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रोजगार सृजन पर भ्रामक बातें

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:8 Oct 2018 4:11 PM GMT
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डॉ. भरत झुनझुनवाला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव में वादा किया था कि हर वर्ष एक करोड़ रोजगार सृजित किए जाएंगे। लेकिन जमीनी हकीकत बयां करती है कि रोजगारों का संकुचन हुआ है। अधिकतर युवाओं को मूंगफली बेचने अथवा रिक्शा चलाने जैसे कार्यों से अपनी जीविका चलानी पड़ रही है।

प्रधानमंत्री ने कुछ बिन्दु बताए हैं जिनके अनुसार रोजगार के सृजन के संकेत मिलते हैं। आइए देखें कि प्रधानमंत्री ने क्या कहा? प्रधानमंत्री ने कहा कि पंजीकृत उद्योगों की संख्या बीते समय में 66 लाख थी। 48 लाख नए उद्योग पंजीकृत हुए हैं। आशय है कि यह पंजीकरण बताता है कि नए उद्योग बढ़ रहे हैं तदानुसार उनमें रोजगार भी बढ़ा होगा। लेकिन उद्योगों का पंजीकरण पुराने अपंजीकृत उद्योगों के पंजीकृत हो जाने के कारण भी हो सकता है। बीते समय में नोटबंदी और जीएसटी के कारण तमाम छोटे अपंजीकृत उद्योगों के लिए नकद लेन-देन कठिन हो गया था और उन्हें अपना पंजीकरण कराने को विवश होना पड़ा था। अत पंजीकृत उद्योगों में संख्या में वृद्धि यह नहीं बताती है कि वास्तव में रोजगार बढ़े हैं। यह भी संभव है कि 70 लाख अपंजीकृत रोजगार बंद हो गए हों और इनमें से 48 लाख ने अपना पंजीकरण कराया हो अत कुल उद्योगों की संख्या में ह्रास और पंजीकृत उद्योगों की संख्या में वृद्धि साथ-साथ च ल सकती है। प्रधानमंत्री ने कहा कि मुद्रा योजना के अंतर्गत 12 करोड़ ऋण वितरित किए गए हैं। आशय है कि इन ऋणों का उपयोग लेनदारों ने व्यापार करने में लगाया होगा और इससे रोजगार बना होगा। उत्तराखंड में मेरे गांव के एक प्रधान ने बताया कि मुद्रा योजना के अंतर्गत वास्तव में बड़ी संख्या में ऋणों का वितरण हुआ है। लेकिन उसका उपयोग मुख्यत खपत बढ़ाने के लिए हुआ है। बैंक कर्मियों पर दबाव था कि वे इन ऋणों का वितरण करें इसलिए उन्होंने जबरन लोगों को ऋण लेने को बाध्य किया है। इस ऋण का उपयोग रोजगार सृजन के लिए हुआ हो इसका कोई भी संकेत नहीं है। वास्तव में मुद्रा योजना के अंतर्गत दिए गए ऋण बैंक की व्यवस्था के लिए संकट बनते जा रहे हैं चूंकि लेनदार इसका रीपेमेंट नहीं कर पा रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने तीसरा बिन्दु कहा है कि एक करोड़ नए मकान बनाए गए हैं। मैं इस बात से सहमत हूं कि इन मकानों के बनने से रोजगार अवश्य सृजित हुए होंगे। लेकिन प्रश्न है कि पहले भी तो इस प्रकार के मकान बन रहे थे। अतएव यह कहना कि मकान बनने से रोजगार सृजन की पूर्व की गति में वृद्धि हुई है यह नहीं स्थापित होता है। संभव है कि जिस प्रकार मकान बनने में पहले रोजगार सृजित हो रहे थे उस प्रकार ही वर्तमान में हो रहे हों। प्रधानमंत्री ने चौथे बिन्दु के अंतर्गत बताया है कि अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्टों के अनुसार देश में गरीबी में गिरावट आ रही है। आशय है कि गरीबी में गिरावट आने का अर्थ हुआ कि रोजगार बन रहे होंगे तभी गरीबी में गिरावट होगी। लेकिन ऐसा होना जरूरी नहीं है। यह स्वीकार करना होगा कि सरकार ने गरीबी उन्मूलन योजनाओं को कारगर ढंग से लागू किया है जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली को आधार अथवा बायोमेट्रिक व्यवस्था से जोड़ने से लाभार्थियों को सीधे लाभ मिला है अथवा उज्जवला योजना के अंतर्गत उन्हें गैस सिलेंडर मिले हैं। लेकिन सस्ते अनाज अथवा मुफ्त गैस सिलेंडर से रोजगार उत्पन्न नहीं होते हैं। ऐसा भी हो सकता है कि रोजगार घटे हों जैसे किसी को जेल में ले जाकर भोजन उपलब्ध कराया जाए। कल्याणकारी सहायता को रोजगार से जोड़ना सर्वथा अनुचित है।

