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द्वापर युग के साक्षात् के लिए गोवर्धन पहुंचे देशी-विदेशी श्रद्धालु

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:18 Oct 2017 3:41 PM GMT
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रोहन सिंह
गोवर्धन। ब्रज की गोपी-गोपिकाओं की भेशभूशा तो हाथ में झांझ-मजीरे और मुख पर बोल हरि बोल के नाम। ऐसी भक्ति की नजारा गोवर्धन की परामा में देषी-विदेषी भक्तों के बीच देखने को मिला। गोवर्धन पूजा महोत्सव में आस्था का सैलाब उमड़ रहा है। तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ की अभिव्यक्ति समूची तलहटी में नजर आ रही है। गोवर्धन पूजा के मुख्य केन्द गोवर्धन धाम में गिर्राज पूजा महोत्सव के लिए देषी ही नहीं बल्कि विदेषी भक्त भी पूजा करने का आतुर हैं। गिरिराज पूजा और दीपावली पर दीपदान करने से पहले अंतर्राश्ट्रीय गौड़ीय वेदांत समिति और इस्कॉन की ओर से करीब चालीस देषों से अनुयायियों ने गिरिराज जी की रज में परामा लगाई। विदेषी भक्त श्रीकृश्ण व गिरिराज जी की भक्ति में इस तरह खोये हुए हैं कि सब कुछ छोड़कर ब्रज रज में रम गये हैं। ब्रज गोपियों की पोषाक और हाथ में कं"ाr माला-झोली लेकर हरि बोल हरि बोल नाम जप रहे हैं। यहां आन्यौर गोविंद कुंड, पूंछरी में अप्सरा कुंड व जतीपुरा में सुरभि कुंड में भक्तों ने आचमन करते हुए गिरिराज जी की द्वापर युगीन लीलाओं को साक्षात किया। ब्राजील से आई विदेषी भक्त गुरू से मिले नाम तरूणी गोपी दासी ने बताया कि पांच हजार साल पहले गिरिराज जी की पूजा कराई और अब भी वे पूजा करने आई हैं। आस्ट्रेलिया से आई विसाखा दासी ने तो बताया कि गिरिराज जी में जो आनंद की अनुभूति होती है वह पूरी दुनिया में नहीं हैं। श्री कृश्ण भक्ति और गिर्राज पूजा को लेकर माधव महाराज, तीर्थ महाराज, नारायण दास महाराज ने बताया कि 55 देषों में श्रीकृश्ण की लीलाओं को अनुसरण करने वाले भक्त जुड़े हैं। इन्हीं लीलाओं में गिरिराज जी की लीला है।
यहां गिर्राज जी साक्षात् विराजमान हैं। गोवर्धन पूजा 20 अक्टूबर होगी। गिरिराज दानघाटी मंदिर, मुकुट मुखारविंद मंदिर, राजा जी के मंदिर के पीछे तलहटी में गिरिराज पूजा को भक्त पहुचेंगे।

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