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भविष्य के शहर, शहरों का भविष्य अब लगेगी आसमान छूने की होड़...!

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:24 Jun 2018 3:05 PM GMT

भविष्य के शहर, शहरों का भविष्य  अब लगेगी आसमान छूने की होड़...!

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संजय श्रीवास्तव

सौ साल बाद जब वास्तुविदों, भवन निर्माताओं, वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और तकनीकिज्ञों की कल्पना वाली वर्टिकल सिटी साकार हो चुकी होगी तो शहरों का समूचा नक्शा ही बदला हुआ होगा।

अब से पचास साल बाद यह तथ्य पूरी तरह स्थापित हो जायेगा कि शहरों का विस्तार चौड़ाई में नहीं बल्कि ऊंचाई में करना ही श्रेयस्कर है। यह जरूरी ही नहीं मजबूरी भी होगी। हालांकि यह बात अभी भी महसूस की जा रही है और इसका फ्रमाण बड़े शहरों में गगनचुंबी भवनों के संकुल के बतौर दिख भी रहा है। अगले कुछ दशकों के बाद बड़े शहर बेहद घनी बसावट वाले होने के साथ-साथ ऊंचाई की ओर बढेंगे, 150 से 200 मंजिली शानदार इमारतों का विशालकाय संकुल एक भरापूरा शहर होगा। एक बिल्डिंग अपने आप में एक मुहल्ला होगी। जबकि 750 मीटर से एक किलोमीटर तक ऊंची इन कई मुहल्ला इमारतों या रहने के अलावा तमाम तरह के काम आने वाली मल्टी फंक्शनल बिल्डिंग के सामुदायिक संकुल को वर्टिकल सिटी का नाम दिया जा सकता है। कृषि और खाद्य विज्ञान में नयी खोज, वैकल्पिक ऊर्जा का इस्तेमाल, कंप्यूटिंग, भवन निर्माण, वास्तु विज्ञान मेटेरियल साइंस, सेंसर्स और मेकेनिकल तथा सिविल इंजीनियरिंग में फ्रगति इत्यादि सब मिलकर इन मल्टी फंक्शनल बिल्डिंगों वाले वर्टिकल सिटीज को अद्भुत स्वरूप देंगे।

एक ही बिल्डिंग जब पूरा मुहल्ला होगी तो उसमें कामकाज, शॉपिंग और कई दूसरे ािढया कलाप के लिये कहीं और कम ही जाना पड़ेगा। अगर एक से दूसरी बिल्डिंग में जाना भी पड़े तो लिफ्ट का इस्तेमाल होगा, कार या वाहन का नहीं। ज्यादातर सेवाओं की दूरी हद से हद कुछ बिल्डिंग और कुछ ब्लॉक की पैदल दूरी पर होगी। ये भवन एक दूसरे से जुड़े होंगे सो परिवहन का या पार्किंग का बड़ा मसला तब नहीं होगा। इस तरह के कई भवन जो विशालकाय मॉल जैसी संरचना सरीखे होंगे, वे ऊपर और नीचे के कई स्थानों पर बेहद चौड़े गलियारों से आपस में जुड़े होंगे। इनके मिलन बिंदु से पहले बीच रास्ते में विलेज सेंटर, सिटी सेंटर, रिािढएशन सेंटर जैसी संरचनाएं, जिम, साधारण बाजार कैफे आपस में मिलने जुलने की जगह और पार्क इत्यादि होंगे जिसका उपयोग ऊंचाई पर रहने वाले रहवासी करेंगे। उन्हें हर बात के लिये नीचे जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

