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ऐतिहासिक भूल से थेरेसा का राजनीतिक संकट बढ़ा

👤 Admin 1 | Updated on:17 Jun 2017 5:49 PM GMT

ऐतिहासिक भूल से  थेरेसा का राजनीतिक संकट बढ़ा

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?शाहिद ए चौधरी

राजनीति में दो माह बहुत लम्बी अवधि होती है और बहुत कुछ एकदम से बदल जाता है। ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा में ने जब अप्रैल में अचानक मध्यकालीन चुनाव की घोषणा की थी तो सब कुछ उनके पक्ष में प्रतीत हो रहा था और अनुमान यह था कि वह जबरदस्त बहुमत से पुनः सरकार में लौटेंगी। लेकिन 8 जून के मतदान में थेरेसा को अपना बहुमत तक खोना पड़ गया। लेबर के प्रमुख जरमी कॉर्बिन मजबूत होकर सामने आए, जिससे थेरेसा के लिए ब्रिएक्जिट वार्ता में कमजोर स्थिति से हिस्सा लेना होगा।

सत्ता संभालने के बाद थेरेसा निरंतर मध्यावधि चुनावों से इंकार करती आ रही थीं। चुनावों के लिए न जनता की मांग थी और न विपक्ष का दबाव था। कोई संकट भी नहीं था। अगले चुनाव 2020 के लिए निर्धारित थे, लेकिन 3 साल पहले ही उन्हें कराने के फैसले ने सबको हैरान कर दिया। थेरेसा को अनुमान था कि उनकी पार्टी के पास जो संसद में 17 सदस्यों का अतिरिक्त बहुमत है वह मध्यावधि चुनाव कराने से बहुत अधिक बढ़ जाएगा, शायद 100 या 125 का अंतर हो जाए। लेकिन अब वह अल्पमत सरकार में हैं।

बहरहाल, इस चुनाव में भारतीय मूल के मतदाताओं और भारत का महत्व बहुत अधिक था। ब्रिटेन में 1.5 मिलियन भारतीय मूल के मतदाता हैं, जो अनेक चुनाव क्षेत्रों में नतीजों को प्रभावित करने में सक्षम रहे। तीनों मुख्य पार्टियों ने भारतीय मूल के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से लेबर ने 14 प्रत्याशी बनाएं, कंजरवेटिव ने 13 और लिबरल डेपेट्स ने भी 14 भारतीय मूल के लोगों को अपना टिकट दिया था। पिछले संसद में भारतीय मूल के 10 सांसद थे, जो बढ़कर 12 हो गए, 7 लेबर की तरफ से और पांच कंजरवेटिव की तरफ से। परम्परागत दृष्टि से देखें तो भारतीय मूल के मतदाताओं ने लेबर का ही समर्थन किया है, लेकिन 2010 के बाद से उनका झुकाव कंजरवेटिव की तरफ अधिक हुआ है।

हालांकि तीनों में से किसी भी मुख्य राजनीतिक दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में भारत का उल्लेख नहीं किया था, लेकिन कंजरवेटिव पार्टी ने आप्रवासियों को रोकने के लिए विस्तृत रूपरेखा दी है जिसका ज्यादा प्रभाव भारतीयों पर ही पड़ेगा। लेबर ने वायदा किया था कि वह 1984 के ऑप्रेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की भूमिका की जांच कराएगा। ब्लू स्टार ऑप्रेशन भारत के अमृतसर शहर में आतंकियों को स्वर्ण मंदिर से निकालने के लिए प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के कार्यकाल में किया गया था। हाल ही में कुछ ऐसी रिपोर्टें अखबारों में आयीं कि इस ऑप्रेशन में ब्रिटेन की भी भूमिका थी, जिसकी जांच के लिए सिख समुदाय मांग कर रहा है। इसी समुदाय की वोट हासिल करने के लिए लेबर ने यह वायदा शायद किया था। तीसरी मुख्य पार्टी लिबरल डेपेट्स ने अपने घोषणा पत्र में अपने इस वायदे को दोहराया कि वह जाति आधारित भेदभाव को कानून के जरि, समाप्त करेगी।

इन चुनावों में एक नया दल वीमेन इक्वालिटी पार्टी भी उभरकर आयी और इसमें भी भारतीय मूल के लोगों का प्रमुखता से दखल रहा। यह दल महिलाओं को आवाज प्रदान करने का प्रयास कर रहा है और चाहता है कि अन्य पार्टियां उसके प्रस्तावों को 'चुरा' लें यानी उनके लिए वह स्वयं भी संघर्ष करें ताकि समाज में महिलाओं को उनका उचित स्थान मिल सके। इस दल को अधिक सफलता प्राप्त करने की आशा नहीं और उसे मिली भी नहीं, लेकिन उसने जो मुद्दे उ"s, उनके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता। इस दल की तरफ से भारतीय मूल की हरीणी अयंगर वॉक्सहॉल चुनाव क्षेत्र से प्रत्याशी थीं, लेकिन हार गयीं।

