Home » रविवारीय » अब चुनाव आयोग को भी चाहिए सवाल पूछने पर डंडा मारने का हक

अब चुनाव आयोग को भी चाहिए सवाल पूछने पर डंडा मारने का हक

👤 Admin 1 | Updated on:17 Jun 2017 5:58 PM GMT

अब चुनाव आयोग को भी चाहिए  सवाल पूछने पर डंडा मारने का हक

Share Post

लोकमित्र

अंग्रेजी के अखबार इंडियन एक्सफ्रेस की एक खोज खबर के मुताबिक चुनाव आयोग ने कानून मंत्रालय को करीब महीने भर पहले एक चिट्"ाr लिखी है। इस चिट्"ाr में उसने सरकार से उन लोगों के विरुद्ध कार्यवाई करने का अधिकार मांगा है, जो उसकी ईमानदारी और पोल पैनल की विश्वसनीयता पर सवाल उ"ाने की कोशिश करते हैं। चुनाव आयोग के मुताबिक यह इसलिए जरूरी है; क्योंकि इस तरह सवाल उ"ाने से उसकी छवि खराब होती है।

कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि चुनाव आयोग चाहता है कि कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट 1971 में बदलाव करके उसे भी इसके इस्तेमाल का हक दिया जाए ताकि उसके आदेश को न मानने वाले या उसकी छवि को नुकसान पहुंचाने वालों पर कार्यवाई की जा सके। चुनाव आयोग ने इस संबंध में पाकिस्तान के चुनाव आयोग को मिले अधिकार का हवाला भी दिया है, जो एक किस्म का इशारा है कि उसे किस किस्म के अधिकार चाहिए। गौरतलब है कि पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने पाकिस्तान के पूर्व ािढकेटर और तहरीक--इंसाफ पार्टी के मुखिया इमरान खान के खिलाफ इस साल की शुरुआत में एक नोटिस जारी किया था, क्योंकि इमरान खान ने अपने एक बयान में कहा था कि पाकिस्तानी चुनाव आयोग विदेशी सहायता को लेकर पूर्वग्रह का शिकार है।

लब्बोलुआब यह कि भारतीय चुनाव आयोग को अपनी ताकत दिखाने के लिए कानून का एक डंडा चाहिए ताकि जब उसे लगे कि कोई बार-बार उससे सवाल करने की हिमाकत कर रहा है, तो वह उसके सिर पर यह डंडा दे मारे। चुनाव आयोग को इसकी जरूरत पिछले दिनों तब शिद्दत से महसूस हुई है जब यूपी और उत्तराखंड सहित 5 विधानसभा चुनावों के नतीजे आने पर कई राजनीतिक पार्टियों ने ईवीएम या इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में गड़बड़ी का आरोप लगाया था। सबसे मुखर तरीके से यह आरोप आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल ने लगाये थे, यहां तक कि आप ने तो पिछले दिनों विधानसभा में ईवीएम की तरह दिखने वाली एक मशीन के जरिये यह दिखाने और बताने की कोशिश भी की थी कि कैसे ईवीएम से छेड़छाड़ की जा सकती है।

यही नहीं आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल चुनाव आयोग पर यहां तक आरोप लगाया है कि उसका रवैय्या पुत्र मोह में डूबे अंधे धृतराष्ट्र की तरह है। जाहिर है इस प्रतीक में अंधे धृतराष्ट्र का पुत्र फिलहाल भारतीय जनता पार्टी ही लगती है। चुनाव आयोग नें अपने पर लगे इन आरोपों के मद्देनजर तमाम राजनीतिक पार्टियों को यह खुली चुनौती दी कि वे ईवीएम में छेड़छाड़ करके दिखायें? दरअसल चुनाव आयोग यह साबित करना चाहता था और है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ हो ही नहीं सकती। हालांकि यह उसकी चिट्"ाr पर विमर्श के सिलसिले में थोड़ा विषयांतर लग सकता है, मगर सिर्फ हिंदुस्तान की कुछ राजनीतिक पार्टियों को ही नहीं बल्कि दुनिया के तमाम देशों की तमाम राजनीतिक पार्टियों को भी लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के जरिये बेईमानी की संभावना बनी रहती है यानी उससे छेड़छाड़ की जा सकती है। यही वजह है कि हम से कहीं ज्यादा तकनीकी उन्नत एक दर्जन देश या तो इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल ही नहीं करते या शुरु करके छोड़ चुके हैं। ब्रिटेन और अमरीका जैसे देश भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन पर भरोसा न करने वाले देशों में शामिल हैं। ऐसे में भारतीय चुनाव आयोग का ईवीएम पर आंख मूंदकर भरोसा करना और इस पर अंगुली उ"ाने वालों को सबक सिखाने की मंशा रखना हास्यास्पद है।

