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पटेल न होते तो हमारा देश न होता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:30 Oct 2018 3:42 PM GMT
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श्याम कुमार

यदि लोकमान्य तिलक न हुए होते तो हमारे देश की स्वतंत्रता के आंदोलन की जबरदस्त नींव न तैयार होती, यदि नेताजी सुभाष चंद्र बोस न हुए होते तो देश को आजादी न मिलती तथा यदि सरदार पटले न हुए होते तो हमारा देश एक स्वतंत्र सम्पभु राजनीतिक ईकाई न बन पाता। इसके बजाय देश में कम से कम सौ सम्पभु स्वतंत्र राज्य होते। लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने इन तीनों विभूतियों के नाम का पूरी तरह दमन तो किया ही, देश के लिए मर-मिटने वाले अन्य असंख्य देशभक्तों के नाम एवं उनके योगदान को भी कभी आगे नहीं आने दिया। नेहरू व उसके वंशज देश का विनाश करते रहे, किन्तु तरह-तरह की तिकड़मों से अपनी ऐसी फर्जी छवि पचारित करने में सफल हुए कि उनसे बढ़कर हमारे देश में अन्य कोई महान हुआ ही नहीं।

डॉ. पीएन चोपड़ा एवं डॉ. पभा चोपड़ा 2 पसिद्ध इतिहासकार हुए हैं। डॉ. पीएन चोपड़ा शिक्षा मंत्रालय में `इंडियन गजेटियर्स' एवं `हू इज हू ऑफ इंडियन मार्टर्स' तथा भारतीय ऐतिहासिक एवं अनुसंधान परिषद की परियोजना `टुवर्ड्स फ्रीडम' के पधान सम्पादक रहे। डॉ. पभा चोपड़ा दिल्ली पशासन में `दिल्ली गजेटियर्स' की सम्पादक एवं भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की वरिष्" अध्येता रह चुकी हैं। डॉ. पीएन चोपड़ा एवं डॉ. पभा चोपड़ा ने सरदार पटेल के अद्भुत व्यक्तित्व व महान योगदान पर बहुत कुछ लिखा है। यहां उनके कथन की कुछ झलक पस्तुत हैö

`मात्र 3 वर्ष से कुछ अधिक की अवधि, जिसमें सरदार पटेल उपपधानमंत्री रहे, उनकी अनेक उपलब्धियों के लिए जानी जाती है। किन्तु उनकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी-भारतीय रियासतों को एक सूत्र में पिरोना तथा लगभग पौने छह सौ पृथक अस्तित्व वाले छोटे-बड़े रजवाड़ों को एकसाथ मिलाकर देश की एक राजनीतिक पहचान बनाना। अपनी इच्छाशक्ति के बल पर लौहपुरुष सरदार पटेल ने, जो जुलाई, 1947 में राज्यों से संबंधित विभाग के मंत्री बने, उन पौने छह सौ रियासतों के एकीकरण के जटिल पश्न को अपने बुद्धि-चातुर्य से हल करने का महान चमत्कार किया था। उन्होंने अपने मधुर व्यवहार से एवं जहां आवश्यक समझा, डरा-धमकाकर दो वर्ष की अल्प अवधि में ही भारत के सभी रजवाड़ों को एकसूत्र में पिरोकर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक रूप से उन्हें मुख्यधारा में जोड़कर भारत के मानचित्र को बिलकुल नया रूप दे दिया। यह वास्तव में अत्यंत विस्मयजनक है कि सरदार पटेल ने राजाओं का सब कुछ छीन लिया, किन्तु इसे किसी पकार भी अन्याय नहीं माना गया।'

वर्ष 1950 में सोवियत संघ के सर्वाधिक शक्तिशाली पार्टी-मुखिया निक्रिता खुश्चेव, सोवियत संघ के पधानमंत्री निकोलाई बुलगानिन के साथ जब भारत-भ्रमण पर आए थे तो उन्होंने सरदार पटेल पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि वह अपार सूझबूझ वाले व्यक्तित्व थे तथा जर्मनी का एकीकरण करने वाले बिस्मार्प से अधिक योग्य व निपुण थे। उनका यह कथन सत्य है। बिस्मार्प ने तो छोटे-से जर्मनी का एकीकरण किया था, किन्तु सरदार पटेल ने जिस विशाल भारत का एकीकरण किया, वैसा उदाहरण अब तक न हुआ और न भविष्य में हो सकेगा। लॉर्ड माउंटबेटेन भारत से मित्रता का दिखावा करते रहे, किन्तु भीतर से उन्होंने भारत का अहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपने देश इंग्लैंड के पति उनकी देशभक्ति इतनी पबल थी कि उन्होंने अपनी पत्नी को पेरित किया कि वह जवाहर लाल नेहरू को अपने पेमजाल में फंसा ले और ऐसा कर माउंटबेटेन ने नेहरू से अपने मनमाफिक फैसले करा लिए। उन लॉर्ड माउंटबेटेन ने सरदार पटेल के बारे में कहाö`निःसंदेह सरदार पटेल की अत्यंत महत्वपूर्ण उपलब्धि राज्यों को एकसूत्र में बांधकर भारतीय संघ के रूप में एकीकृत करना है। यदि वह इस कार्य में विफल हो जाते तो भारत के लिए बड़ा गंभीर विनाशकारी परिणाम होता।'

