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राष्ट्र की चिति एवं अस्मिता के रक्षक सरदार पटेल

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:2 Nov 2018 3:49 PM GMT
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डॉ. बलराम मिश्र

तथाकथित स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात सत्ताधीशों के द्वारा सदियों से उपेक्षित रही अपने राष्ट्र की चिति एवं अस्मिता के संरक्षण तथा पोषण में सरदार वल्लभ भाई पटेल की वीरव्रती भूमिका के लिए भारत सदैव उन का ऋणी रहेगा। एक किसान, एडवोकेट और राजनेता होने के नाते वे अपने और अपनों की भौतिक सुख सुविधा, सामग्री, संकलन एवं वृद्धि हेतु अपना करियर बना और चमका सकते थे, किन्तु उन्होंने अपनी और अपने राष्ट्र की चिति की आवाज सुनी, और दृढ़ इच्छाशक्ति एवं संयम के साथ राष्ट्र विरोधी शक्तियों को नियंत्रित किया। इस हेतु स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पद को भी उन्होंने गौण मना।

हिन्दू जीवन दर्शन के अनुसार व्यक्ति के अस्तित्व में सर्वोच्च स्थान होता है चिति, या आत्मा का। जिसका सीधा सम्बंध होता है परमात्मा से। देह सत्ता के विधिवत संचालन हेतु चिति के अधीन होते हैं बुद्धि, मन, इंद्रियां एवं अन्य अंग, जो शक्ति तथा नियंत्रण के पदानुक्रम को गतिशीलता देते रहते हैं। किसी भी लक्ष्य-प्राप्ति की प्रक्रिया में देह के अंग, इंद्रियां, मन और बुद्धि जो तानाबाना तैयार कर लेते हैं उसका कार्यान्वयन तभी होता है जब चिति उसका अनुमोदन कर देती है। जब चिति की आकांक्षा को नजरंदाज कर उसके अधीनस्थ बुद्धि, मन और इंद्रियां किसी योजना का कार्यान्वयन करते है तो अनर्थ हो जाता है। व्यक्ति के देह की शासन व्यवस्था के अनुसार ही राष्ट्र के शासन की भी व्यवस्था होती है। एक जीवंत इकाई होने के नाते राष्ट्र की भी चिति होती है, जो शक्ति-नियंत्रण के पदानुक्रम के अनुसार बुद्धि, मन , इंद्रियों तथा विभिन्न अंगों के माध्यम से राष्ट्र का संचालन करती है। यदि राष्ट्र की चिति की आकांक्षा की चिंता न की गई और वह दुर्बल रही तो उसके अधीनस्थ कर्मचारी, अर्थात बुद्धि आदि अनर्थ करती हैं। इतिहास के भयंकर अपघात के कारण भारत की चिति इतनी घायल-चोटिल हो गई राष्ट्रपिता माने गए पूज्य महात्मा गांधी जी भी आक्रांता अंग्रेजों के षड्यंत्र के प्रभाव में आ गए थे।

लार्ड माउंट बैटन के माया जाल में आ कर उन्होंने पटेल की, संभावनाओं से परिपूर्ण, चिति पोषक क्षमता एवं कांग्रेस की इच्छा को दरकिनार करते हुए बुद्धिपरक जवाहर लाल नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। यह बात इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई की 14 प्रदेश कांग्रेस समितियों में से 12 ने सरदार पटेल को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष अर्थात प्रधानमंत्री बनाने के लिए नामित किया था। किसी भी समिति ने नेहरू को नामित नहीं किया था, किन्तु इस के बावजूद गांधी जी ने उस समय समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस के मत की अवहेलना करते हुए जिद्दी, अड़ियल और अतिमहत्वाकांक्षी जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष और प्रधानमंत्री बना दिया था। इस का परिणाम था कांग्रेस और देश में चाटुकारिता की परंपरा का अभ्युदय, एवं चिति एवं ऊपर बताए गए उसके अधीनस्थों के बीच सतत संघर्ष, जो आज भी चालू है। उसी का परिणाम है संभावनाओं से भरी क्षमताओं (झ्दाहूग्aत्) और वचनबद्धता (झ्rदस्ग्sा) का क्षरण एवं खरीदी गई, विरासत में मिली, बनावटी, या जुगाड़ से हथियाई गई प्रतिष्ठापूर्ण ख्याति (Rाज्ल्tatग्दह) तथा कीर्तिमानों (Rाम्दे्) की प्रदर्शनी के माध्यम से वोट बटोरने की परंपरा। यह देश का सौभाग्य है कि आज देश की अनुपम करवट के साथ क्षरित जीवन मूल्यों की पुनरस्थापना हो रही है, और जुगाड़ी जीवन मूल्यों का क्षरण हो रहा है, जो पटेल चाहते थे।

लार्ड माउंट बैटन की बुद्धिपरक जुगाड़ के चलते नेहरू को प्रधानमंत्री बनाया गया। पटेल को उपप्रधानमंत्री, गृहमंत्री, एवं देसी रियासतों से संबंधित मामलों का मंत्री बनाया गया। स्वतंत्र भारत की एकता के हित में 500 से भी अधिक देसी रियासतों का भारत में विलय आवश्यक था। भोपाल, हैदराबाद, एवं जूनागढ़ की रियासतें पाकिस्तान समर्थक थी, अत विलय के विरोध में वे भारत सरकार से लोहा लेने की तैयारी में थे। सबसे जटिल थी जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय की समस्या। इस का हल पटेल के रण-चातुर्य से निकला। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अभ्युदय के समय से ही उसकी अद्वितीय संगठन शक्ति, अनुशासन एवं निष्ठुर कर्मठता के कारण, यद्यपि नेहरू गुट वाली कांग्रेस संघ से जलती थी, किन्तु पटेल के अंतकरण में संघ के लिए श्रद्धा थी, जो अंत तक बनी रही। यह बात अलग है कि कांग्रेस के साथ मिल कर राजनीति में काम करने के कांग्रेसी प्रस्ताव को संघ ने कभी नहीं माना, इस लिए कांग्रेस संघ से खार खाए बैठी थी। 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद संघ को बदनाम करने का मौका मिल गया।

