अन्याय व अहंकार के विरोध की याद दिलाती शहादत-ए-हुसैन
तनवीर जाफरी
इन दिनों पूरे विश्व में हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जा रहा है। मुसलमानों के विभिन्न समुदाय करबला की इस घटना को अपने अलग-अलग अंदाज में मना रहे हैं। भारतवर्ष में भी खासतौर पर शिया व दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग हजरत इमाम हुसैन का गम मजलिस, मातम व ताजियादारी का आयोजन कर मनाते आ रहे हैं। पिछले दिनों अशर-ए-मुबारक नाम का एक ऐसा ही आयोजन मध्यपदेश के इंदौर शहर में दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा आयोजित किया गया जिसमें बोहरा समुदाय के 53वें धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन के साथ पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शिरकत की। हजरत इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने वाले इस आयोजन में पधानमंत्री ने अपने लगभग आधे घंटे के संबोधन में शुरुआती दो मिनट हजरत हुसैन की शहादत तथा इसके महत्व पर पकाश डाला। इसके बाद के लगभग दो मिनट बोहरा समाज की पशंसा तथा भारत में बोहरा समाज की भूमिका पर रौशनी डालने में खर्च किए तथा शेष लगभग 25 मिनट का भाषण पूरी तरह से अपनी सरकार की उपलब्धियों का बखान करने पर आधारित रहा। विश्लेषकों द्वारा उनका इंदौर में इस आयोजन में शरीक होना पूरी तरह से राजनैतिक व चुनावी कदम इसलिए माना जा रहा है क्योंकि शीघ्र ही मध्यपदेश में विधानसभा चुनाव भी होने जा रहे हैं।
बहरहाल पधानमंत्री के इस कार्यकम में शिरकत व हजरत हुसैन के साथ-साथ दाऊदी बोहरा समुदाय के पति दर्शाए गए उनके पेम को लेकर तरह-तरह की अटकलबाजियां लगाई जा रही हैं। कुछ लोगों का मत है कि पधानमंत्री का इस कार्यकम में संबोधन भारत में शिया व सुन्नी समाज को विभाजित करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है। जबकि कुछ का यह मानना है कि दाऊदी बोहरा समाज गुजरात का सुदृढ़ व्यापारी समाज होने के नाते विभिन्न राजनैतिक दलों खासतौर पर सत्तारूढ़ राजनैतिक दल को आर्थिक सहायता देता है।
लिहाजा पधानमंत्री का यह दौरा भी पूरी तरह से इसी लक्ष्य को समर्पित था। तो कुछ लोग इसे मध्यपदेश के भोपाल, उज्जैन व इंदौर जैसे महानगरों में बोहरा समुदाय के लोगों की अच्छी-खासी संख्या व आने वाले चुनाव में इस समुदाय से मिलने वाले लाभ से जोड़कर देख रहे हैं। कारण जो भी हो परंतु इतना जरूर है कि अपने संबोधन में पधानमंत्री मोदी ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए कई महत्वपूर्ण बातें कही हैं। उनकी इन बातों का देश की राजनीति, भाजपा व इसके शीर्ष नेताओं की भाषण शैली तथा विचारों में परस्पर कितना विरोधाभास नजर आता है इसे भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता।
पधानमंत्री ने हजरत हुसैन की शहादत पर रौशनी डालते हुए कहा कि इमाम हुसैन इंसाफ के लिए शहीद हो गए। उन्होंने अन्याय और अहंकार के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद की थी। उनकी यह सीख कितनी महत्वपूर्ण है उससे भी अधिक आज की दुनिया के लिए अहम है। इन परंपराओं को मुखरता से पसारित करने की आवश्यकता है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पधानमंत्री ने कहा कि हम वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा पर चलने वाले लोग हैं। हमारे समाज व विरासत की यही शक्ति जो हमें दुनिया के दूसरे देशों से अलग पहचान पैदा करती है। उन्होंने कहा कि मुझे खुशी है कि बोहरा समाज दुनिया को भारत की इस ताकत से परिचित करा रहा है। हमें अपने अतीत पर गर्व है, वर्तमान पर विश्वास है और उज्जवल भविष्य का आत्मविश्वास के साथ संकल्प भी है। शांति-सद्भाव, सत्याग्रह और राष्ट्रभक्ति के पति बोहरा समाज की भूमिका हमेशा-हमेशा महत्वपूर्ण रही है।
