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तेल के गिरे दामों से आश्वस्त न हों

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:26 Nov 2018 4:12 PM GMT
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वर्ष 2015 में ईरान के साथ पमुख देशों का एक समझौता हुआ था जिसके अंतर्गत ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के द्वारा लगे हुए पतिबंध को हटा लिया गया था। साथ में ईरान ने अपने परमाणु अस्त्र कार्यक्रम को स्थगित करने का वायदा किया था। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संग"न ने पमाणित किया है कि ईरान परमाणु अस्त्र बनाने के पति कोई कदम नहीं उ"ा रहा है। इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप ने नवम्बर चार से अमेरिकी बैंक के माध्यम से ईरान के साथ लेन-देन बंद कर दिया है।

तेल का व्यापार मुख्यत डॉलर में होता है जो कि अमेरिकी बैंकों द्वारा संचालित किया जाता है। अर्थ हुआ कि ईरान के लिए अपने तेल को बेचना क"िन हो जाएगा। अमेरिका का मानना है कि 2015 में जो संधि हुई थी वह ईरान पर पर्याप्त अंकुश नहीं लगाती है।

उस समय विश्व बाजार में संकट था कि आने वाले समय में ईरान से तेल उपलब्ध होगा या नहीं। ट्रंप ने आदेश दे रखा था कि 4 नवम्बर के बाद यदि कोई देश ईरान से तेल खरीदती हैं अथवा ईरान के साथ धन के लेन-देन में लिप्त होती हैं अथवा ईरान से लिए गए तेल की इंश्योरेंस आदि करती हैं उन कंपनियों पर पतिबंध लगा दिया जाएगा।

विश्व बाजार को संदेह था कि नवम्बर से विश्व बाजार में तेल की उपलब्धि कम हो जाएगी इसलिए उस समय तेल के दाम ऊपर चढ़ रहे थे। सितम्बर के अंत में कच्चे तेल का अंतर्राष्ट्रीय मूल्य 85 रुपए पति बैरल हो गया था। इसके बाद अमेरिका ने भारत समेत आ" देशों को फिलहाल ईरान से तेल खरीदने की छूट दे दी है। इसको देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम पुन पुराने 65 रुपए पर आ टिके है। लेकिन मूल संकट विद्यमान है। अमेरिका और ईरान के बीच जो गतिरोध चल रहा है वह किसी भी समय पुन उभर सकता है। इसलिए हमें इस विषय पर एक दीर्घकालीन नीति बनानी होगी।

अमेरिका का मानना है कि ईरान द्वारा आतंकवादी आदि गतिविधियों को समर्थन दिया जा रहा है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और रूस, अमेरिका के इस एकतरफा निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ईरान पर दोबारा पतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। उनकी इच्छा है कि अमेरिका के द्वारा लगाए गए पतिबंध के बावजूद ईरान से तेल को खरीदा जा सके। इसके लिए उन्होंने एक वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था बनाने के पयास शुरू किए हैं जिसके अंतर्गत ईरान से खरीदे गए तेल का पेमेंट अमेरिकी वित्तीय व्यवस्था से बाहर होगा।

इन देशों के इस कदम से वर्तमान में जो डॉलर का विश्व अर्थव्यवस्था पर अधिपत्य है उस पर चोट आएगी। तेल की वैकल्पिक व्यवस्था चालू हो जाने के बाद यह व्यवस्था अन्य सभी वित्तीय लेन-देन में लागू हो सकती है और विश्व की डॉलर के ऊपर निर्भरता न्यून हो जाएगी।

2015 के पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर पतिबंध लगाए गए थे। उस समय भी भारत ने ईरान से तेल खरीदना जारी रखा था। भारत ने ईरान से खरीदे गए तेल का आधा भुगतान ईरान फेडरल बैंक की मुंबई शाखा में रुपयों को जमा करा दिया था। ईरान ने उस रकम का उपयोग भारत से माल खरीदने के लिए उपयोग किया। भारत पयास कर सकता है कि ईरान से खरीदे गए तेल का सौ पतिशत पेमेंट ईरान फेडरल बैंक को कर दिया जाए। ऐसा करने पर भारत द्वारा ईरान से तेल की खरीद जारी रह सकेगी।