पहला माला बाजारों, दुकानों दूसरी आवश्यकताओं के अलावा गरीबों के लिये सुनिश्चित रहेगा। निचली मंजिल सेवा सुविधा, पैदल चलने वालों के लिये पार्किंग और विभिन्न तरह के हॉल और मंडपों के रूप में होगी। पहली मंजिल पानी सीवर, बिजली के प्लांट और दूसरी आधारभूत आवश्यकताओं के लिये भी फ्रयुक्त होगी। उसके बाद बेहद अमीरों के लिये जिन्हें अपने मकान के साथ बड़ी जगह और पेड़ पौधे भी चाहिये होगा। इसी तल पर इन भवनों में ही अस्पताल, स्कूल इत्यादि होंगे, जबकि ऊपरी मंजिलों पर जिम और रेस्टोरेंट तथा इस तरह की दूसरी सेवाएं संस्थाएं होंगी। होटल या ऐसी ही सेवाएं ऊपरी तल्ले पर और कार्यालय बीच के हिस्से में होंगी। जाहिर है सफर तय करके शहर में कामकाज के लिये यहां वहां जाना बहुधा नहीं होगा। क्योंकि ये गगनचुंबी भवन पास-पास बने होंगे और सामान्य परिवहन के लिये उपरिगामी मार्ग से वैकल्पिक यातायात का साधन उपलब्ध होगा। लंबी संकरी गलियां नहीं दिखेंगी और न जाम से भरी सड़कें। ऐसे में कारों या बड़े, छोटे चार पहिया के वाहनों की पार्किंग के लिये जगह कम ही चाहिये। ऊंचाई वाले रहवासी पैदल चलने को फ्राथमिकता देंगे। इन मल्टी फंक्शनल बिल्डिंगों के समूह से बने नगरों का शहर नियोजन बिल्कुल भिन्न होगा। एक बिल्डिंग ही अपने आप में एक पूरा मुहल्ला, पूरा शहर या एक परिपूर्ण रहवासी इकाई होगी। चीन का शंघाई टॉवर तकरीबन ऐसा ही है। खासी ऊंचाई पर भी ये इमारतें सहवासियों की सभी जरूरतों को पूरा करने वाली होंगी।

भवन इस तरह बनाये जायेंगे कि वे ऊर्जा से लेकर कई मामलों और मायनों में स्वनिर्भर होंगे। फोटोवोल्टिक सेल वाले शीशे से बनी दीवारें खिड़कियां न सिर्फ ऊर्जा खुद बनायेंगी बल्कि ऊर्जा बचायेंगी भी खेल, कामकाज, मनोरंजन, जन सुविधाएं, फ्रसाधन और अन्य आवश्यकताओं का इंतजाम इस तरह के भवनों में एक साथ हो जाने से परिवहन में कमी आयेगी तो फ्रदूषण भी बहुत कम हो जायेगा। समय बचेगा, उत्पादकता बढ़ेगी और ऊर्जा बचेगी। इन भवनों को जिस फ्रकार डिजाइन किया जा रहा है और जिस तरह की सामग्री इसमें फ्रयुक्त होने वाली है, वह इन भवनों को उच्च क्षमतावान एवं उच्चतर कार्यक्षमता वाले तथा ऊर्जा इत्यादि के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर बना देने वाले होंगे। बिल्डिंग सामग्री में शामिल दर्जन भर नये पदार्थ जिसमें बायोकींट, ग्राफीन, नैनोट्यूब इत्यादि अपने आप ऊर्जा का निर्माण करेंगे तथा ऊर्जा को संरक्षित रखेंगे। इस तरह के भवनों में लगी लिफ्ट बला की तेजी वाली होगी। इन इमारतों में पचास सौ मंजिल ऊपर रह रहे लोगों को भले ही ऑक्सीजन भरी साफ और ताजा हवा खूब मिल रही हो, पर उनके लिये आवश्यक हरियाली का भी इंतजाम होगा।

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लेकिन जमीन की जरुरत फिर भी पड़ेगी..

