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दोहरे मापदंड से बेनकाब विपक्ष

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:1 Sep 2018 3:01 PM GMT
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

पांच वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों के दोहरे मापदंड सामने आ गए है। एक तो यह कि यूपीए सरकार में भी इनमें से कई लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। तब ऐसा हंगामा नहीं किया गया था। एक आरोपी तो छह वर्ष जेल में भी रहा था। दूसरी बात यह कि इस मसले पर आरएसएस का नाम लेने से भी इनका सियासी मंसूबा सामने आया है। इन गिरफ्तारियों के लिए संघ पर हमला बेमानी है। संघ का यह कार्य भी नहीं है। वह समरसता और निस्वार्थ समाज सेवा की भावना से प्रेरित संगठन है। केरल में चर्च, मस्जिद सहित सभी जगह स्वयं सेवकों ने राहत, पानी की निकासी आदि कार्य किये। फिर भी वह विपक्षी पार्टियों का कहर संघ पर टूटता रहता है। कांग्रेस अध्यक्ष लंदन में संघ की तुलना इस्लामी आतंकवादी संगठन से कर के लौटे थे। आते ही यहां भी उन्हें अपनी पसंद का मुद्दा मिल गया। पांच लोगों की गिरफ्तारी कुछ प्रमाणों के आधार पर की गई थी। फिर संघ पर हमले होने लगे, फिर असहिष्णुता के आरोप लगने लगे, फिर असहमति को दबाने की दलील पेश होने लगी। राहुल बोले कि देश में केवल एक एनजीओ रहेगा, वह है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ। अन्य को बंद किया जा रहा है। विरोध करने वालों को गोली मार दो। ऐसे बयान कांग्रेस या कम्युनिस्ट पार्टियों की प्रतिष्ठा को गिराने वाले साबित होंगे। वामपंथियों ने इसे आजादी पर हमला बताया।

यदि संघ पर हमला करने वालों की बात को सही मान लें ,तो यह भी मानना होगा कि यूपीए सरकार भी संघ के इशारों पर चलती थी। जब यूपीए के समय यही वामपंथी विचारक गिरफ्तार किए गए थे, तब न्याय था, अब गिरफ्तारी हुई तो आजादी और अभिव्यक्ति दोनों पर खतरा आ गया। महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव हिंसा के मामले में पुणे पुलिस छह शहरों में छापा मारा था। प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने घोषणा की थी कि नक्सलवादी देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। यह कार्रवाई एल्गार परिषद और नक्सलियों के संपर्प की जांच के बाद की गई। गोंजाविल्स और अरुण फरेरा को उन्नीस सौ सत्रह में भी गिरफ्तार किया गया था। उनपर नक्सलियों से संबंध का आरोप था। गोंजाविल्स तो माओवादियों की केंद्रीय समिति का सदस्य था। वह छह वर्ष जेल में रह चुका है। यूपीए सरकार में गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने लोकसभा में चौहत्तर संस्थाओं पर बैन लगाने की बात कही थी। यूपीए सरकार ने माओवादियों के साथ संबंध रखने वाले एक सौ अट्ठाइस संगठनों की पहचान की थी। इसके लिए मनमोहन सरकार ने सभी राज्यों को इन संगठनों से जुड़े हुए लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी की बात कही थी। ये वही लोग हैं जिन्हें कांग्रेस सरकार के दौरान गिरफ्तार किया गया था। इनके ऊपर सत्रह सत्रह केस दर्ज रहे है। यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल में जो हलफनामा दायर किया था उसे साफ कहा था कि इनके माओवादियों से लिंक हैं और देश की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। अब वही कांग्रेस दोहरा मापदंड अपना रही है। इससे साफ हो गया है कि कांग्रेस को आंतरिक सुरक्षा से कोई लेना-देना नही है। विपक्ष इस मसले पर दोहरे मापदंड अपना रहा है। नक्सलियों से संबंध पर न्यायपालिका फैसला करेगी। इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोगों का बचाव देशहित के विरुद्ध है। पुलिस ने इस मामले में गिरफ्तार पांच लोगों में एक के ठिकाने से नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से जुड़ा एक पत्र जब्त किया था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ही तरह मोदी को भी निशाना बनाने की बात कही गई थी। इस पत्र से ही वरवरा राव का नाम सामने आया था। गत जून में पांच लोगों को विभिन्न जिलों से गिरफ्तार किया गया था। भीमा कोरेगांव युद्ध की वर्षगांठ पर गत वर्ष पुणे में यलगार परिषद ने आयोजन किया था। आरोप है कि इन पांचों के भाषण के बाद हिंसा भड़की थी। भीमा-कोरेगांव में अठारह सौ अठारह को पेशवा बाजीराव को ब्रिटिश सैनिकों ने हरा दिया था। दलित नेता इस जीत का जश्न इसलिए मनाते हैं कि ईस्ट इंडिया कंपनी की टुकड़ी में ज्यादातर महार समुदाय के लोग थे। जिसके बाद हर साल पुणे में यलगार परिषद का आयोजन होता है। लेकिन इस बार जातीय हिंसा हुई। इस के लिए यलगार परिषद के नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगा था। यलगार परिषद के सदस्य रोना विल्सन के यहां छापेमारी में एक चिट्ठी बरामद हुई, जिसमें विस्फोटक जानकारियां निकल कर सामने आ रही थी। इसमें कांग्रेस पार्टी पर भी गंभीर आरोप लगे थे। जाहिर है कि यह पूरा मसला बेहद गंभीर था। समाज को बांटने की साजिश की आशंका थी। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विषय नहीं था। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहिसाब है। लेकिन समाज और राष्ट्र के हित की अवहेलना नहीं होती। बेहतर तो यही था कि विपक्षी दल ऐसे आरोपियों के समर्थन में मोर्चा न खोलते। कानून अपना कार्य करेगा।

(लेखक विद्यान्त हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)

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