प्रधानमंत्री के अनुसार ग्रामीण स्तर पर लोगों ने नए व्यापार शुरू किए हैं परन्तु इनका कोई आंकड़ा उनकी तरफ से नहीं दिया गया है। अत इस पर टिप्पणी करना संभव नहीं है।

प्रधानमंत्री ने छठा बिन्दु बताया गया है कि बीते समय में 1500 नए स्टार्टअप स्थापित हुए हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री को बधाई। लेकिन प्रश्न यह है कि उसी अवधि में कितने उद्योग बंद हुए हैं? सर्वविदित है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण तथा इनकम टैक्स के खौफ के कारण देश के उद्यमियों की मानसिक ऊर्जा का भयंकर ह्रास हुआ है। उद्यमियों में व्यापार करने का उत्साह समाप्त हो गया है। उन्हें सरकार चोर की दृष्टि से देख रही है। जो नौकरशाही वास्तव में भ्रष्ट है उसके द्वारा ईमानदार व्यापारियों को भ्रष्ट बताया जा रहा है। इस मानसिक उत्पीड़न के वातावरण में तमाम रोजगार बंद हुए हैं। यह सही हो सकता है कि 15 हजार नए स्टार्टअप शुरू हुए होंगे। लेकिन इसकी सार्थकता तभी समझ में आएगी जब यह बताया जाए कि पूर्व में असंगठित क्षेत्र में चल रहे कितने रोजगार बंद हुए हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि 48 लाख नए रोजगारों का पंजीकरण हुआ है। लेकिन इसके साथ तमाम अपंजीकृत उद्योग बंद हुए हैं। अत 15 हजार स्टार्टअप से यह कतई स्थापित नहीं होता है कि कुल उद्योगों या रोजगार में वृद्धि हुई है। वास्तव में 15 हजार स्टार्टअप और कुल उद्योगों की संख्या में गिरावट साथ-साथ चल सकती है।

प्रधानमंत्री ने सातवां बिन्दु बताया है कि प्रॉविडेंट फंड संगठन के आंकड़ों के अनुसार 70 लाख रोजगार बीते वर्ष में उत्पन्न हुए हैं। यहां भी प्रश्न है कि ये वास्तव में नए रोजगार हैं अथवा पुराने रोजगारों का पंजीकरण है। सर्वविदित है कि जीएसटी के कारण तमाम असंगठित उद्योगों का नकद में लेन-देन कठिन हो गया है। उन्होंने अपने को पंजीकृत कराया है। अत प्रॉविडेंट फंड में जिन 70 लाख लोगों का नया पंजीकरण हुआ है वह पूर्व में ही चल रहे रोजगारों का पंजीकरण दिखता है। इन 70 लाख नए रोजगारों का पंजीकरण और असंगठित क्षेत्र में दो करोड़ रोजगारों का हनन साथ-साथ चल सकता है।

यहां यह भी बताना जरूरी है कि सरकार द्वारा पूर्व में हर तीसरे महीने रोजगार संबंधी एक रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती थी। पिछले दो तिमाहियों से इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है। प्रश्न है कि यदि रोजगार वास्तव में बढ़ ही रहे हैं तो सरकार को सीधे-सीधे रोजगार का आंकड़ा पेश करने में परेशानी क्या है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन रिपोर्टों से रोजगार के हनन के संकेत मिल रहे हैं इसलिए प्रधानमंत्री सीधे-सीधे रोजगार का आंकड़ा पेश नहीं कर रहे हैं। बल्कि घुमा-फिरा कर ऐसी बातें कर रहे हैं जोकि जनता में भ्रम पैदा करती है कि रोजगार उत्पन्न हो रहे हैं जबकि वास्तव में रोजगार का संकुचन हो रहा है। सच यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को बड़ी कंपनियों को सौंप दिया है। ये बड़ी कंपनियां भारत में अथवा चीन में आटोमेटिक मशीनों से उत्पादन कर रही हैं और देश के छोटे उद्यम एवं कर्मी तकलीफ में हैं। इस सत्य को नकारने से काम नहीं चलेगा।

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