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सर सैयद अहमद खान: वैज्ञानिक सोच के महान वकील

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 Oct 2018 3:39 PM GMT
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डॉ. एमआईएच फारुकी

सन 1857 के गदर का दौर भारतीय इतिहास का सबसे अंधकारमय दौर कहा जा सकता है। क्योंकि इस दौर में सारा भारतीय समाज बड़ी मायूसी का शिकार था। आजादी के मतवालों के हौसले पस्त हो चुके थे। आम आदमी पर अत्याचार की घटनाएं आम हो गईं थीं। सारा समाज बिखरता दिखाई पड़ता था। गुलामी, निराशा जनता का भाग्य बन गया था। सौभाग्य से इस नाजुक दौर में दो महत्वपूर्ण व्यक्तित्व भारतीय समाज में उभरे जिन्होंने सोते हुए हिंदुओं और मुसलमानों को झिंझोड़ कर रख दिया। इसमें एक हस्ती थी राजा राम मोहन राय और दूसरी सर सैयद अहमद खान। राजा राम मोहन राय ने महसूस किया कि हिंदुस्तान की समस्या शिक्षा की कमी और वैज्ञानिक रवैये का अभाव है। उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि अगर लोग फ्राचीन रस्मो-रिवाज और पुरानी शिक्षा को छोड़कर नई वैज्ञानिक शिक्षा की ओर आकर्षित हों तो वाकई एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जीवित रहने का अधिकार मांग सकते हैं। इसलिए उन्होंने हिंदुओं में अंग्रेजी और वैज्ञानिक शिक्षा की वकालत की।

शुरू में उनका बहुत विरोध किया गया लेकिन ये विरोध अधिक दिनों तक टिक नहीं सके और वो अपने कुछ साथियों की मदद से सन 1816 में कलकत्ता में एक हिंदू कॉलेज स्थापित करने में सफल हो गए जिसमें अंग्रेजी और विज्ञान की शिक्षा दी जाने लगी। आम हिन्दू नई शिक्षा की ओर आकर्षित होने लगा। राजा राम मोहन राय का मिशन सफलता के दौर में आया ही था कि सर सैयद का बहु आयामी व्यक्तित्व भी भारतीय मुस्लिम समाज में उभर कर सामने आया। उन्होंने अपनी आंखों से मुसलमानों की तबाही, पिछड़ापन और बर्बादी देखी थी। श्री मोहन राय की तरह उन्हें भी अहसास हुआ कि मुसलमानों को इस पिछड़ेपन से निकालने का एक ही तरीका है और वो ये कि उन्हें नए वैज्ञानिक रूझान से अवगत कराया जाए और अंग्रेजी शिक्षा की ओर आकर्षित किया जाए।

सर सैयद ने जब होश संभाला तो एक तरफ मुसलमानों की आर्थिक बदहाली देखी तो दूसरी ओर उनका नए ज्ञान के लिए नकारात्मक व्यवहार पाया। उन्हें ये विश्वास हो गया कि मुसलमानों को भारतीय समाज में एक फ्रतिष्"ित और सम्मानजनक स्थान दिलाने का एक ही रास्ता है और वो ये कि उन्हें नई वैज्ञानिक दुनिया से परिचित कराया जाए। बहरहाल सर सैयद ने मुसलमानों में वैज्ञानिक सोच पैदा करने और वैज्ञानिक ज्ञान को सार्वजनिक करने का बीड़ा उ"ा लिया।

सर सैयद ने 1875 में एक मदरसा का आधार अलीगढ़ में रखी। मदरसा के रूप में नई शिक्षा की यह किरण कई अंधेरे पर छा गई। आखिरकार ये मदरसा 1877 में कॉलेज बना जिसका मुख्य उद्देश्य मुसलमानों में वैज्ञानिक शिक्षा को बढ़ावा देना था लेकिन इसके दरवाजे सारे भारतीयों के लिए खुले थे। सर सैयद की नज़रिये से हिंदुस्तान जैसी दुल्हन का सौंदर्य उसी समय कायम रह सकता था जबकि उसकी दोनों आंखें यानी हिंदू और मुसलमान, नूर (फ्रकाश) से भरी हों। अलीगढ़ का ये कॉलेज मौलाना आजाद के नेतृत्व में भारतीय मुसलमानों के फ्रयासों से 1920 ई. में विश्वविद्यालय बना और सारी दुनिया में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के नाम से मशहूर हुआ। आज भारतीय समाज में इसकी अहमियत को सब स्वीकार करते हैं। सर सैयद अहमद खान ने आरोपों से निराश हो कर अगर अपने मिशन को छोड़ दिया होता और अलीगढ़ कॉलेज की स्थापना नहीं की होती तो आज इस देश के मुसलमान कितने घाटे में रहते।

हम वैज्ञानिक ज्ञान से कितनी दूर होते। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब डिस्कवरी ऑफ इंडिया में सर सैयद के बारे में लिखा है कि `वे एक उत्साही सुधारक थे जो आधुनिक वैज्ञानिक विचारों को फैलाना चाहते थे। वो हमेशा नई शिक्षा को बढ़ाने के लिए उत्सुक रहते थे और वैज्ञानिक सोच को बढ़ाते हुए धार्मिक मूल्यों को साथ लेकर चलते थे। वह किसी तरह सांफ्रदायिक अलगाववादी नहीं थे। बार-बार उन्होंने जोर दिया कि धार्मिक मतभेदों का कोई राजनीतिक और राष्ट्रीय महत्व नहीं है। इसी तरह के विचार श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने व्यक्त के। उन्होंने कहा `सर सैयद की चुनौतीपूर्ण फ्रयासों की सराहना बहुत ही सराहनीय है।

1857 के बाद का अंधेरा वास्तव में निराशाजनक था और केवल राजा राम मोहन रॉय और सर सैयद जैसे पुरुष राष्ट्र के आवश्यकता को समझ सकते थे। वे मानते थे कि पुरानी मूल्यों की आवश्यकता है लेकिन नये दौर की चुनौतियों का सामना करने के लिए पुराने मूल्य काम नहीं कर पायेगे। मैं सर सैयद को उनकी साहस के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं कि उन्होंने मुश्किलों के रहते हुए शिक्षा के लिए बड़ा काम किया। (सर सैयद वैज्ञानिक सोसायटी, लखनऊ को संदेश)।

श्री सोमनाथ चटर्जी ने भी अवलोकन किया कि सर सैयद पुराने और नये के बीच एक पुल बनाना चाहते थे, पूर्व और पश्चिम के बीच भी उन्होंने आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा की वकालत की जिसके लिए कालेज बनाया गया। वह चाहते थे कि छात्र पूरे भारत में उपदेश दें कि सबको वैज्ञानिक सोच और अच्छे करेक्टर की आवश्यकता है।

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