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देश की पुलिस को आंतरिक सुधारों की ही आवश्यकता है

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:9 Oct 2018 3:41 PM GMT
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कर्नल शिवदान सिंह

(सेवानिवृत्त)

दिल्ली में ऑल इंडिया पुलिस फाउंडेशन ने 22 सितंबर को पुलिस सुधार दिवस के रूप में मनाते हुए एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन में पुलिस के भूतपूर्व एवं सेवारत अधिकारियों एवं समाज के बुद्धिजीवी ने भाग लिया। इस गोष्ठी में पुलिस सुधार के लिए पुलिस व्यवस्था के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया तथा सर्वसम्मति से यह निष्कर्ष निकला की पुलिस व्यवस्था की सबसे छोटी इकाई एक सिपाही की सोच जब तक नहीं सुधरेगी तब तक पुलिस सुधारों एवं कर्तव्य परायण पुलिस व्यवस्था की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि एक सिपाही ही जमीनी स्तर पर व्यवस्था को लागू करता है। इसलिए जब तक उसका व्यवहार नहीं सुधरेगा तब तक अच्छे पुलिसिंग की आशा नहीं की जा सकती। निचले स्तर पर विकृत सोच का ही परिणाम अकसर लखनऊ जैसी घटनाओं में देखने को मिलता है। इस घटना में एक सिपाही ने एप्पल कंपनी के एरिया मैनेजर विवेक तिवारी को महिला सहकर्मी के साथ देखकर उन्हें डरा धमकाकर वसूली के लिए रुकने का इशारा किया और न रुकने पर बर्बरता के साथ सामने से गोली मार दी। देखने में आता है कि राजमार्गों पर पुलिस गस्त में पुलिसकर्मी रिश्वत लेने में लिप्त पाए जाते हैं। इसके अलावा जनता की सुरक्षा के स्थान पर संगठित अपराधों के संचालन में सहयोग देती नजर आती है। अभी कुछ समय पहले आगरा पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर का ऑडियो वायरल हुआ जिसमें एनकाउंटर में हत्या करने के लिए यह सब इंस्पेक्टर 800000 रुपए की मांग कर रहा है। नोएडा पुलिस की चौकी से मात्र 500 मीटर की दूरी पर कच्ची शराब बनाने का कारखाना काम कर रहा था जिसमें 15000 लीटर कच्ची शराब तैयार पाई गई थी। हरियाणा की हृदय विदारक घटना जिसमें राष्ट्रपति से सम्मानित एक 19 वर्षीय युवती का सामूहिक बलात्कार 12-12 दरिंदों ने किया उसके बाद हरियाणा की गैर संवेदनशील पुलिस ने इस युवती एवं उसके परिजनों को इतनी बड़ी घटना तथा स्थिति में भी क्षेत्र का हवाला देकर पूरे 12 घंटे इधर से उधर घुमाया। जबकि पीड़िता बहुत गंभीर स्थिति में थी तथा ऐसे मौकों पर पीड़िता को मनोवैज्ञानिक सहायता की आवश्यकता थी। पूरा देश जानता है बिहार के मुजफ्फरपुर तथा देवरिया के महिला आश्रय स्थलों में वहां की स्थानीय पुलिस बिना लाइसेंस होते हुए भी लावारिस एवं इसी प्रकार की अन्य महिलाओं को इनमें भेजती रही जहां पर पुलिस के सामने इन का बलात्कार होता रहा। लखनऊ कांड में सरेआम हत्या करने के बाद भी आरोपी पुलिस कर्मी प्रेस कांफ्रेंस कर रहा है क्या देश का कानून इसकी इजाजत देता है। इसके अलावा इस हत्यारे पुलिसकर्मी की की मदद के लिए कुछ पुलिसकर्मी ऑनलाइन चंदा एकत्रित करते देखे गए हैं क्या यह व्यवस्था के प्रति इन पुलिसकर्मियों का विद्रोह नहीं है क्या यह अनुशासनहीनता नहीं है। क्या इस प्रकार की पुलिस समाज के गरीब तबके को न्याय दिलवा सकती है।

