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शासन तंत्र में नौकरशाही की भूमिका

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:11 Sep 2018 5:52 PM GMT
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कर्नल शिवदान सिंह

(सेवानिवृत्त)

देश में दिन-प्रतिदिन बढ़ते महिला अपराधों जैसे मुजफ्फरपुर देवरिया गोरखपुर तथा हरियाणा के फतेहाबाद इत्यादि तथा विकास योजनाओं तथा प्राधिकरणों में होते करोड़ों रुपयों के घोटाले यह बताने के लिए काफी हैकी कार्यपालिका को चलाने वाली नौकरशाही में काफी घुन लग गया है। अंग्रेज लार्ड कार्नवालिस ने भारत में नौकरशाही को शासन का स्टील पेम कहा था और उसके बाद नौकरशाही को स्टील पेम नाम से पुकारा जाने लगा। परंतु हो रहे तरह तरह के अपराध तथा घोटाले दर्शाते हैं कि लार्ड कार्नवालिस की आशाओं पर भारतीय नौकरशाही अपने भ्रष्टाचार, कर्तव्यहीनता तथा उदासीनता के कारण खरी नहीं उतर रही है। विकास की योजनाएं तथा विकास प्राधिकरण नौकरशाहों द्वारा धन कमाने के अड्डे बन गए हैं जैसे कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा तथा यमुना विकास प्राधिकरण मैं तरह-तरह के भ्रष्टाचार तथा घोटाले दिखाई देते हैं। इसका प्रदर्शन अभी अभी येडा के भूतपूर्व के अधिकारी पीसी गुप्ता ने सरकार की बिना अनुमति 126 करोड़ की जमीन खरीद कर स्वयं तथा अपने चहेतों को इसका फायदा पहुंचाया। इसी प्रकार महिला अपराधों में भी राम रहीम आसाराम कथा वीरेंद्र देव के आश्रम में सैकड़ों की तादाद में महिलाओं की इज्जत लूटी गई और यही ाढम लगातार चल रहा है जैसा कि मुजफ्फरपुर, देवरिया इत्यादि में देखने को मिला है। जबकि विकसित तथा कानून से नियंत्रित शासन में एक घटना होने पर प्रशासन इस प्रकार कार्यवाही करता है जिससे दोबारा एक प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो परंतु हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। जांच होती है लंबी चलती हैपरंतु आज तक इन जांच रिपोर्ट के आधार पर अपराधों में परोक्ष तथा सीधे सहयोग करने वाली नौकरशाही की अपराधिक जिम्मेवारी की निश्चित करने के प्रावधान नहीं किए गए जिससे वह अपनी जिम्मेदारी समझते हुए इस प्रकार की घटनाओं को प्रभावशाली तरीके से रोक सके।

देश के शासन तंत्र को कार्यपालिका चलाती है और कार्यपालिका के मुख्य अंग सिविल प्रशासन तथा पुलिस द्वारा नियंत्रित होते हैं। इसलिए शासन तंत्र की जिला रूपी इकाईका मुखिया जिला अधिकारी होता है जिसके पास शासनतंत्र को चलाने के के सारे साधन होते हैं इसके साथ-साथ जिले की पुलिस पर भी जिलाधिकारी का नियंत्रण होता है। जिले में अनैतिक गतिविधियों की सूचना शासन को समय पर उपलब्ध कराने के लिए लोकल इंटेलिजेंस की इकाई होती है तब इतने संसाधन होने के बावजूद जिला प्रशासन तथा पुलिस मुजफ्फरपुर तथा देवरिया जैसी घटनाओं की जानकारी न होने तथा अपने कर्तव्य को नहीं निभाने के कारण होने वाले अपराधों की भागीदारी से कैसे बच सकते हैं।अक्सर देखा गया है की संगठितअपराध सत्ता से नज़दीकियां रखने वाले अपराधी ही करते हैं जैसे बृजेश ठाकुर राम रहीम तथा आसाराम तब इन स्थितियों में नौकरशाह अपनी नौकरी तथा मलाईदार नियुक्ति बचाने के लिए जानबूझकर इन अपराधियों की हरकतों से आंख मूंद लेते हैं तथा बहाना लेते हैं उन्हें इन गतिविधियों की कोई पूर्व सूचना नहीं थी जो केवल एक सफेद झूठ होता है। परंतु जब गंभीर घटना होने पर मीडिया में शोर शराबा होता है तब यह नौकरशाह सूचना का बहाना तथा अपने आप को असहाय दर्शाते हैं यह उसी प्रकार है जैसे एक सैनिक दुश्मन के सामने पीठ दिखा रहा हो।

