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वैकल्पिक ऊर्जा का विकास-समय की आवश्यकता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 Oct 2017 3:44 PM GMT
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कलराज मिश्र

प्रत्येक वर्ष नवम्बर माह आते-आते दिल्ली और आस पास के एन सी आर क्षेत्र सांस लेना मुश्किल हो जाता है क्योंकि यहां के वातावरण मे प्रदूषण स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है। पिछले वर्ष तो दिल्ली सरकार को बढ़ते हुए प्रदूषण से निपटने के लिए सम और विषम नम्बर की गाड़ियों को एक-एक दिन चलाने का आदेश देना पड़ा था। इस प्रदूषण का कारण दीवाली पर जलाए जाने वाले पटाखों एवं पंजाब हरियाणा एवं पश्चिमी उ.प्र. के किसानों द्वारा अक्टूबर मे जलाए जाने वाली पराली है। पराली धन व अन्य फसलों की कटाई के पश्चात बचे अवशेष को कहते है। पराली जलाने से न केवल वातावरण प्रदूषित होता है, अपितु जिस जमीन पर पराली जलाई जाती है वहां की उत्पादन क्षमता कम होने लगती है। पराली जलाई जाने वाली जमीन पर फसलों का उत्पादन 40 से 50 प्रतिशत तक कम हो जाता है। उस जमीन में 80 प्रतिशत तक नाइट्रोजन और 20 प्रतिशत तक दूसरे पोषक तत्व कम हो जाते है। इसके अतिरिक्त पराली जलाने से जमीन के अंदर पलने वाले वैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं। जिससे फसलों की बीमारी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त हो जाती है और फसलों मे अनेक रोग लगने लगते है। इसी कारण नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पराली जलाने पर रोक लगा दी है। पश्चिम स्वरूप पंजाब और हरियाणा के सैकड़ों किसान एनजीटी के दिल्ली स्थित कार्यालय के समक्ष धरना दे रहे है। पराली जलाने की समस्या 1991 के आर्थिक उदारवाद के पश्चात प्रारंभ हुई क्योंकि वैश्वीकरण के पश्चात देश के किसानों ने खेती में विकसित देशों के तौर तरीके अपनाने शुरू किए और पश्चात्य के प्रभाव में उन्होंने खेती मे उपयोग में आने वाले बैलों एवं दूध उत्पादन मे उपयोग मे आने वाले गाय एवं भैस पालना बंद कर दिया, फलस्वरूप जानवरों के लिए चारे की आवश्यकता कम हो गई, फसलों की कटाई फसलो की जड़ की बजाय ऊपर के फली वाले हिस्से से होने लगी और फसल के शेष भाग को पराली के रूप मे जलाया जाने लगा।
अब सरकार की ओर से फसल कटाई के पश्चात बची पुआल व कृषि अवशेषों से बिजली और एथनाल बनाकर किसानो की आर्थिक मुनाफे की पहल की जा रही है। करीब 90 लाख टन कृषि अवशेषों का यदि उपयोग किया जाए तो इनसे 40,000 मेगावाट बिजली बनाई जा सकती है एवं 10 टन कृषि अवशेषो से 3000 लीटर एथनाल बनाया जा सकता है। यही नहीं इससे निकलने वाली राख से ईंटें व सीमेंट बनाया जा सकता है। कृषि अवशेषों से एथेनाल उत्पादन करके पेट्रोल पंपों के लिए आवश्यक एथनाल की आपूर्ति की जा सकती है और पराली से निकलने वाली मीथेन गैस सीएनजी बनाने की प्रक्रिया मे उपयोग की जाती है।
कृषि अवशेषों के अतिरिक्त अन्य स्रोतों से विद्युत पैदा की जा सकती है। वैकल्पिक ऊर्जा के इन स्रोतों में गोबर सूरज, हवा है। इनके उपयोग से लाखों मेगावाट बिजली पैदा कर परंपरागत बिजली के मुख्य स्रोतों पेट्रोल एवं कोयले पर अपनी निर्भरता काफी कम की जा सकती है। ग्रमीण भारत में गोबर के उपयोग से लगभग 25000 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है जो कि देश के एक लाख गावो को रोशन करने के लिए पर्याप्त है। इसके अतिरिक्त बायोगैस रसोई गैस मिलती है इसके अलावा जो अवशेष बच जाता है वह खेतों में कंपोस्ट खाद के रूप में प्रयोग होती है जिससे जमीन की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। गोबर गैस एक ऐसी गैस है जिसका इस्तेमाल शक्ति बढ़ती है। गोबर गैस एक ऐसी गैस है जिसका इस्तेमाल एलपीजी की तरह से भी और सीएनजी की तरह से भी किया जा सकता है। इसकी कीमत भी 15 रुपए प्रति किलो है जो काफी सस्ती है। इसके उपयोग से उर्वरक आयात मे भी काफी कमी आएगी।
