Home » द्रष्टीकोण » काला-गोरा, ऊंच-नीच, हिन्दू-मुस्लिम के फेर में नष्ट होती राष्ट्र की संस्कृति

काला-गोरा, ऊंच-नीच, हिन्दू-मुस्लिम के फेर में नष्ट होती राष्ट्र की संस्कृति

👤 admin5 | Updated on:16 Aug 2017 4:00 PM GMT
Share Post

बसंत कुमार

अभी हाल मे उ.प्र. सरकार ने सारे मदरसो को स्वतत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने, राष्ट्रगान गाने और सांस्कृतिक कार्यकम आयोजन करने का आदेश जारी किया है। उ.प्र. शिक्षा बोर्ड के रजिस्टार ने अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के उपनिदेशक और जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों को भेजे आदेश में कहा है कि आगामी स्वतंत्रता दिवस कार्यकम पर सभी मदरसो में झण्डारोहण, राष्ट्रगान गाया जाये और सभी मदरसों में सांस्कृतिक कार्यकम आयोजित किये जायें और स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित कार्यकमों की वीडियो ग्राफी करायी जाये। सरकार के इस आदेश को अनेक मुस्लिम संगठनों ने मदरसों की देशभक्ति के सवाल के तौर पर देखा है। यह देश का कैसा दुर्भाग्य है कि हमारे राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त और 26 जनवरी को सम्मान से मनाने के लिए सरकार को आदेश जारी करना पड़ रहा है। राष्ट्र के सम्मान की बात तो दिल से निकलनी चाहिये। उ.प्र. सरकार का यह आदेश अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असद्दीन ओवैसी को नागवार गुजरा है। यह वही ओवैसी हैं जिन्होने बीते साल झण्डारोहण के दौरान तिरंगे को सलामी नहीं दी थी और राष्ट्रगान जन गण मन.....का सम्मान करना मुनासिब नहीं समझा था। अभी हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने एक इण्टरब्यू मे कहा कि देश में मुसलमानों के बीच बैचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। कैसा दुर्भाग्य है कि इतने ऊंचे संवैधानिक पदों पर विराजमान लोग इस तरह की राष्ट्रविरोधी भावना फैला रहे हैं।
प्राय भारत के कई लोग विदेशों में नक्सलवाद का शिकार होते रहते हैं और हम उसकी जोरदार निन्दा करते है परन्तु निन्दा करते समय हम यह भूल जाते है कि हमारे देश मे कितने ही लोग काले-गोरे, ऊंच-नीच पर आधारित नस्लभेद का शिकार होते है। हाल ही में इस रंगभेद का निशाना बने भारतीय टीम के सलामी बल्लेबाज अभिनव मुकुन्द जो अपने बल्ले से शानदार प्रदर्शन के बावजूद अपने काले रंग की वजह से रंगभेद का शिकार बने हैं। देश में सोशल मीडिया पर उनके रंग को लेकर उनका मजाक उड़ाया जाता रहा है। सोशल मीडिया में एक पोस्ट में अभिनव ने कहा, `उच्च स्तर पर देश के लिए खेलना एक गर्व की बात है, मैं आज किसी की सहानुभूति और ध्यान खींचने के लिए नहीं लिख रहा हूँ बल्कि इस उम्मीद से कि उस मुद्दे पर लोगों की सोच बदले जिसके बारे में मै सबसे ज्यादा सोचता हूँ। मेरे रंग को लेकर मेरे मेरे ऊपर कई ताने दिये गये, बचपन से ही मुझे इसका कारण समझ नहीं आया।' एक दिन एक सज्जन पुरूष एक सभा में प्रवचन दे रहे थे कि हम लोगों में भारतीय होने का भाव नहीं है, इसी कारण देश विकास की दौड़ में बहुत पीछे है और बाद में भारतीय। परन्तु प्रवचन में ही वह भारतीय समाज मे व्याप्त जाति व वर्ण व्यवस्था का बखान करने लगे। अर्थात आजादी के सत्तर वर्ष बाद भी रंग, धर्म और जाति के नाम पर भेद किया जाता है। पूरा का पूरा तत्र जाति और धर्म पर चल रहा है आज कल के चुनाव राजनीतिक पार्टियों द्वारा जाति व सम्प्रदाय के मुद्दे पर लड़े जाते है।
सन अस्सी के दशक तक चुनाव गरीबी हटाओ, लोकतत्र बचाओ आदि नारों के नाम पर लड़े जाते थे परन्तु आज हर राजनीतिक दल जनजागरण हेतु नीतियां व कार्यकम बनाने के बजाय इस चीज में व्यस्त रहते हैं कि चुनाव मे सफलता सुनिश्चित करने के लिए करने के लिए किन जातियों को साधा जाये। यही कारण है कि भारत की दोनो ही राष्ट्रीय पार्टियां सपा और बसपा को पराजित करने के लिए गैर जाटव और गैर यादव कार्ड खेलती है इसके इस प्रकार के व्यवहार से आगे ऐसा लगता है कि जाटव (चमार) और यादव इस देश के नागरिक न होकर कहीं विदेश से आये है। जहाँ तक पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी द्वारा मुस्लमानों में असुरक्षा की भावना की बात का प्रश्न है तो यह बता दूं कि इस देश में मुस्लमानों का इतिहास लगभग 1200 साल पुराना है और 1104 से लेकर 1857 तक मुसलमान इस