Home » उत्तर प्रदेश » प्राचीन विरासतों से परिपूर्ण हैं बुन्देलखण्ड : फिरोज इकबाल

प्राचीन विरासतों से परिपूर्ण हैं बुन्देलखण्ड : फिरोज इकबाल

👤 Veer Arjun Desk 3 | Updated on:17 April 2019 1:04 PM GMT
Share Post


ललितपुर। बुन्देलखण्ड के सभी जिलों की हजारों किलोमीटर की बाईक से साहसिक यात्रा को तय करते हुये सैकड़ो पुरातात्विक, ऐतिहासिक, नैसर्गिक स्थलों को देखने वाले, धरोहरों के प्रति जन जागरूकता लाने के लिये विगत कई वर्षो से निरन्तर कार्य कर रहे पर्यटन मित्र फिरोज इकबाल डायमंड ने विष्व विरासत दिवस केे बारे में बताते हुये कहा कि 18 अप्रैल को सम्पूर्ण विष्व में विष्व विरासत दिवस मनाया जाता है। इस दिवस की शुरूआत संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्कों ने 1982 में की थी। इतिहास को देखते हुये हम पाते है कि वास्तुकला तथा मानव सभ्यता का सम्बन्ध हमेषा से अटूट रहा है, जैसे जैसे मानव सभ्यता विकसित होती गयी, वैसे-वैसे वास्तुकला भी विकसित हुई, हर कालखण्ड में निरन्तर वास्तुकला ने नयी इबारतें गढ़ी गयी। भारतीय स्थापत्य महान भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का महत्वूपर्ण आयाम है, भारतीय स्थापत्य कला पर भारतीय धर्म, दर्षन, विचारधारा, के साथ-साथ विदेषी शैलियों का भी प्रभाव द्रष्टिगोचर होता है। भारतीय स्थापत्य की वास्तुकला में सिंधु घाटी सभ्यता, मौर्य, शुंग, कुषाण, राष्ट्रकूट, पल्लव, चोल आदि वंषो के शासकों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देष की मूर्तिकला, षिल्पकारी विषिष्ट कला मानी जा सकती है। भारत में षिल्पकारी का इतिहास प्राचीन काल से ही मिलता है। इन कलाकृतियों में जीवन की सजीवता प्रतिबिंबित होती है। यहां के सांस्कृतिक इतिहास की पृष्ठभूमि विभिन्न काल में स्वतन्त्र रूप से परिवर्तित होती रही। हमारी संस्कृति बहुत प्राचीन है। देष के विभिन्न अंचलों में की गयी पुरातात्विक खुदाईयों व सर्वेक्षणों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यहां की संस्कृति विष्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। हमें विष्व धरोहर दिवस पर संकल्प लेना चाहिये कि हम प्राकृतिक, नैसर्गिक, पुरातात्विक धरोहरों का सम्मान करेंगे। हमारे गौरवषाली क्षेत्र बुन्देलखण्ड की सीमायें विभिन्न राजाओं के कार्यकाल में परिवर्तित होती रहीं पर सांस्कृतिक भौगोलिक ईकाई के रूप में ललितपुर, झांसी, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, चित्रकूट, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, सागर, दमोह को मुख्तय: बुन्देलखण्ड परिक्षेत्र से जाना जाता है। विभिन्न कालखण्डों में दर्षाण, चेदि, जुहोती, जजाहोती, मध्य देष के नाम से जाना जाता रहा यह क्षेत्र बुन्देलों के आधिपत्य के बाद ही पूर्ण रूप से बुन्देलखण्ड नाम से जाना पहचाना गया। यहां चारों ओर सामाजिक एकरूपता लोक संजीवनी के रूप में तानेबाने को परस्पर जोड़े हुये है। यमुना से नर्मदा तक विन्ध्यपर्वत श्रंखला से धिरा बुन्देलखण्ड