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नोएडा में भूतपूर्व कर्नल तथा एक नौकरशाह के विवाद को राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन करने की आवश्यकता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:31 Aug 2018 2:58 PM GMT
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कर्नल (से.नि.) शिवदान सिंह

देश की हर सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी दावा करती है कि वह अपने कार्य क्षेत्र में कानून व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करेगी तथा देश का कानून हर नागरिक के साथ समान व्यवहार करेगा। यह सब वह देश की कार्यपालिका को चलाने वाली नौकरशाही के द्वारा करना चाहती है परन्तु दुर्भाग्य से देश की नौकरशाही का सामंती व्यवहार एवं स्वरूप होने से सरकारों का उपरोक्त सपना साकार नहीं हो रहा है और इसी का जीता जागता उदाहरण है नोएडा की उपरोक्त दुर्भाग्यपूर्ण घटना जिसमें देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए 1962, 1965 तथा 1971 के युद्ध में भाग लेने वाले एक 77 साल के बुजुर्ग कर्नल पर घिनौना आरोप लगाकर उसकी सरेआम बेइज्जती करने के लिए हथकड़ी लगाकर अदालत में पेश करना। सर्वप्रथम इस विवाद को इस स्थिति तक पहुंचाने वाले कारणों पर विचार करना चाहिए। नोएडा का सेक्टर 29 भूतपूर्व सैनिकों के लिए एक कॉपरेटिव सोसायटी के रूप में विकसित किया गया था जिसमें केवल भूतपूर्व सैनिक ही भवन ले सकते थे परन्तु नियमों में परिवर्तन करके इसे आम जनता के लिए भी खोल दिया गया है। इसी के अंतर्गत यूपीपीसीएस के एक अधिकारी जो एडीएम के पद पर आसीन हैं, ने इसी सेक्टर-29 में कर्नल साहब के ऊपर फ्लैट खरीद लिया। यह एडीएम साहब पहले नोएडा विकास प्राधिकरण में डिप्टी सीईओ के पद पर आसीन थे तथा इस समय में मुजफ्फरनगर में नियुक्त हैं। तीन साल पहले फ्लैट खरीदने के बाद इस अधिकारी ने इस फ्लैट में बहुत-सा गैर-कानूनी निर्माण कार्य कराया जो प्राधिकरण के द्वारा मान्य नहीं था। इस कारण नीचे रहने वाले कर्नल साहब के घर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। उनके मकान में हवा तथा धूप जाने के रास्ते बंद हो गए। इसकी शिकायत लंबे समय से कर्नल साहब ने नोएडा विकास प्राधिकरण में की परन्तु संबंधित अधिकारी का दबदबा प्राधिकरण में होने के कारण प्राधिकरण ने इस मामले में न तो कोई अपनी प्रतिक्रिया दिखाई और न ही कर्नल साहब की कोई मदद की। कर्नल साहब के आवाज उठाने से उपरोक्त एडीएम इतने खफा हुए कि उन्होंने कर्नल साहब को सबक सिखाने का इरादा बना लिया। इसके लिए उन्होंने कर्नल साहब पर अपनी पत्नी के साथ छेड़छाड़ तथा अगवा करने का आरोप लगाकर कर्नल साहब को पुलिस द्वारा थोड़े से समय में ही गिरफ्तार करा दिया। पुलिस ने एक-दो घंटे में ही कर्नल साहब को हथकड़ी लगाकर थाने की हवालात में शातिर अपराधियों के साथ बंद कर दिया। कर्नल साहब घुटनों में दर्द होने के कारण जमीन पर बैठने में असमर्थ थे परन्तु पुलिस ने इसकी परवाह न करते हुए उन्हें कुर्सी पर भी नहीं बैठने दिया। इसके बाद उन्हें हथकड़ी लगाकर नोएडा में घुमाते हुए अदालत में पेश किया। जिस पर माननीय न्यायाधीश महोदय ने पुलिस को फटकार लगाई। यहां पर नौकरशाही का दुप्रभाव इस प्रकार देखा जा सकता है कि नोएडा पुलिस ने कथित घटनास्थल पर लगे सीसीटीवी कैमरा की रिकार्डिंग तक को देखना गवारा नहीं किया तथा बिना कोई जांच पड़ताल किए शीघ्र से शीघ्र कर्नल साहब को जेल तक पहुंचा दिया जिसमें उन्हें 15 अगस्त तथा और छुट्टियां होने के कारण पांच दिन तक जेल में रहना पड़ा। कर्नल साहब के विरुद्ध यह रिपोर्ट जानबूझ कर 14 अगस्त को इसलिए कराई गई जिससे 15 अगस्त तथा अन्य अवकाश होने के कारण कर्नल साहब चार-पांच दिन तक जेल में रह सकें।

