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एक ही विकल्प कानून बनाए सरकार

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:6 Dec 2018 3:23 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

क्या केंद्रीय सरकार कानून बनाकर अयोध्या में निर्माण में आने वाली बाधा को दूर कर सकेगी। साधु समाज विश्व हिन्दू परिषद के साथ-साथ अब संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी सरकार से आग्रह किया है कि जिस पकार सोमनाथ के जीर्णोद्वार के लिए राह पशस्त हुई थी उसी पकार अयोध्या में राम मंदिर को बनाने का रास्ता साफ किया जाए। भारतीय जनता पार्टी के लिए राम मंदिर का मुद्दा अब गुड भरा हंसिया बनता जा रहा है। क्या उसकी सरकार के लिए यह संभव है कि सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन रहते हुए भी इस मसले का समाधान कानून बनाकर कर सकती है। पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले दिनों कहा है कि सरकार का इस मसले पर अध्यादेश लाने का कोई विचार नहीं है। यह अभिव्यक्ति स्वाभाविक है। क्योंकि राज्य विधानसभाओं का चुनाव सम्पन्न होने तक आचार संहिता लागू है। यह अवधि 10 दिसम्बर को समाप्त होगी। उसके तत्काल बाद ही संसद का अधिवेशन शुरू हो जाएगा। इसलिए अध्यादेश लाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता। केंद्रीय सरकार लोकसभा में इसके लिए विधेयक पेश कर सकती है। इसका लोकसभा से पारण सरल होगा लेकिन राज्यसभा से निकाल पाना संभव नहीं है। इसके साथ ही यह भी विचारणीय है कि क्या न्यायालय में वाद लंबित होने के बावजूद संसद कानून बना सकती है।

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद से हाल ही में निवृत्त हुए एक न्यायाधीश जो जोजफ ने हाल ही में पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र पर बाहरी दबाव में आकर काम करने का आरोप लगाया है उससे वर्तमान न्यायाधीश रंजन गोगोई जो आरोप कर्ताओं के साथ विद्रोह करने वाले चार न्यायाधीशों के साथ खड़े थे का रुख भी स्पष्ट हो जाता है। वैसे तो पूर्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिन-पतिदिन सुनवाई की व्यवस्था को पहली ही बै"क में जिस पकार टालने का काम वर्तमान मुख्य न्यायाधीश की पी" ने किया है उससे इस मसले में वर्तमान मुख्य न्यायाधीश का रुख स्पष्ट हो जाता है। इसलिए जैसे की अपेक्षा की जा रही है कि जनवरी में सुनवाई कर न्यायालय अंतिम निर्णय पर पहुंच जाएगा संभव नहीं लगता। ऐसी स्थिति में संसद द्वारा यदि कानून बना भी दिया जाए तो उसका हश्र क्या होगा इसका

सहज अंदाज लगाया जा सकता है। यदि केंद्रीय सरकार कानून लेकर आती है तो उससे दो बातें स्पष्ट होंगी एक तो वह अपने समर्थकों की निगाह में कसूरवार होने से बच सकेगी और दूसरे जो लोग यह प्रश्न कर रहे हैं कि मंदिर निर्माण की तारीख बताई जाए उनकी भी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। संसद का शीतकालीन अधिवेशन अंतिम होगा या 2019 के चुनाव से पहले बजट सत्र भी होगा यह कहना अभी निश्चित नहीं है। शीतकालीन सत्र भी इसके जनवरी के मध्य तक चलने की संभावना है। अगले वित्तीय वर्ष के लिए अनुपूरक बजट पारित कर लिया जाता है तो संभव है कि चुनाव से पहले बजट सत्र न हो। अन्यथा फरवरी में शुरू होने वाले बजट सत्र के अपैल तक चलेगा और इस बीच कोई अध्यादेश लाना भी संभव नहीं होगा। सरकार के लिए यह संभव है कि वह बजट सत्र न करे और चुनाव के पूर्व अध्यादेश जारी कर दे। इस समय देशभर में मंदिर निर्माण के मार्ग में बाधाएं दूर करने के लिए व्यापक अभियान चल रहा है। इस अभियान को चलाने वाले में वे लोग शामिल हैं जिनके परिश्रम से केंद्रीय सत्ता में भारतीय जनता पार्टी को बै"ने का स्थान मिला है। इन आंदोलनकारियों में भाजपा के सामने एक चुनौती खड़ी कर दी है।

