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जीवनशैली समस्या बन गया है डिप्रेशन

👤 Admin 1 | Updated on:17 Jun 2017 5:55 PM GMT

जीवनशैली समस्या बन गया है  डिप्रेशन

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?डॉ.माजिद अलीम

भावनात्मक उतार-चढ़ाव से हर कोई गुजरता है। लेकिन अमित पिछले तीन सप्ताह से बहुत चिडचिडा हो गया है, उसे बात-बात पर गुस्सा आता है, किसी काम में उसका मन नहीं लगता, "rक से न नींद आती है और न भूख लगती है, अचानक मूड बदल जाता है, अपने को महत्वहीन समझते हुए आत्मविश्वास की कमी महसूस कर रहा है, किसी से मिलना भी पसंद नहीं कर रहा है... वह क्या करे? यह डिफ्रेशन के सामान्य लक्षण हैं इसमें कभी-कभी अधिक भूख भी लगती है। उसे तुरंत किसी मनोचिकित्सक की मदद लेनी चाहिए।

यह अकेले अमित की परेशानी नहीं है। आज डिफ्रेशन जीवनशैली समस्या बन गया है मधुमेह की तरह और चूंकि अक्सर लोग इसे बीमारी नहीं समझते हैं, इसलिए आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। विश्व में 322 मिलियन लोग डिफ्रेशन का शिकार हैं और 264 मिलियन को एंग्जायटी डिसऑर्डर है। यह पुरुषों (3.6 प्रतिशत) की तुलना में महिलाओं में (5.1 प्रतिशत) अधिक है। इसके कारण हर साल दुनिया में लगभग 788,000 लोग आत्महत्या करते हैं यानी कुल होने वाली मौतों का लगभग 1.5 फ्रतिशत।

जहां तक भारत की बात है तो 57 मिलियन लोगों को डिफ्रेशन की बीमारी है। 38 मिलियन को एंग्जायटी डिसऑर्डर है और आत्महत्या मौत का सातवां सबसे आम कारण है। एंटी-डिफ्रेशन दवाओं की पी में निरंतर वृद्धि हो रही है। 2013 में 760 करोड़ रूपये मूल्य की एंटी- डिफ्रेशन दवाएं बिकी थीं और यह मूल्य 2014 में बढ़कर 853 करोड़ रूपये हुए, 2015 में 985 करोड़ रूपये हुआ और 2016 में 1093 करोड़ रूपये हुआ। एंटी डिप्रेशन दवाओं की इस बढ़ती पी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत में डिफ्रेशन की समस्या घटने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही है, जो इस आंकड़े से भी मालूम होता है कि भारतीय मनोचिकित्सक सोसाइटी के साथ जो 5615 पंजीकृत मनोचिकित्सक हैं उन्होंने अकेले 2016 में 9.4 मिलियन नए नुस्खे एंटी-डिफ्रेशन दवाओं के लिखे जो 2015 (8.4 मिलियन नुस्खे) की तुलना में लगभग 12 फ्रतिशत अधिक हैं। यह आंकड़े इसलिए चिंताजनक हैं क्योंकि डिफ्रेशन के ाढाsनिक मरीज अक्सर पुराने नुस्खे से ही काम चलाते रहते हैं। फिर ऐसे भी लोग हैं जो डिफ्रेशन को बीमारी न मानते हुए इसका इलाज ही नहीं कराते हैं।

लेकिन अब एक सकारात्मक बात यह हुई है कि डिफ्रेशन के संदर्भ में अपने अनुभवों को लेकर अनेक सेलिब्रिटीज खुलकर सामने आने लगे हैं। करण जौहर, रणवीर सिंह, दीपिका पादुकोण, अनुष्का शर्मा आदि ने अपने अपने डिफ्रेशन, एंग्जायटी व पैनिक अटैक के इलाज को सार्वजनिक किया है। इससे इस रोग से जुड़े कलंक को दूर करने में मदद मिली है और अनेक पीड़ित इलाज कराने के लिए फ्रेरित हुए हैं। मीडिया में अक्सर क्लिनिकल डिफ्रेशन के पीड़ितों को हमेशा रोते व शिकायत करते हुए दिखाया जाता है। लेकिन यह सही तस्वीर नहीं है। डिफ्रेशन के शिकार फ्रोफेशनली व सोशली बहुत सामान्य हो सकते हैं और इसके बावजूद अकेले होने पर वह खालीपन व कुछ कमी की भावनाओं से ग्रस्त हो सकते हैं, जिससे उनके रोग को पहचान पाना अधिक क"िन हो जाता है।

