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राजस्थान उर्दू एकेडमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार
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अलीगढ़ (वीअ)। अलीगढ़ मुस्लिम विष्वविद्यालय के विधि विभाग के वरिश्" षिक्षक पो. षकील समदानी ने राजस्थान उर्दू एकेडमी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार ``इक्कीसवीं सदी मे ंउर्दू उपन्यास'' में बतौर मानद् अतिथि अमुवि का पतिनिधित्व किया।
उन्होंने कहा कि जुबान का कोई धर्म नहीं होता और जो कौम उस को अपना लेती है जुबान उसी की हो जाती है। उर्दू भाशा हिन्दुस्तान में ही पैदा हुई और यहीं पर वह जवान हुई इसीलिए यह पूर्णता भारतीय भाशा है। इसीलिए सभी भारतवासियों को इसनके पचार पसार एवं उन्नति की कोषिष करनी चाहिए। पो. समदानी ने आगे कहा कि उर्दू भाशा के कमजोर होने के कारण अधिकांष भारतीयों का उच्चारण खराब हो गया हैं यह एक राश्ट्रीय क्षति है जिसकी भरपाई होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि उर्दू को बढ़ावा देने में राजस्थान के लेखकों, कवियों और कलाकारों का बड़ा योगदान रहा है। पो. समदानी ने उर्दू उपन्यास पर राश्ट्रीय सेमिनार आयोजित करने के लिए राजस्थान उर्दू एकेडमी के सचिव मोअज्ज़म अली की पषंसा की।
इस अवसर पर पो. सगीर अफराहीम की पुस्तक ``उर्दू नॉवेल-तारीफ, तारीख और तज़जिया'' का विमोचन किया गया।
इस उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता दुर्गा पसाद अग्रवाल ने की। मुख्य अतिथि जाकिर हुसैन, आईएएस, मानद् अतिथि सरदार जसबीर सिंह, चैयरमेन, अल्पसंख्यक आयोग, अष्विन दलवी, चैयरमैन ललित कला एकेडमी, मषहूर उपन्यासकार डॉ. गजनफर पो. हुसैन रजा खॉन अध्यक्ष उर्दू विभाग राजस्थान विष्वविद्यालय तथा पो. अली अहमद फातमी ने षिरकत की।
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