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जस्टिस गोगोई के सामने चुनौतियों का पहाड़

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 Oct 2018 6:02 PM GMT
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शकील सिद्दीकी

जस्टिस रंजन गोगोई देश के 46वें चीफ जस्टिस का पद संभाल चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गगोई के 13 महीनों के कार्यकाल में जनता देश के अगले फ्रधानमंत्री का फैसला करेगी। कई महत्वपूर्ण फैसले दे चुके जस्टिस गोगोई को जनवरी 2018 की ऐतिहासिक फ्रेस कांफ्रेंस के लिए ज्यादा जाना जाता है। रामनाथ गोयनका अवॉर्ड समारोह में व्याख्यान और पुराने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की विदाई के समय दिए गए भाषण के माध्यम से जस्टिस गोगोई ने नई कार्य संस्कृति और न्यायिक क्रांति के संकेत दिए हैं। संविधान के तहत न्यायपालिका का कार्यक्षेत्र निर्धारित है तो फिर जस्टिस गोगोई इन बदलावों को कैसे लाएंगे? क्या होंगी उनके सामने बड़ी चुनौतियां?

निवर्तमान फ्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा कार्यकाल के अंतिम 9 महीनों में जितने विवादास्पद हुए उतना शायद ही उनका कोई पूर्ववर्ती हुआ होगा। लेकिन उन्हें विवादास्पद बनाने वाले सर्वोच्च न्यायालय के चार न्यायाधीशों में से एक रंजन गोगोई का उनका उत्तराधिकारी बनने के बाद क्या सर्वोच्च न्यायालय और उसके अधीनस्थ कार्यरत देश की न्याय व्यवस्था निर्विवाद और निष्पक्ष रह सकेगी, यह फ्रश्न हर उस शख्स के मस्तिष्क में उ" रहा है जो न्यायपालिका के सर्वोच्च शिखर पर मचे विवाद और टांग खिचौवल से दुखी और चिंतित था।

सुफ्रीम कोर्ट के पांच जजों ने 2015 में दिए गए ऐतिहासिक फैसले से मोदी सरकार की तरफ से पारित किए गए एनजेएसी कानून को रद्द करते हुए कॉलेजियम सिस्टम को बहाल कर दिया था। सुफ्रीम कोर्ट के पांच सबसे सीनियर जज मिलकर देशभर के हाई कोर्ट और सुफ्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की अनुशंसा करते हैं, जिसे कॉलेजियम फ्रणाली कहा जाता है। कॉलेजियम की सामंती व्यवस्था में भाई-भतीजावाद से अंकल जजों को बढ़ावा मिलना, संवैधानिक नैतिकता के खिलाफ है। जस्टिस गोगोई ने सुफ्रीम कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू के खिलाफ मानहानि का नोटिस जारी करके न्यायिक अनुशासन की महत्ता को स्थापित किया था। कॉलेजियम में सुधार और पारदर्शिता के लिए मेमोरेंडम ऑफ फ्रोसिजर (एमओपी) में बदलाव पर पिछले तीन वर्षों से सरकार और सुफ्रीम कोर्ट में रस्साकशी चल रही है। एमओपी में गतिरोध की वजह से देशभर के उच्च न्यायालयों में जजों के 40 फीसदी और सुफ्रीम कोर्ट में 20 फीसदी पदों पर नियुक्ति नहीं हो पा रही है। नए चीफ जस्टिस गोगोई इस बारे में सरकार के साथ सहमति का पुल कैसे बनाएंगे?

देशभर की अदालतों में 3 करोड़ पेंडिंग मामलों की तुलना में सुफ्रीम कोर्ट में लंबित 55 हजार मामले नगण्य ही माने जाएंगे। नालसा के कार्यवाहक चेयरमैन के नाते जस्टिस गोगोई के फ्रयासों की वजह से 43 लाख मामलों का निष्पादन हुआ है। लेकिन निचली अदालतों पर राज्यों की हाई कोर्ट का क्षेत्राधिकार होता है तो फिर पेंडिंग मामलों को जल्द निपटाने के लिए सुफ्रीम कोर्ट द्वारा फ्रभावी फ्रक्रिया कैसे निर्धारित होगी? जस्टिस गोगोई ने कहा है कि फौजदारी मामलों में तयशुदा सजा से ज्यादा अवधि के लिए निर्दोष लोगों को जेल में रहना पड़ता है। सुफ्रीम कोर्ट के अनेक आदेशों के बावजूद, देश की जेलों में लाखों विचाराधीन कैदियों की रिहाई का मामला जस्टिस गोगोई के लिए एक बड़ी चुनौती है। सुफ्रीम कोर्ट द्वारा अनेक फैसलों के माध्यम से समलैंगिकता और व्याभिचार जैसे मामलों में पुराने कानूनों को रद्द किया जा रहा है। दूसरी ओर 21वीं शताब्दी के डिजिटल इंडिया में अभी भी अंग्रेजों के दौर की थकाऊ अदालती फ्रक्रिया चल रही है। सुफ्रीम कोर्ट के नए चीफ जस्टिस अदालती फ्रक्रिया और कानूनों को भी आधुनिक और सरल कैसे बनाएंगे?

