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ईश निंदा कानून : इस्लामी या गैर इंसानी?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:2 Dec 2018 3:13 PM GMT
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तनवीर जाफरी

पाकिस्तान का विवादित एवं बहुचर्चित ईश निंदा कानून इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में छाया हुआ है। पाकिस्तान की एक ईसाई महिला आसिया बीबी पर यह आरोप था कि उसने 14 जून 2009 को अपनी एक मुस्लिम महिला मित्र से वार्तालाप के दौरान इस्लाम धर्म के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का पयोग किया था जबकि आसिया बीबी अपने ऊपर लगने वाले इस आरोप का जोरदार खंडन करती रही है।

बहरहाल आसिया के साथ काम करने वाली मुस्लिम महिलाओं द्वारा उसके विरुद्ध पैगंबर हजरत मोहम्मद के अपमान का मामला दर्ज करा दिया गया और निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में आसिया बीबी को मौत की सजा सुना दी। इस सजा के विरुद्ध सुपीम कोर्ट में आसिया की अपील मंजूर हो गई जिसके बाद सुपीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बैंच ने गत आठ अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस मियां साकिब मीर ने अपना अभूतपूर्व निर्णय सुनाते हुए सभी निचली अदालतों के फैसलों को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया कि `आसिया बीबी की सजा वाले फैसले को नामंजूर किया जाता है और यदि अन्य किसी मामले में उन पर कोई मुकदमा नहीं है तो आसिया को फौरन रिहा किया जाए।'

आसिया बीबी के मामले में अपना फैसला देते हुए अदालत ने कुछ और ऐसी टिप्पणियां भी जोड़ी हैं जो पाकिस्तान में ईश निंदा कानून से संबंधित उग्रता, आकामकता, हिंसा अन्याय तथा कट्टरपंथ को उजागर करती हैं। उदाहरण के तौर पर जस्टिस आसिफ सईद खोसा ने यह तो स्वीकार किया कि पैगंबर हजरत मोहम्मद अथवा कुरान शरीफ का अपमान करने की सजा उम्रकैद अथवा सजा-ए-मौत है। परंतु उन्होंने साथ-साथ यह भी कहा कि इस तरह का गलत व झूठा इल्जाम भी लोगों पर लगा दिया जाता है। इसी पकार के मशाल खां व अयूब मसीह जैसे मुकदमों का हवाला देते हुए अदालत ने यह भी कहा कि गत 28 वर्षों में अदालत का निर्णय आने से पूर्व ही 62 आरोपियों की इस कानून के समर्थकों द्वारा स्वयं ही हत्या कर दी गई।

गौरतलब है कि ईश निंदा कानून की पुनर्समीक्षा करने के समर्थक पंजाब पांत के गवर्नर सलमान तासीर की 2011 में उन्हीं के एक अंगरक्षक मुमताज कादरी द्वारा हत्या कर दी गई थी। वे ईश निंदा कानून के विरोधी थे। इस संदर्भ में एक बात और भी अत्यंत चिंताजनक है कि जब-जब किसी हत्यारे द्वारा ऐसे किसी व्यक्ति की हत्या की गई तब-तब उस हत्यारे को कट्टरपंथी पाक अवाम का भरपूर समर्थन हासिल हुआ है। यहां तक कि सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी पर तो अदालत की पेशी के दौरान स्वयं वकीलों के एक समूह द्वारा फूलों की वर्षा तक की गई।

इस समय आसिया बीबी के संबंध में अदालती फैसला आने के बाद पूरे पाकिस्तान में एक बार फिर उबाल आया हुआ है। एक ओर तो पूरा विश्व आसिया बीबी की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। पाकिस्तान में आम लोगों को यह पता ही नहीं कि रिहाई के बाद आसिया बीबी को किस जगह पर रखा गया है। आसिया बीबी के वकील के देश छोड़कर चले जाने की खबर है। उसके पति आश्कि मसीह द्वारा एक वीडियो संदेश में ब्रिटेन, अमेरिका व कनाडा के नेताओं से मदद मांगी जा रही है तो दूसरी ओर स्कॉटलैंड के ईसाई नेताओं द्वारा आसिया बीबी को स्कॉटलैंड में शरण देने की मांग की गई है। उधर पाकिस्तान के लगभग सभी पमुख शहरों में कट्टरपंथी कठमुल्लों द्वारा आसिया बीबी को फांसी दिए जाने की मांग तो की ही जा रही है साथ-साथ अदालत को सार्वजनिक तौर पर लानत भी भेजी जा रही है और अदालत के फैसले को स्वीकार करने से इंकार किया जा रहा है। पाकिस्तान में बावजूद इसके कि ईश निंदा कानून व इससे संबंधित मामले चर्चा में तो जरूर रहते हैं। परंतु आज तक इस आरोप में किसी भी व्यक्ति को फांसी नहीं दी गई। बजाय इसके इससे संबंधित अधिकतर मामले फर्जी ही पाए गए। 2016 में 40 लोगों को ईश निंदा कानून के तहत मौत या सजा-ए-मौत या उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। हां इतना जरूर है कि इस कानून की आड़ में कई धर्मस्थलों को कट्टरपंथियों द्वारा तहस-नहस कर दिया गया। यहां तक कि ऐसे कई आरोपियों को भीड़ द्वारा जिंदा भी जला दिया गया। 1990 से लेकर अब तक ईश निंदा कानून के आरोपों का सामना करने वाले 60 से अधिक लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। इनमें लगभग आधे आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित थे। पाकिस्तान में अब जनता से लेकर अदालत तक में यह धारणा पबल हो चुकी है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी लोग ईश निंदा कानून की आड़ में आपसी दुश्मनी भी निकाल रहे हैं तथा लोगों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें फंसाया जा रहा है।