सौभाग्य से यह सब देश के सबसे विकसित क्षेत्र में घटित हुआ जहां पर यह सब सीसीटीवी कैमरे के द्वारा रिकार्ड कर लिया गया जिससे इस पूरे प्रकरण की सच्चाई की किस प्रकार एक नौकरशाह जिनकी सत्ता में पहुंच है तथा उनके गनर ने मिलकर एक बूढ़े भूतपूर्व सैनिक की पिटाई की तथा उन्हें बेइज्जत करते हुए जेल भिजवा दिया। यदि यह सब ऐसे स्थान पर हुआ होता जहां पर सीसीटीवी की सुविधा नहीं होती तथा मीडिया भी इतना सक्रिय न होता तो क्या नौकरशाही का यह चेहरा देश के सामने आ पाता। यह एक उदाहरण है कि किस प्रकार दबंग तथा सत्ता के करीबी के लिए देश का प्रशासन तथा पुलिस नियम कानूनों के प्रति या तो उदासीनता दिखाती है या कानूनों को तोड़ मरोड़ कर लागू करती है जैसा कि नोएडा में हुआ है। पहले नोएडा विकास प्राधिकरण ने एडीएम के अवैध निर्माण पर उदासीनता दिखाई तथा इसके बाद नोएडा पुलिस ने कानून को तोड़ मरोड़ कर कर्नल साहब को जेल भेजा तथा कर्नल साहब की न्याय की गुहार को नहीं सुना परन्तु इस क्षेत्र में काफी संख्या में भूतपूर्व सैनिकों के कारण यह मामला जोरशोर से उठाया गया तथा उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री तथा देश के प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाया गया, तब जाकर जिला प्रशासन तथा नोएडा पुलिस ने सीसीटीवी कैमरे की रिकार्डिंग को देखा तथा इस मामले की सच्चाई सामने आ सकी कि किस प्रकार उपरोक्त नौकरशाह ने अपने रुतबे का इस्तेमाल करते हुए एक भूतपूर्व सैनिक को इतना बेइज्जत किया। सूचना के युग में उपरोक्त घटना की जानकारी पूरे देश के भूतपूर्व सैनिकों तक पहुंच चुकी है तथा सेवारत सैनिकों को भी यह जानकारी मिल चुकी है कि किस प्रकार देश उसके भूतपूर्व सैनिकों के साथ व्यवहार करता है। पर्वतों की दुर्गम चोटियों तथा तपते रेगिस्तान में देश की रक्षा में जुटे सैनिकों के मनोबल पर इस प्रकार की घटनाएं बहुत बुरा प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। एक सैनिक भूखा रहकर तथा विषम परिस्थितियों में अपनी जान देश पर न्यौछावर करने के लिए हर समय इसलिए तत्पर रहता है कि देश उसकी सेवाओं से सुरक्षित है तथा देश की इज्जत तथा संपदा को दुश्मन हाथ नहीं लगा सकता परन्तु क्या उपरोक्त घटना के बाद वह अपनी इज्जत के बारे में निश्चिंत हो सकता है। इसी प्रकार देश के पिछड़े क्षेत्रों में दबंगों तथा सत्ता के नजदीकियों के अत्याचारों के विरुद्ध प्रशासन तथा पुलिस द्वारा सुनवाई न करने के कारण देश में बेचारगी तथा असंतोष देखा जा सकता है और इसी के परिणामस्वरूप देश के दुश्मन ऐसे दबे तथा असंतुष्ट लोगों को देश के विरुद्ध आतंकवाद जैसी गतिविधियों के लिए तथा देश विरोधी गतिविधियों के लिए प्रयोग करते हैं जैसा कि देश के कई हिस्सों में देखा जा सकता है।

