कृषि विकास रिपोर्ट का महत्व
डॉ दिलीप अग्निहोत्री
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार को गरीब, गांव और किसान के लिए समर्पित बताया था। इसके लिए उनकी सरकार ने अनेक योजनाएं चलाई, जिनका लाभ किसानों को मिल रहा है। खाद की किल्लत समाप्त हुई। पहली बार करोड़ों की संख्या में मृदा परीक्षण कार्ड जारी किए गए। कम पानी व खाद से अधिक उत्पादन की तकनीक को प्रोत्साहन दिया गया। इसके अलावा पहली बार खाद्यान्न के समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना वृद्धि की गई। इस पूरी प्रकिया को लोपपुल से मुक्त बनाया गया। किसानों का पैसा सीधे उनके खाते में जाने लगा। बिचौलियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया।
भारत कृषि प्रधान देश है। सरकार कृषि को लाभप्रद बनाने के प्रयास में लगी है। अगले चार वर्षों में किसानों की आमदनी को दुगना करने का लक्ष्य बनाया गया है। यह सराहनीय है कि इस कार्य में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी रुचि दिखाई। उन्होंने औपचारिकता से ऊपर उठकर राज्यपालों की समिति बनाई। इसे किसानों की आमदनी दो गुनी करने के उपायों पर सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गई थी।
राष्ट्रपति को प्रेषित रिपोर्ट में किसानों की आय वर्ष दो हजार तक दोगुना किये जाने के संबन्ध में सुझाव दिए गए। इसमें खाद्य सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, जल सुरक्षा तथा पर्यावरण सुरक्षा सम्बन्धी मुद्दों को सम्मिलित किया गया था। रिपोर्ट में कृषि की स्थिति, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का परिदृश्य, और कृषि क्षेत्र की चुनौतियों पर तथ्यों के आधार पर विचार किया गया। चिन्हित मुद्दों की समीक्षा की गई और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये है। पांच सदस्यीय राज्यपालों की समिति ने उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक के नेतृत्व में अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी। इस अवसर पर वरिष्ठतम राज्यपाल नरसिम्हन आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना, कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल आचार्य देवव्रत एवं मध्य प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल भी उपस्थित थे। राष्ट्रपति को प्रस्तुत अड़तीस पृष्ठीय रिपोर्ट में समिति में अन्य 22 प्रदेशों के राज्यपाल व उप राज्यपालों के सुझावों का समावेश किया गया है। इसमें इक्कीस मुख्य संस्तुतियाँ है। 3 जून 2018 में राज्यपालों के सम्मेलन के दौरान अप्रोच टू एग्रीकल्चर ए होलिस्टिक ओवरव्यू विषय पर सुझाव देने हेतु उक्त समिति का गठन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक की अध्यक्षता में राष्ट्रपति द्वारा किया गया था। समिति में हरियाणा, कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के राज्यपालों को सदस्य नामित किया गया था। राज्यपालों के सम्मेलन में वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के लक्ष्य सहित अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी। जलवायु परिवर्तन की चुनौती, घटते प्राकृतिक संसाधनों, घटती औसत जोत आकार, प्रति इकाई निवेश के सापेक्ष घटती उत्पादकता, सीमित भण्डारण एवं प्रसंस्करण तथा उपयुक्त बाजार व्यवस्थाओं संबन्धी संस्तुतियां समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में दी गयी है। बदलते पर्यावरणीय परिवेश के दृष्टिगत निवेश दक्ष संकर/प्रजातियों के विकास की महत्ता पर जोर देते हुए =`विशेष कृषि जोन' तथा क्षेत्रीय क्षमताओं के अनुकूल फसल विशेष के केन्द्र स्थापित करने पर जोर दिया गया। क्षेत्रीय संसाधनों की उपलब्धता एवं जलवायु की उपयुक्तता को संज्ञान में लेते हुए फसल चक विकसित करने तथा पर्वतीय क्षेत्रों हेतु कम उत्पादन किन्तु अधिक महंगी फसलों के उगाने की समिति द्वारा संस्तुति की गयी है। कुछ राज्यों के सुझावों विशेष रूप से जहां रोपित फसलों के अन्तर्गत ज्यादा क्षेत्रफल है, वहां प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत प्रीमियम की दर 5 प्रतिशत से घटाकर फसलों की भांति 2.5 प्रतिशत किये जाने पर विचार किये जाने का सुझाव भी दिया गया है। समिति द्वारा केन्द्राrय सहायतीत कृषि विकास योजना के तहत केन्द्र एवं राज्यांश 60ः40 के स्थान पर पुराने सिद्धान्त के अनुसार 90ः10 के अनुपात में छोटी जोतो को लाभकारी बनाने हेतु सहायता प्रदान किये जाने का सुझाव दिया गया है। इस सिद्धान्त के लागू होने से उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, उड़ीसा आदि राज्यों के किसानों को बड़ी राहत मिलेगी। कृषि कार्यों के सम्पादन विशेष रूप