सीबीआई अफसरों की जंग से विपक्ष को मिला नया मुद्दा
आदित्य नरेन्द्र
पिछले कुछ महीनों से विपक्षी पार्टियां राफेल और पेट्रोल-डीजल की महंगाई को लेकर केंद्र सरकार के खिलाफ लगातार आक्रामक रुख दिखा रही थीं। अब जब केंद्र और कई राज्य सरकारों ने ढाई-ढाई रुपए की राहत जनता को देनी शुरू की तो कुछ दिनों के बाद ही यह मुद्दा विपक्ष के हाथ से निकलना शुरू हो गया क्योंकि दैनिक आधार पर भी पेट्रोल-डीजल के दाम घटते हुए दिखाई देने लगे। विपक्ष को अपने हाथ से एक ऐसा मुद्दा निकलता दिखाई दे रहा था जो चुनाव में उसकी नैया पार लगाने में मददगार साबित हो सकता था। अब इसे केंद्र की राजग सरकार का दुर्भाग्य कहिए या विपक्षी पार्टियों का सौभाग्य कि उन्हें सीबीआई के दो शीर्ष प्रमुखों के बीच की आपसी जंग ने मोदी सरकार पर वार करने का एक बेहतरीन मौका बैठे-बिठाए दे दिया है। सीबीआई के अंदर चल रहा यह घटनाक्रम सुप्रीम कोर्ट पहुंचते ही एक ब़ड़े राजनीतिक मुद्दे में तब्दील हो गया है। कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने इसका भरपूर लाभ उठाते हुए इसे राफेल सौदे में हुए कथित भ्रष्टाचार से जोड़ने का प्रयास करना शुरू कर दिया है। हालांकि कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि सीबीआई की अंदरूनी कलह से उपजे इस विवाद का असर यदि केंद्र सरकार के लिए नकारात्मक भी हुआ तो इससे उतना नुकसान होने की संभावना नहीं है जितना पेट्रोल-डीजल की महंगाई से हो सकता है। क्योंकि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का सीधे तौर पर सीबीआई से कुछ भी लेना-देना नहीं है। वहां काफी लोग सीबीआई के बारे में जानते तक नहीं हैं। इसके बावजूद भी कई विपक्षी दल इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को निशाने पर लेने के लिए इसलिए आतुर हैं कि उन्हें लगता है कि इससे शहरी मतदाताओं के बीच मोदी और केंद्र सरकार की साख को कम किया जा सकता है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने अपने अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा से अधिकार छीनकर उन्हें छुट्टी पर भेजने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों में भाकपा, लोकतांत्रिक जनता दल और तृणमूल कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों के नेता भी शामिल हुए। लोकतांत्रिक जनता दल शरद यादव द्वारा नवगठित राजनीतिक दल है। टीएमसी को यदि छोड़ दिया जाए तो भाकपा और लोकतांत्रिक जनता दल की राजनीतिक जमा पूंजी फिलहाल बेहद कम है। लेकिन कांग्रेस के लिए इनका साथ बेहद महत्वपूर्ण इसीलिए है कि उसकी अगुवाई में कई राजनीतिक दल इस प्रदर्शन से किनारा करते हुए दिखाई दिए। इस अवसर का फायदा उठाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपने आरोपों को एक बार फिर दोहराते हुए कहा कि उन्होंने 30 हजार करोड़ रुपए अंबानी की जेब में डाल दिए। आम आदमी पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को संविधान की धज्जियां उड़ाने से रोका है। हालांकि कई राजनीतिक दल अभी पशोपेश में हैं तथा देखो और इंतजार करो की नीति पर चलना चाहते हैं। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने बेहद संतुलित फैसला देते हुए कहा कि सीवीसी मामले की जांच करके 10 दिन में रिपोर्ट दे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का क्या अंजाम होगा यह तो आने वाले कुछ दिनों बाद ही पता चलेगा। अभी तो सभी पक्ष इसे अपनी-अपनी जीत समझ रहे हैं। यह बात अलग है कि कुछ दिनों पहले तक भी किसी ने भी नहीं सोचा था कि सीबीआई के एक व दो नम्बर के शीर्ष अधिकारियों के बीच जंग एक बड़े राजनीतिक मुद्दे के रूप में बदल जाएगी। इसमें कोई शक नहीं कि सीबीआई की इस अंदरूनी जंग का असर न सिर्प सीबीआई की साख पर पड़ेगा अपितु देश के राजनीतिक परिदृश्य पर भी पड़ेगा। सवाल इस बात का नहीं है कि इस प्रकरण से विपक्ष ज्यादा मजबूत होगी या केंद्र सरकार। सवाल इस बात का है कि सीबीआई की खराब हो रही साख और उसकी गरिमा की भरपायी हो सकेगी या नहीं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला चाहे कुछ भी हो, सत्ता पक्ष और विपक्ष सीबीआई की साख बचाए रखने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकते क्योंकि सीबीआई के प्रमुख के चयन में सीजेआई के साथ पीएम और नेता विपक्ष भी भागीदार होते हैं।