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आतंकवाद को बेनकाब करेगी शिया-सुन्नी एकता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:4 March 2018 3:00 PM GMT
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तनवीर जाफरी

विश्व की राजनीति इस समय एक बेहद खतरनाक दौर से गुजर रही है। कहा जा रहा है कि दुनिया इस समय बारूद के एक बड़े ढेर पर बैठी हुई है। कुछ विश्लेषक तो तीसरे विश्व युद्ध की आहट का अंदाजा भी लगा रहे हैं। अमेरिका, उत्तर कोरिया, ईरान, सऊदी अरब, इजरायल, फिलिस्तीन , सीरिया, यमन, इराक, लेबनान, रूस जैसे देश वर्तमान घमासान के केंद्र में हैं। सभी देशों के अपने अलग-अलग राजनैतिक, वैचारिक, सामाजिक तथा धार्मिक विचार हैं। इनमें सबसे पमुख धुव के रूप में ईरान व सऊदी अरब को देखा जा रहा है। इन दोनों देशों के मध्य बढ़ता तनाव निश्चित रूप से वैश्विक स्तर पर शिया-सुन्नी मतभेदों को हवा देने का काम कर रहा है। यह भी जगजाहिर है कि सऊदी अरब को अमेरिका अपनी दूरगामी रणनीति के तहत गत कई दशकों से अपना संरक्षण देता आ रहा है। साथ ही साथ यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि ओसामा बिन लादेन से लेकर हाफिज सईद तक सऊदी अरब के वैचारिक शिक्षण संस्थानों की देन हैं। दुनिया समझ सकती है कि इस्लाम के नाम पर पूरे विश्व में फैले आतंकवाद की पुश्तपनाही करने वाले सऊदी अरब से गहरी दोस्ती निभाने वाले अमेरिका का आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का नारा कितना सच हो सकता है और कितना ढोंग? दूसरी तरफ यमन व सीरिया जैसे आतंरिक युद्धग्रस्त देशों में भी ईरान व सऊदी अरब अलग-अलग धड़ों को अपनी सुविधा व राजनैतिक लाभ के मद्देनजर सहयोग दे रहे हैं। कमोबेश इन देशों का यह सहयोग अथवा विरोध भी शिया-सुन्नी पर ही आधारित है।
इस समय लगभग समूचे गैर मुस्लिम जगत का कमोबेश यही पयास है कि पूरे इस्लाम धर्म को व मुस्लिम जगत को आतंकवादी विचारधारा की परवरिश करने वाला धर्म पमाणित कर दिया जाए। समय-समय पर विभिन्न दिशाओं से कुरान शरीफ की की जाने वाली आलोचनाएं तथा इस्लामी आतंकवाद, इस्लामी जेहाद एवं जेहादी आतंकवाद जैसे शब्दों का पचलन इसी साजिश का एक बड़ा हिस्सा है। ऐसे में निश्चित रूप से मुस्लिम जगत के जिम्मेदार नेताओं का यह कर्तव्य है कि वे बिना समय गंवाए हुए आगे ओं तथा इस्लाम की आतंकवाद विरोधी विचारधारा को पचारित-पसारित करें। और इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए इस्लाम से संबंधित उन सभी विचारधाराओं का एकजुट होना जरूरी है जो कुरान शरीफ तथा पैगंबर हजरत मोहम्मद द्वारा शांति, पेम, सद्भाव, आपसी भाईचारा का संदेश देते हैं तथा बेगुनाहों की हत्या व जुल्म के विरुद्ध सख्त संदेश देते हैं। यह कुरान का ही कथन है कि यदि तुमने एक बेगुनाह का कत्ल कर दिया तो गोया तुमने पूरी मानवता का कत्ल कर दिया। निश्चित रूप से कुरान शरीफ व इस्लाम के इस बुनियादी उसूल का तो इतना पचार -पसार नहीं हो रहा परंतु हदीसों व इस्लामी इतिहास से संबंधित विवादित घटनाओं को लेकर विभिन्न मुस्लिम समुदायों में तलवारें खिंची जरूर दिखाई देती है।
ईरानी नेतृत्व तथा वहां के उलेमा गत कई दशकों से इस बात के लिए अपनी कोशिशें जारी रखे हुए हैं कि किसी तरह पूरे विश्व में शिया-सुन्नी एकता कायम हो सके। ईरान में आई इस्लामी कांति के फौरन बाद ही ईरानी धर्मगुरु आयतुल्ला खुमैनी के समय से ही यह पयास शुरु हो गए थे। और आज तक ईरानी नेतृत्व पूरी गंभीरता के साथ शिया-सुन्नी एकता के लिए वैश्विक पयासों में जुटा है। गत 16 फरवरी को भारत के दौरे पर आए ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने हैदराबाद की सुन्नी जमाअत से संबंधित पसद्धि ऐतिहासिक मक्का मस्जिद