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महोत्सव ने मुख्यमंत्री की भी नहीं सुनी

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:4 Dec 2018 3:51 PM GMT
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श्याम कुमार

`लखनऊ महोत्सव' का उद्घाटन करते हुए योगी आदित्यनाथ ने यह अत्यंत महत्वपूर्ण बात कही थी कि महोत्सव को सिर्प मनोरंजन का ही नहीं, अपनी परंपराओं से जुड़ने का माध्यम होना चाहिए। वर्ष 80 के दशक में जब `लखनऊ महोत्सव' आरंभ हुआ था तो उसका स्वरूप एवं उद्देश्य वैसा ही निर्धारित किया गया था, जैसे उद्गार योगी आदित्यनाथ ने व्यक्त के। तब `लखनऊ महोत्सव' को लखनऊ के निर्माता लक्ष्मणजी के पति `श्रद्धा-सुमन' का कलेवर दिया गया था। `लखनऊ महोत्सव' की स्मारिका का नाम लक्ष्मणजी की पत्नी के नाम पर `उर्मिला' रखा गया था। किन्तु उसके बाद पदेश में जो पार्टियां सत्तारूढ़ हुईं, उनमें वोट बैंक के लालच में मुस्लिमपरस्ती की ऐसी होड़ शुरू हुई कि वह होड़ हिन्दू-विरोध के रूप में बदलती गई। मुस्लिमपरस्ती के उस भूत ने बीच में आई भाजपा-सरकारों का भी पीछा नहीं छोड़ा। उक्त दुष्पवृत्ति का दुष्पभाव `लखनऊ महोत्सव' पर पड़ा तथा उसे लक्ष्मणजी से दूर कर लखनऊ के नवाबों से जोड़ दिया गया। यह गलतफहमी पैदा की जाने लगी कि नवाबों से पहले लखनऊ में कुछ था ही नहीं तथा नवाबों के तौरतरीके एवं तीतर-बटेरबाजी जैसे फितूर ही अवध की संस्कृति हैं। अफसर चूंकि अपना उल्लू सीधा करने में माहिर होते हैं, इसलिए वे बहती गंगा में हाथ धोने कूद पड़े तथा उन्होंने `लखनऊ महोत्सव' को `नवाबी महोत्सव' का रूप देते-देते उसे `भ्रष्टाचार महोत्सव' बना डाला। `लखनऊ महोत्सव' का मूल स्वरूप एवं उद्देश्य नष्ट कर उसे ऐसे भौंडे मेले का रूप दे दिया गया, जहां भ्रष्ट लोग तरह-तरह से खूब चांदी काट सकें। पूरा `लखनऊ महोत्सव' अफसरों की मौजमस्ती का मेला बना दिया गया। `लखनऊ महोत्सव' के आयोजन में करोड़ों रुपए पूंकने लगे तथा लगभग दो महीने तक तमाम विभाग अपनी समूची शक्ति अपने मूल दायित्वों के निर्वाह में लगाने के बजाय `महोत्सव' की तैयारी एवं व्यवस्था में लगाने लगे। महंगे कलाकार बुलाकर `महोत्सव' को पूरी तरह बाजारू बना दिया गया तथा वहां हुरदंग एवं गुंडागर्दी का बोलबाला होने लगा।

लखनऊ में बुद्धिजीवियों की पुरानी संस्था `विचार मंच' है, जिसकी स्थापना स्वर्गीय चंद्रभानु गुप्त ने की थी। गत दिवस `लखनऊ महोत्सव' विषय पर `विचार मंच' की संगोष्"ाr में वक्ताओं ने `लखनऊ महोत्सव' के वर्तमान रूप की तीखी आलोचना करते हुए मांग की कि या तो `लखनऊ महोत्सव' को अवध संस्कृति एवं लक्ष्मणजी से पूरी तरह जोड़ा जाय, अन्यथा उसे बंद कर दिया जाए। वक्ताओं ने कहा कि `लखनऊ महोत्सव' पूर्णरूपेण भ्रष्टाचार एवं लूट का महोत्सव बन गया है। पिछले कुछ दशकों से `लखनऊ महोत्सव' में जो भ्रष्टाचार हो रहा है, यदि उसकी निष्पक्ष एवं गहन जांच कराई जाए तो बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश होगा। लोगों ने आपत्ति की कि `लखनऊ महोत्सव' ने हमारी परंपरा एवं संस्कृति का पतीक बनने के बजाय ऐसी दुकान का रूप ले लिया है, जहां व्यवसायी की निगाह केवल मुनाफे पर टिकी रहती है। टिकटों से होने वाली आय को आयोजक अफसरों द्वारा ऐसे पेश किया जाता है, जैसे यह उनकी बहुत महान उपलब्धि है। आमदनी दिखाने के चक्कर में बड़े-बड़े हथकंडे किए जाते हैं तथा इसी आधार पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम पर अतिमहंगे कार्यक्रम आयोजित कर वहां हुरदंग एवं गुंडागर्दी को हावी होने दिया जाता है। इस पकार अवध-संस्कृति एवं परंपराओं का गला घोंटा जाता है। इसी से यह आरोप सही सिद्ध हो रहा है कि `लखनऊ महोत्सव' लोगों में सुरुचि को बढ़ावा देने के बजाय कुरुचि को बढ़ावा देने का जरिया बना हुआ है।

