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माल्या को लेकर आक्रामकता से किसे होगा फायदा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 Sep 2018 2:59 PM GMT

माल्या को लेकर आक्रामकता से किसे होगा फायदा

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आदित्य नरेन्द्र

जैसे-जैसे आम चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को लेकर देश के दो प्रमुख राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोपों-प्रत्यारोपों की जंग तेज होती जा रही है। ऐसा लगता है कि दोनों में से कोई भी न तो इस मुद्दे पर पीछे हटना चाहता है और न ही कमजोर दिखाई देना चाहता है क्योंकि यह मुद्दा सीधे-सीधे उनकी इमेज को प्रभावित कर सकता है। ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि माल्या को लेकर दोनों दलों द्वारा जो इतनी आक्रामकता दिखाई जा रही है उसका असल फायदा किसे होगा। दरअसल सच्चाई यह है कि इस मामले में ऊंट किसी भी करवट बैठ सकता है। ऐसे में दोनों पक्ष इसे एक जीती हुई बाजी की तरह लड़ते हुए दिखाई देना चाहते हैं। इसी के चलते बीते बृहस्पतिवार को कांग्रेस ने भाजपा नेता अरुण जेटली पर माल्या से साठगांठ का आरोप लगाते हुए दावा किया कि उन्होंने माल्या के विदेश भागने से दो दिन पहले उससे सेंट्रल हॉल में मुलाकात की थी। कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने दावा किया कि उन्होंने खुद माल्या को जेटली से सेंट्रल हॉल में बातचीत करते हुए देखा था। उन्होंने कहा कि यह बातचीत चलते-फिरते नहीं बल्कि बैठकर 15 से 20 मिनट तक हुई थी। पुनिया के इस बयान के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जेटली पर हमले की बागडोर अपने हाथ में ले ली और प्रधानमंत्री मोदी को भी इसमें लपेटने का प्रयास किया। उन्होंने माल्या को देश से भागने के लिए खुला रास्ता देने का आरोप भी लगाया। अपनी बात के समर्थन में उन्होंने कहा कि उस दिन की सीसीटीवी फुटेज देखकर मामले की सच्चाई का पता लगाया जा सकता है। मामले की गंभीरता को देखते हुए भाजपा ने तीन मंत्रियों और पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा को मैदान में उतार दिया। भाजपा प्रवक्ता ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि कुछ ऐसे दस्तावेज हैं जो बताते हैं कि कैसे यूपीए सरकार ने उन्हें फायदा पहुंचाया। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष को यह साफ करना चाहिए कि उनके परिवार का किंगफिशर एयरलाइंस से क्या नाता था। जाहिर है कि इतने आरापों-प्रत्यारोपों के बीच सच क्या है इसका पता लगाना आम मतदाता के लिए बेहद मुश्किल है। फिर भी राहुल गांधी और पीएल पुनिया की प्रेस कांफ्रेंस की टाइमिंग देखनी बहुत जरूरी है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के एक संसदीय समिति को दिए गए नोट के सामने आने के दो दिन बाद यह प्रेस कांफ्रेंस की गई है। गौरतलब है कि इस नोट में राजन ने बैंकों के बढ़ते एनपीए के लिए बैंकर्स के अलावा तत्कालीन सरकार की लापरवाही का भी जिक्र किया है। चूंकि राजन की स्वीकारोक्ति से कांग्रेस को नुकसान था ऐसे में राहुल और पुनिया की प्रेस कांफ्रेंस से कांग्रेस को यह फायदा हुआ कि राजन के नोट के बारे में जिक्र ज्यादा सुनाई नहीं दिया। यह भी कांग्रेस के लिए लाभप्रद स्थिति है। इस प्रेस कांफ्रेंस के तार माल्या को लेकर लंदन की अदालत के उस फैसले से भी जोड़े जा सकते हैं जिसमें उनके (माल्या) प्रत्यर्पण पर 10 दिसम्बर को फैसला आने की बात कही गई है। अब यदि 10 दिसम्बर को लंदन की अदालत माल्या को भारत भेजने का फैसला कर देती है तो कांग्रेस के माल्या को देश से भगाने वाले भाजपा सरकार पर लगाए गए आरोपों की हवा निकल जाएगी। यदि यह मामला थोड़ा और खिंचता तो कांग्रेस कुछ और राजनीतिक फायदे की उम्मीद कर सकती थी। लेकिन अब लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व के सामने विकल्प सीमित हैं। अगले कुछ हफ्तों में राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव की घोषणा हो सकती है। कांग्रेस नेतृत्व इन चुनावों में इस मुद्दे का फायदा उठाकर आम चुनावों के लिए हवा अपने पक्ष में बनाने का प्रयास कर सकता है। शायद इसीलिए कांग्रेस नेतृत्व ने विजय माल्या के भागने को लेकर अपने आरोप और ज्यादा तीखे कर दिए हैं। उधर भाजपा नेतृत्व भी इसे समझ रहा है। उसने भी ऐसे दस्तावेजों को खंगालना शुरू कर दिया है जो कांग्रेस नेतृत्व को कठघरे में खड़ा कर सकें। उसकी पूरी कोशिश कांग्रेसी हमलों की धार को पुंद करने पर है। ऐसे में स्पष्ट है कि अब इस मामले का फायदा किसे मिलेगा यह लंदन की अदालत के फैसले के बाद ही साफ होगा। फिलहाल तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस साल होने वाले राज्यों के आगामी चुनावों में इसका सीमित फायदा ही ले पाएगी। लेकिन यदि मोदी सरकार माल्या को इंग्लैंड से वापस भारत लाने में कामयाबी हासिल कर लेती है तो कांग्रेस को अगले आम चुनावों में इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है क्योंकि तब उसकी साख और विश्वसनीयता संदेह के घेरे में होगी।

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