Home » द्रष्टीकोण » नहीं रहे कड़वे प्रवचन देने वाले मुनि तरुण सागर

नहीं रहे कड़वे प्रवचन देने वाले मुनि तरुण सागर

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:3 Sep 2018 3:27 PM GMT
Share Post

पिछले कुछ दिनों से पीलिया से पीड़ित राष्ट्रसंत मुनि 108 श्री तरुण सागर जी महाराज शनिवार एक सितम्बर को तड़के करीब तीन बजकर 18 मिनट पर पूर्वी दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित राधापुरी जैन मंदिर से अपनी अनंत यात्रा पर चले गए। गौरतलब है कि 51 वर्षीय प्रखर वक्ता जैन मुनि तरुण सागर पिछले कुछ दिनों से पीलिया से पीड़ित थे। जानकारों के मुताबिक अपने आखिरी समय में मुनि जी ने दवाइयां लेने से मना करके समाधि लेने की इच्छा प्रकट की थी। जैन परंपरा के अनुसार उन्होंने अपने अंतिम समय में अन्न-जल का त्याग करके समाधिमरणपूर्वक प्राण त्यागे। जैन मुनि के अंतिम समय में राजधानी में चातुर्मास कर रहे दूसरे जैन संत भी मुनि जी के पास पहुंच गए थे। जैन मुनियों के समझाने पर उन्होंने थोड़ा-बहुत खाना खाया। गत 29 अगस्त को मुनि तरुण सागर द्वारा लिखित एक पत्र भी सामने आया है जिसमें उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की थी कि मैं बिना दीक्षा के नहीं जाना चाहता। अत सभी जैन मुनि गुप्ति सागर के पास ले चलें, वही मेरा आगे का जीवन देखें, समाधि दें। आगे भी उन्होंने काफी कुछ लिखा है। हालांकि उनके शिष्य इस पत्र का खंडन भी कर रहे हैं। जैन मुनि तरुण सागर जी की अंतिम यात्रा में पार्थिव शरीर को उनके सिंहासन पर रखा हुआ था, जिसे लोगों ने अपने कंधों पर उठाया हुआ था। इस अंतिम यात्रा में देश के अलग-अलग राज्यों से आए श्रद्धालु जिसमें बुजुर्ग, युवा, महिलाएं, बच्चे व जैन मुनि शामिल हुए। जैन मुनि तरुण सागर अपने बयानों को लेकर अकसर चर्चा में रहते थे। दिगम्बर जैन मुनि कड़वे प्रवचन के नाम से समाज को संदेश देते थे। वे समाज और राष्ट्र जीवन के अहम मुद्दों पर तीखे शब्दों में अपनी राय देते थे। जैन मुनि ने हरियाणा विधानसभा में प्रवचन दिया जिस पर काफी विवाद हुआ था। इसके बाद संगीतकार विशाल डडलानी के एक ट्वीट ने काफी बवाल खड़ा कर दिया था। मामला बढ़ता देख विशाल को जैन मुनि से माफी मांगनी पड़ गई थी। इस विवाद के बाद आम आदमी पार्टी से जुड़े संगीतकार डडलानी ने अपने आपको राजनीति से अलग कर लिया। मध्यप्रदेश में 1967 में जन्मे तरुण सागर महाराज का वास्तविक नाम पवन कुमार जैन था। जैन संत बनने के लिए उन्होंने 1981 में घर छोड़ दिया था। करीब 20 साल की उम्र में उन्होंने आचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली थी। हाल में उन्होंने अपनी दिगम्बर दीक्षा के 20 साल पूरे किए थे। उनके बारे में प्रसिद्ध था कि वह छठी कक्षा में पढ़ाई के दौरान जलेबी खाते-खाते संन्यासी बन गए थे। इस चर्चित वाकया पर मुनि तरुण सागर जी महाराज ने बताया थाöबचपन में मुझे जलेबियों का बहुत शौक था। एक दिन स्कूल से वापस लौटते वक्त एक होटल में जलेबी खा रहा था तभी पास में आचार्य पुष्पदंत जी महाराज का प्रवचन चल रहा था। वह कह रहे थे कि तुम भी भगवान बन सकते हो यह बात मेरे कानों में पड़ी और मैंने संत परंपरा अपना ली। हम उनको श्रद्धांजलि देते हैं। उनकी पवित्र स्मृति में विनम्र श्रद्धांजलि।

-अनिल नरेन्द्र

Share it
Top