से कटाई एवं रोपाई के समय मनरेगा कार्यकम के कारण मजदूरों की उपलब्धता की समस्या को संज्ञान में लेते हुए सुझाव दिया गया कि मनरेगा को कृषि क्षेत्र की लाभकारी गतिविधियों या ािढया कलापों से जोड़ा जाये। वर्तमान उपलब्ध तकनीके अधिकांशतया पुरूष प्रधान हैं जबकि छोटी जोतों के अलाभकारी होने के फलस्वरूप पुरूषों का शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन होने के कारण खेती में कृषि क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों में महिला हितैषी तकनीकों के विकास तथा महिला कृषिकों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यकमों के आयोजन एवं प्रसार कार्यकर्ताओं को तैनात किये जाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। कृषि क्षेत्र से जुड़ी विभिन्न समस्याओं के निराकरण तथा विभिन्न सम्बन्धित विभागों के साथ समन्वय स्थापित करने हेतु कृषक शिकायत निवारण सेल की स्थापना जनपद स्तर पर किये जाने की संस्तुति समिति द्वारा की गई है। समिति ने भूमि, जल, बीज, उर्वरक, ऊर्जा, बाजार आदि मुद्दों को सरलीकृत किये जाने की तत्काल आवश्यकता जतायी है ताकि वास्तविक कृषकों को सरकार की विभिन्न योजनाओं का सीधा लाभ पहुँचाया जा सके। कृषि क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिये ऊर्जा की उपलब्धता नितान्त महत्वपूर्ण होने के दृष्टिगत ऊर्जा उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने हेतु सौर एवं पवन ऊर्जा को ग्रिड सप्लाई से जोड़ने का सुझाव दिया गया है। समिति द्वारा कुपोषण निवारण हेतु आंगनबाड़ी को आधुनिकृत किये जाने हेतु कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी फण्ड का सदुपयोग किये जाने का भी सुझाव दिया गया है। वर्तमान फसल मूल्य निर्धारण की प्रकिया के फलस्वरूप फसल चक प्रभावित होना महसूस किया गया उदाहरण स्वरूप धान एवं गेहूँ के अपेक्षाकृत बेहतर मूल्य तथा दलहनी एवं तिलहनी फसलों के लाभकारी मूल्य निर्धारित न होने के कारण फसल पा में दलहनी एवं तिलहनी फसलों का समावेश अपेक्षानुकूल नहीं हो सका है। समिति द्वारा मूल्य निर्धारण प्रकिया को फसल चक के अनुसार निर्धारित करने पर जोर देने के साथ ही विभिन्न राज्यों की मांग के दृष्टिगत नई फसलों ग्वार, अरण्डी, मसाले जैसे अदरक, लहसुन, हल्दी तथा सुगन्धित एवं औषधि की फसलों को मूल्य निर्धारण के अन्तर्गत लाने का सुझाव दिया है। छोटी जोतों को लाभकारी बनाने वर्तमान बाजार व्यवस्था के आलोक में बाजार व्यवस्थित अनुबन्ध खेती पर समग्र रूप में विचार किये जाने का सुझाव भी समिति द्वारा दिया गया है।
राम नाईक को जो जिम्मेदारी दी जाती है, उनका निर्वाह वह अपनी पूरी क्षमता से करते है। राज्यपालों की कृषि समिति का नेतृत्व भी उन्होंने बखूबी निभाया। मूलत वह भी गांव के है। कृषि संबन्धी अनेक बारीकियों की उन्हें समझ है। इसके अलावा उन्होंने विशेषज्ञ स्तर पर सुझाव लिए। अन्य राज्यपालों से विचार विमर्श भी चलता रहा। उसके बाद राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी गई। राष्ट्रपति इसे विचार हेतु केंद्रीय मंत्री परिषद को देंगे। केंद्र को इस रिपोर्ट का लाभ मिलेगा। क्योकि इसमें किसानों की आमदनी दो गुनी करने के व्यवहारिक कदमों के उल्लेख किया गया। है।
इसके अलावा राज्यपाल राम नाईक ने लखनऊ में कृषि पुंभ आयोजन का समापन किया। उन्होंने कहा कि देश का किसान कृषि के क्षेत्र में निपुण है। देश की आजादी के बाद हम खाद्यान्न आयात करते थे जबकि आज के समय हम निर्यात करते हैं। देश की आबादी तीन गुना बढ़ी है, खेती की जमीन सीमित है फिर भी किसान का कमाल है कि इतना अन्न उत्पादन करते हैं कि पूरा देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर है। यह प्रगति =`जय जवान-जय किसान और जय विज्ञान' का परिणाम है। केन्द्र एवं राज्य सरकार किसानों के विकास के लिये दृढ़ संकल्प है। वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी किसानों के खेत तक पहुंचेगी तो देश और प्रगति करेगा। किसानों की आमदनी दो गुनी करने की दिशा सरकार बढ़ रही है। ऐसे आयोजनों से किसानों में सीखने की रूचि बढ़ी है। प्रदेश के सभी कृषि विज्ञान केन्द्राsं पर इस तरह का छोटा माडल लगाया जायेगा ताकि स्थानीय स्तर पर किसान लाभ उठा सकें। विधान सभा अध्यक्ष श्री हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि देश के इतिहास में पहली बार किसानों को इतने सम्मानजनक तरीके से आमंत्रित किया गया है। जाहिर है कि देश में कृषि और किसान की उन्नति पर व्यापक विचार-विमर्श चल रहा है। इसमें सभी जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हैं।
(लेखक विद्यान्त हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)