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रिजर्व बैंक और सरकार में खींचातानी ठीक नहीं

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:3 Nov 2018 6:16 PM GMT
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शकील सिद्दीकी

सीबीआई मामले में सरकारी हस्तक्षेप का विवाद अभी निपटा ही नहीं था कि रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार के बीच खींचातानी खुलकर सामने आ गई। हाल ही में एक सार्वजनिक व्याख्यान में बैंक के एक उच्च अधिकारी द्वारा सरकारी हस्तक्षेप के दुष्परिणामों को लेकर जो बातें कहीं वे केंद्र सरकार को रास नहीं आईं। इस पूरे घटनाक्रम में पर्दे के पीछे कई ऐसी बातें है जो टकराव की वजह बनें हैं। वास्तव में देखा जाए तो भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार के बीच का टकराव एक अभूतपूर्व घटना के तौर पर सामने आया है। लेकिन ये जो आरबीआई के साथ तकरार की नई घटना सामने आई है, ये परम-अभूतपूर्व घटना है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार आरबीआइ एक्ट के सेक्शन 7 का इस्तेमाल कर सकती है। आज तक किसी भी सरकार ने इस कानून का इस्तेमाल नहीं किया है। रिजर्व बैंक एक्ट के सेक्शन 7 के तहत सरकार जनहित में रिजर्व बैंक को आदेश और निर्देश दे सकती है और सेंट्रल बैंक इन्हें मानने के लिए मजबूर है। लेकिन इसका इस्तेमाल ये बताने के लिए कभी नहीं किया गया कि आरबीआई ऑटोनॉमस संस्थान नहीं है, इंडिपेंडेंट संस्था नहीं है।

पिछले दिनों जो आर्थिक परिस्थिति बनी, उसमें सरकार चाह रही है कि रिजर्व बैंक पैसे दे। क्योंकि सरकार का अपना फिस्कल डेफिसिट सीमा के पास पहुंच रहा है। उधर एमएसएमई को लोन मिलना बंद हो गया है, क्योंकि कमजोर सरकारी बैंकों पर आरबीआई ने नकेल कसी है। अब सरकार चाह रही है कि इसमें ढिलाई हो, जिससे एमएसएमई को पैसा मिलने लगे। वहीं आईएल एंड एफएस के डिफॉल्ट के कगार पर पहुंच जाने के बाद नकदी का संकट खड़ा हो गया। पावर कंपनियों को एनसीएलटी में भेजने के मामले में भी रिजर्व बैंक और सरकार में नहीं बनी।

पिछली सरकार पर तोहमत लगाई गई कि उनके राज में एनपीए बढ़ा, क्रोनी कैपिटलिस्ट लोगों को पैसे दिए गए। लेकिन वास्तविकता ये है कि इस सरकार में एनपीए बढ़ा है, जो 10 लाख करोड़ के आसपास पहुंच चुका है। बैंकरप्सी कानून के सफल होने की रफ्तार भी बहुत सुस्त है. इसके बाद आईएल एंड एफएस वाली खबर के दौरान लोगों का बाजार से भरोसा भी उ"ा, विदेशी निवेशक बाजार से पैसा निकालने लगे और रुपया कमजोर हुआ। अब केंद्र सरकार को अगले चुनाव से पहले अपना फिस्कल डेफिसिट सही रखना है, तो ऐसे में सरकार रिजर्व बैंक से कह रही है, आपके पास रिजर्व में बहुत सारा पैसा है, आप हमें पैसे दे दीजिए। लेकिन ऐसे फैसलों के लिए पहले से ही एक सलाह-मशविरा का सिस्टम होना चाहिए, जो दिख नहीं रहा है। इसकी एक वजह हाल ही में केंद्र द्वारा की गई कुछ नियुक्तियां हैं जिनमें संघ परिवार से जुड़े एस. गुरुमूर्ति के साथ ही स्वदेशी जागरण मंच के एक फ्रमुख कार्यकर्ता उल्लेखनीय हैं। एक दो अधिकारियों की छुट्टी सरकार द्वारा किए जाने से भी बैंक फ्रबंधन के भीतर गुस्सा देखा गया।

इसकी अभिव्यक्ति सार्वजनिक होते ही सरकार ने भी मौन तोड़ा और गत दिवस वित्त मंत्री अरुण जेटली ने रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल के सामने ही अंधाधुंध कर्जा बांटने को वर्तमान समस्या का कारण बताते हुए एनपीए में हुई रिकार्डतोड़ वृद्धि के लिए रिजर्व बैंक को लताड़ा वहीं एनपीए कम करने के लिए उठाए जा रहे कड़े कदमों की व्यवहारिकता पर भी सवाल खड़े कर दिए। दरअसल सरकार की नाराजगी इस संस्थान से इस बात को लेकर है कि मौद्रिक नीतियों की समीक्षा करते समय सरकार की अपेक्षानुसार उसने छोटे कर्जदारों को उपकृत करने के फ्रति उदार रवैया नहीं अपनाया। ब्याज दरें कम नहीं करने और नगदी बढ़ाने के फ्रति उपेक्षाभाव के कारण उद्योग व्यापार जगत भी असंतुष्ट होता गया। बाजार में मांग नहीं उ"ने से मंदी लंबी खिंचती जा रही है।

ब्याज दरों में कारोबारी जगत की अपेक्षानुसार कमी न होने से कीमतें अंतर्राष्ट्रीय मानकों के मुताबिक फ्रतिस्पर्धात्मक नहीं हो पा रहीं। इसकी वजह से निर्यात और आयात का संतुलन बुरी तरह गड़बड़ाता जा रहा है।

