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कब बदलेगा पुलिस का यह विद्रूप चेहरा?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:3 Oct 2018 4:01 PM GMT
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डॉ.बचन सिंह सिकरवार

गत दिनों पदेश की राजधानी लखनऊ में अ़र्द्ध रात्रि में पूर्व महिला सहकर्मी के साथ कार से जा रहे एपल कम्पनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी की गश्त करते पुलिस के सिपाही के गोली चला कर मार डालने और फिर दूसरे पुलिस अधिकारियों-कर्मियों द्वारा घायल विवेक तिवारी को यथाशीघ्र अपनी जीप से अस्पताल न ले जाकर एम्बुलेंस का इन्तजार करना, अज्ञात के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराना, जबकि घटना की पत्यक्षदर्शी महिला सहकर्मी ने उन्हें दोनों सिपाहियों की जानकारी दे दी थी, फिर उसे लेकर इधर-उधर घूमना तथा उससे सादे कागज पर हस्ताक्षर कराने जैसी हरकतों से उनकी नीयत और इरादों पर यह शक पर होना स्वाभाविक है कि ये सभी एक निर्दोष नागरिक की हत्या के आरोपी सिपाही की जांच कराके उसे दण्डित कराने के बजाय हर हाल में बचाना चाहते थे। निश्चय ही पुलिसकर्मियों को यह कृत्य न केवल भारतीय दण्ड संहिता के तहत आपराधिक श्रेणी में आता है, बल्कि उनके दुःसाहस को भी दर्शाता है। उन्हें न तो राज्य सरकार का भय था और न केन्दीय गृहमंत्री के संसदीय क्षेत्र होने का ही। इस घटना ने एक बार फिर उत्तर पदेश पुलिस के विदूप चेहरे और उसकी बेजां कार्य पणाली को उजागर कर दिया है। यह घटना राज्य सरकार के लिए गहरे सदमे से कम नहीं है, जिसने यूपी इन्वेस्टर्स समिट में उद्योग जगत् को सूबे में कानून व्यवस्था बेहतर होने का का भरोसा दिलाया था।

इस घटना का एक दूसरा कलुष पक्ष यह उजागर हुआ है कि सदैव की तरह आरोपी सिपाही अपने बचाव में आत्मरक्षार्थ गोली चलना बता रहा है, जबकि उसकी बाइक तथा उसके शरीर पर खरोंच तक नहीं है। इससे भी शर्मनाक बात यह है कि न केवल पुलिस अधिकारी इस आरोपी सिपाही को बचाने की कोशिश कर रहे थे, बल्कि इन सिपाहियों को मदद में बड़ी संख्या में साथियों द्वारा कुछ ही समय में पांच लाख रुपए से अधिक एकत्र कर उनके खाते में जमा करा दिये। लेकिन विभिन्न पकार के दबावों के कारण उप सरकार ने आरोपी दोनों सिपाहियों को बर्खास्त कर जेल भेजने के साथ-साथ पीड़ित परिवार की आर्थिक सहायता, सरकारी नौकरी, आवास देने की घोषणा उसकी पीड़ा को कम करने का पयास अवश्य किया है। वैसे विवेक तिवारी की हत्यारोपी सिपाही समेत सभी पुलिसकर्मियों से सवाल यह है कि आत्म रक्षा में सिर / चेहरे पर गोली मारना कब से जरूरी हो गया है? शायद उप पुलिस के ऐसे ही बर्ताव को देखते हुए कई साल पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने उसके बारे में यह टिप्पणी की थी कि पुलिस अपराधियों को सबसे संग"ित गिरोह है। हकीकत में पुलिस की खाकी वर्दी को इतना ज्यादा ताकत दे दी गई है कि वह चाहे तो किसी भी निर्दोश को गम्भीरतम अपराध का दोशी "हराते हुए न सिर्फ सलाखों के पीछे डाल दे, बल्कि अपनी आ जाए तो उसके लिए किसी की जान लेना भी मुश्किल नहीं है। पुलिसकर्मियों को देश का कानून नहीं, केवल ईश्वर का भय गम्भीर अपराध, जनसाधारण का उत्पीड़न, अत्याचार, अन्याय करने से रोकता। वे भारतीय दण्ड संहिता में वर्णित सारे अपराध करते हैं, लेकिन बहुत कम ऐसे मौके आते हैं, जब वे कानून की गिरफ्त में आते हैं। इसलिए आम आदमी बहुत मुसीबत में ही चौकी- थाने जाने की हिम्मत जुटाता है, जहाँ उसे अपना अपमान कराने के साथ-साथ घूस में मुंह मांगी रकम भी देनी होती है। इस भयावह स्थिति के बावजूद आज तक किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने आम आदमी की इस तकलीफ को दूर करने को कदम उ"ाना तो दूर, इस पर गम्मीरता से विचार करने की आवश्यकता तक नहीं समझी।