सौर और बायोगैस के अतिरिक्त गैर परंपरागत ऊर्जा का अन्य स्रोत हवा है। इस दिशा मे भारत मे भी काफी जरूरत आती है और महाराष्ट्र एवं तमिलनाडु समेत अनेक राज्यों में विंड फार्म लगाए जा रहे है। विगत कुछ वर्षों में देश में हवा से बिजली पैदा करने की क्षमता लगातार 32000 मेगावाट से अधिक हो गई। पिछले वित्तीय वर्ष मे देश मे पवन ऊर्जा की क्षमता मे 5400 मेगावाट का विस्तार हुआ है और मौजूदा वित्तीय वर्ष में पवन ऊर्जा का लाभ 6000 मेगावाट का रखा गया है। पवन से बिजली उत्पादन वर्ष मे भी अब काफी कमी आ गई है दो वर्ष पूर्व जहां यह खर्च लगभग पांच रुपए प्रति यूनिट आता था जो अब घटकर लगभग 5.47 रुपए हो गया है। जिन क्षेत्रों में जैसे तमिलनाडु, ओडिशा और राजस्थान मे जहां तेज हवाऐं ज्यादा चलती हैं वहां पवन ऊर्जा उत्पादन को काफी विस्तार दिया जा सकता है।
इस समय वैकल्पिक ऊर्जा का वह श्रोत जिसमे सीमायें नहीं है और जो आसानी से सुलभ है, वह है सौर ऊर्जा। आज सोलर पैनल के सहारे घरों में रोशनी के साथ साथ कारें, गाड़ियां चल रही है। गावों के किसान सोलर पंप से खेतों की सिचाई कर डीजल पंपों पर होने वाले खर्च को बचा रहे हैं। सरकार भी सोलर पंप लगाने के लिए आर्थिक मदद दे रही है। सोलर पंप लगाने हेतु कुल लागत का 90 प्रतिशत अनुदान सरकार देती है और किसान 10 प्रतिशत राशि अपने जेब से देनी पड़ती है। वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में सौर ऊर्जा का उपयोग करने से बिजली की बचत होगी और जन क्षेत्रों में बिजली अभी तक नहीं पहुंच पा रही है वहां भी रोशनी पहुंच जायेगी। हमारे देश में एकाध दिन को छोड़कर प्राय हर समय सूरज निकलता है इस कारण देश में सौर ऊर्जा संभावनाएं बहुत हैं। केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी सोलर पैनल लगाने हेतु विभिन्न रियायतें दे रही हैं इसी कारण दूर दराज क्षेत्रों के जो गांव अंधेरे से डूबे रहते थे वे आजकल रात को रोशन रहते हैं। सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा लाभ यह है इससे प्राकृतिक तरीके से बिजली होती है, यह मुफ्त होती है और इससे प्रदूषण नहीं फैलता। देश में सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन में बहुत प्रगति हुई है पिछले तीन वर्षों में सौर ऊर्जा का उत्पादन 9,000 मेगावाट तक पहुंच गया है जबकि वर्ष 2014 तक यह याद 2000 मेगावाट के आसपास था। भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन का लक्ष्य 40,000 मेगावाट का है। सौर ऊर्जा से बिजली का उत्पादन हम जितना बढ़ाएंगे उतना ही बिजली की दरों में गिरावट होगी। अभी भी सौर ऊर्जा के क्षेत्र मे काम करने वाली कंपनियों में सोलर प्लांट के लिए तीन रुपए प्रति यूनिट से भी कम की बोली लगाई गई है। राजस्थान स्थित भादला में 200 मेगावाट के सोलर प्लांट के लिए एसीएमई नामक कंपनी के प्रति यूनिट 2.44 रुपए की बोली लगाई है। यह बहुत ही शुभ संकेत है और संभव है कि आने वाले दिनों में बिजली की दरें और कम हों। सरकार इस क्षेत्र में आवश्यक तकनीकी ज्ञान भी लोगों को उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। खादी ग्राम उद्योग आयोग द्वारा सोलर पैनल निर्माण हेतु प्रशिक्षण पिछले तीन वर्षों से चलाए जा रहे है। विश्व बैंक ने भी भारत में सोलर प्लांट के लिए 4000 करोड़ रुपए का कर्ज मंजूर कर लिया है, आशा है कि देश में आ वाले कुछ वर्षों में सौर ऊर्जा के अतिरिक्त वैकल्पिक ऊर्जा के अन्य स्रोतों में भी क्रांतिकारी उपलब्धियां देखने को मिलेगी।
अब तो भारतीय रेल मे दिल्ली के शकूर बस्ती से गुरूग्राम तक चलने वाली 10 डिब्बों वाली गाड़ी सौर ऊर्जा से चल रही है। उत्तर रेलवे के अनुसार सौर ऊर्जा से चलने वाली एक डिब्बे को बनाने में लगभग 9 लाख रुपए का खर्च आता है जबकि इस गाड़ी के परिचालन में लगभग 2000 लीटर डीजल की खपत होगी जिसकी कीमत लगभग 12 लाख रुपए बैठती है। भविष्य में रेल में जैव ईंधन और पवन ऊर्जा का भी उपयोग हो सकेगा।
जैसा कि हम सभी जानते हैं पेट्रोलियम और कोयले के भंडारों में तेजी से कमी आ रही है और आने वाले 50-100 वर्षों में ये भंडार समाप्त हो जाएंगे ऐसे में गैर परंपरागत स्रोतों से ऊर्जा का उत्पादन हो जाएंगे ऐसे मे गैर परंपरागत श्रोतों से ऊर्जा का उत्पादन समय की आवश्यकता है और भारत में विगत तीन वर्षों में इस क्षेत्र में जो प्रयास किए गए है प्रशंसनीय है और आशा है कि विगत कुछ वर्षों में परंपरागत ऊर्जा के स्रोतों पर हमारी निर्भरता न्यूनतम स्तर तक पहुंच जाएगी। साथ ही साथ पर्यावरण मे बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।
(लेखक राष्ट्रवादी चिन्तक विचारक और भारत सरकार के पूर्व मंत्री हैं)

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