यह "rक है कि अरविंद केजरीवाल आरोप लगाने के ाढम में कुछ ज्यादा नीचे उतर गये, जब उन्होंने ये कहा कि तीन में से दो चुनाव आयुक्त भ्रष्ट हैं और उनकी सरकार से निकटता है। गौरतलब है कि आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों के मामले की सुनवाई चुनाव आयोग कर रहा है और केजरीवाल ने सीधे-सीधे आरोप लगा दिया है कि चुनाव आयुक्त ए.के.ज्योति उस समय गुजरात के चीफ पेटरी हुआ करते थे, जब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे। इसी तरह उन्होने दूसरे चुनाव आयुक्त ओपी रावत पर भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी होने का आरोप लगाया है, जो कि मध्यपद्रेश से आते हैं। केजरीवाल का कहना है कि इन दोनो चुनाव आयुक्तों के चलते उनके मामले में निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती।

इस तरह देखा जाये तो चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल के रवैय्ये से भड़ककर न्यायालय और न्यायाधीशों की तरह कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट अधिकार की मांग की है। लेकिन किसी एक व्यक्ति या पार्टी को सबक सिखाने के लिए लोकतंत्र की आजादी और उसकी स्वायत्तता को खतरे में नहीं डाला जा सकता, जो कि इस तरह का अधिकार चुनाव आयोग को दे देने के बाद तकरीबन तय है। अगर चुनाव आयोग को केजरीवाल या उनकी पार्टी को सबक सिखाना ही है तो वह फौजदारी अदालत में मानहानि का मामला दर्ज करा सकते हैं, लेकिन इसके लिए ऐसी ताकत की मांग उचित नहीं है, जिसका इस्तेमाल विवेक से तय होता हो।

दरअसल लोकतंत्र की खूबसूरती इसी में है कि उसके ज्यादा से ज्यादा अंग लचीले हों और जनता या शासित के बारे में सहानुभूतिपूर्वक सोचते हों। इसलिए लोकतंत्र में उम्मीद की जाती है कि आरोपों से निपटने के लिए उनके जवाब देना ही सबसे कारगर उपाय है। लेकिन एक बार अगर चुनाव आयोग को ऐसे आरोपों के बदले ताकत के इस्तेमाल का हक मिल गया, तो शक है कि फिर इस तरह के सवाल सामने आयेंगे, क्योंकि सवाल पूछने वाला हमेशा अपने ऊपर कोर्ट ऑफ कंटेम्प्ट जैसी तलवार के लटके होने से भयग्रस्त रहेगा। इसका सबसे ज्यादा नुकसान राजनीतिक पार्टियों को नहीं मीडिया को होगा। आज भले लग रहा हो कि चुनाव आयोग अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी से खफा होकर इस तरह के ताकतवर डंडे की मांग कर रहा है, लेकिन जब कल को सचमुच उसके पास यह डंडा आ जायेगा तो फिर यह डंडा पत्रकारों के सिर पर ही सबसे ज्यादा पड़ेगा न कि राजनेताओं के।

इसलिए ऐसी किसी ताकत के हस्तांतरण से बचना चाहिए, यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि एक बार इस तरह की ताकत मांगने का सिलसिला शुरु हो गया तो फिर यह मांग बढ़ती ही जायेगी। अभी चुनाव आयोग ने मांगा है, तो कल को कई दूसरे आयोग भी ऐसी ही ताकत की मांग करेंगे और न दिये जाने पर अपने साथ किये जाने वाले भेदभाव का आरोप लगायेंगे। चुनाव आयोग ने अपनी कथित चिट्"ाr में अगर पाकिस्तानी चुनाव आयोग को रोल मॉडल की तरह उद्धृत किया है तो यह हास्यास्पद ही है; क्योंकि पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र किस कदर पहले से ही कराह रहा है। अगर इस ाढम में वहां के चुनाव आयोग को भी उसे काबू में रखने का डंडा हासिल है, तो यह फख्र की बात नहीं, चिंता का सबब होना चाहिए और प्रेरित करने वाला उदाहरण तो कतई नहीं।

Share it
Top