जहां तक इस कानून की उत्पति का प्रश्न है तो सर्वपथम 1860 में अंग्रेजों द्वारा धर्म से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए यह कानून बनाया गया था। इसके बाद जनरल जिया-उल-हक की हुकूमत में ईश निंदा कानून को और अधिक सख्त बना दिया गया। 1982 में इसमें संशोधन कर पहले कुरान शरीफ के अपमान करने पर मौत की सजा या उम्रकैद दिए जाने का पावधान किया गया। उसके बाद 1986 में पैगंबर हजरत मोहम्मद का अपमान किए जाने पर भी उम्रकैद अथवा फांसी की सजा तय कर दी गई। आगे चलकर 1991 में पाकिस्तान की शरीया अदालत ने हजरत मोहम्मद के अपमान के दोषी को केवल फांसी की सजा दिए जाने के रूप में परिवर्तित कर दिया गया। आज पाकिस्तान में धर्म की यही अफीम सिर चढ़कर बोल रही है। इस संदर्भ में शरीया अदालतों तथा इनके माध्यमों से सुनाई जाने वाली सजा-ए-मौत के पैरोकारों से कुछ सवाल पूछने बेहद जरूरी हैं।

मिसाल के तौर पर सलमान तासीर के विषय को ही लिया जए तो सलमान तासीर या शाहबाज भट्टी ने न तो स्वयं ईश निंदा की थी न ही वे इसके दोषी थे। ऐसे में जिन लोगों ने उनकी हत्या की क्या यह हत्या इस्लामी नियमों, सिद्धांतों या कुरान शरीफ की किसी शिक्षा पर आधारित सोच द्वारा की गई थी? क्या इस्लाम धर्म में हजरत मोहम्मद के जीवनकाल से जुड़ी कोई ऐसी घटना का जिक कहीं खलीफाओं या इमामों के दौर में दिखाई देता है जिसमें ईश निंदा करने वालों को फांसी पर लटकाया गया हो या उन्हें जिंदा जलाकर मारा गया हो?

हजरत मोहम्मद पर कूड़ा फेंकने वाली यहूदी बुजुर्ग महिला के बीमार पड़ने पर उनका उसकी खैरियत पूछने के लिए जाना व उसे स्वस्थ होने की दुओं देने जैसी घटना हमें ईश निंदा करने वालों को जिंदा जलाने की ही पेरणा देती है?

जो इस्लाम धर्म किसी एक व्यक्ति की हत्या को पूरी मानवता की हत्या बताता हो उस इस्लाम धर्म में ईश निंदा करने वालों को फांसी की सजा, सजा-ए-मौत या जिंदा जलाए जाने जैसी व्यवस्था आखिर कैसे हो सकती है? दरसअल भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों में इस समय ऐसी कट्टरपंथी शक्तियां अपने पांव तेजी से पसार रही हैं जो कट्टरपंथी सोच के विस्तार में लगी हुई हैं। और आम लोगों को धार्मिक भावनाओं में उलझाकर अपना जनाधार बढ़ाना चाह रही हैं। बेगुनाह लोगों की लाशों पर सवार होकर यह शक्तियां सत्ता तक पहुंचने का सफर आसान करना चाहती हैं। पूरे विश्व के उदारवादी समाज को ऐसे लोगों के मानवता विरोधी पयासों का मुंह तोड़ जवाब देने की जरूरत है। अन्यथा ऐसी इंसानी दुश्मन ताकतों का तेजी से होता जा रहा पसार पूरे विश्व को बारूद के ढेर पर बिठा देगा।

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