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पयागराज' हेतु साठ वर्ष की साधना

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:30 Nov 2018 3:29 PM GMT
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श्याम कुमार

हिन्दू संस्कृति में तीर्थों का जो राजा माना जाता है, उसके नाम पर 444 वर्ष पूर्व जो काला धब्बा लगा था, वह काला धब्बा `पयागराज' नामकरण होने से मिट गया है तथा इससे मेरी आत्मा को जो तृप्ति मिली है, उसका मैं वर्णन नहीं कर सकता। `पयागराज' नामकरण के लिए मैंने जो क"ाsर दीर्घकालिक साधना की, उसका लोग अनुमान नहीं लगा सकते हैं। इलाहाबाद का नाम `पयाग' या `पयागराज' करने का मेरा अभियान विगत लगभग सा" वर्षों से चल रहा था। मैंने ग्यारहवीं कक्षा तक आधे से ज्यादा भारत घूम डाला था और मैंने देखा था कि सभी जगह इलाहाबाद का नाम `पयाग' या `पयागराज' के रूप में अधिक जाना जाता है। जितने तीर्थस्थलों पर मैं जाता था, वहां इन्हीं दोनों में से कोई एक नाम पचलित मिलता था। तीर्थों में लोग यह जानकर कि मैं पयागराज से आया हूं, मुझे विशेष महत्व देते थे। धार्मिक पुस्तकों में भी सर्वत्र `पयाग' या `पयागराज' नाम ही पचलित मिलते रहे हैं। 1961 में जब मैं इलाहाबाद में देश के पमुख राष्ट्रीय दैनिक `भारत' में मुख्य संवाददाता एवं स्थानीय समाचार सम्पादक बना तो मैं अपने पधान सम्पादक शंकर दयालु श्रीवास्तव से अनुमति लेकर अखबार में इलाहाबाद के बजाय `पयाग' नाम का उपयोग करने लगा। साथ में शासन से इस मांग का मेरा अभियान भी चल रहा था कि औपचारिक रूप से इलाहाबाद का नाम बदलकर `पयाग' या `पयागराज' रख दिया जाए। मेरे अभियान से पभावित होकर बहुत लोग इलाहाबाद के बजाय `पयाग' लिखने लगे थे। इलाहाबाद से दिल्ली के लिए जब एक नई ट्रेन चलाई गई तो उस समय रेलवे बोर्ड के यातायात-सदस्य रामेश्वर पसाद ंिसंह ने, जो मेरे मित्र थे, मुझसे उस नई ट्रेन के नामकरण हेतु पूछा था। मेरे सुझाव पर उन्हेंने उस ट्रेन का नामकरण `पयागराज एक्सपेस' किया था।

1966 में पयाग में जो महाकुम्भ हुआ, उसमें भी मैंने इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का जोरदार अभियान चलाया तथा पूरे महाकुम्भ-क्षेत्र में घूम-घूमकर मैंने हजारों संत-महात्माओं से नाम-परिवर्तन के ज्ञापन पर हस्ताक्षर कराए थे और वह ज्ञापन पदेश के मुख्यमंत्री के पास भेजा था। उसी महाकुम्भ के दौरान मैंने `रंगभारती' के तत्वावधान में पयाग हिन्दी साहित्य सम्मेलन में एक विशाल संत-साहित्यकार सम्मेलन आयोजित किया था, जिसकी अध्यक्षता महामण्डलेश्वर स्वामी पकाशानन्द जी महाराज ने की थी तथा मुख्य अतिथि हिन्दी की महान साहित्यकार महादेवी वर्मा थीं। उसमें कुम्भ क्षेत्र में पधारे हुए पायः सभी महत्वपूर्ण संत-महात्मा तथा बड़ी संख्या में साहित्यकारगण शामिल हुए थे। उस संत-साहित्यकार सम्मेलन में महामण्डलेश्वर स्वामी वेदव्यासानन्द जी महाराज ने मेरा तैयार किया हुआ पस्ताव पस्तुत किया था, जिसमें पदेश एवं केन्द सरकार से मांग की गई थी कि इलाहाबाद का नाम `पयाग' या `पयागराज' कर दिया जाए। वह पस्ताव सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ था। चूंकि वह कांग्रेसी जमाना था और कांग्रेस को पाचीन भारतीय संस्कृति से विरक्ति रहती थी, इसलिए उक्त पस्ताव पर सरकार की स्वीकृति नहीं मिली।

1991 में उत्तर पदेश में कल्याण सिंह के नेतृत्व में पहली भाजपा-सरकार ग"ित हुई। उस समय अयोध्या-आंदोलन की बदौलत लालकृष्ण अडवानी की भांति कल्याण सिंह भी पूरे देश के महानायक बने हुए थे। उत्तर पदेश में कल्याण ंिसह की छवि बेजोड़ थी। उनका अत्यंत "सकदार मुख्यमंत्री का रूप था। सारे अपराधी तत्व पदेश छोड़कर बाहर भाग गए थे और जो बचे थे, वे जेल में डाल दिए गए थे। कल्याण सिंह की उस यशस्वी सरकार को लोग अभी तक याद करते हैं। उस समय सीतापुर के पसिद्ध नेता राजेन्द कुमार गुप्त कल्याण सिंह के विशेष विश्वासपात्र थे तथा दोनों में महत्वपूर्ण विषयों पर विचार-विमर्श हुआ करता था। राजेन्द कुमार गुप्त से मेरी पहले से बहुत घनिष्"ता थी। कल्याण सिंह की सरकार में राजेन्द कुमार गुप्त वित्तमंत्री बनाए गए थे। एक दिन मैं राजेन्द कुमार गुप्त के पास मुख्यमंत्री को सम्बोधित अपना एक पत्र लेकर पहुंचा, जिसमें मेरी `रंगभारती' संस्था द्वारा मांग की गई थी कि इलाहाबाद का नाम बदलकर `पयाग' या `पयागराज' रखा जाय। राजेन्द कुमार गुप्त ने मेरे सामने ही कल्याण सिंह को फोन कर मेरी मांग का उल्लेख किया और उनसे बातें कीं। फिर उन्होंने मुझे बताया कि कल्याण सिंह मेरी मांग से सहमत हैं। मैं राजेन्द कुमार गुप्त को अपनी मांग का बार-बार स्मरण करा रहा था। एक दिन उन्होंने मुझे बताया कि पदेश सरकार ने मेरी मांग को स्वीकार कर लिया है तथा इलाहाबाद का नाम `पयाग' हो जाएगा।