आम आदमी हर दिन अपराधियों से कहीं ज्यादा पुलिस की दहशत में जैसे-तैसे अपनी जिन्दगी गुजारता है और उससे बचने को उसकी हर मांग पूरी करने को मजबूर है। जहां अपने सूबे का पश्न है तो उसे पुलिस को बिगाड़ने में जातिवादी की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों का बहुत हाथ रहा है। नतीजा यह है कि कमाई की जगह पर तैनाती और पदोन्नति के लालच में पुलिसकर्मी कानून को ताक पर रखकर अपने राजनीतिक आकाओं के लिए कुछ भी कर गुजरने को हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसे में उनसे कानून के मुताबिक काम करने की उम्मीद करना ही फिजूल है। अब हर बार की तरह विपक्षी राजनीतिक दल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार को न सिर्फ दोशी "हराने, वरन् जाति विद्वेश भड़काने में जुट गए है,ताकि हमदर्दी के बहाने उसके वोट बैंक में सेंध लगायी जा सके। तभी तो जिस बसपा की नींव ब्राह्मणवाद के विरोध पर टिकी है उसकी पमुख मायावती भाजपा को ब्राह्मण विरोधी "हराने की कोशिश कर रही है ताकि ब्राह्मणों को "ाकुरों से अलग किया जा सके। इधर भाजपा सरकार पर आरोप लगाने वाले सपा के मुखिया तथा पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को शहजहांपुर कोतवाली में पत्रकार जागेन्द सिंह को जिन्दा जलाने की याद नहीं है, जब उनकी ही सरकार थी और उनकी पार्टी के विधायक की काली कारतूतें लिखने पर उसने पुलिस के जरिए उसका जीना हराम कर दिया था, उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भाजपा को हिन्दू बताने में भी संकोच नहीं हुआ।

अब पश्न यह है कि क्या विगत में बसपा, सपा, कांग्रेस की राज्य में सरकारों के रहते थे, यहां रामराज्य था और पुलिस आम जनता की बड़ी हमदर्दी और मददगार थी? वह सभी की फरियादियों की बगैर रिश्वत लिए रिपोट दर्ज कर कार्रवाई करती थी? वह किसी का भी उत्पीड़न कर कहीं भी उगाही नहीं करती थी तथा पुलिस राज्य में किसी भी तरह के अवैध कार्य नहीं होने दे देती थी? सच यह है कि राज्य में सरकार किसी भी राजनीतिक दल की रही हो, पर पुलिस के चरित्र में कभी किसी तरह बदलाव नहीं आया। सभी सत्ताधारी दल अपने मन मुताबिक खुद के फायदे के लिए पुलिस का अच्छा-बुरा इस्तेमाल करते आए हैं और उसकी कमियों की अनदेखी। उत्तर पदेश में भाजपा के सत्ता में आने के बाद पुलिस ने कुछ अपराधियों को मार गिराया जरूर है, लेकिन इसकी आड़ में उस पर सुपारी लेकर मु"भेड़ की आड़ में उनकी जान लेने के आरोप भी लगते रहे हैं। फिर भी इन पुलिस अधिकारियों और दूसरे पुलिसकर्मियों के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। यदि आया होता तो लखनऊ में विवेक तिवारी की जान न जाती। आज भी किसी भी पुलिस थाने में बगैर दाम और दाबव के रिपोर्ट दर्ज नहीं होती। उसके द्वारा कोई भी काम बिना घूस लिए करना असम्भव है। अब भी राज्य में अवैध शराब बनना-बिकना, खनन, वेश्यावृत्ति, जुआ, सट्टा, वाहनों चालकों से उगाही समेत हर किस्म के अपराध पुलिस संरक्षण में किये जा रहे हैं। यहां तक पुलिस विभाग में तैनाती, स्थानान्तरण, चिकित्सा भत्ता आदि लेने में भी घूस दी और ली जाती है। जब कभी पुलिस कर्मी अपने कर्त्तव्य में लापरवाही/ शिथिलता या रिश्वत लेते पकड़े जाते हैं तब उन्हें लाइन हाजिर, निलम्बन, स्थानान्तरण से बढ़ा कोई दण्ड नहीं मिलता, जिसका इन पर कोई पभाव नहीं पड़ता। बस कुछ दिनों के लिए उनकी रिश्वतखोरी से होने वाली आमदनी बन्द हो जाती है।

