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मी टू कितनों का जीवन नष्ट करेगा?

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:27 Nov 2018 3:57 PM GMT
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`मी टू' झाड़ी में छिपे हुए ऐसे शेर की तरह हो गया है, जो अचानक झपट्टा मारकर कब किसको निगल जाएगा, कहा नहीं जा सकता? उसके ताजा शिकार पसिद्ध फिल्म-अभिनेता आलोक नाथ हुए हैं। कुछ दिनों पहले चर्चा सामने आई थी कि आलोक नाथ पर किसी ने `मी टू' वाला आरोप लगाया है, किन्तु अब समाचार आया है कि उनके विरुद्ध मुम्बई के एक थाने में रिपोर्ट भी दर्ज हो गई है। आश्चर्य नहीं कि उनकी गिरफ्तारी का समाचार सुनने को मिले। आलोक नाथ फिल्म-जगत के ऐसे अभिनेता हैं, जिन्होंने न केवल आदर्श भूमिकाओं में भारी ख्याति अर्जित की है, बल्कि निजी जीवन में भी उनकी बहुत पतिष्"ा रही है। वह सरल एवं सात्विक पकृति के व्यक्ति माने जाते हैं। इसीलिए जब उन पर `मी टू' वाला आरोप लगा तो लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। इससे पहले `मी टू' पसिद्ध पत्रकार एवं पखर राष्ट्रवादी एमजे अकबर की बलि ले चुका है। इस आरोप के कारण उन्हें केंद्रीय मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। `मी टू' के जिन्न को पगट हुए अधिक समय नहीं हुआ है। कुछ महीने पहले उसका अचानक अवतरण हुआ तथा आते ही उसने सुनामी की तरह लोगों को निगलना शुरू कर दिया। `मी टू' के दो शब्दों ने विशेष रूप से ऐसे लोगों को निशाना बनाकर हलचल पैदा कर दी, जिनकी छवि अच्छी व साफ-सुथरी मानी जाती रही है।

`मी टू' थोड़े समय में भारी शोहरत पाप्त कर चुका है, लेकिन मजे की बात यह है कि बहुतों को दो शब्दों के इस जोड़े का अर्थ अभी भी नहीं मालूम है। इसका शाब्दिक अर्थ `मैं भी' हुआ, जिसका तात्पर्य यह है कि आरोप लगानेवाले व्यक्ति के साथ कभी किसी ने जबरदस्ती सेक्स-संबंध स्थापित किया था। पंद्रह-बीस साल पहले तक की घटनाओं को आधार बनाकर इस पकार के आरोप लगाए जा रहे हैं। जिन लोगों पर आरोप लग रहे हैं, उनमें केवल एक वर्ग के लोग नहीं, बल्कि सभी वर्गों के लोग शामिल हैं। नेता, पत्रकार, कलाकार, डॉक्टर, वैज्ञानिक, खिलाड़ी आदि कोई भी वर्ग नहीं बचा है। आरोपों की इस झड़ी में हर व्यक्ति को आशंका होने लगी है कि कहीं उस पर भी न आरोप लग जाय। यदि उस पर यह आरोप लगा दिया गया कि उसने एक या दो दशक पूर्व आरोपकर्ता से सेक्स-संबंध स्थापित किया था तो वह अपने निर्देष होने का पमाण कहां से लाएगा? `मी टू' के `अभियान' में अदालत में मामला पहुंचे बिना ही आरोपित व्यक्ति इस रूप में दंडित हो रहा है कि उसकी छवि पर कालिख लग गई है। यह पश्न भी उ" रहा है कि इतने पुराने मामले अदालत में सिद्ध कैसे होंगे? इसी से ऐसा भी कहा जा रहा है कि `मी टू' के आरोप लगाने वालों की नीयत साफ नहीं है तथा उनका मूल मकसद किसी का चरित्र-हनन करना या `ब्लैकमेलिंग' करना है। एक पुरानी कहावत है कि यदि औरत बेहयाई पर उतर आए तो उससे शैतान भी नहीं जीत सकता है।

