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पुलिस की वसूली' बुनियादी कारण

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 Oct 2018 3:38 PM GMT
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श्याम कुमार

लखनऊ में गोमतीनगर विस्तार क्षेत्र में स्थित मकदूमपुर पुलिस चौकी के पास दो सिपाहियों द्वारा एप्पल मोबाइल कंपनी के क्षेत्रीय विक्रय पबंधक विवेक तिवारी की गोली मारकर हत्या के जाने की घटना ने जनमानस को हिलाकर रख दिया और इससे एक बार फिर पुलिस बल के मुंह पर कालिख लगी। लेकिन हमेशा की तरह कुछ दिनों बाद इस घटना को विस्मृत कर दिया जाएगा। वैसे भी, इस घटना में यदि बड़े आदमी की हत्या न हुई होती और उसके बजाय कोई गरीब आदमी मारा गया होता तो उस घटना की ओर न तो लोगों का ध्यान जाता और न ही अखबारों में इतनी चिल्लपों मचती। अखबारों में उक्त घटना को विशेष महत्व मिलने का ही यह परिणाम हुआ कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 73वें सत्र में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने हिन्दी में जो जबरदस्त भाषण किया, जिसमें पाकिस्तान की करतूतों का जमकर खुलासा किया, वह अतिमहत्वपूर्ण भाषण अखबारों में लखनऊ की घटना के सामने दब गया।

सदैव की तरह इस बार भी पुलिस की कार्यशैली पर तरह-तरह से उंगलियां उ"ाई जा रही हैं तथा कुछ विपक्षी नेता अपनी आदत के अनुसार राजनीतिक रोटियां सेंकने पर अमादा हैं। पूर्व-मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो ऐसा बयान दिया है, जिससे लगता है कि उनके शासनकाल में रामराजवाली स्थिति थी तथा इस पकार की घटनाएं नहीं होती थीं। एक सज्जन ने पतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि समाजवादी पार्टी तो `गुंडा पार्टी' के रूप में कुख्यात है तथा उस शासन में पुलिस गुंडे नेताओं की चाकरी करने पर मजबूर रहती थी।

पुलिस के विरुद्ध इस होहल्ले में इस बार भी उन कारणों को नजरंदाज किया जा रहा है, जो ऐसी घटनाओं के पीछे बुनियादी कारण के रूप में हुआ करते हैं। सुना जा रहा है कि गोमती नगर विस्तार में जो हत्या हुई है, उसके पीछे पुलिस द्वारा वसूली करने की हवस ही मुख्य कारण था। पुलिस नागरिकों की रक्षा करने की मुस्तैदी से अपनी ड्यूटी करने के बजाय नित्य तरह-तरह से `मुर्गे' ढूंढा करती है, ताकि उनसे वसूली कर अपनी जेब गरम कर सके। उन सिपाहियों ने जब कार में युवा जोड़ा बै"s देखा तो उन्हें लगा कि उन्हें वसूली के लिए अच्छा मौका मिल गया है। यह भी बताया जा रहा है कि वहां पुलिस नियमित रूप से बै"कर वाहनसवारों या अन्य लोगों से किसी न किसी बहाने वसूली किया करती है। यही कारण है कि जब पुलिस विभाग `हेलमेट अभियान' चलाता है तो पुलिसजनों की बांछें खिल जाती हैं और उन्हें अपना बैंक बैलेंस बढ़ाने का मौका मिल जाता है। इसीलिए अनेक अवकाश पाप्त वरिष्" पुलिस अधिकारियों ने भी यह मत व्यक्त किया है कि ऐसे पयास होने चाहिए कि पुलिस को उन कार्यों से दूर रखा जाए, जहां वसूली करने की गुंजाइश हो।

सुनने में यह सुझाव बड़ा अच्छा पतीत होता है, लेकिन व्यावहारिक नहीं है। थानों की पुलिस की आय के अनगिनत स्रोत होते हैं। कितने स्रोत तो ऐसे होते हैं, जिनमें `मछली कब पानी पी जाती है' कहावत की तरह यह पता ही नहीं लगाया जा सकता कि पुलिस ने कब अपनी जेब गरम कर ली। लखनऊ में ही नाका एवं अमीनाबाद ऐसे थाने हैं, जिनके बारे में मशहूर है कि वहां नित्य लाखों रुपये की वसूली होती है। यह भी चर्चित है कि पुलिस विभाग में होने वाली वसूली में थाने के निचले वर्ग से लेकर पुलिस विभाग के बहुत ऊंचे वर्ग तक वसूली की धनराशि वितरित होती है। एक अवकाशपाप्त ईमानदार वरिष्" पुलिस अधिकारी ने एक बार मुझे बताया था कि पुलिस विभाग में आम पुलिसजनों के लिए एक पुलिस कल्याण कोष होता है, जिससे आम पुलिसजनों का शायद ही कभी कोई कल्याण होता है तथा उस कोष का धन लोगों की जेबों में चला जाया करता है। इलाहाबाद में अनेक वर्ष पूर्व एक यातायात पुलिसकर्मी मेरे पास आया करता था, जिसने एक बार मुझे बताया था कि वरिष्" पुलिस अधीक्षक ने यातायात विभाग से हर महीने उन्हें मिलने वाली दस हजार की धनराशि को दोगुना कर दिया है।

वास्तविकता यह है कि पुलिस विभाग को हमारे नेताओं ने बर्बाद किया है। उन्होंने पुलिस को अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति का माध्यम बना डाला है। उत्तर पदेश में मुलायम सिंह यादव के समय में यह स्थिति विशेष रूप से बनी। सपा के शासन में अपराधी तत्वों को पबल सरकारी संरक्षण पाप्त हो जाता है। कई वर्ष पूर्व एक ईमानदार पुलिस उपाधीक्षक ने मुझसे बातचीत में टिप्पणी की थी कि तमाम अपराधी पवृत्ति के जिन नेताओं को गनर मुहैया करा दिए गए हैं, कुछ वर्षों बाद उसका परिणाम यह होगा कि वैसे नेताओं से जुड़े वे सुरक्षाकर्मी अपने आप एक ऐसे पशिक्षित एवं संग"ित अपराधी गिरोह का रूप ले लेंगे, जो भविष्य की ईमानदार सरकारों एवं जनता के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द सिद्ध होंगे। सपा सरकार के समय लखनऊ में मेरे पड़ोस में एक माफिया को दो-दो गनर मिले हुए थे, जिनके बारे में चर्चा थी कि वे उस माफिया के आपराधिक कृत्यों में सहयोग करते हैं।

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