सबसे बड़ी चिंता का विषय ये है कि सरकार का वित्तीय घाटा अंतिम तिमाही के पहले ही लक्ष्य के 95 फ्रतिशत तक पहुंच चुका है जिसकी वजह से वार्षिक विकास दर के सारे अनुमान खटाई में पड़ रहे हैं। रिजर्व बैंक से सरकार की नाराजगी का कारण ये भी है कि नोटबंदी के बाद बाजार में मौद्रिक फ्रबंधन को वह नहीं संभाल सका जिसकी वजह से केंद्र सरकार की काफी बदनामी हुईं। दरअसल रिजर्व बैंक के भीतर मोदी सरकार को लेकर जो परेशानी है वह गैर पेशेवर लोगों के हस्तक्षेप की कही जा रही है।

एक बात और है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है कि इतिहास के कई काम पहली बार हो रहे हैं? नोटबंदी, जो रिजर्व बैंक के अख्तियार की चीज थी, उसे प्लेट में लाकर रख दिया गया कि आप कर दीजिए। पहली बार हुआ कि उसके बोर्ड का एक डायरेक्टर निकाला गया, पहली बार हुआ कि जो दो नए डायरेक्टर आए हैं बोर्ड में वो सार्वजनिक जिंदगी में एक विचारधारा के लिए जाने जाते हैं। और अब सेक्शन-7 की तलवार लटक रही है। इसका संकेत पूरी दुनिया में बहुत खराब जाएगा।

ये भी हो सकता है कि स्वायत्तता की आड़ में रिजर्व बैंक सरकार की वित्तीय नीतियों को संभल देने की बजाय उनके क्रियान्वयन में रोड़े अटका रहा हो। सच्चाई जो भी हो लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि रिजर्व बैंक के निर्णयों से न जनता को राहत मिल सकी और न ही सरकार उनसे संतुष्ट हुई। जब एनपीए संकट उजागर हुआ और बड़े बड़े बैंकों की कमर टूटने को आ गई तब रिजर्व बैंक ने डंडा घुमाया लेकिन उससे बड़े घोटालेबाजों का तो जो बिगडना था वह बिगड़ा ही लेकिन छोटा और मझौले किस्म का कर्जदाता उससे त्रस्त होकर बैंकिंग व्यवस्था और केंद्र सरकार दोनों को कोसने लगा।

केंद्र सरकार खुद दोहरी मुसीबत में फंस गई है। यदि वह रिजर्व बैंक पर शिकंजा कसती है तो उस पर इस संस्था की स्वायत्तता भंग करने जैसा आरोप और पुख्ता हो जायेगा और यदि यथास्थिति बनाए रखकर रिजर्व बैंक को उसकी मर्जी से चलने की छूट देती रहती है तो उसका परंपरागत समर्थक उससे विमुख हो जाएगा। न्यायपालिका, सीबीआई और इस तरह की अन्य स्वायत्त संस्थाओं के बाद रिजर्व बैंक को लेकर जो विवाद पैदा हुआ उससे न सिर्प केंद्र सरकार अपितु भाजपा के विरुद्ध भी ये फ्रचार तेज हो चला है कि वह संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज में बेजा दखल दे रही है। सच्चाई जो भी हो लेकिन इस समूचे विवाद ने कई ऐसे पहलू उजागर कर दिए जो अब तक जनता के संज्ञान में नहीं रहे।

आरबीआई और सरकार के बीच हमेशा तनाव रहा है, लेकिन इसको हमेशा लोगों ने अनौपचारिक, ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत से ही सही किया है, टकराकर नहीं. अब सवाल खड़े हो गए हैं कि हम सरकार हैं या हम ही सब हैं? सरकार और रिजर्व बैंक में किसका पक्ष मजबूत है ये तय कर पाना फिलहाल तो संभव नहीं है किंतु इतना तो कहा ही जा सकता है थोड़ी-थोड़ी गलती दोनों पक्षों की है। ये झगड़ा कहां तक जाएगा कहना क"िन है क्योंकि दोनों पक्ष अपने को सही "हराने में जुटे हुए हैं। देखने वाली बात ये होगी कि अधिकारों और अहं की इस लड़ाई में अर्थव्यव्यस्था का कबाड़ा न हो जाए। अभी जो घटना बाहर निकलकर आई है वो बड़ी इसलिए है क्योंकि रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कह दिया कि सरकार रिजर्व बैंक की ऑटोनॉमी को खत्म करने के लिए कुछ ऐसे काम कर रही है जो चिंता का विषय है। इससे मॉनेटरी पॉलिसी को चलाना मुश्किल हो जाएगा। वहीं सरकार ने एक बयान देकर अफ्रत्यक्ष तौर पर ये कहा कि रिजर्व बैंक ने खबर लीक की है। अब केंद्र सरकार को शायद यह फीडबैक मिला है कि सेक्शन-7 को लागू करने के कारण रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा दे देते हैं तो इससे सरकार की किरकिरी होगी। साथ ही पूरी दुनियाभर में यह एक अभूतपूर्व घटना होगी। अगर उर्जित पटेल किसी भी वजह से आरबीआई छोड़कर जाते हैं तो भारत सरकार इस बात की कल्पना नहीं कर सकती कि देश की इकोनॉमी को सिर्प एक दो साल के लिए नहीं, बल्कि कई दशक के लिए बड़ा धक्का लगेगा।

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