इस परिस्थिति में हमको तय करना है कि भारत अमेरिका का साथ देगा अथवा जर्मनी का? अमेरिका का साथ देंगे तो आने वाले समय में अमेरिका की हार होने पर उससे हम पर भी दुष्पभाव पड़ेगा। इसके अलावा अमेरिका का साथ देने पर हमको ईरान से तेल की खरीद कम करना पड़ेगा जिससे अपने देश में तेल के दाम में और वृद्धि होगी। मेरा मानना है कि हमें जर्मनी आदि देशों के साथ मिलकर ईरान से तेल की खरीद जारी रखनी चाहिए। यहां विषय यह भी है कि अमेरिका के साथ जुड़े रहने से हम अमेरिका के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं कि वह आतंकवादी आदि गतिविधियों को कम करे। यदि इस सामरिक विषय को महत्व दिया जाता है तब ही अमेरिका के साथ रहना उचित होता है अन्यथा अमेरिका के साथ रहना हमारे लिए हानिपद होगा।

विषय का दूसरा पक्ष रुपए के दाम में आ रही निरंतर गिरावट है। रुपए के दाम गिरने से अपने देश में आयातित कच्चा तेल महंगा हो जाता है। एक डॉलर के कूड आयल का आयात करने पर एक वर्ष पूर्व हमें 62 रुपए अदा करने पड़ते थे तो आज उसी तेल का आयात करने में हमें 72 रुपए का भुगतान करना होगा। प्रश्न है कि रुपया क्यों लुढ़क रहा है? सच यह है कि बीते समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की पतिस्पर्धा शक्ति कम हुई है। तेल के अतिरिक्त तमाम विदेशी माल भारी मात्रा में भारत में प्रवेश कर रहे हैं जैसे चीन में बने खिलौने, फुटबाल, इत्यादि।

कारण यह कि जीएसटी के कारण जमीनी स्तर पर छोटे उद्योगों के ऊपर दुष्पभाव पड़ा है और उनके द्वारा जो निर्यात होते थे वे दबाव में आ गए हैं। जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि हुई है। जीएसटी और जमीनी भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण भारतीय उद्योग की उत्पादन लागत ज्यादा आ रही है और इस कारण हम अपने माल का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हमारे माल की उत्पादन लागत ज्यादा होने के कारण विदेशी उत्पादकों को भारत में अपना माल बेचना आसान हो गया है।

नौकरशाही के भ्रष्टाचार और जीएसटी के अनुपालन के पेंचों को हम यदि दूर नहीं करेंगे तो अपनी उत्पादन लागत ज्यादा बनी रहेगी, रुपया लुढ़केगा और तदानुसार तेल का दाम पुन बढ़ेगा। अत सरकार को चाहिए कि ईरान से तेल के आयात बने रहें इसके लिए कदम उठाए और नौकरशाही के भ्रष्टाचार और कानूनी पेंचों से उद्योगों को निजात दिलाए।

अमेरिका तथा ईरान के बीच गतिरोध वर्तमान में कुछ नम पड़ गया है परंतु मूलत गतिरोध कभी भी पुन आ सकता है। ऐसे में फिर से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ेंगे और हमारे सामने दोबारा संकट पैदा हो जाएगा। इसलिए हमको समय रहते ईरान के साथ रुपए में पेमेंट करने की व्यवस्था करनी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि ईरान किन देशों से माल खरीदता है। और उन देशों के साथ मिलकर एक वैकल्पिक व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे भारत द्वारा तेल का पेमेंट रुपए में किया जाए और उन रुपए से ईरान श्रीलंका से चाय खरीद सके। इस व्यवस्था को बनाने में समय लगेगा इसलिए समय रहते हमें कदम उ"ाने चाहिए।

डॉ. भरत झुनझुनवाला

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