सेक्स ऐसी सामान्य पाकृतिक आवश्यकता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसका जीवन में कभी न कभी सेक्स से साबका न पड़ा हो। जब व्यक्ति सेक्स के बारे में अनजान होता है, उस उम्र में ही उसके जीवन में इस तरह की घटनाएं घटित हो जाती हैं। उस उम्र में स्वयं मेरे साथ ऐसी तमाम घटनों हुईं। एक नौकरानी मुझे छत पर ले जाकर सेक्स किया करती थी। पड़ोस की एक लड़की भी ऐसा करती थी। अन्य विभिन्न घटनों हुईं। कायदे से मुझे भी ढूंढकर उन लोगों पर `मी टू' के अंतर्गत आरोप लगाने चाहिए। किन्तु अभी तक जो उदाहरण सामने आए हैं, उनमें स्त्रियों द्वारा ही पुरुषों पर आरोप लगाए गए हैं। ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जिनमें महिलाओं द्वारा नाजायज सेक्स-संबंध स्थापित किया जाता है। गुप्त रूप से ऐसे सेक्स-क्लब संचालित हो रहे हैं। अन्य नगरों के अलावा लखनऊ के कतिपय मशहूर होटलों के बारे में सुना जाता है कि उनमें ऐसा कार्य होता है। सुनने में आया है कि कुछ युवक ऐसे अड्डों पर जाते हैं, जहां उन्हें सेक्स-क्रिया करने के रुपए मिलते हैं तथा इससे उन्हें नियमित रूप से मोटी कमाई होती है। अक्सर सुनने में आता है कि सौ-पचास रुपए देकर कॉलेज अथवा मुहल्ले की लड़कियों से सेक्स कर लिया जाता है तथा तमाम लड़कियों ने इसे अपनी कमाई का जरिया बना लिया है। इसी से एक वेश्या ने साक्षात्कार लेने वाले एक वरिष्" पत्रकार से कहा था कि वेश्यावृत्ति अब को"ाsं से निकलकर को"ियों में चली गई है। एक मनोवैज्ञानिक का कथन है कि पाश्चात्य भोगवादी संस्कृति हमारे यहां जिस पकार बड़े पैमाने पर हावी हो गई है, उससे शीघ्र ही `खुले सेक्स' का दौर हमारे यहां आ जाएगा। सर्वेच्च न्यायालय ने बिना विवाह किए साथ रहने (लिव इन रिलेशन) की छूट दे ही दी है। तथाकथित पत्रकार एवं वामपंथी लंकिनी (गौरी लंकेश) इस विचार की पक्षधर थी कि पिता-पुत्री एवं मां-बेटे के बीच सेक्स-संबंध अनुचित नहीं हैं।

`मी टू' वाले जो पकरण सामने आ रहे हैं, उनसे तो ऐसा परिलक्षित होता है कि जानबूझकर गड़े मुरदे उखाड़े जा रहे हैं। अधिक संभावना यह है कि आरोप लगानेवाले के साथ बलात्कार नहीं किया गया, बल्कि दोनों के बीच कभी पेम-संबंध था, जो परस्पर रजामंदी से सेक्स-संबंध का रूप ले बै"ा। यदि ऐसा नहीं था तो आरोपकर्ता ने उसी समय क्यों नहीं आवाज उ"ाई? जब उस समय आवाज उ"ाने की हिम्मत नहीं थी तो आज इतने वर्षों के अंतराल के बाद अचानक वह हिम्मत कहां से आ गई? चूंकि सेक्स एक स्वाभाविक क्रिया है, इसलिए यह हो सकता है कि उस घटना में जाने-अनजाने वह क्रिया हो गई हो। सेक्स की स्वाभाविक क्रिया में ही विभिन्न पकार के मैथुन आदि होते हैं। सेक्स के उक्त स्वाभाविक रूप एवं बलात्कार में बहुत अंतर है। बलात्कार को कदापि क्षमा-योग्य नहीं माना जा सकता है, क्योंकि उसमें ताकत का इस्तेमाल कर या धोखाधड़ी से सेक्स-संबंध स्थापित किया जाता है।

जो भी हो, `मी टू' जिस रूप में चल रहा है, वह तमाशा बनकर रह गया है, इसलिए उसे बंद किया जाना चाहिए। निराधार आरोप लगाकर या गड़े मुरदे उखाड़कर किसी का भविष्य नष्ट करने का `खेल' कुछ ही महीनों में बहुत व्यापक हो गया है। `नारी सशक्तीकरण' में यह जागरुकता पैदा होनी चाहिए कि भविष्य में किसी नारी के साथ अन्याय न होने पाए। किन्तु यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जागरुकता सकारात्मक हो, न कि नकारात्मक। उसका दुरुपयोग कदापि नहीं होना चाहिए। `जागरुकता' का दुरुपयोग कहीं भी, किसी भी रूप में नहीं होना चाहिए। इसका ताजा उदाहरण कानपुर स्थित भारतीय पौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) का है, जहां कुछ वरिष्" पोफेसरों पर दलित-उत्पीड़न के नाम पर मुकदमा दर्ज कराकर उनका भविष्य नष्ट कर देने का पकरण सामने आया तथा उस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को उन पोफेसरों की गिरफ्तारी पर रोक का आदेश देना पड़ा।

श्याम कुमार

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