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करतारपुर साहिब कॉरिडोर से क्या भारत-पाक के बीच बर्लिन दीवार टूट जाएगी

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:4 Dec 2018 3:51 PM GMT
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कर्नल (से.नि.) शिवदान सिंह

करतार साहिब कॉरिडोर की आधारशिला रखे जाने वाले समारोह में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने जहां कॉरिडोर का स्वागत किया वहीं पर पदेश का मुख्यमंत्री एवं एक सच्चे फौजी के रूप में पाकिस्तान को सीमापार से किए जा रहे स्नायपर तथा अन्य हमलों के लिए खूब लताड़ा। कैप्टन साहब ने इस अवसर पर दोबारा पंजाब में आतंकवाद के सिर उ"ाने तथा पाकिस्तान के द्वारा इसे हर पकार का सहयोग तथा पोत्साहन देने के बारे में इसे कॉरिडोर से जोड़कर देखा। क्योंकि अभी कुछ दिन पहले ही अमृतसर के पास एक गांव में 80 के दशक की तरह ही निरंकारी समाज तथा सिखों में दरार पैदा करने के लिए किए गए ग्रेनेड हमले के तार पाकिस्तान से जुड़े नजर आ रहे हैं। गुरु नानक देव के जन्मोत्सव जिसे पकाश पर्व के नाम से जाना जाता है इस अवसर पर पाकिस्तान में स्थित ननकाना साहब गए सिख श्रद्धालुओं के सामने पाक समर्थित खालिस्तान समर्थकों द्वारा किए गए भारत विरोधी पर्दशनों तथा वहां पर बड़ी संख्या में लगे पोस्टरों ने पाकिस्तान की असली चाल को और भी उजागर कर दिया है। इस अवसर पर पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास के कर्मियों को भी भारत से गए सिख श्रद्धालुओं से न मिलने देने के पीछे पाकिस्तान का क्या औचित्य हो सकता है। इसके बारे में भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। यह सब यह दर्शाने के लिए काफी है कि पाक की कथनी एवं करनी में बड़ा अंतर है। 1971 के बंगलादेश युद्ध की हार का बदला लेने के लिए पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने 80 के दशक में सिखों को हिन्दुओं का भय दिखलाकर पाकिस्तान की तरह अलक खालिस्तान की मांग के नाम पर पंजाब में आतंकवाद शुरू कराया जिसकी समाप्ति आपरेशन ब्लूस्टार जैसे पीड़ादायक आपरेशन के रूप में हुई। जब पंजाब की जनता के सहयोग से वहां पर आतंकवाद समाप्त हो गया तब पाक ने सांप्रदायिकता के आधार पर ही कश्मीर में भी 90 के दशक में आतंकवाद शुरू किया। इसमें उसने कश्मीरियों को बहावी इस्लाम के कट्टरवाद के नाम पर बरगलाया, परन्तु अब कश्मीर में कश्मीरी जनता के पाक की चालों को समझने के कारण आतंकवाद पर नियंत्रण होने के पाक दोबारा पंजाब में आतंकवाद को जीवित करना चाहता है। करतारपुर साहिब कॉरिडोर की मांग लंबे समय से थी परन्तु पाक ने इसको ऐसे समय पर माना है जब भारत 2019 के आम चुनाव की ओर बढ़ रहा है तथा वह जानता है कि भारत राजनैतिक दल सिखों को खुश करने के लिए इसको हर हाल में मान लेंगे। इस पकार उसको भारत में खालिस्तानी पोपेगेंडा तथा आतंकवाद को बढ़ावा देने का सुरक्षित अवसर मिल जाएगा।

पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पकाश उत्सव समारोह पर करतारपुर साहिब की घोषण करते हुए इसे जर्मन की बर्लिन दीवार के टूट जाने के समान बताया। परन्तु भारत पाकिस्तान के बीच में जर्मन जैसी बर्लिन दीवार नहीं है। यहां पर तो सांप्रदायिक की गहरी खाई है। 1945 में दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने तथा जर्मन की हार होने पर पूरा जर्मन चार हिस्सों जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस एक तरफ तथा सोवियत रूस दूसरी तरफ। इस पकार पश्चिमी जर्मनी को अमेरिका, ब्रिटेन तथा फ्रांस ने अपने यहां गैर पजातांत्रिक व्यवस्था के अनुसार एक गणराज्य के रूप में विकसित किया तथा पूर्वी भाग को रूस ने कम्युनिस्ट पणाली से चलाया। पश्चिम की उदारवादी नीतियों तथा मुक्त आर्थिक व्यवस्था के कारण पश्चिम जर्मनी दिन रात पगति करने लगा परन्तु अन्य कम्युनिस्ट देशों की तरह पूर्वी जर्मनी आर्थिक रूप से पिछड़ने लगा। इसलिए पूर्वी जर्मनी के निवासी पश्चिम जर्मनी की तरफ पलायन करने लगे। सोवियत रूस ने इस पलायन को रोकने के लिए 1961 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन जो दोनों जर्मनी के बीच में थी के बीचों बीच एक 155 किलोमीटर लंबी तथा 15 फुट ऊंची दीवार का निर्माण करवा दिया। परन्तु यहां पर यह विचारणीय है कि जर्मनी के दोनों हिस्सों में कोई सांप्रदायिक या अन्य मतभेद नहीं था। 1989 में जब पूरे विश्व में आर्थिक उदारवाद का पचार हुआ तो पूर्वी यूरोप तथा सोवियत रूस के देशों चैकोस्लोवाकिया, रोमानिया, बुलगेरिया ने कम्युनिस्ट व्यवस्था को छोड़कर तब पश्चिम के उदारवादी मॉडल को अपना लिया तब पूर्वी जर्मनी में भी पश्चिमी जर्मनी से दोबारा जुड़ने के लिए जनसमूह उमड़ पड़ा जिसको समय की मांग समझते हुए एक राष्ट्रवादी के रूप में पूर्वी जर्मनी के शासकों ने मान्यता देते हुए दोनों हिस्सों को मिलाकर एक पूर्ण जर्मन देश को दोबारा खड़ा किया जो विश्व की एक आर्थिक शक्ति है। परन्तु ऐसा भारत-पाकिस्तान के बीच संभव नहीं है क्योंकि ये दोनों देश 800 सालों की गुलामी के बाद 1947 में आजाद हुए। विदेशी शासकों ने राज करने के लिए सामंती व्यवस्था को बढ़ावा दिया इसके साथ साथ शासकों ने देश में फूट डालो और राज करो के लिए हिन्दू-मुस्लिम के रूप में सांप्रदायिक को बढ़ावा दिया। इस कारण देश का बंटवारा भी दो राष्ट्रों के सिद्धांत पर हुआ।

बंटवारे के बाद भारत में पगतिशील विचारधारा अपनाने के कारण चारों तरफ विकास हुआ तथा सामंती तत्व धीरे-धीरे समाप्त हो गए परन्तु पाकिस्तान इस्लामिक कट्टरवाद की तरफ बढ़ता चला गया जिसे वहां के सामंती तत्वों जैसे नवाबों, जागीरदारों ने अपने हित के लिए बढ़ावा दिया। इसी कारण पाकिस्तान में अभी तक ये तत्व हजारों एकड़ कृषि भूमियों के स्वामी हैं। स्वयं को सत्ता में रखने के लिए जहां उन्होंने इस्लामिक कट्टरवाद बढ़ावा दिया वहीं पर मिलिट्री शासन को भी मान्यता दी। इसलिए 1947 के बाद पाकिस्तान में 7 बार सैन्य शासन राज कर चुका है। इन कारणों से पाकिस्तान आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़ता चला गया जिसके कारण आज उसकी गिनती फेल गणराज्यों में हो रही है। उसकी इस स्थिति का फायदा उ"ाकर आर्थिक मदद के नाम पर अमेरिका तथा अरब देशों ने इसे आतंकवाद की फैक्ट्री बना दिया। इस पकार पाकिस्तान तथा पूर्वी जर्मनी के बीच कोई समानता नजर नहीं आ रही है। इसलिए भारत पाकिस्तान के बीच की बर्लिन दीवार कभी नहीं टूट सकती।

