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इशारों को अगर समझो!

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:1 Sep 2018 3:00 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

दिनांक 29 अगस्त 2018 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला देकर केंद्र सरकार को इशारों ही इशारों में बहुत कुछ समझाने की कोशिश की है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्रा नीत एक खंड पी" ने अपने फैसले में कहा है कि केंद्र सरकार जिन पांच वामपंथी विचारकें के गिरफ्तार करना चाहती है उनको न तो पुलिस के हवाले किया जाए और न ही उन्हें कारावास भेजा जाए। सरकार यदि चाहे तो उपरोक्त पांचों वामपंथी बुद्धिजीवियों को उनके निजी आवासों में निरुद्ध करके रख सकती है जहां उन्हें अपने परिजनों एवं वकीलों से मिलने की पूरी छूट होगी। खंड पी" में शामिल एक वरिष्ठ न्यायाधीश श्री चन्द्रचूड़ ने अपनी एक महत्वपूर्ण टिप्पणी में केंद्र सरकार को इशारा किया है कि वह यह समझ ले कि लोकतंत्र में लोगों की असहमति कूकर में लगे `सेफ्टी वॉल्व' की तरह होती है। जिस तरह एक कूकर में जब भाप का दबाव अत्यधिक हो जाता है तो वह सेफ्टी वॉल्व के माध्यम से बाहर निकल जाता है। कूकर में यदि सेफ्टी वॉल्व न लगा हो तो वाष्प के दबाव से वह फट भी सकता है। न्यायमूर्ति श्री चन्द्रचूड़ ने केंद्र सरकार को इशारों में यह बताने की कोशिश की है कि यदि आम नागरिकों की असहमति के मौलिक अधिकार को छीन लिया गया तो लोकतंत्र भी कूकर की तरह तार-तार हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को पढ़कर मुझे वर्ष 1973 में बनी एक हिन्दी फिल्म `धर्मा' में खलनायक पाण द्वारा गाए गए एक गाने की निम्नांकित पंक्ति याद हो आती है, `इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो।' इस पृष्ठभूमि में लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई कोई सरकार जब अपनी आलोचना नहीं सुन पाती तो समझ लेना चाहिए कि लोकतंत्र अब सरकार का बंदी बन चुका है। भारत की पुरातन संस्कृति में भी यह व्यवस्था रही है कि यदि कोई व्यक्ति विपरीत विचार भी पकट करे तो उसको भी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। सर्वविदित है कि `चार्वाक' एक पूर्णतः नास्तिक किस्म के चिन्तक थे जिन्होंने भारत के सनातन धर्म के मूल मंत्र `पुनर्जन्म' के "ाrक विपरीत अपने विचार पकट करते हुए लिखा था कि,

यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत्,

ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत्।

भस्मी भूतस्य देहस्य,

पुनर आगमनम् कुतोः।।

अर्थात चार्वाक के अनुसार किसी मनुष्य के पुनर्जन्म की इसलिए कोई गुंजाइश नहीं रहती क्योंकि सबके सामने उस व्यक्ति को जलाकर राख कर दिया जाता है। आज के शासकों को याद रखना चाहिए कि उस नास्तिक चार्वाक को भी भारत के मनीषियों ने ऋषि का दर्जा देकर उन्हें महिमामंडित किया था। यही कारण है कि भारत के लोग चार्वाक के विचारों से सहमत न होते हुए भी उन्हें ऋषि कहते हैं। आज के शासक इसके "ाrक विपरीत यदि कोई व्यक्ति `भारत माता की जय' के बदले `जय हिन्द' भी कहते हैं तो कट्टरपंथी लोग उन्हें तुरंत देशद्रोही का तगमा दे देते हैं। इसी असहिष्णुता का परिणाम है कि आजकल लोग बिना कानून की शरण में गए मात्र आशंकाओं के आधार पर भीड़ बनाकर आक्रमण कर रहे हैं जिसे आजकल `मॉब लिंचिंग' की संज्ञा दी जा रही है। लोकतांत्रिक देश में कोई भी व्यक्ति अपने विचारों को दृढ़ता के साथ रख सकता है लेकिन उन विचारों को गलत कहकर नकारने की फितरत से बचा जाना चाहिए। यही कारण था कि जैन धर्म के पवर्तक भगवान महावीर अकसर कहा करते थे कि उन्हें `भी' वाद में विश्वास है `ही' वाद में नहीं। यह ज्ञातव्य है कि भगवान महाबीर जब पवचन करने लगते थे तो अपने संवाद में कहा करते थे कि जो वह बता रहे हैं वह सही है लेकिन किसी अन्य व्यक्ति ने यदि मेरे विचारों से भिन्न विचार भी रखे हैं तो वे भी सही हो सकते हैं। इसे विडंबना ही कहेंगे कि आज के दिन भारत में कुछ लोग कमर कस कर एवं छाती "ाsक कर कह रहे हैं कि उनकी बातें ही सही हैं। भाजपा के कई कट्टर मंत्री तो यह कहने में भी गुरेज नहीं करते कि जो लोग नरेंद्र मोदी का विरोध करते हैं उन्हें हिन्दुस्तान में रहने का कोई हक नहीं है तथा उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाना चाहिए। इस विचारधारा का अनुसरण करने वाले लोग यदि सत्ता में बै"s रहेंगे तो लोकतंत्र का जनाजा निकलना लाजिमी है। इस तरह के कट्टर विचारों से देश में असहिष्णुता का वातावरण गहराता जा रहा है। ऐसा पतीत होता है कि सर्वोच्च न्यायालय के माननीय न्यायमूर्ति श्री चन्द्रचूड़ ने देशवासियों की इस दुखती रग पर हाथ रखकर ही अपनी उपरोक्त टिप्पणी दी है। पिछले दिनों जिन पांच वामपंथी विचारकों को केंद्र सरकार ने गिरफ्तार करने का आदेश दिया था उन्हें `अर्बन नक्सली' यानि शहरों में रहने वाले नक्सली करार देते हुए उनका संबंध वैसे तत्वों से होने का दावा किया है जो देश के वर्तमान पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को पूर्व पधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी की तरह मौत के घाट उतारना चाह रहे हैं। उपरोक्त पांच वामपंथी विचारकों में सुधा भारद्वाज नामक एक मशहूर वकील भी शामिल हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के केस लड़ने में गुजार दिया है ताकि उन्हें न्याय से वंचित न किया जा सके। देश के विभिन्न भागों में लोगों ने सड़कों पर उतर कर सरकार के इस कदम के खिलाफ पदर्शन और धरने दिए है। यक्ष प्रश्न यह उ"ता है कि क्या सरकार ने गहराई में जाकर इन तथ्यों का परीक्षण करवा लिया है? वास्तविकता यह है कि आज की सरकार असहमति को सहन करने की मुद्रा में नहीं है जिसके चलते वह वैसे लोगों को अपने दुश्मन के रूप में देख रही है जो उनके विचारों से सहमत नहीं होते। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आवश्यक है कि विपक्ष भी मजबूत रहे ताकि सरकार की जनविरोधी नीतियों का पर्दाफाश होता रहे।

इस आलोक में फ्रांस से खरीदे जाने वाले राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदगी में किसी घोटाले की संभावना के चलते विपक्ष ने सरकार से एक संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जांच करवाने की मांग की है। केंद्र सरकार इस मामले में यदि जनता से कुछ छिपाना नहीं चाहती तो उसे विपक्ष की इस मांग को स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने से दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।

यह ज्ञातव्य है कि संयुक्त संसदीय समिति में भाजपा के सदस्यों की संख्या दूसरे दलों के सदस्यों से कहीं ज्यादा होगी इसलिए सरकार को जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी) से जांच करवाने से हिचकिचाहट नहीं करनी चाहिए। सरकार यदि इस मांग को स्वीकार नहीं करती तो आने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में हंगामा होना अनिवार्य है जिसे रोका जाना चाहिए। इस आलोक में यदि देश की सबसे बड़ी अदालत केंद्र सरकार को इशारों से कुछ समझाना चाहती है तो सरकार का फर्ज बनता है कि वह न्यायालय की मानसिकता को समझे तथा तद्नुकूल आचरण करे।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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