12 जबकि कनाडा, स्पेन और इस्रायल से आ"-आ" लोग स्विट्जरलैंड आकर इच्छामृत्यु हासिल कर चुके हैं। हैरानी की बात यह है कि एशिया और अफ्रीका जैसे विशालकाय महाद्वीपों से लोग मरने नहीं जा रहे शायद भारत, चीन, जापान और मिस्र के लोगों के पास मृत्यु का इससे कहीं बड़ा और ज्यादा ताकतवर दर्शन है।

अब तक की ज्यादातर मृत्यु के मामलों में सोडियम पेंटोबार्बिटल नाम की दवा का इस्तेमाल किया गया, जिसे 'शांति की गोली' के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि कुछ लोगों ने इससे भिन्न तरीके से भी मौत को गले लगाया है। मसलन 2008 में चार लोग हीलियम के जरिये हमेशा के लिए चैन की नींद सोये थे। वैसे स्विट्जरलैंड में व्यक्तिगत स्तर पर कई समाजशास्त्राr न केवल इसके विरुद्ध हैं बल्कि उनका कहना है कि स्विट्जरलैंड के आत्महत्या में सहायता देने संबंधी कानून में ऐसा कुछ साफ-साफ नहीं लिखा है। शायद यही कारण है कि एक मामले की सुनवाई करते हुए यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय भी स्विट्जरलैंड से कह चुका है कि वह इस बारे में दिशा-निर्देशों को स्पष्ट करे। ब्रिटेन और फ्रांस में भी इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है। लेकिन इन बहसों से ज्यादा हाल की डॉ. डेविड गुडआल ग्लैमरस मौत ने लोगों को आकर्षित किया है। एक किस्म से डॉ गुडआल फिलहाल सुसाइड पर्यटन के ब्रांड अम्बेसडर बन गए हैं। यह खतरनाक है। किसी मनुष्य का जीवन कितना अमूल्य होता है, स्वयं के लिए, स्वयं से जुड़े लोगों के लिए और सबसे पहले देश-समाज के लिए। इस विषय में इस कोंण से भी व्यापक बहस होनी चाहिए।

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