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सत्तातुर असंतुष्ट देश की अस्मिता के लिए घातक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 Oct 2018 6:02 PM GMT
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डॉ. बलराम मिश्र

जब महर्षि भर्तृहरि ने लिखा थाöकामातुराणाम न भयं न लज्जा, अर्थात कामातुर व्यक्ति को न भय होता है और न लज्जा, तो शायद उनके मन में यह बात आई न होगी कि भारत में एक समय ऐसा भी आएगा जब कुछ हारे-थके निराश लोग सत्ता के लिए इतने आतुर हो जाएंगे कि उन्हें न कोई भय होगा और न कोई लज्जा।

यदि उनके मन में सत्तातुरता की बात आई होती तो जहां उन्हों ने यह लिखा कि अर्थातुराणाम न सुखंन निद्रा, विद्यातुराणाम न सुखं न निद्रा, क्षुधातुराणाम न रुचि न बेला, वहीं एक पंक्ति और लिख देते, सत्तातुराणाम न भयं न लज्जा। महर्षि के मन में सत्तातुरता की बात शायद इसलिए नहीं आई होगी क्योंकि धर्म प्रेमी आम भारतीय की जनजीवन पद्धति में तो सत्ता सदैव, हवा पानी की भांति सहज कल्याणकारी मानी गई, सदैव अपेक्षा यही रही कि सभी लोग धर्म के अनुसार अर्थात कर्तव्य परायणता के सिद्धांत के अनुसार धर्म की सत्ता की अधीनता स्वीकार करेंगे और प्राकृतिक न्याय ही सर्वमान्य होगा।

अनेक दशाब्दियों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी के बदनुमा कारनामों के कारण जनता ने 2014 में बुरी तरह परास्त कर दिया। पराजय से तिलमिलाए कांग्रेस अध्यक्ष ने मानो जनता से बदला लेने का मन बना लिया। आर्थिक हेराफेरी के चक्कर में उनके जेल जाने की स्थिति बन गई। स्वयं जमानत पर होते हुए भी वे सम्हाल नहीं सके। उन का मानसिक संतुलन इतना अधिक बिगड़ गया कि देश में अराजकता और अव्यवस्था फैलाने के चक्र में वे यह बात भूल गए कि अब भारत में वंश का राज नहीं जिस के अंतर्गत जनता के द्वारा चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकने की धमकी दी जा रही है। जनता के द्वारा तिरस्कृत होने के कारण कांग्रेस जनता को ऐसी घोर सजा देने का प्रयास कर रही है कि जनता इस बात के लिए पछताए कि उसने उनको सत्ताहीन एवं श्रीहीन क्यों बना दिया। इस हेतु उस ने बड़ी निर्लज्जता और ढिठाई के साथ, जनता के श्रद्धा केंद्रों को ध्वस्त करने के सतत प्रयास करने प्रारंभ कर दिए। श्री राम की ऐतिहासिकता पर प्रश्नचिन्ह लगाने के बाद हिन्दुओं को आतंकवादी कहना शुरू कर दिया। आम जनता को न्याय की अंतिम आशा केवल देश के सर्वोच्च न्यायालय से ही होती है। इसी लिए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर मिथ्या महाभियोग लगा दिया, केवल संदेहों और विद्वेष मूलक कल्पनाओं के आधार पर। भला हो भारत माता के सपूत, राज्यसभा के अध्यक्ष महामहिम उप राष्ट्रपति जी का जिन्होंने अनेक विधिवेत्ताओं तथा संविधान के विशेषग्य महानुभावों से राय-मशविरा लेकर, पूर्ण वैधानिकता के दायरे में ही, उस मिथ्या महाभियोग को नामंजूर कर दिया, नहीं तो आम जनता के मन मस्तिष्क में यह बात बैठ जाती कि देश की न्याय व्यवस्था दूषित एवं रीढ़विहीन है और उसे वंशवादी पार्टी के अधीन हो कर ही काम करना चाहिए। स्वतंत्र न्याय पालिका का सिद्धांत ही खतरे में पड़ जाता।

केवल न्याय पालिका पर ही आक्रमण नहीं किया गया, जनता को सबक सिखाने के लिए देश के प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष, सशत्र बलों, चुनाव आयोग, ई वी एम, कैग, मीडिया, तथा प्राय उन सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की निर्लज्जतापूर्वक, खुलेआम निंदा करने के दौर चलाए गए। सत्य और असत्य के बीच की रेखा को मिटा दिया गया। उन्हें अपमानित करने का एक भी अवसर नहीं छोड़ा गया। भारत की जनता को सजा देने के लिए और लोकतांत्रिक तरीकों से चुनी गई सरकार को पदच्युत करने के लिए उन लोगों ने देश के शत्रु देशों से भी साठगांठ किया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पता नहीं कि आम आदमी के ह्रदय सम्राट बन चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिन रात गालियां देकर उन्हों ने अपने लिए जनता से कितनी नफरत हासिल कर ली। आयकर संबंधी अरबों रुपए की चोरी में लिप्त पाए गए राहुल गांधी जब बिना किसी प्रमाण के प्रधानमंत्री को चोर कहते हैं तो उनकी बाल बुद्धि पर तरस आना स्वाभाविक हो जाता है। भारतीय समाज को तोड़ने के लिए कटिबद्ध भारत तेरे टुकड़े होंगे नामक गिरोह से दोस्ती करके वे समाज को जाति, मजहब, क्षेत्रीयता, और वर्ग भेद के आधार पर खंडित करने में आज खुद के बचे-खुचे वजूद को खपा रहे हैं। शत्रु देश का उन्हें यदि समर्थन मिल रहा है तो कोई आश्चर्य नहीं। यह असंभव नहीं कि वे परास्त सत्तातुर लोग देश में लूट, खसूट, चोरी डकैती, ह्त्या, बलात्कार आदि के माध्यम से जनता को सताते रहें और जनता को अपना असली चेहरा दिखाते रहें। आश्चर्य तो इस बात पर है कि कभी भारतीय राजनीति में मान्यता प्राप्त कर चुके परास्त और पंचर नेता कांग्रेस नामक वंशवादी पार्टी का दामन पकड़ कर मोदी की टांग खींचना चाहते हैं। उन्हें न भय है न लज्जा। वे भूल चुके लगते हैं सत्य और असत्य के बीच का अंतर। जनता हंस रही है भारत तेरे टुकड़े ब्रिगेड और पंचर ब्रिगेड के गठबंधन पर। यह एक अत्यंत शुभ संकेत है कि उनके दुष्कर्मों का प्रभाव न तो जनता के मनोबल पर पड़ रहा है और न न्यायपालिका, सशत्रबलों या अन्य लोकतांत्रिक संस्थाओं के मनोबल पर। वे स्थिति से निपटने के लिए कटिबद्ध लगते है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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