अंग्रेजी सरकार लंदन से भारत की व्यवस्था को अपनी नौकरशाही से चला रही थी। और नौकरशाही को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने 1919 में सिविल सेवा कोड बनाया था। इस कोड के अनुसार एक नौकरशाह अपने कार्य क्षेत्र में सार्वभौम कथा शक्तिशाली होता है। परंतु इस प्रकार की सार्वभौमिकता के लिए व्यक्ति का चरित्र जैसे ईमानदारी राष्ट्रवाद तथा सेवा के लिए समर्पण चाहिए जो अंग्रेज अफसरों में अपनी सरकार तथा जनता के प्रति था। परंतु लंबी गुलामी तथा सामंती व्यवस्था के कारण ज्यादातर हमारी नौकरशाही में उपरोक्त चरित्र नहीं पाया जाता जिसके कारण वह अपने कर्तव्य का निर्वहन अंग्रेजी अफसरों की तरह नहीं कर पा रहे। भारतीयों की गुलामी तथा सामंती मनोवृति की पूरी जानकारी लार्ड कार्नवालिस को थी इसलिए उसने नौकरशाही में भारतीयों को स्थान नहीं देने की सिफारिश अपनी सरकार से की थी। इसके बावजूद इक्के-दुक्के भारतीय अंग्रेजी नौकरशाही में स्थान पा जाते थे। इस स्थिति में अंग्रेजों ने भारतीय नौकरशाहों के चरित्र निर्माण के लिए कुछ समय के लिए ऐसे भारतीयों को रखने का प्रावधानअपने घरों में किया था जिससे यह अंग्रेजों के चरित्र के अनुरूप अपने आप को डाल सके।

नौकरशाही की आज की स्थिति की विवेचना से ज्ञात होता है कि 1947 में सरदार पटेल ने विरोध के बावजूद 1919 के सिविल सेवा कोड को तो उसी रूप में अपना लिया परंतु नौकरशाहों के भ्रष्टाचार तथा कर्तव्यहीनता की जिम्मेदारी तय करने के प्रावधान नहीं किए। शायद उन्होंने सोचा था कि जिस प्रकार अंग्रेज अफसर उच्च राष्ट्रभक्ति का प्रदर्शन करते हुए अनैतिक गतिविधियों को सख्ती से मिटा कर राष्ट्र निर्माण तथा गरीबों का दुख दर्द मिटाते थे उसी प्रकार स्वाधीन भारत में अपने देश की नौकरशाही अपने कर्तव्य का निर्वहन करेगी। इसलिए सिविल सेवा कोड 1947 में नौकरशाहों को अंग्रेजों जैसा सार्वभौम स्वरूप देने के लिए उन्हें अधिकार तथा शक्ति सब दी गई परंतु उनके चरित्र पर विश्वास करते हुए उनकी जिम्मेदारी का प्रावधान नहीं किया गया शायद उन्होंने यह इसलिए नहीं किया कि वह सोचते थे की अंग्रेजों की तरह भारतीय अफसर भी अपना कर्तव्य सच्ची भावना से निभाएंगे। इसलिए सिविल प्रशासन के नाकाम तथा फेल होने पर केवल निलंबनया ट्रांसफर जैसे दंड का ही प्रावधान है। इसी का परिणाम है की नौकरशाहों की कर्तव्यहीनता तथा उदासीनता के कारण 34 34 बालिकाओं के साथ होने वाले बलात्कार की अपराधिक जिम्मेवारी से एक नौकरशाह का कोई अपराधिक लेना देना नहीं पाया गया है और न ही इन के विरुद्ध इन अपराधों में परोक्ष रूप से सहयोग देने का किसी प्रकार काअभियोग पंजीकरण किया गया है। यह उसी प्रकार है जैसे सामंती व्यवस्था में राजाओं तथा जागीरदारों पर इसी प्रकार के अपराधों की कोई जिम्मेदारी निर्धारित नहीं की जाती थी। जबकि सारे संसाधन होने के कारण एक जिला अधिकारी या जिले का पुलिस मुखिया अपने आप को निर्दोष नहीं बता सकता।