भारतीय पुलिस के इस स्वरूप के लिए अंग्रेजों द्वारा लागू किया उपनिवेश वादी पुलिस कानून 1861 तो जिम्मेदार है ही परंतु इस को और जटिल बना दिया है हमारे राजनीतिज्ञों ने। सत्ताधारी दलों से संबंध रखने वाले अपराधी अपने संगठित अपराध पुलिस के संरक्षण में चलाते हैं जैसे नोएडा मुजफ्फरपुर देवरिया मुंबई का पूरा अंडरवर्ल्ड इसके उदाहरण है इसके अलावा उत्तर प्रदेश में पिछली सरकारों के समय में देखने में आया कि पुलिस भर्ती में बड़े पैमाने पर जातिगत आधार पर भर्तियां की गई और कहां जा रहा है लखनऊ कांड का मुख्य आरोपी प्रशांत चौधरी भी इसी का उदाहरण है। अंग्रेजों ने पुलिस एक्ट 1861 को गुलाम भारत में अपना दबदबा तथा भारतवासियों में सत्ता का खौफ स्थापित करने के लिए बनाया था। इसलिए इस एक्ट के अंदर पुलिस को बहुत से ऐसे अधिकार प्राप्त हैं जिनके द्वारा वह किसी भी नागरिक को बंदी बना सकती है। परंतु स्वतंत्रता के बाद स्वराज में क्या इस तरह के कानून की जरूरत है उत्तर होगा नहीं परंतु 1947 में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल ने इस पुलिस कानून को उसी प्रकार से भारत वर्ष में लागू कर दिया। अंग्रेज अपने देश के नागरिकों के साथ मानवता से पेश आते थे जबकि हमारे देश में सामंती तथा गुलामी के प्रभाव के कारण अकसर शक्ति प्राप्त होते ही व्यक्ति का व्यवहार बदल जाता है तथा वह दूसरों पर अधिकार तथा उनका शोषण करने की सोचने लगता है। पुलिस सुधार गोष्ठी में इस विषय पर गंभीरता से विचार किया गया तथा पाया गया कि हमारे पुलिस कर्मियों की सोच एक स्वस्थ तथा राष्ट्रवादी की तरह नहीं है जिसके कारण आए दिन पुलिस की उदासीनता और असभ्य व्यवहार की घटनाएं देखने में आती हैं। इसके उदाहरण है लखनऊ में विवेक तिवारी को गोली मारना तथा हरियाणा की सामूहिक बलात्कार से पीड़ित युवती के साथ इस प्रकार का व्यवहार। पुलिस के इस प्रकार के व्यवहार के उदाहरण देश में रोजाना देखने में आते हैं। ज्यादातर पुलिस गरीब एवं असहाय जनता के साथ ही इस प्रकार का व्यवहार करती है जो दर्शाती है कि पुलिसकर्मियों की मानसिकता किस प्रकार की है। जबकि पुलिस का मूल मंत्र भगवान कृष्ण के गीता में बताएं उपदेश की साधुओं की रक्षा तथा दुष्टों का विनाश होना चाहिए परंतु ज्यादातर पुलिस इसके उलटे व्यवहार करती नजर आती है।

इसका मूल कारण इन पुलिस कर्मियों का प्रशिक्षण और स्वस्थ भावना का अभाव है। जबकि भारतीय सेना में जैसे ही कोई नवयुवक भर्ती होता है तो पहले सेना उसके चरित्र निर्माण पर ध्यान देती है उसके बाद ही उसे सैनिक सिखलाई दी जा। इसी का परिणाम है कि जब भी सेना को सिविल प्रशासन की सहायता के लिए बुलाया जाता है तब सेना वहां की जनता का भरोसा तथा प्यार पाती है। तो क्यों नहीं देश को इसी प्रकार की पुलिस भी मिलनी चाहिए जो जनता की सेवा तथा सुरक्षा को अपना सबसे बड़ा उद्देश समझ कर कार्य करें। इसके लिए सर्वप्रथम पुलिस के सिपाही और सब इंस्पेक्टर स्तर की भर्तियों को पूर्ण रूप से जातिवाद और अन्य तुष्टिकरण के मुद्दों से ऊपर उठकर किया जाना चाहिए। इसके उपरांत इनके प्रशिक्षण पर पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।

उपरोक्त विवरण से साफ हो जाता है के पुलिस को बाहरी सुधारों के स्थान पर सबसे पहले अपने आंतरिक सुधारों पर ध्यान देना चाहिए और सर्वप्रथम यह प्रक्रिया पुलिस के निचले स्तर से प्रारंभ होनी चाहिए जो जनता की सुरक्षा तथा सहायता की जिम्मेदार है। इसलिए पुलिस के सिपाही तथा सब इंस्पेक्टर के ट्रेनिंग तथा उनके चाल चलन को ठीक करने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। हमें पुलिस के प्रशिक्षण को नया रूप देखकर उसे समय के अनुकूल बनाना चाहिए तथा पुलिसकर्मियों में कूट-कूट कर भरा जाना चाहिएकी देश के पुलिस प्रजातांत्रिक पुलिस है तथा पुलिस जनता की सेवक है।इसके लिए जिला स्तर पर प्रयास किया जाना चाहिए। जिला के पुलिस मुखिया को पूरे जिले की पुलिस के प्रशिक्षण कथा उनके व्यवहार पर नजर रखनी चाहिए। इसलिए समय-समय पर जिले की पुलिस लाइन ओं में परेड तथा इसी प्रकार की अन्य प्रशिक्षण गतिविधियां चलाई जानी चाहिए जिनमें पुलिसकर्मियों को व्यवहार और अपनी जिम्मेदारियों के बारे में बार बार अवगत कराया जाना चाहिए। सेना में एक कमान अधिकारी अपनी यूनिट को बार बार इस प्रकार की बातें दोहराता रहता है जिससे सैनिकों को हर समय अपना उद्देश्य याद रहे। जिला की पुलिस अकसर एक फैक्ट्री की तरह कार्य करती है पुलिसकर्मी ड्यूटी करते हैं उसके बाद उनका अपने अधिकारियों से कोई संबंध नहीं होता है। जबकि जिला स्तर पर नई पुलिसकर्मियों को पुलिस में आने के बाद पूरी सिखलाई दी जानी चाहिए। तो इस प्रकार सिद्ध हो जाता है की पुलिस सुधारों का शोर मचाते हुए हमारी पुलिस अपने आंतरिक सुधारों पर ध्यान नहीं दे रही है जिनको वह स्वयं कर सकती है। पुलिस के उच्च अधिकारियों को इस पर जोर देते हुए अपने निरीक्षण में इसको सुनिश्चित करना चाहिए की पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग हो रही है या नहीं। इसके अतिरिक्त निचले स्तर के पुलिसकर्मियों का समय-समय पर मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी होना चाहिए जिसमें यह देखा जाना चाहिए कि अपराधियों के संपर्प में आने का कोई प्रभाव इन पुलिसकर्मियों पर तो नहीं पड़ा है। इसके अलावा पुलिसकर्मियों की समय-समय पर मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग होनी चाहिए।

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