अकारण ही जब संघ पर प्रतिबंध लगा तब पटेल ही गृहमंत्री थे, और गृहमंत्री पटेल ने ही 28 मार्च 1950 को प्रधानमंत्री नेहरू को पत्र लिखकर बताया था कि गांधी जी की हत्या में संघ का हाथ नहीं था। किन्तु ये बातें तब भविष्य के गर्भ में थीं। मुस्लिम बहुल, किन्तु हिन्दू शासक के अधीन जम्मू-कश्मीर प्रदेश के भारत में विलय की समस्या के हल के लिए पटेल ने संघ के द्वितीय सरसंघचालक एमएस गोलवलकर, उपाख्य श्रीगुरुजी, से निवेदन किया की वे उस प्रदेश के शासक महाराजा हरीसिंह को इस बात के लिए तैयार करें कि वे अपनी रियासत का विलय भारत में कर दें। भारत की आजादी के बाद भी भारत का गवर्नर जेनरल बना कर रखे गए माउंट बैटन का महाराजा पर दबाव था कि वह मुस्लिम बहुल उस रियासत को पाकिस्तान के साथ मिलने दे।

पटेल ने एक विशेष विमान से 17 अक्तूबर 1947 को श्री गुरु जी को श्रीनगर भेजा। महाराजा हरी सिंह ने श्री गुरु जी का प्रस्ताव स्वीकार करते हुए अपनी रियासत का भारत में विलय करना स्वीकार कर लिया, और 26 अक्तूबर 1947 को विलयपत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। यह बात अलग है कि माउंट बैटन और शेख अब्दुल्ला के षड्यंत्र के अंतर्गत उस वृहत रियासत का एक बड़ा भाग, अक्साई चीन, बाल्टिस्तान, गिलगिट, तथा उत्तरी रियासत के अनेक क्षेत्रों का विलय भारत में नहीं होने दिया गया। इतना ही नहीं, विलय के पश्चात भारत का अभिन्न अंग बन चुकी देव भूमि कश्मीर को भी नेहरू ने विवादास्पद बना दिया, जो आज भी भारत का विशेष ध्यान मांगता है। उस रियासत के भारत में विलय का श्रेय सरदार पटेल को ही जाता है।

9 अगस्त 1948 को जूनागढ़ रियासत के भारत में विलय की घटना भी विचित्र है। पटेल की इच्छाशक्ति का प्रताप इतना प्रचंड था कि रियासत का नवाब एक रात के अंधेरे में भाग कर पाकिस्तान चला गया और जूनागढ़ भारत का अभिन्न अंग बन गया। उस रियासत में ही स्थित सोमनाथ के मंदिर के पुनर्निर्माण का यद्यपि नेहरू ने समर्थन नहीं किया था, और शिक्षामंत्री अबुल कलाम आजाद के इस प्रस्ताव का समर्थन किया था कि मंदिर के भाग्नावशेष पुरातत्व विभाग के संरक्षण में रखे जाएं, किन्तु सरदार पटेल ने दृढ़ता पूर्वक कहा था कि न केवल मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण होगा, अपितु मूर्ति की स्थापना भी विधिवत सम्पन्न होगी। 15 दिसंबर 1950 को पटेल के निधन के बाद राष्ट्र चिति के पोषक एवं संरक्षक केएम मुंशी, जो नेहरू कैबिनेट में मंत्री थे, पटेल के सपनों का मंदिर बनवाया, जनता के पैसों से।24 नवम्बर 1949 को हैदराबाद रियासत का भारत में विलय भी सरदार पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति का परिचायक था, जिस में निजाम के खुले विद्रोह के चलते 2 से 3 लाख लोगों का खून बहा, यद्यपि कांग्रेसी नेता सुंदरलाल की अध्यक्षता में गठित जांच समिति के अनुसार लगभग 40 हजार ही मरे थे। यह भी एक तथ्य है की सरदार पटेल, जिन पर हिन्दू होने और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का समर्थक होने के आरोप लगाए जाते थे, वास्तव में संघ की राष्ट्र निष्ठा के कारण उसके बहुत करीब थे। सरदार पटेल और श्री गुरूजी के बीच हुए पत्राचार से यह बात स्पष्ट होती है। हैदराबाद के विलय पर श्री गुरु जी ने पटेल को बधाई देता हुआ एक पत्र 24 सितम्बर 1948 को लिखा। 24 सितम्बर को ही पटेल ने श्री गुरु जी को पत्रोत्तर में लिखाöप्रिय मित्र, हैदराबाद अभियान की सफल सम्पन्नता पर आप के अभिनंदन संदेश के लिए धन्यवाद। अपना वास्तविक कार्य तो अभी प्रारंभ हुआ है। अनेक शतकों की क्षतिपूर्ति करनी है। प्रत्यक्ष अभियान की भांति इस कार्य में आप जैसे मित्रों की सदिच्छा एवं शुभ कामनाएं हमारे साथ रहेंगी, इसमें हमें कोई संदेह नहीं।

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