परंतु यदि सेना के कानून की तरह कर्तव्यहीनता तथा उदासीनता के कारण हुए नुकसान की जिम्मेवारी एक सैनिक की तरह देश के नौकरशाहों की भी होती तो रोजाना तरह-तरह के गंभीर अपराध और घोटाले तथा भ्रष्टाचार देश में दिखाई नहीं देते। सेना के कानून की धारा 34 35 तथा 36 के अनुसार एक सैनिक तथा सैन्य अधिकारी को अपनी जिम्मेवारी के क्षेत्र में अपनी जान की बाजी लगाकर दुश्मन को अपनी सीमा में घुसने से रोकना होता है और यदि वह अपनी स्वयं की सुरक्षा की परवाह करते हुए मोर्चे से पीठ दिखाता है तो उसको उपरोक्त कानून के अनुसार मौत या फांसी की सजा दी जा सकती है। परंतु ऐसे प्रावधान नौकरशाही को नियंत्रित करने वाले सिविल सेवा कोड में नहीं है। केवल सीधे भ्रष्टाचार के मामलों में ही अपराधिक कार्यवाही का प्रावधान है इसके लिए भी माननीयों के विरुद्ध जांच एजेंसियों को सरकार से पहले अनुमति लेनी होती है। और सरकार में बैठे नौकरशाह अपने साथी नौकरशाह के विरुद्ध अनुमति मुश्किल से ही देते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने लार्ड कार्नवालिस की तरह देश की नौकरशाही के लिए दिशा निर्देश निर्धारित करते हुए आशा की है कि नौकरशाही का स्वरूप राजनीति से परे निष्पक्ष, देश तथा जनता के लिए समर्पित तथा ईमानदार होगा। और अपनी इसी भावना को वास्तविकता में बदलने के लिए उन्होंने लोकसभा के मानसून सत्र में 24 जुलाई को 1988 के भ्रष्टाचार उन्मूलन कानून में संशोधन करा कर इसे काफी हल्का बना दिया है जिससे एक नौकरशाह इस कानून के भय से मुक्त होकर आसानी से अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सकें। परंतु नौकरशाही प्रधानमंत्री की इस भावना का आदर करती नजर नहीं आ रही है।

बार-बार तरह-तरह के घोटाले तथा भ्रष्टाचार की खबरें देशवासियों को रोजाना सुनाई पड़ती हैं तब केवल निलंबन तथा ट्रांसफर जैसे दंड से ही उसकी भरपाई की जाती है 1 भारत सरकार की स्वयं की वेबसाइट के अनुसार देश की नौकरशाही जिसमें आईएएस आईपीएस कथा आईआरएस सेवा के अधिकारी आते हैं इनके कैडर के 40… अधिकारी भ्रष्टाचार तथा कर्तव्यहीनता के मामलों में या तो अदालतों में इनके विरुद्ध प्रकरण चल रहे हैं या विभिन्न जांच एजेंसियां इनके भ्रष्टाचार की जांच कर रही हैं।इसलिए न तो सरकारों की भावनाओं के अनुरूप विकास हो रहा है और न ही अपराधों पर लगाम लग पा रही है। व्यवस्था की इस स्थिति के कारण देश के बहुत से हिस्सों में तरह तरह का आतंकवाद तथा असंतोष नजर आता है।

इस स्थिति में अंग्रेजो के द्वारा उस समय के परिपेक्ष के अनुसार बनाए गए 1919 के सिविल सेवा कोड तथा पुलिस एक्ट को समय अनुसार बदलना चाहिए जिससे पूरी नौकरशाही अपनी जिम्मेवारी को अच्छी प्रकार समझ सके तथा जनता तथा सरकार की अपेक्षाओं पर खरी उतर सके। इन दोनों नियमों को सेना कानून की तरह इस प्रकार बनाया जाना चाहिए जिससे एक नौकरशाह के क्षेत्र में यदि कोई संगठित अपराधिक गतिविधि या विकास कार्यों में जानबूझकर घोटाला जैसे घोटाले नोएडा ग्रेटर नोएडा में नजर आ रहे हैं तब इन दोनों स्थितियों में इन पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी रखने वाले नौकरशाह तथा पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध भी उस प्रकार कार्यवाही की जा सके जैसे एक सैनिक के विरुद्ध होती है। इस प्रकार के प्राविधानों से नौकरशाही अपराधिक प्रवृत्ति वाले राजनीतिज्ञों के चंगुल से बच पाएगी तथा धीरे-धीरे देश की राजनीति भी अपराध मुक्त हो जाएगी। इसलिए अगले लोकसभा सत्र में सरकार को नौकरशाही को नियंत्रित करने वाली सिविल सेवा कोड तथा पुलिस एक्ट को बदलने के लिए प्रावधान करने संबंधी प्रस्ताव लाना चाहिए। देश आशा कर रहा है कि अगले सिविल सेवा दिवस 21 अप्रैल 2019 पर प्रधानमंत्री देश की नौकरशाही में सुधार करते हुए इन प्रावधानों की घोषणा करेंगे।

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