अकसर ज्यादातर राजनीतिक दल राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रभक्ति की बातें राष्ट्रीय पर्व पर करते हैं जो उपरोक्त घटनाओं के प्रकाश में केवल एक दिखावा मात्र प्रतीत होता है क्योंकि उपरोक्त कानून व्यवस्था की स्थति देश में राष्ट्रवादी भावना को प्रभावित करने के लिए काफी है। विकसित देशों में सबसे बड़ी पूंजी तथा शक्ति उनके नागरिकों में उच्चकोटि का राष्ट्रवाद तथा राष्ट्रप्रेम की भावना होती है और इसके लिए इन देशों में नियम कानूनों का सबसे सबके लिए समान रूप से लागू होना सबसे जरूरी और मुख्य मुद्दा पाया गया है। इस प्रकार के वातावरण में इन देशों में हर नागरिक अपने आपको कानून की नजर में सम्मान पाता है तथा सुरक्षित महसूस करता है। इसी कारण दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मनी तथा जापान के पूरी तरह से तहस-नहस होने के बावजूद आज यह दोनों देश अपने नागरिकों की उच्च श्रेणी की राष्ट्रवाद की भावना होने के कारण यह विश्व की आर्थिक शक्तियों में गिने जाते हैं। जब देश में कानून सबके लिए बराबर लागू होता है तो देश के नागरिकों में समता की भावना जागृत होती है जो राष्ट्रवाद को जन्म देती है। अमेरिकी कानून के हाथ यदि राष्ट्रपति बिल क्लिंटन तक पहुंच सकते हैं तो वह राष्ट्रपति ट्रंप तक भी पहुंच सकते हैं जैसा कि देखा जा सकता है तो क्या यह हमारे देश में संभव है कि हमारे देश में अकसर सत्ता के नजदीक रहने वाले तथा नौकरशाह कितने भी घिनौने अपराध कर ले फिर भी उनका रुतबा बरकरार रहता है। क्योंकि हमारे देश में लंबी गुलामी के कारण समाज का अभी तक इतना विकास नहीं हुआ है कि वह इस प्रकार की घटनाओं के लिए इनका खुले रूप से विरोध करें और इनका बहिष्कार करें। अभी तक भारतीय समाज पुरानी सामंती व्यवस्था के अनुसार आज के जागीरदारों के द्वारा नियंत्रित किया जा रहा है।

आज की नौकरशाही का यह स्वरूप अंग्रेजों का दिया हुआ है क्योंकि भारतीय नौकरशाही 1947 के सिविल सेवा कोड के द्वारा नियंत्रित की जा रही है जो अंग्रेजों का बनाया हुआ है। अंग्रेज भारत को लंदन से शासित कर रहे थे इसलिए उन्होंने नौकरशाही के द्वारा शासन करने के लिए नौकरशाहों को सार्वभौम बनाने के लिए उन्हें पूरे अधिकार तथा शक्तियां दीं परन्तु अपने अधिकारों का अनुचित प्रयोग तथा कर्तव्यहीनता के लिए कोई जवाबदारी तय नहीं की और इसी का परिणाम है कि नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने उपरोक्त अवैध निर्माण के विरुद्ध समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की जिसके कारण आज इतनी बड़ी घटना हो गई जिससे देश के सैनिकों का मनोबल प्रभावित हुआ। इसी प्रकार मुजफ्फरपुर तथा देवरिया के जिला प्रशासन ने सूचना रहते हुए भी इतने बड़े अपराधों जिनमें इतनी बालिकाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं हुई होने दिया तो क्या जानबूझ कर ऐसी घटनाओं को होने देने के लिए संबंधित नौकरशाहों को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।

उपरोक्त स्थिति को देखते हुए अब समय आ गया है कि देशवासियों को नौकरशाही के इस स्वरूप को बदलने के लिए विचार करना चाहिए तथा नौकरशाही की जिम्मेवारी निर्धारित की जानी चाहिए जिससे देश में नौकरशाही निरंकुश न रहकर अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह से निभा सकें। सेना में सैनिकों को अपनी जिम्मेदारियों के प्रति सजग करने के लिए सेना के कानून में इस तरह का प्रावधान है कि यदि एक सैनिक सीमा की सुरक्षा में अपने उत्तरदायित्व में कोई कोताही करता है तो उसको सेना के कानून की धारा 34, 35 तथा 36 के अनुसार फांसी तक की सजा दी जा सकती है। यदि इस तरह के प्रावधान सिविल सेवा कोड में भी होते तो आज देश को नोएडा, मुजफ्फरपुर तथा देवरिया जैसी घटना देखनी नहीं पड़ती। इसके अलावा ऐसे प्रावधान भी किए जाने चाहिए कि इस प्रकार की घटना दोबारा घटित न हो जैसा कि राम रहीम, आसाराम तथा वीरेन्द्र देव के आश्रम में इस प्रकार की घटनाएं होने के बावजूद मुजफ्फरपुर, देवरिया जैसी घटनाएं घटित हुईं।

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