अधिकांश भाजपाई इस मत के हैं कि कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण का रास्ता पशस्त किया जाए। उन्हें राम मंदिर पक्षधारियों के इस चुनौती से कि मंदिर निर्माण नहीं तो भाजपा को वोट नहीं गंभीर समस्या खड़ी कर दी है। इस परिस्थिति का संज्ञान पधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल को नहीं होगा ऐसा मानना उचित नहीं होगा और उनकी आकांक्षा मंदिर निर्माण के मार्ग को पशस्त करने की नहीं है ऐसा मानना भी अनुचित होगा। लेकिन जो संवैधानिक बाधा है क्या उसका उल्लंघन कर सरकार कोई कदम उ"ा सकेगी। जिसके लिए उसे बार-बार वे लोग उकसा रहे हैं जो मंदिर निर्माण के पक्षधर तो नहीं हैं लेकिन तारीख बड़े चाव से पूछ रहे हैं उसमें वे दल भी शामिल हो गए हैं जो सरकार में हिस्सेदार हैं। एक ओर रामभक्तों में बढ़ता हुआ आक्रोश और दूसरी ओर संवैधानिक बाधा। इसके बीच केंद्रीय सरकार फंस गई है। इस समय विश्व हिन्दू परिषद देशभर में सम्मेलनों का आयोजन कर रही है। राज्यों की राजधानियों के साथ-साथ नई दिल्ली में भी हिन्दू जागरण यात्राएं शुरू हो गई हैं। अयोध्या में आयोजित संत सम्मेलन के बाद अब पुंभ के अवसर पर पयाग में भी ऐसा ही संत सम्मेलन आयोजित हो रहा है जिसमें `अंतिम निर्णय' लेने की घोषणा की जा चुकी है। सबसे महत्वपूर्ण यह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने भी कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता पशस्त करने की आवश्यकता युक्त अभिव्यक्ति की है जिसकी उपेक्षा करना सरकार के लिए संभव नहीं है।

विधानसभा चुनाव जो अभी सम्पन्न हो रहे हैं और 2019 लोकसभा चुनाव के लिए जिस पकार हिन्दुत्व और राम मंदिर मुद्दा बनकर उभरा है उसमें यह तथ्य अंतर्निहित है कि सफलता के लिए पत्येक राजनीतिक दल हिन्दू हितों और हिन्दुत्व की अनुकूलता को सफलता के लिए मार्ग समझकर उसके लिए अपनी पतिबद्धता पकट करने की होड़ में लग गए हैं। कांग्रेस ने जिस पकार असली और नकली हिन्दुत्व का मुद्दा उछाला है तथा हिन्दुत्व की अपनी समझदारी दिखाने के लिए मंदिर परिक्रमा तथा जनेऊधारी होने का अभियान चलाया है उससे यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो गया है। उसने यह भी दावा करना शुरू कर दिया है कि विवादित स्थल पर मूर्ति स्थापित करने ताला खुलवाने और शिलान्यास करवाने का श्रेय कांग्रेस सरकारों को जाता है। ऐसे में उसके लिए कानून बनाने में बाधक बनने की संभावना कम दिखाई पड़ती है। कानून बनाकर राम मंदिर निर्माण का रास्ता पशस्त करने के पबल विरोधी साम्यवादी और उनके समर्थक ही रह गए हैं जिनका राजनीति में अब कोई पभाव नहीं रह गया है जहां तक मुस्लिम संग"नों का संबंध है वे अभिव्यक्ति चाहे जो करें इस विवाद से उब गए हैं और उनकी मंशा साफ जाहिर हो चुकी है कि इस मसले का समाधान शीघ्र होना चाहिए। यही कारण है कि वे न्यायालय चाहे जो फैसला करे उसे मानने की अभिव्यक्ति कर रहे हैं।

राम मंदिर का मामला 2019 के लोकसभा चुनाव का मुख्य मुद्दा बनता जा रहा है। जैसा कि विधानसभा चुनाव में विकास और सुशासन के स्थान पर हिन्दुत्व और राम मंदिर का मुद्दा केंद्र बनता गया उसके अब कोई थमने की संभावना तभी है जब इस पर अंतिम निर्णय हो जाए। सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन मामला चुनाव के पहले निर्णीत हो सकेगा इसकी केई संभावना नहीं है। इसलिए भारतीय जनता पार्टी को अपने समर्थकों से न केवल संतुष्ट करने के लिए बल्कि और अधिक उत्साह के साथ 2019 के चुनाव में सफलता के लिए जुटाने हेतु कानून बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता भले ही उसे सर्वोच्च न्यायालय की बाधा पार करने में सफलता न मिले। यदि सरकार कानून बनाकर बाधा दूर करने में असफल रहती है तो उसके सामने अपने समर्थकों का आक्रोश अगले निर्वाचन में बड़ी बाधा बनकर खड़ा हो जाएगा। इस विरोधाभासी स्थिति में सरकार के लिए निर्णय करना क"िन जरूर है लेकिन राजनीतिक दृष्टि से कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता पशस्त करने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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