देश के शासक रहे है। इस देश के तीन राष्ट्रपति मुसलमान रहे श्री हामिद अंसारी स्वयं 10 वर्षों तक उप राष्ट्रपति रहे इससे पूर्व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर व उससे पहले की कई देशों में भारत की ओर से डिप्लोमेट रहे। ऐसे व्यक्ति द्वारा देश के मुसलमानों में इस प्रकार का भ्रम फैलाना दुर्भाग्य पूर्ण है। जितना हक इस देश पर हिन्दुओं का है उतना ही हक इस देश पर मुसलमानों का है इस देश के निर्माण में सभी देशवासियों ने चाहे वे सवर्ण हिन्दू रहे हों दलित, आदिवासी हो, मुस्लमान या अन्य अल्पसंख्यक रहे हो बराबर का योगदान किया है इसलिए किसी के प्रति पूर्वाग्रह रखना देश और समाज के साथ अन्याय है। अभी स्वतंत्रता दिवस मनाने के सम्बन्ध में उ.प्र. सरकार का जो आदेश मदरसों के लिए आया है वह आदेश प्रदेश के सभी विद्यालयों और शिक्षण संस्थानों के लिये आता तो बहुत ही अच्छा होता।
देशभक्त होने का प्रमाण सिर्प धर्म विशेष के लोगों से मांगना हिन्दुस्तान की गंगा जमुनी संस्कृति के विरूद्ध है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने अपने जीवन में जाति-वर्ण के आधार पर कभी भेद नहीं किया परन्तु उन्ही राम की धरती पर रंग जाति वर्ण समप्रदाय के आधार पर भेदभाव करना व पूर्वाग्रह रखना सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि देश के लिये खेलने वाला किकेट खिलाड़ी और देश के पूर्व उप राष्ट्रपति रंग और धर्म के आधार पर होने वाले पूर्वाग्रह के प्रति आवाज उठाते हैं तो यह सचमुच चिन्ता का विषय है।
इस प्रकार के पूर्वाग्रह का सामना मैंने स्वयं भी किया है इसलिए इसका उल्लेख करना मै यहां आवश्यक समझता हूँ। मैं वर्ष 2014 मे लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के वरिष्ठतम नेताओं में से एक श्री कलराज मिश्र के संसदीय क्षेत्र देवरिया में प्रचार में गया था। इसके पूर्व लगभग 7 वर्षों से मैं श्री मिश्र के सानिध्य में काम करता रहा हूं और उनके वयक्तित्व की यह विशेषता रही कि वे जाति धर्म सम्प्रदाय के आधार पर कभी भेद भाव नहीं करते। वे अपने हर कार्यकर्ता को चाहे वह किसी जाति या वर्ण का हो सदैव स्नेह करते हैं। परन्तु जो लोग उनके आस पास काम करते हैं उनके विषय मे ऐसा नहीं है। देवरिया में मेरे द्वारा लिखी गई दो पुस्तकें राष्ट्रवादी कर्म योगी एवं युवाओं के प्रेरणाश्रोत स्वामी विवेकानन्द बहुत ही लोकप्रिय हुई थी। मै वहां पर शाम को चुनाव कार्यालय में बैठा हुआ था। वहां बैठे कुछ युवा छात्रों एवं कार्यकर्ताओं ने इन पुस्तकों पर छपे मेरे चित्र देखे और समझ गये कि इन पुस्तकों के लेखक यही है। वे बच्चे चुप-चाप मेरे पास आये और मेरा पैर छूकर मुझे अपना परिचय देने लगे। उन बच्चों का स्नेह देखकर मेरे मन में उनके लिए आर्शीवाद के अलावा कुछ न निकला। उसी दिन शाम मेरे पास मेरे एक सहयोगी श्री शुक्ल जी चुनाव प्रबन्धन में लगे एक सज्जन का सन्देश लेकर आये कि जो बच्चे आपका अभिनन्दन कर रहे थे वे कुलीन के बच्चे है और आप ध्यान रखें कि भविष्य मे ऐसा न होने पाये। आप विद्वान है लेखक है पर दलित हैं और बच्चे आपका पैर छूएं इससे बहुत गलत सन्देश जायेगा। आप सोच सकते हैं कि आज भी हम 21वीं सदी के युग में उसी सोच के साथ जी रहे जिसमें शिष्टाचार और अभिवादन लोगो की योग्यता और पात्रता के बजाय उसकी जाति और रंग पर होता है। आज के पाँच दशक पूर्व जब हम विद्यालयों में पढ़ने जाते थे तो अपने गुरूजनों उनकी जाति के हिसाब से ब्राम्हण शिक्षक को पण्डित जी क्षत्रिय शिक्षक को बाबू साहब, ओबीसी व दलित शिक्षक को मुन्शी जी और मुसलमान शिक्षक को मौलवी साहब कहते थे। आज के आधुनिक कम्प्यूटर युग में हम सबका स्थान सर एवं मैडम ने ले लिया है परन्तु रंग, जाति और धर्म पर आधारित पूर्वाग्रह हमारे भीतर घुसा हुआ है और इसी कारण हमारा राष्ट्र प्रगति नहीं कर पा रहा है।
यदि हमें एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करना है तो हमें रंग भेद और जाति भेद की विसंगति से निकलता होगा और यह मानना होगा कोई जन्म से गोरा होने और ऊंच जाति के परिवार में मात्र जन्म लेने से कोई ऊंचा नहीं हो जाता। श्रेष्ठ बनने के लिए उसका कर्म करने की आवश्यकता होनी चाहिये। इसके लिए हमें पाश्चात्य देशों से सीख लेने की आवश्यकता है।
(लेखक एक पहल नामक एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

Share it
Top