गौरतलब है कि गुजरात की नौ पतिशत मुस्लिम आबादी में बोहरा समुदाय के लोगों की संख्या केवल एक पतिशत है। परंतु यह समुदाय शिक्षित, सुदृढ़, सम्पन्न तथा व्यापारी समुदाय माना जाता है। इस समाज के लोगों ने जल संरक्षण, पर्यावरण, शिक्षा तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में राज्य सरकारों के समानांतर कई विकास कार्यों में अपनी भागीदारी निभाई है। लिहाजा देश के निर्माण में इस छोटे से समुदाय की रचनात्मक भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
बोहरा समाज बावजूद इसके कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत को पुरजोर तरीके से मनाता है। परंतु यह भी सच है कि भारत में मौजूद शिया समुदाय के लोगों का इस समुदाय के साथ कोई विशेष रिश्ता-नाता नहीं है। बोहरा समाज के लोग शादी-विवाह तथा दूसरे सामुदायिक मामलों में किसी दूसरे समुदाय के साथ अधिक वास्ता नहीं रखते। अतः यह अंदाजा लगाना कि बोहरा समाज के किसी कार्यकम में जाकर शिया व सुन्नी समाज में दरार डालने की कोशिश की गई है, मुनासिब नहीं है। हालांकि भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी काफी पहले ही यह बात स्वीकार कर चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी शिया व सुन्नी समुदाय को विभाजित करना चाहती है। दूसरा विरोधाभासी तथ्य यह भी है कि बोहरा समाज के जिस कार्यकम में पधानमंत्री ने शिरकत की और इस समाज की तारीफ के पुल बांधे इसी समाज के लोग गुजरात में 2002 में अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा में सबसे अधिक पभावित हुए थे। इनके सैकड़ों कारोबारी पतिष्ठान व मकान आदि तबाह कर दिए गए थे। न जाने किन परिस्थितियों में उस समय इस समाज की राष्ट्र के पति कुर्बानियां गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री व वर्तमान पधानमंत्री को याद नहीं आ सकीं?
पधानमंत्री ने हजरत इमाम हुसैन की शहादत को अन्याय व अहंकार के विरुद्ध आवाज बुलंद करने से तो जोड़ा ही साथ-साथ इसे अमन व इंसाफ के लिए दी गई शहादत भी बताया। इस संदर्भ में भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं खासतौर पर स्वयं पधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के अमित शाह द्वारा विभिन्न स्थानों पर दिए जा रहे भाषण, उससे निकलने वाले संदेश तथा भाषण शैली पर भी नजर डालना जरूरी है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों अमित शाह ने राजस्थान में अपने एक भाषण में कहा कि अखलाक और अवार्ड वापसी के बाद भी भाजपा ने जीत दर्ज की थी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि भाजपा 2019 में सत्ता में आती है तो अगले पचास वर्षों तक उसे सत्ता से हटाया नहीं जा सकता। अब जरा पधानमंत्री की हजरत इमाम हुसैन के पति श्रद्धांजलि के दौरान पयोग किए गए शब्दों की अमित शाह के शब्दों से तुलना कीजिए तो इनमें साफतौर से विरोधाभास नजर आएगा। अखलाक उस दुर्भाग्यशाली व्यक्ति का नाम था जिसे कट्टर हिंदुत्ववादियों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला था। इस हत्याकांड के बाद हत्यारों के पक्ष में भाजपा के अनेक मंत्री व नेतागण खड़े दिखाई दिए थे। इस घटना में भाजपा नेताओं का भी सीधा हाथ था। इस अमानवीय घटना पर अफसोस जाहिर करने के बजाए अमित शाह साहब यह फरमा रहे हैं कि इस घटना के बाद भी वे जीते? दूसरी ओर पधानमंत्री हजरत इमाम हुसैन की शहादत को जुल्म व अहंकार के विरुद्ध बता रहे हैं। ऐसे में एक ओर जालिम व हत्यारों के पक्ष में खड़े होना, दूसरी ओर हजरत इमाम हुसैन जैसे शहीद की कुर्बानी पर अफसोस जाहिर करना विरोधाभास नहीं तो और क्या है। इसके अलावा पचास वर्षों तक सत्ता में बने रहने का दंभ भी उसी अहंकार की निशानी है, पधानमंत्री के अनुसार जिसके विरुद्ध हजरत हुसैन ने आवाज उठाई थी।
अतः पधानमंत्री की हजरत हुसैन को श्रद्धांजलि तो जरूर स्वागत योग्य है और इसका निश्चित रूप से सम्मान किया जाना चाहिए। परंतु यदि इसे व्यक्तिगत सामाजिक व राजनैतिक जीवन में भी चरितार्थ करने की कोशिश की जानी चाहिए। यदि हजरत हुसैन की शिक्षाओं को लेकर कथनी व करनी में फर्प न किया जाए तो हजरत इमाम हुसैन के पति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।