जोधपुर पाकिस्तान की सीमा से लगी हुई बहुत बड़ी हिन्दू रियासत थी। जिन्ना ने जोधपुर के महाराजा को लालच दिया था कि वह पाकिस्तान में मिल जों तो उन्हें मनचाही सुविधाएं दी जाएंगी। नवानगर रियासत के निजाम साहब सरदार पटेल के कट्टर विरोधी थे तथा अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाना चाहते थे। किन्तु सरदार पटेल ने निजाम साहब पर अपने व्यवहार से ऐसा मनोवैज्ञानिक पभाव डाला कि उनके बीच पेम व मित्रता की भावना बहुत बढ़ गई। यहां तक कि निजामसाहब राजाओं के संग"न के मुखिया थे, किन्तु वह सरदार पटेल से इतना पभावित हो गए कि उन्होंने सरदार को वचन दिया कि वह सभी राजाओं को भारत में विलय के पक्ष में पेरित करेंगे। बाद में निजाम साहब ने ऐसा किया भी। सर्वपथम ग्वालियर ने भारत संघ में विलय की सहमति दी थी, किन्तु बड़ोदा ने विलयपत्र पर सबसे पहले हस्ताक्षर किए। महाराजा बीकानेर एवं महाराजा पटियाला ने भी सरदार पटेल की पेरणा से राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए विलय कर लिया। सरदार ने शताब्दियों बाद मरा"ा, राजपूत एवं सिख वर्ग को भारत के एक संवैधानिक ढांचे के अंतर्गत ला खड़ा किया।

15 अगस्त, 1947 तक जूनागढ़, हैदराबाद व कश्मीर को छोड़ सभी छोटे-बड़े राज्य भारतीय संघ में सम्मिलित हो चुके थे। का"ियावाड़ में जूनागढ़ की अस्सी पतिशत जनसंख्या हिन्दू थी और सोमनाथ का पसिद्ध मंदिर इसी राज्य में था। किन्तु उसका पशासक मुसलमान था, जो जिन्ना के सम्पर्प में रहकर पाकिस्तान में विलय करना चाहता था। जूनागढ़ के नवाब ने का"ियावाड़ के अन्य छोटे रजवाड़ों पर अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहा और वहां अपनी सेनों भेज दीं। किन्तु सरदार पटेल ने नवाब के उस कदम पर अंकुश लगाने के लिए अपनी सेना भेज दी, जिसका परिणाम यह हुआ कि नवाब कराची भाग गया तथा जूनागढ़ का विलय भारत में हो गया। सरदार पटेल के मुख्य सचिव वीपी मेनन ने लिखा है कि `लौहपुरुष सरदार पटेल की कीर्ति एवं रियासतों के शासकों के पति उनकी विनयशीलता ने उन्हें सबका मित्र एवं विश्वस्त बना दिया था। परिणामस्वरूप ऐसा विश्वासपूर्ण वातावरण बन गया कि सभी ने विलय हेतु बिना किसी आपत्ति के सरदार पटेल की राय मान ली।'

सरदार पटेल ने राजाओं का सब कुछ ले लिया, किन्तु सद्भावना बनाए रखने के लिए उन्हें उदारतापूर्वक निश्चित धनराशि देने का आश्वासन दिया, ताकि वे अपने स्तर के अनुकूल जीवनयापन कर सकें। जवाहर लाल नेहरू के विरोध के बावजूद सरदार पटेल ने संविधान सभा में अपना उक्त आश्वासन स्वीकृत भी करा लिया, हालांकि संविधान सभा द्वारा स्वीकृत राजाओं को `पिवी पर्स' के रूप में दिया गया वह शपथपत्र बाद में पधानमंत्री इंदिरा गांधी ने समाप्त कर दिया था। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्तूबर, 1875 के गुजरात के बोरसद ताल्लुक के करमसद गांव में हुआ था। उन्होंने 1897 में वहां से मैट्रिक किया और वर्ष 1900 में जिला अधिवक्ता की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं। वर्ष 1910 में वह विलायत चले गए, जहां पथम श्रेणी में कानून की परीक्षा उत्तीर्ण की। अपनी तमाम उपलब्धियों एवं कुशलतम पशासक होने के कारण वह `लौहपुरुष' के उपनाम से पसिद्ध हुए।

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