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गंगा की गाथा

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:27 Oct 2018 5:17 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

एक जमाना था जब हजारों वर्ष पहले संस्कृत के हितोपदेश नामक सूक्ति-संग्रह के रचयिता ने अपनी पुस्तक लिखने के पहले भगवान शंकर की वंदना करते हुए लिखा था किö

सिद्धिः साध्ये सतामस्तु

प्रसादात् तस्य धूर्जटेः।

जाह्नवीफेनलेखेव

यन्मूर्ध्नि शशिनः कला।।

अर्थात हितोपदेश के रचयिता मंगलाचरण लिखने के क्रम में कहते हैं कि वे उस जटाधारी शंकर की वंदना करते हैं जिनके मस्तक पर चन्द्रमा की चमकीली किरणें उसी रंग में रंजित हैं जिसका रंग गंगा की फेन (झाग) की तरह शुद्ध है। इस सूक्ति से यह सिद्ध होता है कि उन दिनों गंगा (जाह्नवी) की फेन चन्द्रमा की सफेद किरणों की तरह चमका करती थीं लेकिन इसे विडंबना ही कहेंगे कि वही गंगा आज के दिन गंदगी का पर्यायवाची शब्द बन चुकी है। गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक यदि गंगा की प्रवाह-यात्रा को देखा जाए तो लगभग सभी जगह यह पौराणिक नदी अपनी पुरानी आभा को खो चुकी है। हरिद्वार के बाद तो गंगा जैसे-जैसे बड़े शहरों से गुजरती है उन सभी शहरों की गंदगी गंगा में समेट दी जाती है। भगीरथ ने गंगा को धरती पर तो ला दिया था लेकिन भारत के गंगा-पुत्रों ने उस दैविक धारा को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है।

वर्ष 2014 के संसदीय चुनावों के दौरान आज के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान के क्रम में गंगा के प्रति प्रकट की गई श्रद्धा दर्शकों को आज भी भावुक बना देती है। अपने भाषणों के क्रम में वे कहा करते थे कि 'मैं चुनाव लड़ने के लिए स्वयं वाराणसी नहीं आया हूं अपितु मुझे मां गंगा ने बुलाया है।' प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 'नमामि गंगे' के नाम से एक अलग मंत्रालय भी बनाया जिसका प्रभार साध्वी उमा भारती को सौंपा गया था। उमा भारती जी लगभग तीन वर्षों तक नमामि गंगे के मंत्रालय को संभालती रहीं लेकिन गंगा के प्रदूषण में जब कोई कमी नहीं दिखी तो साध्वी को मंत्रालय से मुक्त कर श्री नितिन गडकरी को मंत्रालय सौंप दिया गया। लगभग डेढ़ वर्ष के दौरान श्री गडकरी भी गंगा की सफाई में कोई देखने लायक परिवर्तन नहीं कर सके हैं। स्वर्गीय राजीव गांधी का प्रधानमंत्री का कार्यकाल भी बरबस याद हो आता है जब उन्होंने भी गंगा को साफ करने का व्रत ले लिया था किन्तु हजारों करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा के प्रदूषण में कोई खास परिवर्तन नहीं आ सका था।

वास्तव में भारत की पुरातन संस्कृति की प्रतीक मां गंगा आज एक प्रदूषित नदी के रूप में नजर आ रही हैं। सिखों के धार्मिक ग्रंथ 'गुरुग्रंथ साहिब' में कबीर जी ने लिखा है किö