भावनाओं के उतराव चढ़ाव से हर कोई गुजरता है, लेकिन अगर डिफ्रेशन के ऊपर दिए गये लक्षण दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक जारी रहें तो डाक्टर से सम्पर्क करना चाहिए। अच्छी बात यह है कि भारत में युवा वर्ग इस बीमारी को न केवल स्वीकार कर रहा है बल्कि इससे निजात पाने के लिए भी भरपूर प्रयास कर रहा है ताकि उसके काम व जीवन पर इसका बुरा असर न पड़े। डिफ्रेशन व एंग्जायटी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होते हैं, जैसे पहले बताया जा चुका है, लेकिन महिलाओं में इसका इलाज भी कम होता है। दरअसल महिलाएं अपनी समस्याओं के बारे में कम बोलती हैं और जब बोलती हैं तो उन्हें गम्भीरता से नहीं लिया जाता। उनके लक्षणों को मूड या स्वभाव कहकर नजरंदाज कर देने से उनमें कुं"ा व असहायपन आ जाता है, जिससे वह अपना नुकसान कर बै"ती हैं। भारत में पुरुषों की तुलना में युवा महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं, जबकि दुनिया के बाकी देशों में पुरुषों द्वारा आत्महत्या का आंकड़ा महिलाओं की तुलना में तीन गुणा अधिक है।

डिफ्रेशन से पीड़ित कुछ लोग अपनी स्थिति को स्वीकार करने में क"िनाई महसूस करते हैं और परिवार व दोस्तों के सहयोग के बावजूद उन्हें इस बीमारी को स्वीकार करने में महीनों लग जाते हैं। यही वजह है कि वह लंबे समय तक न तो डिप्रेशन के लक्षणों को पहचान पाते हैं और न ही इन्हें डायग्नोज कराते हैं। उपचार की बात तो दूर है। डिफ्रेशन एक समान अवसर बीमारी है जो ाढाsनिक या बार-बार लौटकर आने वाली हो सकती है और सभी आयु व सामाजिक वर्गों को फ्रभावित करती है। अगर उदासी या सामाजिक अकेलापन दो सप्ताह से अधिक रहता है तो डाक्टर से सम्पर्क करें क्योंकि अन्य बीमारियों की तरह डिफ्रेशन का भी डायग्नोज व उपचार सम्भव है। दवा व इलाज जरूरी है अगर स्थिति ाढाsनिक (चार सप्ताह से अधिक), बार-बार (साल में तीन चार बार) या मूड (दो सप्ताह तक सामान्य काम न कर पाना) से सम्बंधित है।

डिफ्रेशन के एक तिहाई मामलों में एसआरआरआई (सेलेक्टिव सेरोटोनिन रि-अपटेक इन्हिबिटर) दी जाती हैं, लेकिन इनके साइड इफेक्ट्स भी हैं जैसे पेट खराब होना आदि, जिससे इस तरह बचा जा सकता है कि दवा खाने के साथ ली जाये। दवा कम से कम 6 माह तक ली जाये, लेकिन अगर दो साल के भीतर फिर डिफ्रेशन हो जाये तो दवा दो वर्ष या उससे अधिक लेनी चाहिए। यह दवाएं सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दी जाती हैं और फ्राइवेट सेक्टर में खर्च लगभग 500 रूपये महीना आता है, इस बीमारी के इलाज में पैसा आड़े नहीं आता बल्कि इस समस्या को स्वीकार न करने की मानसिकता लोगों को इलाज करने से रोके रहती है।

डिफ्रेशन के लगभग 40 फ्रतिशत लोगों को अन्य बीमारियां भी होती हैं। इसलिए यह अच्छी बात है कि मनोचिकित्सकों से अलग अन्य डाक्टर भी एंटी- डिफ्रेशन व एंटी-एंग्जायटी दवाएं लिख रहे हैं। चूंकि मनोरोग मनोचिकित्सक वार्ड से बाहर आ गया है, इसलिए डिफ्रेशन जीवनशैली समस्या बन गई है और इसका लाभ यह हुआ है कि डिफ्रेशन से जो पारम्परिक क्

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