जस्टिस गोगोई के पिता कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री थे, इसके बावजूद वे राजनेताओं के विरुद्ध कानून का सख्ती से पालन कराते हैं। जस्टिस गोगोई की बेंच ने नेताओं पर चल रहे आपराधिक मुकदमों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाने का निर्देश दिया था। वे उस बेंच का भी हिस्सा थे जिसने 2013 में फैसला दिया था कि आपराधिक पृष्"भूमि का पूरा ब्यौरा दिए बगैर नेता चुनाव नहीं लड़ सकते। सरकारी खर्च पर विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर छापने से रोकने के लिए आदेश देने के अलावा उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्रियों को दिए गए सरकारी बंगलों के आवंटन को रद्द कर दिया था। उन्होंने लोकपाल की नियुक्ति में सरकार की कोताही पर गंभीर ऐतराज जताया था। आने वाले चुनावों के दौर में नेताओं की अनैतिकता और गैर-कानूनी कामों पर अंकुश लगाना, नए चीफ जस्टिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।

जस्टिस गोगोई के फैसले के अनुसार असम में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनआरसी) का नियम लागू हुआ। सुफ्रीम कोर्ट की निगरानी में लंबी फ्रक्रिया के बाद बनी लिस्ट के अनुसार असम में 40 लाख लोग अपनी नागरिकता के दावों को साबित नहीं कर पाए। जस्टिस गोगोई की बेंच ने दावों और आपत्तियों की सुनवाई के लिए और अधिक समय देते हुए दस्तावेजों के बारे में नए दिशानिर्देश जारी किए है। सुफ्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पी" ने आधार को यूनीक मानते हुए इसे घुसपै"ियों को देने से इंकार किया है। फैसले के बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने रोहिंग्या और अन्य शरणार्थियों के बायोमैट्रिक्स इकट्ठा करने के लिए राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं। देश में 122 करोड़ लोगों को आधार नंबर मिल चुका है, जिनमें लाखों घुसपै"िये भी शामिल हो सकते हैं. सुफ्रीम कोर्ट के फैसले के बाद घुसपै"ियों से आधार नम्बर वापस लेने की फ्रक्रिया यदि शुरू हुई तो देशभर में पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू हो सकती है। आधार के फैसले पर पुनर्विचार या एनआरसी संबंधित विवाद के मामले नए चीफ जस्टिस गोगोई के पास ही सुनवाई के लिए जा सकते हैं। आम चुनावों के पहले राजनेताओं द्वारा एनआरसी के दंगल में सुफ्रीम कोर्ट की भूमिका को तय करना, जस्टिस गोगोई के लिए सबसे बड़ी चुनौती हो सकती है।

रोस्टर फ्रणाली को लेकर श्री गोगोई सहित तीन अन्य न्यायाधीशों ने बगावती अंदाज में पत्रकार वार्ता कर श्री मिश्रा पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए यह अहसास कराया मानों समूची न्यायपालिका सरकार की गुलाम होकर रह गई हो। उस घटना को असहिष्णु लॉबी ने भी जमकर उछाला। यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि उस पत्रकार वार्ता ने बतौर न्यायाधीश श्री मिश्रा के समूचे कैरियर पर धब्बा लगा दिया। लेकिन उस घटना से एक बात ये भी स्पष्ट हो गई कि न्यायपालिका पर भी दलगत राजनीति की काली छाया पड़ चुकी है। पत्रकार वार्ता के बाद उसमें शामिल एक न्यायाधीश श्री चेलमेश्वर के घर पर सीपीआई के नेता डी. राजा के जाने पर भी ढेरों सवाल उ"s। भले ही श्री मिश्रा की विदाई में श्री गोगोई ने अच्छी-अच्छी बातें कहीं किन्तु ये सही है कि बीते नौ माह सर्वोच्च न्यायालय की फ्रतिष्"ा के लिए बेहद शर्मनाक रहे।

गत दिवस कार्यभार ग्रहण करते ही श्री गोगोई ने पहला कार्य रोस्टर आवंटन का किया जिसमें किसी अन्य वरिष्" न्यायाधीश से सलाह उन्होंने ली हो ऐसा नहीं लगा। उल्लेखनीय है श्री गोगोई के साथ जिन चार न्यायाधीशों ने श्री मिश्रा के विरुद्ध मोर्चा खोला उनका फ्रमुख मुद्दा यही रोस्टर आवंटन था। श्री मिश्रा द्वारा महत्वपूर्ण मामले अपने पास रखकर बाकी अन्य वरिष्" न्यायाधीशों को दिया जाना ही विवाद की असली जड़ बताई गई थी। देखने वाली बात ये होगी कि पत्रकार वार्ता कर सर्वोच्च न्यायालय की कार्यफ्रणाली पर सवालिया निशान लगाने की जिस मुहिम के श्री गोगोई हिस्सा बने यदि वह उनके कार्यकाल में भी जारी रही तब वे क्या कदम उठाएंगे?

जस्टिस गोगोई का कार्यकाल यद्यपि बहुत लंबा नहीं रहेगा किन्तु इस दौरान देश महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम से गुजरेगा। इसके अलावा अनेक ऐसे फ्रकरणों पर भी सर्वोच्च न्यायालय को फैसले करने हैं जिनसे देश की राजनीतिक दिशा फ्रभावित होगी। यह भी संयोग है कि निवर्तमान फ्रधान न्यायाधीश श्री मिश्रा कार्यकाल के अंतिम दौर में विवादस्पद हुए वहीं उनके उत्तराधिकारी श्री गोगोई विवाद खड़े करने के उपरांत उनके उत्तराधिकारी बने।

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