एक प्राचीन क्षेत्र है, जो मध्यभाग में होने के कारण इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ है। बुन्देलखण्ड में श्रेष्ठतम वास्तुकला को समेटे धरोहरें सर्वसुलभ है। इतिहास को समेटे प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक काल तक के अवषेष द्रष्टव्य है। प्राचीन काल से लेकर अब तक प्राप्त विभिन्न स्रोतों, षिलालेखों ग्रंथों, मुद्राओं के प्रमाणों, शौर्य, इतिहास से गौरवगाथायें भरी पड़ी है। जनपद झांसी में झांसी दुर्ग, रानीमहल, बरूआसागर, जराय का मठ, गुजर्रा, गढ़मऊ झील, जनपद ललितपुर में बानपुर, देवगढ़, दूधई, चांदपुर जहाजपुर, पाली, बालाबेहट का किला, मदनपुर, जनपद जालौन में चौरासी गुंबद, कालपी, रामपुरा का किला, जगम्मनपुर का किला, लंका मीनार, व्यास मठ, जनपद बांदा में नीलकण्ठ मंदिर, रानीपुर वन्य अभ्यारण्य, छत्रसाल संग्रहालय, कार्लिजर, नवाब कुण्ड, मड्फा किला, जनपद हमीरपुर में सिंहमहेश्रवरी मंदिर, चौरादेवी, मेहर बाबा मंदिर, कल्पवृक्ष, जनपद महोबा में खखरा मठ, रहिलिया सागर सूर्य मंदिर, षिवतांडव मंदिर, बड़ी छोटी चंडिका देवी मंदिर, जनपद चित्रकूट में कामदगिरि, रामघाट, जानकीकुंड, सती अनसुईया आश्रम, गुप्त गोदावरी, हनुमान धारा, भरतकूप, गणेषबाग, धारकुंडी, भरत मिलाप मंदिर, जनपद दतिया में पीताम्बरा पीठ, सोनागिरि तीर्थ, राजगढ़ महल, सनकुआ, रतनगढ़ माता मंदिर, जनपद टीकमगढ़ में अहार जी, पपौरा जी, बल्देवगढ़, कुंडेष्वर, मडख़ेरा, ओरछा, गढक़ुंडार, पृथ्वीपुर, लिधौरा, जतारा, बंधा जी, जनपद छतरपुर में खजुराहो, भीमकुंड, धुबेला, सिद्धक्षेत्र द्रोणागिरी, जनपद पन्ना में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, पांडवफाल, प्राणनाथ मंदिर, बल्दाऊ मंदिर, हिन्दुपत महल, अजयगढ़, जनपद दमोह में बांदकपुर, कुण्डलपुर, जटाषंकर, नोहलेश्रवर मंदिर, अम्बिका मठ, सकौर, बरीकनौरा, रनेह मठ, जनपद सागर ऐरण, गढ़पहरा, धामोनी, रहली, रानगिर, राहतगढ़, आबचंद की गुफाएं, गौरझामर के साथ ही अनेकों विषिष्ट स्थल मौजूद है। पिछली पीढियों के द्वारा हम को सौंपी गयी धरोहरों को अनमोल खजाना मानते हुये हमें इन्हें संरक्षित करते हुये लिपिबद्ध करने की जरूरत है। हमारे पूर्वजों द्वारा दी गयी स्मृतियां को संजोकर हम राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति से हमें रूबरू होते है। इसलिये देष के प्रत्येक व्यक्ति के लिये धरोहरों का विषेष महत्व होना चाहिये। हम सब को फिर से धरोहर संरक्षण जागरूकता की ओर नये सिरे से विचार करना होगा, साथ ही शासन प्रषासन को भी सकारात्मक द्रष्टिकोण अपनाते हुये प्राकृतिक, नैसर्गिक, ऐतिहासिक प्राचीनता को सहेजने की विषिष्ट कोषिषें करना होगी। तभी हम वैष्विक पटल पर अपने समर्धषाली इतिहास को प्रस्तुत कर सकेंगे। इस विरासत दिवस को मनाने का उददेष्य यही है कि मानव सभ्यता से जुड़े ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण के प्रति जागरूक होते हुये आगे आने वाली पीढिय़ों के लिये धरोहरों को बचाकर रखा जा सके।

Share it
Top