वैसे तो पुलिस की काली कारतूत किस्से अनगिनत है लेकिन इनमें से कुछ ये हैं हाल में बाह में रिश्वत में दस हजार रुपए न देने पर बेकसूर को जेल भेज दिया,जबकि उसके निर्दोष होने के तमाम सुबूत दिये गए थे। ऐसे ही जब उन्नाव के माखी के गांव के भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने किशोरी से दुष्कर्म किया, तब पुलिस ने उस पीड़ित किशोरी की सुनने के स्थान पर उस विधायक के कहने पर उसके पिता को न केवल बेरहमी से मारा पीटा, बल्कि अवैध तमंचा बरामद दिखाकर झू"s आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। बाद में न्यायिक हिरासत में उसकी मौत हो गई। तब सीबीआई जांच के बाद तत्कालीन एसओ, दारोगा समेत कई पुलिसकर्मी गिरफ्तार कर जेल भेजे गए। दूसरी सियासी पार्टियों की तरह ही भाजपा सरकार भी अपने विधायक को गिरफ्तार होने बचाती रही। इसी साल फरवरी को पोन्नति पाने को नोएडा के सेक्टर122 में जिम टेनर जितेन्द यादव को पुलिस ने गले में गोली मार कर घायल कर दिया, जिसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं था। फिर उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बदमाश से मु"भेड़ की सूचना दे दी। बाद में एसआइ विजय दर्शन को गिरफ्तार कर चार अन्य पुलिसकर्मियों को निलम्बित किया गया। इसी साल जनवरी माह में सहारनपुर जिले के सेतिया विहार में दुर्घटना में बाइक से नाले में गिरे दो युवाओं को बचाने के लोगों द्वारा डायल 100 पुलिस को सूचना दी,लेकिन पुलिस ने घायलों को खून तथा कीचड़ में सने होने के कारण अपनी जीप से अस्पताल ले जाने से मना कर दिया, क्यों कि इससे उनकी जीप गन्दी हो जाती।तब लोग अपनी पयासों से वाहन की व्यवस्था उन्हें अस्पताल ले गए, किन्तु देरी से पहुंचने के कारण उन दोनों की मौत हो गई। इस घटना की मुख्यमंत्री तक जानकारी पहुंचने पर उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया। जनवरी माह में ही मथुरा के थाना हाइवे में गांव मोहनपुर अडूकी में पुलिस अपराधियों को पकड़ने गई थी। उस दौरान हुई गोलीबारी में एक आ" वर्ष का बालक गम्भीर रूप से घायल हो गया,किन्तु पुलिस वाले उसे उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाने के स्थान पर बीच मार्ग में छोड़ कर चले गए। इस कारण बालक की मौत हो गई। इसके पश्चात् गोली चलाने वाले एसआइ वीरेन्द यादव तथा अस्पताल न ले जाने वाले एस.आइ.सौरभ सिपाही अजय और सुभाष को निलम्बित कर दिया गया था। 22 सितम्बर, 2013 को मैनपुरी के थाना एलाऊ क्षेत्र की जागीर चौकी के सिपाही सुधीर यादव और ताहिर सिंह ने रात के 9 बजे चेकिंग कर रहे थे। उसी समय उन्होंने बाइक से गुजरते अनुज को रोका, लेकिन डर के कारण उसने बाइक नहीं रोकी। तब इन दोनों ने गोली मार कर उसकी हत्या कर दी, जो सपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता मुलायम सिंह यादव का संसदीय क्षेत्र है और तब उनकी ही सरकार थी।

वस्तुतः लखनऊ की उक्त नृशंस घटना के असल वजह पुलिसकर्मियों की उगाही है, जो वह लखनऊ समेत राज्य के विभिन्न नगरों में नागरिकों की सुरक्षा के बजाय उन्हें तरह-तरह से भयभीत कर/भयादोहन कर घूसखोरी करते रहते हैं। सम्भवतः पुलिस की इसी पवृत्ति को दृश्टिगत रखते हुए विवेक तिवारी ने अपनी कार नहीं रोकी होगी, पर उसका परिणाम ऐसा होगा? उसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। अब राजनीतिक दल इस दुखद घटना के लिए भाजपा सरकार को क"घरे में खड़े कर रहे हैं,लेकिन स्वयं की सरकार रहते हुए भी उन्होंने भी पुलिस के इस अनुचित रवैये को बदलने के लिए कुछ नहे किया। पुलिस सुधार आयोग की संस्तुतियां सालों से फाइलों में दबी पड़ी हैं, लेकिन उन्हें लागू करने में किसी भी सरकार ने दिलचस्पी नहीं दिखायी है। इन्हें लागू होने पर पुलिस विभाग की सारी कमियां भले ही दूर न हों, पर अधिकतर का निवारण किया जा सकता है। वैसे आपराधिक पवृत्ति के पुलिसकर्मियों को जब तक नमूने की सजा नहीं मिलेगी, तब तक आत्मरक्षा की आड़ में वे निर्दोशों की जान लेते रहेंगे।

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