बेरिस्टर अयंगर तीन बच्चों की सिंगल मदर हैं और इस बात से प्रसन्न हैं कि उनकी पार्टी ने इस मुद्दे को उ"ाया कि चाइल्ड केयर महिलाओं के राजनीति में प्रवेश करने के संदर्भ में बाधक है। चाइल्ड केयर पर जो प्रत्याशियों का खर्च आता है उनकी पार्टी चुनाव प्रचार के दौरान उसे स्वयं उ"ाती है। अयंगर की पार्टी ने पहली बार संसदीय चुनाव लड़ा। इसका ग"न 2015 में हुआ था।

बहरहाल, मध्यावधि चुनाव कराने का प्रधानमंत्री थेरेसा ने जो मुख्य कारण दिया था कि वेस्टमिन्स्टर में राजनीतिक दलों द्वारा ब्रिएक्जिट संबंधित मुद्दों का समाधान करना, वह ज्यादातर मतदाताओं के गले नहीं उतरा। इस कारण के जरिए थेरेसा लेबर की कमजोर स्थिति का फायदा उ"ाते हुए विशाल बहुमत अर्जित करने का इरादा रखती थीं, लेकिन ज्यादातर लोगों ने इसे अनावश्यक चुनाव कहा और इसलिए बार-बार थेरेसा से सवाल किया कि वह कौन सा विरोध था जिसके कारण उन्होंने चुनाव कराने का निर्णय लिया? जितनी सफाई दी गई उतना ही लोग उनके विरोध में खड़े हो गए, जिससे उनका आत्मविश्वास डगमगा गया और वह अपना बहुमत तक खो बै"ाrं। चूंकि लेबर के प्रमुख जरमी कॉर्बिन (जिन्हें टेलीविजन युग राजनीति के लिए अनफिट माना गया था) का कद व प्रभाव निरंतर बढ़ता गया, इसलिए एक चर्चित मैसेज यह फैला - 'जून में का अंत होगा' और यही सच हुआ।

लेकिन लेबर के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अनुमानित कंजरवेटिव पार्टी सबसे बडी पार्टी के रूप में उभरी। जुआ विशाल बहुमत जीतने के लिए खेला गया था। बहुमत तक नहीं मिला तो यह थेरेसा की व्यक्तिगत हार हुई, दांव उलटा पड़ गया और अब उनसे इस्तीफा मांगा जा रहा है । थेरेसा के लिए यह चुनाव ऐतिहासिक भूल रहे। उन्हें वैसे ही मतदाताओं को यह बात समझाने में क"िनाई रही कि खराब डील से बेहतर है कोई डील न होना, जबकि लगभग आधा ब्रिटेन यूरोपीय संघ से अलग नहीं होना चाहता था।

कोर्बिन पर ऐसा कोई दबाव नहीं है और अब अपनी पार्टी की बेहतर स्थिति आने के बाद वह खुलकर थेरेसा की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं, खासकर संवेदनशील मुद्दों जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा व सामाजिक सुरक्षा। जबकि थेरेसा ब्रिएक्जिट पर ही फंसी हुई हैं। पिछले चार वर्ष में 8 जून मतदान का चौथा महत्वपूर्ण पा था। 2014 में स्कॉटलैंड की स्वतंत्रता पर जनमत संग्रह हुआ था, 2015 में आम चुनाव हुए थे और 2016 में यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के निकलने या न निकलने के सवाल पर मतदान कराया गया था। जाहिर है जल्दी-जल्दी इतने अधिक मतदान से ब्रिटेनवासी तंग आ चुके थे और इसलिए थेरेसा के मध्यावधि चुनाव को अनावश्यक कह रहे थे। यह बात भी थेरेसा के खिलाफ गयी है।

ब्रिटेन में 2010 के चुनाव में अमरीकी शैली में लाइव टेलीविजन बहस पहली बार हुई थी, जिसका कुछ लोगों ने आनंद लिया तो कुछ ने ब्रिटेन की राजनीति के अमरीकीकरण पर अफसोस व्यक्त किया। 2015 में ज्यादा नेता लाइव टेलीविजन पर आए। लेकिन जब हाल ही में थेरेसा टेलीविजन बहस में शामिल नहीं हुई तो उनकी ही नहीं बल्कि कोर्बिन की भी टेलीविजन दर्शकों ने आलोचना की। इस आलोचना का मुख्य कारण यह रहा कि जबरदस्ती का चुनाव ब्रिटेनवासियों पर थोपा गया था। थेरेसा की ऐतिहासिक भूल से ब्रिटेन राजनीतिक दोराहे पर आ गया है, खासकर ब्रिएक्जिट वार्ता को लेकर, लेकिन साथ ही थेरेसा का राजनीतिक संकट भी बढ़ गया है।

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