उपरोक्त स्थिति में पाकिस्तान में पनप रहे आतंकी समूह अपने पड़ौसी देश भारत को कभी फलता-फूलता नहीं देख सकते। इसके लिए वे भारत की सांप्रदायिक विभिन्नता पर पहार करके भारत में भी पाकिस्तान जैसा माहौल पैदा करना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने 80 के दशक में पंजाब को तथा बाद में कश्मीर को सीमावर्ती राज्य समझकर चुन रखा है। शुरू से ही पंजाब के लोग तथा खासकर सिख रोजगार की तलाश में पश्चिम देशों में जाते रहे हैं इसलिए इन अपवासी भारतीय सिखों के द्वारा पाक की आईएसआई भारत के पंजाब में दोबारा खालिस्तानी आतंकवाद को उ"ाना चाहती है। इसके लिए एक अमेरिकी नागरिक सिख गुरु परवंत सिंह ने कश्मीर जनमत संग्रह की तरह पंजाब में खालिस्तान 2020 जनमत संग्रह का नारा बुलंद किया है। इसके लिए उसने पाकिस्तानी आतंकी सरगना हाफिज सईद तथा पाक आईएसआई के समर्थन से ननकाना साहब में पकाश उत्सव के समय खालिस्तानी पदर्शन करवाए। ये तत्व इस खालिस्तानी नारे के साथ विदेशों में बसे सिखों को ज्यादा से ज्यादा जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। यहां पर यह सोचनीय है कि उनकी इस कोशिश में पंजाब के कुछ नौजवान भी जुड़ते नजर आ रहे हैं। इन स्थानीय नौजवानों से पाक आईएसआई सांप्रदायिक जहर फैलाने के लिए 2015 जैसे घटना जिसमें एक धार्मिक ग्रंथ के पन्नों को फाड़ने की घटना कराई थी। ऐसी घटनाओं के पतिरोध में जन आक्रोश उमड़ता है जिसको नियंत्रित करने के लिए पुलिस को बल पयोग करना पड़ता है और इस पकार आम जनता को सरकार के विरुद्ध ज्यादतियों तथा मानव अधिकार उल्लंघन का बहाना मिल जाता है जैसा कि अकसर कश्मीर में होता रहता है। कश्मीर की तरह पंजाब की भी सीमों पाकिस्तान से मिलती हैं जिसका फायदा उ"ाकर वह आतंकी तत्वों के लिए गोला बारूद तथा अन्य पकार की सहायता आसानी से भेजता रहेगा। इस सूचना के युग में सोशल मीडिया के बढ़ते पयोग ने आंतंकी तथा देश विरोधी पोपेगेंडा को टारगेट जनता तक आसानी से पहुंचाया जा सकता है।

पंजाब के करतारपुर साहिब कॉरिडोर की तरह ही कश्मीर में सीमावर्ती व्यापार के नाम पर भारतीय कश्मीर तथा पाक अधिकृत कश्मीर के बीच सड़क मार्ग से व्यापार खोला गया इसके बारे में भी यही कहा गया कि इसके द्वारा दोनों देशों के नागरिकों के बीच एक सम्बधों का पुल बनेगा परन्तु असलियत में देखने में आया कि यही व्यापार मार्ग द्वारा पाक आईएसआई कश्मीर में आतंकियों के लिए हथियार तथा धन भेज रही थी। इसके अलावा पूरी कश्मीर घाटी में ड्रग्स का जहर इसी व्यापार मार्ग से फैला। यही योजना पाकिस्तान करतारपुर कॉरिडोर के द्वारा बना रहा है।

देश के पसिद्ध भूतपूर्व पुलिस अधिकारी जूलियस रिबेरो ने पंजाब के ताजा हालातों पर लिखा है कि पंजाब में अकसर वहां के पभावशाली तबके जाट सिखों को सरकार के विरुद्ध भ्रष्टाचार तथा पुलिस की ज्यादतियों की शिकायत रहती है जिसके कारण अकसर वे दुश्मन के पोपेगेंडा में फंसकर आतंकी तत्वों को संरक्षण देने लगते हैं। इसलिए उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को सलाह दी है कि वे पशासन में भ्रष्टाचार पर सख्ती बरतें तथा पंजाब पुलिस को निर्देश दें कि वे एक आम नागरिक से शालीनता से पेश आएं। कश्मीर में भी सरकार में फैला भ्रष्टाचार तथा उसके कारण फैली बेरोजगारी आतंकवाद का मुख्य कारण हैं। इस स्थिति में करतारपुर साहिब कॉरिडोर में पाकिस्तान की चालों पर भारत की सूचना तथा गुप्तचर संस्थानों को कड़ी नजर रखनी चाहिए।

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