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बोलकर कैसे बिसर जाते हैं लोग?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:6 Oct 2018 3:59 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

भारत की राजनीति में सबसे बड़ी बिडंबना यही है कि विपक्ष के लोग जब सत्ता में आते हैं तो विपक्ष में रहने के दौरान अपने दिए गए भाषणों को सर्वथा भूल जाते हैं। इसके "ाrक विपरीत सत्ता में रहने वाले लोग जब विपक्ष में जाते हैं तो सत्ता में रहने के दौरान हुई अपनी गलतियों को कभी स्वीकार नहीं करते।

सूचना पौद्यौगिकी के विकसित हो जाने के बाद अब अखबारों की कतरने खोजने की जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि अब नेताओं के वर्षों पुराने भाषण यूट्यूब से निकाल कर उन्हें नेताओं को सुनाकर शर्मसार किया जा सकता है। अपने ही बयानों को पता नहीं नेता लोग कैसे नकार देते हैं लेकिन नकारने के बजाय यदि उनमें थोड़ा भी विवेक आ जाए तो वे अपनी गलतियों को सुधार सकते हैं। उदाहरण स्वरूप आज भारत में डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत एवं पेट्रोल तथा डीजल की बढ़ती हुई कीमतें चिन्ता का विषय बनी हुई हैं। मुंबई जैसे बड़े शहर में पेट्रोल की कीमत 90 रुपए पति लीटर के पार हो चुकी है तथा डीजल भी 70 और 80 के बीच झूल रहा है।

देश की जनता पेट्रोलियम की कीमतों को लेकर त्राहिमाम कर रही है लेकिन महीनों तक सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। राजस्थान, मध्य पदेश, छत्तीसगढ़ एवं तेलंगाना के विधानसभा चुनावों की आहट जब सरकार के कानों तक आ पहुंची तो उसने दिनांक चार अक्तूबर 2018 को पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में 2.5 रुपए पति लीटर की कमी करने की घोषणा कर दी तथा राज्यों से भी इतनी ही कीमत घटाने का आग्रह किया ताकि जनता को तेल की महंगाई से कुछ राहत मिल सके। वर्ष 2014 में जब कच्चे तेल की कीमत कम थी तो केंद्र सरकार ने लगातार 19 बार एक्साइज ड्यूटी बढ़ाने का काम किया और जनता उस भार को सहते चली गई क्योंकि कीमतें सीमा के अंदर थी। अब जब मार्केट में कच्चे तेल की कीमत आसमान छू रही है तो सरकार अतिरिक्त लगाई गई एक्साइज ड्यूटी को कम करने में हिचकिचा रही है। पिछले साढ़े चार वर्षों में केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों ने मिलकर लगभग बीस लाख करोड़ रुपयों की अतिरिक्त कमाई की है जिसमें साढ़े ग्यारह लाख करोड़ रुपए सीधे केंद्र सरकार के हिस्से आये और साढ़े आ" करोड़ राज्य सरकारों के।