गंगा के संग सरिता बिगरी।

सो सरिता गंगा होय निबरी।।

अर्थात जब कोई नदी-नाला गंगा में मिला करता था तो वह भी गंगा के समान पवित्र हो जाया करता था लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आज वही गंगा गंदगी का पर्याय बन चुकी है। श्री नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का कार्यकाल जैसे-जैसे खत्म हो रहा है वैसे-वैसे गंगा की सफाई को लेकर आम लोग मोदी जी पर अब कटाक्ष भी करने लगे हैं। दुख तो तब होता है जब प्रधानमंत्री गंगा के उद्धार के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले साधु-संतों से बात तक नहीं करते। कुछ दिन पूर्व ही कानपुर आईआईटी में सोलह वर्षों तक प्रोफेसर के रूप मे काम कर चुके एवं प्रदूषण दूर करने में महारत रखने वाले डॉ. जीडी अग्रवाल सौ दिनों से अधिक तक आमरण अनशन में बै"s रहे लेकिन प्रधानमंत्री जी ने उनके पत्रों का उत्तर देना भी गंवारा नहीं समझा। यह ज्ञातव्य है कि डॉ. अग्रवाल ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में भी पढ़ा चुके थे तथा अवकाश प्राप्ति के बाद वे संन्यास धारण करके साधु बन चुके थे। डॉ. अग्रवाल केंद्र सरकार के प्रदूषण नियंत्रण आयोग के अध्यक्ष भी रह चुके थे लेकिन अनशन के दौरान पानी पीना भी त्याग देने वाले डॉ. अग्रवाल के पत्रों का प्रधानमंत्री द्वारा उत्तर न दिया जाना गंगा के प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों को अच्छा नहीं लगा है। अंततोगत्वा डॉ. अग्रवाल गंगा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए लेकिन भारतवासियों के गंगा-प्रेम पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह खड़ा करके गए हैं। अपने अंतिम पत्र में तो डॉ. अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को कई ऐसे चुभने वाले शब्दों से भी संबोधित किया जो उनके द्वारा आक्रोश में लिखे गए थे।

गंगोत्री से निकलने वाली गंगा उन चार पवित्र स्थानों में शामिल है जिसको उत्तराखंड के चार धाम कहा जाता है जिनमें गंगोत्री के अलावा जमुनोत्री, बद्रीनाथ एवं केदारनाथ शामिल हैं। भारत के धार्मिक आस्था वाले लोग बड़ी संख्या में उत्तराखंड के उपरोक्त चार धामों की यात्रा किया करते हैं। केंद्र सरकार ने इन चारों धामों को जोड़ने वाली सड़कों के चौड़ीकरण का काम शुरू किया था जिसको लेकर पर्यावरण के समर्थक काफी विरोध कर रहे थे। पर्यावरणविद लोगों ने सड़कों के अनर्गल चौड़ीकरण को रोकने के लिए उच्चतम न्यायालय तक याचिक दायर कर दी थी जिस पर गहन मंथन करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय की पी" ने उपरोक्त चारों धामों को जोड़ने वाली सड़कों के चौड़ीकरण का काम स्थगित करने का आदेश दे दिया है। याचिकाकर्त्ताओं ने न्यायालय को बताया है कि सड़कों के अनाप-शनाप चौड़ीकरण से हिमालय का हृदयस्थल डोलने लगा है क्योंकि पहाड़ों पर उगे हजारों पेड़ों को भी कटवा दिया गया है जिसके चलते बड़ी मात्रा में पर्वतों से भूस्खलन हो रहा है। जनता को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री नरेंद्र मोदी गंगा को धार्मिक दृष्टिकोण से देखेंगे एवं तद्नुसार निर्णय लेंगे लेकिन डॉ. अग्रवाल ने अपने तीसरे तीखे पत्र में प्रधानमंत्री को 'तुम' कहकर संबोधित करते हुए लिखा है कि 'तुम गंगा के दोहन करने में संलिप्त हो' क्योंकि गंगा एवं इसमें मिलने वाली नदियों पर बिजली उत्पादन के लिए बड़े-बड़े प्लांट लगाए जा रहे हैं। लोग भूले नहीं होंगे कि वर्ष 2013 के जून माह में उत्तराखंड में आए अभूतपूर्व बाढ़ एवं वर्षों ने हजारों तीर्थ यात्रियों को अपनी आगोश में समेट लिया था तथा बड़ी मात्रा में जनधन का नुकसान हुआ था। वास्तव में उपरोक्त घटना प्रकृति के प्रकोप का साक्षात संदेश था जिसको भारत की सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया। सरकार ने यदि उपरोक्त घटनाक्रम को गंभीरता से लिया होता तो विगत पांच वर्षों में न केवल गंगा को प्रदूषण मुक्त कर दिया गया होता अपितु हिमालय में प्रलयंकारी कामों को भी रोक दिया गया होता। लगता यही है कि उपरोक्त धार्मिक स्थलों को भी आय का साधन समझकर सरकार उन स्थानों को आर्थिक लाभ के लिए ही विकसित कर रही है। न जाने मां गंगा की कब कृपा दृष्टि भारत के नेताओं पर पड़ेगी और उन्हीं में से कोई भगीरथ बनकर मां गंगा को साफ करने का व्रत लेगा।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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