अब राजनेताओं के हाथ से निकल सकता है रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मुद्दा
आदित्य नरेंद्र
राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में गत शुक्रवार को उस समय एक अहम मोड़ आ गया जब सुप्रीम कोर्ट ने इसका सर्वमान्य हल खोजने के लिए पूर्व न्यायाधीश फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित कर दी। इस समिति के दो अन्य सदस्य जाने-माने आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर और भारत में विवादित मामलों की मध्यस्थता के जरिए निपटारा करने में माहिर सीनियर वकील श्रीराम पांचू शामिल हैं। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ के आदेशानुसार यदि आवश्यकता हो तो समिति इसमें और सदस्य भी शामिल कर सकती है। पीठ के निर्देशानुसार मध्यस्थता की सारी कार्यवाही फैजाबाद जिले में ही होगी। समिति को एक सप्ताह के अन्दर अपना कार्य शुरू करना है। इसके बाद उसे चार सप्ताह में प्रगति रिपोर्ट कोर्ट को सौंपनी होगी और आठ सप्ताह में मध्यस्थता की प्रक्रिया पूरी करनी होगी। पीठ ने कहा है कि मध्यस्थता की यह सारी कार्यवाही बंद कमरे में होगी और प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इसकी रिपोर्टिंग नहीं कर सकेगा। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने वाली बातचीत के इस आदेश से स्पष्ट है कि अब कम से कम दे महीने तक इस मुद्दे पर किसी को भी तलवारे भाजने का अवसर नहीं मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद यदि दोनों पक्षों की बातचीत सुप्रीम कोर्ट की भावना के अनुरूप सफल रहती है तो लम्बे अरसे से इस मुद्दे को लेकर राजनीति कर रहे राजनेताओं के हाथ से यह मुद्दा निकल जाएगा।
लेकिन यह सब कुछ इतना आसान भी नहीं है अभी तक इस मामले से जुड़े किसी भी पक्ष ने अपने घोषित स्टैंड में बदलाव को कोई संकेत नहीं दिया है। जहां तक उत्तर प्रदेश सरकार का सवाल है तो उसकी ओर से राज्य सरकार का पक्ष रखते हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुए मध्यस्थता का मार्ग चुनना उचित नहीं होगा। इस विवाद की जानकारी रखने वाले लोग जानते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भी इस विवाद को बातचीत के द्वारा सुलझने के गंभीर प्रयास किए गए थे। कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट के द्वारा गठित इस समिति के सदस्य श्री श्री रविशंकर ने भी एक असफल प्रयास किया था। यह सारे तथ्य सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में भी अवश्य होंगे। शायद इसलिए शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह इस मुद्दे की गंभीरता और जनता की भावनाओं पर पड़ने वाले इसके असर के प्रति सचेत है। पीठ ने कहा था कि उसका मानना है कि यह मामला मूल रूप से लगभग डेढ़ हजार वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है। पीठ के इसी नजरिए से मध्यस्थता द्वारा मामला सुलझाने की भावना को बल मिला है। इस फैसले से न केवल सत्ताधारी राजग अपितु विपक्ष को भी राहत मिली है। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि भाजपा के लोजपा और जदयू जैसे सहयोगी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की बात करते रहे हैं। विपक्ष को भी इस फैसले से राहत मिलेगी क्येंकि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा इस मुद्दे पर ध्रुवीकरण का लाभ नहीं उठा पाएगी। जहां तक भाजपा का सवाल है तो इस फैसले का असर पार्टी महासचिव मुरलीधर राव के ब्यान से महसूस किया जा सकता है राव ने पीठ के इस फैसले के बाद कहा था कि गतिरोध दूर करने का यही एक रास्ता है। विवाद को लम्बे समय तक लटकना किसी के हित में नहीं है। दरअसल राम जन्मभूमि का मुद्दा भाजमा के प्रमुख मुद्दों में शामिल रहा है। भाजपाई इसे अस्था का मुद्दा बताते रहे हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी ने इस मुद्दे पर रथयात्रा भी निकाली थी जिसने देश के एक बड़े हिस्से में भाजपा की पहचान मजबूत करने में मुख्य भूमिका निभाई थी। पहली बार केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह एक साथ भाजपा सरकार सत्ता में आई है। ऐसे में राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा के समर्थन करने वालों को उम्मीद थी कि इस बार मंदिर बन के रहेगा। अवसर मिलने के बाद भी राम मंदिर का निर्माण न करने का आरोप भाजपा को मुश्किल में डाल सकता था। पीठ द्वारा मध्यस्थता समिति बनाए जाने के फैसले से भाजपा की यह मुश्किल भी कुछ आसान हुई है। दरअसल वोटों की राजनीति और धार्मिक आस्था से जुड़े होने के चलते इस मामले का समाधान बेहद मुश्किल हो चुका है। ऐसे में पीठ ने दोनों पक्षों को आपसी सम्मान और सौहार्द के साथ आपस में फैसला करने के लिए एक और मौका मुहैया कराया है। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी के चलते इस विवाद को तूल देकर अपनी राजनीति चमकाने या इस विवाद से फायद उठाने वालों के लिए इसमें अब अपनी टांग फंसाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं रहेगी। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश इस मामले के समाधान के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है।