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विजय माल्या-नीरव मोदी कांड से आम आदमी को लगा गहरा सदमा
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आदित्य नरेन्द्र
विजय माल्या घोटाले के बाद जब से नीरव मोदी का मामला सामने आया है तबसे देश की जनता हैरान और परेशान है। उसकी समझ में नहीं आ रहा कि आखिर यह हो क्या रहा है। जिस तरह मामला सामने आने पर विजय माल्या देश छोड़कर निकल गया था उसी के नक्शे कदम पर चलते हुए नीरव मोदी भी पीएनबी को ठेंगा दिखाते हुए निकल भागा है। और तो और उसने यह धमकी भी दे दी है कि पीएनबी अधिकारियों ने उसके खिलाफ मामला खोलकर उसके ब्रांड को नुकसान पहुंचाया है इसलिए वह अब उन्हें कर्ज का भुगतान करने की स्थिति में नहीं है।
देश की जनता अपने खून पसीने की कमाई को जिस विश्वास के बाद बकों में जमा कराती है स्पष्ट है कि उसे कहीं न कहीं गहरा धक्का पहुंचा है। वह पूछ रही है कि माल्या कांड के बाद ऐसा कैसे हो गया कि लगभग उसी की तर्ज पर नीरव मोदी भी कर्जदाताओं को अंगूठा दिखाकर निकल गया। वह यह भी पूछ रही है कि क्या गारंटी है कि अब आगे ऐसा कोई और मामला सामने नहीं आएगा। अफवाहों का बाजार गर्म है जिसके चलते लोगों का बैंकों पर से विश्वास कम हो रहा है। उधर देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां अपनी ही बनाई दुनिया में जी रही हैं। कोई यह नहीं बता रहा है कि आरोपियों को कैसे कानून की गिरफ्त में लाया जा सकता है। इसके उलट कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। दोनों एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने की कोशिश में है। तकनीकी रूप से देखा जाए तो सत्ता में होने के चलते यह जिम्मेदारी फिलहाल भाजपा को उठानी होगी। अगले साल लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह भाजपा के लिए मुश्किल घड़ी है। विपक्ष मामले को यह कहते हुए हवा दे रहा है कि बिना मिलीभगत के ऐसा होना संभव नहीं है। यह आरोप भाजपा के प्रति लोगों के विश्वास को लगातार कमजोर कर रहा है। आमतौर पर एक आम आदमी सिस्टम की जटिलता और बारीकियों से परिचित नहीं होता। उसे इसकी जरूरत भी नहीं होती। भाजपा की मुश्किल यह है कि सत्ता में होने के कारण उसे जनता को यह विश्वास दिलाने में भारी कठिनाई महसूस हो रही है कि इन मामलों में उसका कोई हाथ नहीं है और वह व्यवस्था को पारदर्शी बनाना चाहती है। भाजपा के नेता जानते हैं कि चुनाव अवधारणा के आधार पर लड़े और जीते जाते हैं। यदि उनके प्रति जनता का विश्वास खंडित हुआ तो उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी। उनकी एक और परेशानी यह भी है कि वह नहीं जानते कि भविष्य में क्या होने वाला है। आम चुनाव अभी लगभग एक साल दूर है। ऐसे में यदि और एक-दो मामले इसी प्रकार के खुल गए तो जवाब देना मुश्किल होगा। इसलिए विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे आरोपियों को कानून की गिरफ्त में लाना उनके लिए बहुत जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मामले में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि उनकी सरकार वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी और जनता के धन की लूट बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने वित्तीय संस्थानों के प्रबंधन व निगरानी निकायों से कहा है कि वे अपना काम पूरी कर्मठता से करें ताकि इस तरह के घपलों को रोका जा सके। हालांकि वित्तमंत्री अरुण जेटली इस तरह की कोशिशों में लगातार जुटे हैं। बैंकरप्सी कानून इसका एक उदाहरण है। लेकिन यहां सवाल नीयत का है। सरकार, बल्कि अधिकारियों और कर्जदारों तीनों की नीयत का सही होना जरूरी है। एक की भी नीयत खराब होते ही ऐसे घोटालों के पनपने के चांस बढ़ जाएंगे। इस घोटाले से आम आदमी को लगे गहरे सदमे के मद्देनजर सरकार को माल्या और नीरव मोदी जैसों को विदेश से लाकर कानून को सौंपना होगा। तभी उनके प्रति जनता का विश्वास बहाल हो पाएगा। यदि भाजपा को 2019 में दोबारा सत्ता पर काबिज होना है तो उसे चाहिए कि वह माल्या और नीरव मोदी की वापसी को अपना पहला मिशन बना ले।
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