राजेन्द कुमार गुप्त से यह जानकारी मिलते ही मैंने उक्त आशय का समाचार विभिन्न अखबारों में पकाशनार्थ भेज दिया था, जिसके बाद इलाहाबाद में दैनिक `आज' सहित अन्य कई अखबारों ने अपने यहां `डेटलाइन' आदि में पयाग लिखना शुरू कर दिया था। अयोध्या का विवादित ढांचा गिरने के बाद 6 दिसम्बर, 1992 को कल्याण सिंह की सरकार केन्द द्वारा बर्खास्त कर दी गई थी। उसके अन्य दुष्परिणामों के साथ एक दुष्परिणाम यह भी हुआ कि इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का मामला पता नहीं कहां गायब हो गया। दूसरी बार कल्याण सिंह वर्ष 1997 में पुनः मुख्यमंत्री बने तो मैंने उन्हें इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन का पकरण याद दिलाया। उन्होंने वह कार्य पूरा करने का वायदा किया, किन्तु तभी भाजपा के एक गुट द्वारा कल्याण सिंह को हटाने का अभियान शुरू कर दिया गया तथा उन्हें उसमें उलझे रहना पड़ा। दो वर्ष में वह हट भी गए। इसके बाद उत्तर पदेश में वर्ष 2000 में जब राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने तो इलाहाबाद में वर्ष 2001 में पूर्ण महाकुम्भ आयोजित हुआ था। राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री बनते ही मैंने उन्हें इलाहाबाद के नाम-परिवर्तन से सम्बंधित अनुरोधपत्र देना शुरू कर दिया था। यहां तक कि `जनता दर्शन' में भी मैंने उन्हें अपने ज्ञापन पेश के और इलाहाबाद का नाम `पयागराज' करने का अनुरोध किया। उन्होंने भी मेरे अनुरोध की पशंसा करते हुए मुझे आश्वासन दिया कि मेरी मांग वह अवश्य पूरी करेंगे। मैं उनसे कहता था कि आप सिर्फ आश्वासन न दें, बल्कि मंत्रिपरिषद द्वारा पस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकृत कराएं।

होते-होते पयाग का वह महाकुम्भ समाप्त हो गया तथा समाप्ति के बाद लखनऊ में एक आयोजन हुआ, जिसमें महाकुम्भ के संदर्भ में अनेक लोगों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। उस आयोजन में मैंने कई संत-महात्माओं को पहले से पेरित कर रखा था कि वे इलाहाबाद का नाम `पयागराज' करने का मुख्यमंत्री पर दबाव डालें। ऐसा ही हुआ। आयोजन में मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से जोरदार शब्दों में घोषणा की कि इलाहाबाद का नाम अब `पयागराज' कर दिया जाएगा। लेकिन दुर्भाग्यवश पदेश के दूसरे भाजपा-मुख्यमंत्री की भी नाम-परिवर्तन वाली उक्त घोषणा पता नहीं कहां विलुप्त हो गई। मैंने डॉ. मुरली मनोहर जोशी पर भी `पयागराज' नाम के जाने का दबाव बनाया था और मुझे आशा थी कि अटल-सरकार के समय मेरी मांग पूरी हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

इलाहाबाद के केशव पसाद मौर्य जब उत्तर पदेश भाजपा के अध्यक्ष बनकर आए तो मैंने उनसे पहली ही भेंट में मांग की कि वह इलाहाबाद का नाम `पयागराज' के जाने की मेरी मांग को बल पदान करें। उन्होंने बताया कि वह स्वयं इस विचार के समर्थक हैं। मैंने उन्हें बाद में भी अनेक बार अपनी मांग का स्मरण कराया और `पयागराज' नाम के जाने के बारे में मैंने जो आलेख लिखे थे, उनकी पतियां भेंट कीं। सौभाग्यवश उत्तर पदेश की बागडोर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथ में आई तथा उनका तन-मन भारतीय संस्कृति से ओतपोत है। उन्होंने इलाहाबाद का नाम `पयागराज' के जाने पर सहमति व्यक्त की थी। उन्होंने स्वयं भी `पयागराज' नाम इस्तेमाल करना शुरू किया। मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह मंत्रिपरिषद द्वारा स्वीकृत पस्ताव तुरंत केन्द सरकार के पास भेजकर आग्रह करें कि वह अविलम्ब रेल आदि समस्त केन्दीय विभागों में इलाहाबाद के बजाय `पयागराज' नाम कर दे।

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