यक्ष प्रश्न यह उ"ता है कि सत्ता में आने के बाद वही लोग जो विपक्ष में रहते समय लंबे चौड़े बयान दिया करते थे आखिर अपने बयानों को भूल क्यों जाते हैं? वर्ष 2014 के पहले यूपीए-2 के कार्यकाल में जब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ी थीं तो विपक्ष में बै"ाr भाजपा ने देश के कोने-कोने में पदर्शन एवं धरनों का आयोजन करके कोहराम मचा दिया था तथा पार्लियामेंट को भी ठप कर दिया गया था। मुझे अभी तक याद है कि आज के वित्तमंत्री श्री अरुण जेटली ने दिल्ली की एक जनसभा में महंगाई पर भाषण देते हुए कहा था कि यदि एक बैरल कच्चे तेल की कीमत अस्सी डॉलर हो तो भारत में पेट्रोल एवं डीजल की पति लीटर कीमत चालीस रुपए होनी चाहिए। जेटली जी वित्तीय मामलों के बड़े माहिर माने जाते हैं लेकिन जब कई टीवी चैनलों ने दिल्ली में उनके भाषण को यूट्यूब से निकाल कर सुनाया तो जेटली जी मौन धारण कर गए। वास्तव में आज भी कच्चे तेल की कीमत पति बैरल लगभग अस्सी डॉलर ही है तो फिर जेटली जी के राज में तेल चालीस रुपए पति लीटर के बदले अस्सी रुपए पति लीटर क्यों बिक रहा है? कोई भी व्यक्ति यूट्यूब से उनके भाषण को निकाल कर उन तथ्यों की पुष्टि कर सकता है लेकिन पता नहीं भारत के नेता इतनी मोटी चमड़ी वाले क्यों हो जाते हैं कि अपनी कही हुई बातों से ही सर्वथा मुकर जाते हैं? यही कारण है कि इस लेख का शीर्षक ही मैंने रखा है `बोलकर कैसे बिसर जाते हैं लोग?'

केवल जेटली ही नहीं पधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं भी अपने भाषणों को भूल जाने में काफी महारथ रखते हैं। उनके दिए गए भाषणों को यदि उनके सामने पुनः सुना दिया जाए तो उन्हें भी काफी शर्मिंदगी होगी। मुझे पूरी तरह याद है कि सिंगापुर के पवास के क्रम में आदरणीय मोदी जी ने वहां के भारतीयों को संबोधित करते हुए ऐसी भावात्मक बातें कही थीं कि श्रोताओं का सारा हांल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उ"ा था। मोदी जी ने सिंगापुर के भारतीयों के दिल को छूते हुए कहा था कि मेरे कार्यकाल के पहले विश्व-मार्केट में रुपए की कोई स्थायी कीमत नहीं हुआ करती थी क्योंकि विश्व में कोई समान खरीदने के लिए या यात्रा करने के लिए लोगों को यूएस डॉलर या पौंड का सहारा लेना पड़ता था। उन्होंने कहा था कि विश्व स्तर पर चूंकि रुपए की कोई पहचान ही नहीं हैं इसलिए वे रुपए के महत्व को बढ़ाने के लिए एक बांड जारी करने वाले हैं ताकि रुपया भी विश्व-मार्केट में डॉलर एवं पौंड का मुकाबला कर सके।

उन्होंने यह भी कहा कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत घटती है तो समझना चाहिए कि भारत की इज्जत घट रही है क्योंकि रुपया भारत की अधिकृत मुद्रा का पतीक है। यह ज्ञातब्य है कि उनके भाषण देने के दिनों में एक डॉलर की कीमत सा" रुपए से कम थी और पधानमंत्री जी ने कहा था कि यदि रुपए की कीमत घटती है तो समझ लेना चाहिए कि देश की इज्जत घट रही है। आज के दिन मोदी जी अपने उस भाषण को सुने तो उन्हें काफी झेंप आएगी क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत क्या है? सर्वविदित है कि आज के दिन एक डॉलर की कीमत लगभग 74 रुपए तक पहुंच चुकी है। रुपए की गिरती साख के लिए अब अलग-अलग कारण बताए जा रहे हैं लेकिन सत्ताधारी दल का कोई नेता रुपए की गिरती कीमत को भारत की कमजोर आर्थिक स्थिति से जोड़ने के लिए तैयार नहीं है।

जमाना बदल चुका है बड़े नेताओं के भाषण की एक-एक पंक्ति यूट्यूब में अंकित है और जनता को चाहिए कि वे नेताओं के उन भाषणों की क्लिप उनको सुनाएं और पूछें कि विचारों के इस परिवर्तन के पीछे आखिर क्या कारण हैं? समय आने पर नेतागण जनता की तालियां बंटोरते हैं और जब स्वयं उस भंवर में फंसते हैं तो इधर-उधर की बातें कहकर ही निकल जाना ही श्रेयस्कर समझते हैं।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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