योगी आदित्यनाथ जब पदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो उनके राष्ट्रवादी स्वरूप को देखते हुए लोगों को आशा हुई थी कि अब या तो `लखनऊ महोत्सव' लक्ष्मणजी से पूरी तरह जुड़कर अपने मूल उद्देश्य की ओर लौटेगा अथवा उसे बंद कर दिया जाएगा। `लखनऊ महोत्सव' बीच में कुछ वर्ष बंद रह चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह भी घोषणा की थी कि पदेश के सभी जनपदों में परंपरागत मेलों व सांस्कृतिक कार्यक्रमों को सरकारी मदद, संरक्षण एवं पोत्साहन पदान किया जाएगा तथा जिन जनपदों में ऐसे आयोजन नहीं होते हैं, वहां भी उन्हें सम्पन्न कराने के कदम उ"ाए जाएंगे। लेकिन हमारी अफसरशाही अपनी मनमानी करने में इतनी उस्ताद है कि उसने मुख्यमंत्री की उस इच्छा को भी बड़ी चालाकी से किनारे कर दिया। यही कारण है कि `लखनऊ महोत्सव' इस वर्ष भी अपने उसी भोंड़े एवं उद्देश्यहीन रूप में आयोजित हुआ, जैसा पिछले एक अरसे से हो रहा है। अफसरशाही चतुराई दिखाते हुए `लखनऊ महोत्सव' का मुख्यमंत्री से उद्घाटन एवं राज्यपाल से समापन कराकर उनकी शाबाशी पाप्त कर लेती है, जिससे उसके कुकर्म ढंक जाते हैं तथा आलोचकों का मुंह बंद कर दिया जाता है।

`लखनऊ महोत्सव' का रूप यदि सुधारना है तो मुख्यमंत्री को बड़ा कड़ा रुख अपनाना पड़ेगा। उन्हें अफसरों को सख्ती से ताकीद करना पड़ेगा कि `लखनऊ महोत्सव' के स्वरूप में आमूल परिवर्तन कर उसे लक्ष्मणजी से जोड़ा जाए एवं अवध संस्कृति को संरक्षण देने वाले आदर्श पर्व का रूप पदान किया जाए। किन्तु यह परिवर्तन आसानी से नहीं हो सकेगा। विगत दशकों में `लखनऊ महोत्सव' को भ्रष्टाचार के कारण इतना अधिक चलताऊ बना दिया गया है कि उसी रूप को देखने की लोगों को आदत पड़ गई है। भौंडे रूप को अखबारों द्वारा बेहद पचारित कर उस कुरूपता को हर तरह से लोकपिय बना दिया गया है। अतः जब उसका कलेवर बदला जाएगा तो फर्जी सेकुलरिये एवं अन्य स्वार्थी तत्व बहुत हायतोबा मचाएंगे। लेकिन मुख्यमंत्री अपने आदेश का क"ाsरतापूर्वक पालन कराएंगे तो वह विरोध कुछ समय बाद दब जाएगा तथा `लखनऊ महोत्सव' का आदर्श रूप स्थापित हो सकेगा। `लखनऊ महोत्सव' के आयोजन की तिथियां बदलकर उसे जनवरी में आयोजित होने वाले `उत्तर पदेश स्थापना दिवस' समारोह-श्रं=खला का अंग बनाया जा सकता है। पवेश निःशुल्क रखकर इस आलोचना से भी निजात पाई जा सकती है कि `लखनऊ महोत्सव' को परंपरागत सांस्कृतिक पर्व के बजाय आमदनी दिखाने वाली दुकानदारी का रूप दे दिया गया है। `लखनऊ महोत्सव' में महंगे कार्यक्रमों के आयोजन बंद कर वहां कोई भी कार्यक्रम तीन या पांच लाख से अधिक भुगतान वाले नहीं होने चाहिए। जो पायोजक इस समय लाखों रुपए भुगतान के लिए सामने आते हैं, उन्हें उक्त धनराशि रचनात्मक कार्यों में लगाने के लिए पेरित किया जाना चाहिए। `लखनऊ महोत्सव' में महत्वपूर्ण स्थान पर लक्ष्मणजी की विशाल पतिमा अवश्यमेव स्थापित की जानी चाहिए। `महोत्सव' में लखनऊ का सम्पूर्ण इतिहास पदर्शित किया जाना चाहिए, जिसमें एक खंड में नवाबों के समय का लखनऊ दिखाया जा सकता है।

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