हम सबके बीच खामोशी से टिक-टिक कर रहा है बीपी बम
डॉ.माजिद अलीम
बीपी यानी ब्लडप्रेशर या हाइपरटेंशन एक खामोश शिकारी है। जो इसका शिकार होता है, उसे अपने शिकार होने का एहसास तब होता है जब वह काफी हद तक शिकार हो चुका होता है। विश्व स्वास्थ्य संग"न (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप एक खामोश बीमारी है। शायद इसीलिए यह दूसरी मुखर बीमारियों के मुकाबले कहीं ज्यादा खतरनाक भी है। आमतौर पर जब तक कोई व्यक्ति इसकी जांच नहीं कराता, इसके हमले का पता नहीं लगता। दरअसल बीपी या हाइपरटेंशन के लक्षण इतने अस्पष्ट होते हैं कि साधारण तौरपर इसका अंदाजा ही नहीं लगाया जा सकता। हालांकि अगर आप सतर्क हैं तो इसे पकड़ सकते हैं। जब आलस सताने लगे, सिर दर्द रह-रहकर हो, जरा-जरा से तनाव पर नाक से खून बह निकले तो समझ लेना चाहिए कि हम बीपी के शिकंजे में फंस चुके हैं या फंसने वाले हैं।
विश्व स्वास्थ्य संग"न के मुताबिक अभी 20-25 सालों पहले तक हिंदुस्तान इसके ताबड़तोड़ हमले से बचा हुआ था। क्योंकि ज्यादातर लोगों की लाइफस्टाइल मेहनत मशक्कत वाली थी और खानपान मोटा था। लेकिन धीरे-धीरे हिंदुस्तान में भी लाइफस्टाइल मशीन पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होती जा रही है। खानपान में ताजी की बजाय पैकेट बंद चीजों का चलन बढ़ रहा है। नतीजा यह है कि बीपी भी उसी के मुताबिक बढ़ रहा है। पिछले कुछ सालों में इस खामोश बीमारी ने भारतीयों को बड़े पैमाने पर अपना शिकार बनाया है। आज की तारीख में 30 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय इसकी चपेट में हैं। दरअसल भारत में तेजी से बीपी की समस्या के बढ़ने का