में नमाज-ए-जुमा अदा की। इस मस्जिद की बुनियाद 1616 ई0 के अंत में कुतुबशाही वंश के शासक सुल्तान मोहम्मद ने रखी थी तथा 1694 में औरंगजेब के शासनकाल में यह मस्जिद बनकर तैयार हुई। यहां राष्ट्रपति रूहानी के साथ सैकड़ों शिया तथा सुन्नी नेताओं ने सामूहिक रूप से नमाज अदा कर शिया-सुन्नी एकता का विश्वव्यापी संदेश दिया। इसके अतिरिक्त जब-जब भारत के पमुख शिया धर्मगुरु ईरान के दौरे पर जाते तथा ईरानी धार्मिक नेतृत्व से मिलते रहे हैं तब-तब ईरानी नेतृत्व द्वारा उन्हें बार-बार यह हिदायत दी जाती रही है कि वे सुन्नी जमाअत के लोगों को अपनी आत्मा की तरह समझें। भारत में शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक व और भी कई धर्मगुरु सुन्नी मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते रहे हैं। भारत ही नहीं बल्कि अरब के और भी कई देश इन दिनों शिया-सुन्नी एकता का पदर्शन करने के लिए एक-दूसरे समुदाय से जुड़ी मस्जिदों में नमाज अदा कर रहे हैं। जाहिर है ऐसे पयासों को केवल पतीकात्मक नहीं बल्कि धरातलीय स्तर पर इसे पयोगात्मक रूप दिया जाना चाहिए और ऐसा वातावरण तैयार करना चाहिए कि देश व दुनिया की मस्जिदों को केवल अल्लाह की मस्जिद ही कहा जाए न कि शिया मस्जिद, सुन्नी मस्जिद, बरेवली, अहमदिया या खोजा मस्जिद।
दूसरी ओर जो ताकतें इस्लाम में फूट डालने तथा मुस्लिम जगत को विभाजित करने वालों के हाथों में खेल रही हैं वे इस बात से पूरी तरह भयभीत हैं कि यदि वैश्विक स्तर पर शिया-सुन्नी एकता के पयास परवान चढ़ने लगे तो निश्चित रूप से आतंकवाद का पोषण करने वाली तथा इस्लाम पर आतंकवाद जैसा कलंक लगाने की जिम्मेदार विचारधारा बेनकाब हो जाएगी और यह विचारधारा अपने आकाओं के इशारे पर शिया-सुन्नी एकता के पयासों को किसी भी कीमत पर सफल नहीं होने देना चाहती। उदाहरण के तौर पर पाप्त समाचारों के अनुसार शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के पयासों से आगामी 24 मार्च को लखनऊ में आतंकवाद के विरुद्ध एक शिया-सुन्नी संयुक्त सम्मेलन आयोजित होना पस्तावित है। इस सम्मेलन से पहले ही शिया-सुन्नी एकता को नापसंद करने वाली विचारधारा से संबंधित किसी अज्ञात व्यक्ति ने मौलाना को फोन कर उन्हें आतंकवादी घटना अंजाम दिए जाने की धमकी दी है। धमकी देने वाले ने साफतौर पर यह कहा है कि यदि इस सम्मेलन में एक पमुख इस्लामी विचारधारा के विरुद्ध कुछ भी बोला गया तो असली आतंकी घटना को लखनऊ में ही अंजाम दिया जाएगा।
इसी संदर्भ में एक और बेहद अहम सवाल यह उठता है कि जिस पकार ईरान गत तीन दशकों से शिया-सुन्नी एकता की कोशिश कर रहा है तथा विश्व के शिया उलेमाओं को यह संदेश दे रहा है कि वे अपने-अपने देशों में शिया-सुन्नी एकता हेतु पूरी सकियता से काम करें उसी पकार आखिर सऊदी अरब का नेतृत्व इस पकार के पयास क्यों नहीं करता?
बजाय इसके सऊदी अरब को जहां-जहां ईरान की उपस्थिति नजर आती है वहां-वहां वह अमेरिका के इशारे पर ईरान के विरुद्ध अपना परचम लेकर खड़ा हो जाता है। इतना ही नहीं बल्कि गत पांच वर्षों में सऊदी अरब में शिया धर्मगुरुओं तथा शिया समुदाय के सऊदी नागरिकों को विरुद्ध जुल्म की घटनाओं में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हुई है। हां इस विषय में शिया धर्मगुरुओं को एक बात पर जरूर ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि वे अपनी ओर से इतिहास अथवा हदीस से संबंधित ऐसी विवादित घटनाओं का जिक करने से बाज आए जो घटनाएं दूसरे समुदाय के लोगों की भावनाओं को आहत करने वाली हों।
सामुदायिक एकता के पयास करने से पहले एक-दूसरे की भावनाओं का मान-सम्मान व आदर करने का जज्बा पैदा करना बेहद जरूरी है।

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