इन विशालकाय ऊंची बिल्डिंगों के निर्माण से जो जगह बचेगी उसमें खेती, बाग बगीचे और हरियाली का इंतजाम होगा। यह जगह दो बहुमंजिला इमारतों की सघन आबादी वाले ऐसे शहरों के बीच बफर स्टेट का काम करेगी। यह इन भवनों की एकरसता को भी तोडेग़ी, वातावरण को जीवंत बनाये रखेगी और फ्राकृतिक संतुलन में सहायता करेगी। कहने का मतलब यह कि आखिरकार हमें खाने के लिये उपजाना और जमीन से रिश्ता तो रखना ही है। दुनिया के बहुत से हिस्से ऐसे हैं जो समुद्र तल से नीचे बसे हुये हैं, इसमें कई मशहूर और बड़े शहर तो हैं ही ढेर सारे वे इलाके भी हैं, जो उद्यम-उद्योग और दूसरे कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। कुछ छोटे देश तो जो समुद्र तट के निकट बसे हुये हैं और उनका फैलाव समुद्र क्षेत्र के आसपास ही है, ऐसे देशों पर विकट संकट निकट है। ग्लोबलवार्मिंग उसकी वजह है। यह संकट निश्चित नियत और नजदीक है। यह इलाके एक दिन डूब जायेंगे, यह तय है। तमाम सर्वे इस बात की तस्दीक करते हैं कि बस दो दशक बाद ये हालात होने वाले हैं कि संसार की 70 फीसद जनता शहरों में रहने लगेगी, संसार की आबादी पर कतिपय लगाम भी लगाया जाए तो भी वह अच्छी खासी बढ़ेगी, बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते ज्यादातर लोग ज्यादा समय तक जीवित रहेंगे, इससे भी कुल जनसंख्या पर भारी असर पड़ेगा। जनसंख्या के इस दबाव का असर शहरों पर अभी से ही दीख रहा है। वर्तमान में भी बड़े शहरों में गगनचुंबी भवन खड़े हो रहे हैं।

पुराने समय में मीलों विस्तारित महलों, फ्रसादों, एकड़ों में फैले बड़े-बड़े बंगलों, विशालकाय हवेलियों का चलन जाने कब खत्म हो चुका है। अधिक जनसंख्या के समायोजन के लिये स्थान की कमी और बेहतर जीवन के ज्यादा से ज्यादा अवयवों जैसे सामूहिक जन सुविधाओं, खेल और मनोरंजन तथा उत्पादक कार्यों के लिये जगह छोड़ना भविष्य के लिये और भी जरूरी होगा। आबादी बढ़ेगी तो कई गुना खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। गुणवत्तापूर्ण जीवन हो या सामान्य जिंदगी, आधुनिक तकनीक से ही सही पर खेती तो करनी ही होगी, शाक सब्जी, फल, खाद्यान्न उपजाने ही होंगे। "ाrक है कि हाइड्रोपोनिक्स के जरिये बहुत कुछ उपजायेंगे पर खेत यानी जमीन का विकल्प तो रखना ही होगा। तो फिर पानी सी डूबती धरती पर हमें बढती आबादी के बीच न रहने के अलावा खेती के अलावा तमाम दूसरे जरूरतों के लिये जमीन को अनिवार्यतः इस्तेमाल करना ही होगा।

जाहिर है ऐसे में रहने के लिये बहुत कम जगह बचेगी। तो फिर इसका इलाज क्या है? सामान्य सी बात है, इसके दो ही उपाय हैं- एक तो जल के ऊपर या नीचे बसने की तकनीकी खोजना और इस तरह के आश्रय बनाना अथवा डूब के अनुमान से ऊपर बसना तथा काम धंधे को ऊंची जगह ले जाना। इटली के वास्तुविद ही नहीं कई दूसरे देशों के वैज्ञानिक और वास्तुकार मिलकर इस तरह के आश्रय ढूंढने में लगे हैं। इस दिशा में काफी हद तक काम कर भी लिया गया है समुद्र के भीतर शहर बसाने की परियोजना को साकार करने का काम शुरू है। जहां तक समुद्र के भीतर बसने की बात है वहां भी वर्टिकल सिटी बनाने की ही बात है और जमीन पर भी वैज्ञानिक इसी सपने को साकार करने की सोच रहे हैं। उम्मीद है कि यह कुछ दशकों में इसकी साफ तस्वीर दिखने लगेगी।

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